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पाकिस्तान में सूफी लोग (सूफिया) धर्म के नाम पर बुराई की जड़ और आधार हैं, जब मैं ने एक आदमी को जिस के बारे में यह कहा जाता है कि वह ज्ञान वाला (आलिम) आदमी है, यह कहते हुए सुन कर दंग रह गया कि : "आप अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वास्तकिव रूप में मुलाक़ात कर सकते है।" उस के कहने का मक़सद यह था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी असली शक्ल में . . . उन के वली के पास आते हैं . . . वे लोग केवल नबी सल्लल्लाहु अलैहि के न मरने का अक़ीदा हनहीं रखते है, बल्कि यह भी कहते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन के औलिया की इन दिनों ज़िन्दा हालत में ज़ियारत भी करते हैं। हम इन का जवाब कैसे दें ? और शरीअत में इन का हुक्म क्या है ?





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।





सब से उत्तम चीज़ जिस के द्वारा किसी बिद्अत का खण्डन करना या त्रुटि को सही करना सम्भव है वह उस के प्रमाण और सुबूत के बारे में प्रश्न करना है, जिस आदमी से उस कथन के प्रमाण और तर्क के बारे में पूछा जाये जिस का वह कहने वाला (समर्थक) है तो उस के विचार और बुद्धि में इस बात की ज़रूरत जन्म लेती है कि उसे अपनी बात को समुचित वैज्ञानिक सबूत और प्रतिरोद्ध से सुरक्षित ठोस तर्क पर आधारित करनी चाहिए, अटकल बातों और कहानियों पर नहीं जो इधर और उधर बयान की जाती हैं, क्योंकि सभी लोग इस बात को स्वीकारते हैं कि यह धर्म का मामला है, इसलिए सभी लोगों को इस बात पर भी सहमत होना चाहिए कि इस धर्म के लिए कैसे इस्तिद्लाल किया जायेगा, और शरीअत की बातों के लिए कैसे हुज्जत पकड़ी जायेगी और किस प्रकार तर्क स्थापित किया जायेगा।





ये लोग जो बेदारी की हालत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखने का गुमान करते है :





या तो ये लोग यह कहें कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी आत्मा और शरीर के साथ जीवित हैं, आप बाहर निकलते हैं, और आते जाते हैं और जिस तरह चाहें इस जगत में चलते फिरते हैं, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस बारे में ऐसे ही हैं जिस तरह कि आप अपने जीवन में थे।





और या तो ये लोग यह कहें कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मर चुके हैं और बर्ज़ख के जीवन में स्थानान्तरित हो चुके हैं जो आप के साथ विशिष्ट है, और जो व्यक्ति आप को देखता है उस के लिए आप की आप के बर्ज़ख के जीवन की छवि प्रकट होती (दिखाई देती) है। (मनुष्य के मरने के पश्चात से लेकर क़ियामत के दिन पुनर्जीवित होने के बीच की अवधि को बर्ज़ख़ कहा जाता है।).





और इन दोनों दावों में उन से क़ुर्आन या सुन्नत या इजमाअ (मुसलमानों की सर्वसहमति) की दलील का मुतालबा किया जायेगा।





हम ने उन दलीलों में जिन के द्वारा कुछ लोग इस्तिदलाल करते हैं, ढूंढा और तलाश किया तो हम ने सिवाय इस के कुछ नहीं पाया जिसे वे कुछ किताबों में उल्लेख करते रहते हैं कि औलिया और सालेहीन के साथ ऐसा पेश आया है, और कुछ व्यक्तियों के नामों को ज़िक्र करते हैं जिन के साथ ऐसा घटित हुआ है।





यह बात स्पष्ट है कि यह इस्तिदलात (तर्क) इस बात पर सक्षम नहीं है कि उस के द्वारा दलील पकड़ी जाये (तर्क स्थापित किया जाये) ; क्योंकि दलील (प्रमाण) का क़ुरआन की कोई आयत या कोई हदीस या इजमाअ (मुसलमानों की सर्वसहमति) या कम से कम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के किसी सहाबी का कथन होना अनिवार्य है, कोई क़िस्सा या कहानी दलील नहीं बन सकती, विशेष तौर पर एक ऐसे मुद्दे में जिस का ताल्लुक़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की व्यक्तित्व और उस के ग़ैब की दुनिया से संबंधित होने से है।





इस पर अधिक यह कि ये सभी कहानियाँ जो बयान की जाती हैं इन पर बहुत सी संभावनायें दाखिल हेती हैं : इन के साबित (प्रमाणित) न होने की संभावना, जिस आदमी के साथ यह कहानी पेश आयी है उस के भ्रम में पड़ने की संभावना, इस के बेदारी में न होकर सपने में होने की संभावना, और यह संभावना कि शैतान ने एक ऐसा रूप धारण कर लिया हो जिस के द्वारा उस ने देखने वाले पर मामले को सन्दिग्ध कर दिया कि यह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की छवि है, इसी तरह यह भी हो सकता है कि यह देखना मात्र कल्पनायें हों जो उस आदमी के मन में उत्पन्न हुईं यहाँ तक कि उस ने उन्हें हक़ीक़त समझ लिया।





फिर आप क्या कहेंगे, अगर हम कुछ ऐसी दलीलें प्रस्तुत कर दें जो (काल्पनिक रूप को छोड़ कर) वास्तविक तौर पर बेदारी की हालत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दिखायी देने का खण्डन करती हैं।





नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद जब अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु लोगों में भाषण देने के लिए खड़े हुये तो फरमाया :





"सुनो, जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पूजा करता था तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हो चुकी, और जो अल्लाह की पूजा करता था तो बेशक अल्लाह तआला ज़िन्दा है वह कभी नहीं मरेगा, और उन्हों ने यह आयत पढ़ी :





"बेशक खुद आप को भी मौत आयेगी और यक़ीनन ये सब भी मरने वाले हैं।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 30)





और अल्लाह तआला का यह फरमान पढ़ा : "मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) केवल एक पैग़म्बर ही हैं, इन से पहले बहुत से पैग़म्बर हो चुके हैं, क्या अगर उन की वफात हो जाए या वह शहीद हो जाएं, तो तुम इस्लाम से अपनी ऐड़ियों के बल फिर जाओ गे ? और जो कोई अपनी ऐड़ियों के बल फिर जाए तो वह हरगि़ज़ अल्लाह तआला का कुछ न बिगाड़ेगा। और अनक़रीब अल्लाह तआला शुक्रगुज़ारों को अच्छा बदला देगा।" (सूरत आल इम्रान : 144)





इसे बुखारी ने रिवायत किया है (हदीस संख्या : 3667)





जब सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, जो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सब से निकट और आप से सब से अधिक प्यार करने वाले और आप की आज्ञाकारिता के प्रति निष्ठा रखने वाले थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मौत का अर्थ समझ गये, और यह कि इस का मतलब यह है कि अब इस के बाद दुनिया में आप के साथ मुलाक़ात नहीं हो सकती, तो फिर ये लोग किस प्रकार दावा करते हैं कि वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुलाक़ात करते हैं और आप के साथ बैठते हैं ?!





शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह कहते हैं :





"इन स्थानों पर उन्हें शैतानी अह्वाल पेश आतें जिन्हें वे लोग रह्मानी (ईश्वरीय) करामतें (चमत्कार) समझते हैं।





उन में से कोई यह देखता है कि क़ब्र वाला उस के पास आया है - जब कि वह बहुत वर्षों पूर्व मर चुका होता है - और वह कहता है : मैं फलां आदमी हूँ। और कभी कभार वह उस से कहता है : हम जब क़ब्र में रखे गये तो बाहर निकल आये, जैसा कि त्यौनिसी के लिए नोमान अस्सलामी के साथ पेश आया था। और शैतान अक्सर बेदारी की हालत में और सपने में इंसान का रूप धारण कर लेते हैं।





और कभी - कभी ऐसे आदमी के पास आते हैं जो नहीं जानता और उस से कहते हैं कि: मैं फलां शैख या फलां आलिम (विद्वान) हूँ। और कभी कहते हैं कि : मैं अबू बक्र और उमर हूँ। और कभी तो शैतान सपने के बजाये बेदारी की हालत में आता है और कहता है कि : मैं मसीह हूँ , मैं मूसा हूँ , मैं मुहम्मद हूँ।





और इस तरह के कई रूप रंग घटित हुए हैं जिन्हें मैं जानता पहचानता हूँ, और ऐसे लोग भी हैं जो इस बात को सच्चा मानते हैं कि अंबिया (पैगंबर) अपनी शक्लों में बेदारी की हालत में आते हैं।





तथा ज़ुह्द, ज्ञान, भक्ति और धर्म वाले ऐसे शुयूख भी हैं जो इस तरह की चीज़ों की पुष्टि करते और सही मानते हैं।





और इन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो यह गुमान करते हैं कि जब वह किसी नबी की क़ब्र के पास आता है तो नबी अपनी क़ब्र से अपनी शक्ल में निकल कर उस से बात करता है।





तथा उन में से कुछ का यह गुमान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हुज्रा (कमरे) से निकल कर उस से बात की। और लोगों ने इसे उस की करामतों (चमत्कारों) में से क़रार दिया। तथा उन में से कुछ का अक़ीदा यह है कि जब उस ने क़ब्र वाले से सवाल किया तो उस ने उसे जवाब दिया।





और उन में से कुछ यह बयान करते थे कि : जब इब्ने मन्दा को किसी हदीस के बारे में कोई समस्या आती थी तो वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हुज्रा के पास आते और उस में प्रवेश कर के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उस के बारे में पूछते थे और आप उन्हें जवाब देते थे।





तथा मोरक्को के एक आदमी के साथ भी इसी तरह पेश आया और इसे उसकी करामतों में से क़रार दिया गया।





यहाँ तक कि इब्ने अब्दुल बर्र ने ऐसा गुमान करने वाले के बारे में फरमाया : तेरा बुरा हो! क्या तू यह समझता है कि यह आदमी मुहाजिरीन और अंसार के पहले पहल ईमान लाने वाले लोगों से अफज़ल (श्रेष्ठ) है ? क्या इन लोगों में से कोई ऐसा आदमी है जिस ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से आप की मृत्यु के बाद कुछ पूछा और आप ने उसे जवाब दिया ?





तथा सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने कई चीज़ों में मतभेद किया तो उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क्यों नहीं पूछा कि आप उन्हें जवाब देते ?!





तथा यह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बेटी फातिमा हैं जिन्हों ने आप की वरासत के बारे में मतभेद किया तो उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि से क्यों नहीं पूछा कि आप उन्हें जवाब देते ?" (इब्ने तैमिय्या की बात समाप्त हुई).





"मजमूउल फतावा" (10/406, 407)





तथा आप रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :





"कहने का उद्देश्य यह है कि शैतान ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को भटकाने और पथ भ्रष्ट करने के लिए आस नहीं लगाया जिस तरह कि उस ने उन के अलावा बिद्अतियों को गुमराह किया जिन्हों ने क़ुरआन की अनुचित तावील (व्याख्या) की, या सुन्नत (हदीस) से अनभिज्ञ रहे, या उन्हों ने कुछ चमत्कार देखे और सुने जिन्हें उन्हों ने पैगंबरों और सदाचारियों की निशानियों (चमत्कारों) के वर्ग से समझ लिया हालांकि वास्तव में वे शैतानों के कृत्यों में से थे, जिस तरह कि उस ने ईसाईयों और बिद्अतियों को इसी तरीक़ें से गुमराह किया। अत: वे सन्दिग्ध चीज़ों का पालन करते हैं और स्पष्ट और सुनिश्चित चीज़ों को छोड़ देते हैं। इसी प्रकार वे विवेकी और भौतिक तर्कों में से भ्रमात्मक और सन्दिग्ध चीज़ों का पालन करते हैं, अत: वह ऐसी चीज़ देखता और सुनता है जिसे वह ईश्वरीय समझता है जबकि वह शैतानी चीज़ होती है, और वे स्पष्ट हक़ बात जिस में कोई सामान्यता नहीं होता है, उसे छोड़ देते हैं।





इसी प्रकार शैतान ने इस बात की भी आस नहीं लगायी कि वह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रूप में प्रकट हो और जो उस से फर्याद करे उस की फर्याद पूरी करे, या उन के पास ऐसी आवाज़ लेकर आये जो आप की आवाज़ के सदृश हो ; क्योंकि जो लोग उसे देखेंगे वे जान जायेग कि यह शिर्क है जो हलाल नहीं है।





इसी तरह वह उन के बारे में इस बात का भी लालायित नहीं हुआ कि उन में से कोई एक अपने साथियों से कहे कि : अगर तुम्हें कोई आवश्यकता पड़े तो मेरी क़ब्र के पास आओ और मुझ से फर्याद करो, न अपने जीवन में और न ही अपनी मृत्यु में, जैसा कि इस तरह की चीज़ें बहुत से बाद में आन वाले लोगों के साथ घटीं।





और न ही शैतान इस बात के लिए आशावान हुआ कि वह उन में से किसी के पास आये और कहे : मैं गैब (परोक्ष) के आदमियों में से हूँ , या चार, या सात, या चीलीस "औताद" में से हूँ, या उस से कहे कि : तुम भी उन्हीं में से हो। क्योंकि यह उन के निकट बातिल और व्यर्थ चीज़ों में से है जिस की कोई सच्चाई नहीं। और न ही शैतान ने इस बात की लालच की कि उन में से किसी के पास आकर कहे कि : मैं अल्लाह का रसूल (पैगंबर) हूँ , या क़ब्र के पास उस से मुखातिब हो जैसा कि उन के बाद बहुत से लोगों के साथ आप की क़ब्र के पास या किसी दूसरे की क़ब्र के पास और क़ब्र के अलावा किसी दूसरे स्थान पर पेश आया।





इसी तरह इन में से बहुत सारी चीज़ें मुशरिकों और अहले किताब (अर्थात यहूदियों और ईसाईयों) के साथ घटित होती हैं वे मरने के बादे अपने उन शुयूख (गुरूओं) को देखते हैं जिन का वे आदर और सम्मान करते हैं, चुनांचि हिन्दुस्तान वाले अपने उन काफिर गुरूओं आदि को देखते हैं जिन का वे आदर करते हैं, और ईसाई लोग उन ईश्दूतों और हवारियों (ईसा मसीह के शिष्यों) वगैरा को देखते हैं जिन का वे आदर और सम्मान करते हैं, और क़िब्ला वालों (अर्थात इस्लाम से सम्बंधित लोगों) में से पथ भ्रष्ट और गुमराह लोग उन लोगों को देखते हैं जिन का वे आदर और सम्मान करते हैं : या तो वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को, या आप के अलावा दूसरे नबियों को बेदारी की हालत में देखते हैं, और वे इन से मुखातिब होते हैं और ये उन से मुखातिब होते हैं, और कभी कभार ये उन से फत्वा पूछते हैं और हदीसों के बारे में प्रश्न करते हैं और वे इन्हें जवाब देते हैं, और उन में से कुछ के मन में यह ख्याल उत्पन्न होता है कि हुज्रा (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कमरा) फट गया है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस से बाहर निकले हैं और आप और आप के दोनों साथी (यानी अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा) उस से गले मिले हैं, और उन में से कुछ के दिल में यह कल्पना पैदा होती है कि उस ने ज़ोर आवाज़ से सलाम पढ़ी है यहाँ तक वह कई दिनों के फासिले पर और दूर दराज़ स्थान तक पहुँच गई है। यह और इस तरह की चीज़ें जिन लोगों के साथ घटी हैं मैं उन में से बहुत से लोगों को जानता पहचानता हूँ। और जिन लोगों ने मुझ से अपने साथ इस तरह की चीज़ें पेश आने को बयान किया है और जिस की दूसरे सच्चे लोगों ने सूचना दी है उन का उल्लेख करने से यह जगह लंबी हो जायेगी।





और यह चीज़ बहुत से लोगों के यहाँ पाई जाती है जैसा कि यह ईसाईयों और मुशरिकों के यहाँ पाई जाती है, लेकिन बहुत से लोग इसे झुठलाते हैं, और बहुत से लोग अगर इस की पुष्टि करते हैं तो उसे ईश्वरीय चमत्कारों में से समझते हैं, और यह कि जिस ने उसे देखा है उस ने उसे अपने सदाचार और धर्म निष्ठा के कारण देखा है, और वह इस बात को नहीं जानता कि यह शैतान की तरफ से है, और यह कि आदमी के ज्ञान की कमी के हिसाब से शैतान उसे भटकाता और गुमराह करता है, और जो व्यक्ति सब से कम ज्ञान वाला होगा उस से ऐसी बात कहेगा जिसे वह जानता है कि वह प्रत्यक्ष रूप से शरीअत के विरूद्ध है।





और जिस व्यक्ति के पास उस का ज्ञान होगा उस से ऐसी बात नहीं कहेगा जिसे वह जानता है कि वह शरीअत के खिलाफ है और न ही ऐसी बात कहेगा जिस से उस के धर्म में कोई लाभ होता हो ; बल्कि उसे कुछ ऐसी चीज़ों से भटका देगा जिसे वह जानता था, अत: यह सब शैतानों का काम है, और वह भले ही यह सोचे कि उस ने कोई लाभ उठाया है परन्तु उसने अपने धर्म में से जिस चीज़ को खो दिया है वह उस से बढ़ कर है।





इसीलिए कभी सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में से किसी ने नहीं कहा कि : उस के पास ख़िज़्र, या मूसा, या ईसा आये थे, और न ही उस ने कभी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जवाब सुना।





इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा जब यात्रा से लौटते तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम पढ़ते थे लेकिन उन्हों ने कभी नहीं कहा कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जवाब सुना है। इसी तरह (सहाबा के बाद) ताबेईन और (उन के बाद) उन के पैरोकारों ने भी इस तरह की कोई बात नहीं कही है। यह चीज़ (सहाबा, ताबेईन और तबा-ताबेईन के) बाद में आने वाले कुछ लोगों के साथ पेश आई है।





इसी तरह सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में से कोई भी व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र के पास नहीं आत था कि आप से किसी ऐसी चीज़ के बारे में पूछे जिस में उन के बीच मतभेद पैदा हुआ हो और जिस के बारे में उन्हें समस्या पेश आ रही हो, न तो चारों खुलफा ने ऐसा किया और न ही उन के अलावा दूसरे सहाबा ने, जबकि वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सब से खास लोग थे।





यहाँ तक कि आप की बेटी फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से भी शैतान ने यह कहने की लालच नहीं की कि : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र के पास जाओ और आप से पूछो कि क्या आप का कोई वारिस होगा या वारिस नहीं होगा।





इसी तर शैतान ने उन के बारे में इस बात की भी आस नहीं लगायी कि उन से कहे कि : सूखा (अकाल) पड़ने पर तुम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मांग करो कि आप तुम्हारे लिए बारिश कि दुआ करें। और न ही यह कहा कि : तुम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म से मांग करो कि आप तुम्हारे लिए विजय की दुआ कर दें, और न यह कि तुम्हारे लिए मग़फिरत की दुआ कर दें, जिस तरह कि वे आप के जीवन में आप से मांग करते थे कि आप उन के लिए बारिश की दुआ कर दें और उन के लिए विजय और मदद की दुआ कर दें।





आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मौत के बाद शैतान ने उन के अन्दर यह आशा नहीं लगाई कि वे आप से इस तरह की चीज़ों की मांग करें।





और न ही तीनों शताब्दियों (खैरुल क़ुरून) के प्रति उस के अन्दर लालच पैदा हुई।





ये गुमराहियाँ मात्र ऐसे लोगों से पैदा हुईं जिनका तौहीद (एकेश्वरवाद) और सुन्नत के बारे ज्ञान बहुत कम था, तो शैतान ने उन्हें गुमराह कर दिया जिस तरह कि उस ने ईसाईयों को उन के मसीह अलैहिस्सलाम और उन से पूर्व के पैगंबरों (उन पर अल्लाह की दया और शान्ति अवतरित हो) की लाई हुई शरीअत के बार में ज्ञान की कमी के कारण गुमराह कर दिया।" (शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या की बात समाप्त हुई).





"मजमूउल फतावा" (27/390 - 393)





तथा आलूसी रहिमहुल्लाह कहते हैं :





"अर्बाबे अह्वाल में से कुछ कामिल लोगों की तरफ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद आप को देखने, आप से सवाल करने और आप से ज्ञान अर्जित करने की जो बात मनसूब (संबंधित) की गई है, हम (इस्लाम की) प्राथमिक शताब्दियों में इस तरह की बातें घटित होने को नहीं जानते।





तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद ही से जब तक अल्लाह की चाहत हुई धार्मिक मुद्दों और दुनिया के मामलों के बारे में सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच मतभेद पैदा हुआ, और उन्हीं सहाबा में अबू बक्र और अली रज़ियल्लाहु अन्हुमा भी हैं, और इन्हीं दोनो सहाबा पर उन सूफिया के अक्सर सिलसिले आकर खत्म होते हैं जिन की तरफ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखने की बात मनसूब की जाती है, और हमें यह बात नहीं पहुँची है कि उन सहाबा में से किसी ने यह दावा किया हो कि उस ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बेदारी की हालत में देखा है और आप से कोई बात प्राप्त की है।





इसी तरह हमें यह बात भी नहीं पहुँची है कि उन सहाबा किराम में से किसी मामले में हैरान आदमी के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रकट हुए हों और उस का मार्गदशZन किया हो और उस की हैरानी का निवारण किया हो।





तथा उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि उन्हों ने कुछ मामलों के बारे में फरमाया: काश कि मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस के बारे में पूछा होता।





और हमारे निकट कहीं भी यह बात प्रमाणित नहीं है कि उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद आप से सवाल किया हो, जिस तरह कि कुछ अर्बाबे अहवाल के बारे में बयान कया जाता है।





आप को पता होगा कि सहाबा किराम ने (विरासत के बटवारे के अध्याय में) भाईयों के साथ दादा के मस्अले के हुक्म के बारे मतभेद किया, तो क्या आप को कहीं यह भी पता चला है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन में से किसी के लिए प्रकट हुये हों और उसे बतलाया हो कि उस में हक़ बात क्या है ?!





आप को यह बात पहुँची है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद फातिमा बुतूल रज़ियल्लाहु अन्हा को कितना भारी दुख पहुँचा, और "फिदक" के मामले में उन के साथ क्या पेश आया, तो क्या आप को यह बात भी पहुँची है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन के लिए प्रकट हुये हों जिस तरह कि सूफिया के लिए प्रकट होते हैं और उन के ग़म को हल्का किया हो और उन से उस (फिदक) की हक़ीक़ते हाल को बयान किया हो ?!





आप ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के बसरा जाने और जमल नामी युद्ध के घटित होने के बारे में सुना होगा, तो क्या आप ने यह भी सुना है कि उन के जाने से पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन के पास आये हों और उन्हें उस से रोका हो ताकि वह दुर्घटना न घटे या उन पर पूरी तरह से हुज्जत क़ायम हो जाये ?!





इन के अलावा अन्य बहुत सी बातें हैं जिन्हें शुमार नहीं किया जा सकता।





निष्कर्ष यह कि हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अपने सहाबा और अहले बैत (परिवार) में से किसी एक के लिए भी प्रकट होने की बात नहीं पहुँची है, जबकि उन्हें इस की कड़ी आवश्यकता थी।





और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मस्जिदे क़ुबा के दरवाज़े के पास प्रकट होना जैसा कि कुछ शिया लोग बयान करते हैं, मात्र मिथ्यारोप और निरा लांछन है।





सारांश यह कि : उन सम्मानित लोगों के लिए आप का प्रकट न होना, और उन के बाद आने वाले लोगों के लिए आप का प्रकट होना : इस के लिए ऐसी व्याख्या की आवश्यकता है जिस से बुद्धि रखने वाले सन्तुष्ट हो सकें।" (आलूसी की बात समाप्त हुई).





"रूहुल मआ़नी" (22 / 38 - 39)





तथा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :





"यह बात ज़रूरी तौर पर (आवश्यक रूप् से) और शरई दलीलों के द्वारा इस्लाम धर्म से सर्वगात है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर स्थान पर मौजूद नहीं हैं, बल्कि आप का शरीर केवल मदीना मुनव्वरा में आप की क़ब्र में मौजूद है, और आप की आत्मा (रूह़) स्वर्ग में अर्रफीक़ुल आ़ला में है, इस पर यह बात दलालत करती है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित है कि आप ने अपनी मृत्यु के समय "तीन बार" फरमाया  कि : "ऐ अल्लाह अर्रफीक़ुल आ़ला में।" फिर आप की मृत्यु हो गई।





तथा सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम और उन के बाद आने वाले इस्लाम के विद्वानों ने इस बात पर सर्वसहमति व्यक्त की है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में दफन किये गये जो आप की मस्जिदे शरीफ के बगल में था, और आज की तारीख तक अभी आप का शरीर उसी में है।





किन्तु आप की आत्मा, तथा अन्य ईश्दूतों और पैगंबरों की आत्मायें तथा मोमिनों की आत्मायें सब के सब स्वर्ग में हैं, लेकिन वे अपनी समृद्धि और पदों में कई श्रेणियों पर हैं जिस एतिबार से की अल्लाह तआला ने हर एक को ज्ञान, विश्वास, और हक़ की ओर निमन्त्रण देने के मार्ग में कठिनाईयों को सहन करने पर सब्र के साथ विशिष्ट किया है।





जहाँ तक कुछ सूफिया के इस गुमान का संबंध है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ग़ैब की बातों को जानते हैं और उन के मीलादुन्नबी वगैरा के समारोहों के समय आप उन के पास उपस्थित होते हैं, तो यह एक व्यर्थ (असत्य) चीज़ है जिस का कोई आधार नहीं है, और जो चीज़ उन्हें इस की तरफ खींच कर लाई है वह उन का क़ुरआन व हदीस और सदाचारी पूर्वजों (सलफ सालेहीन) के तरीक़े से अनभिज्ञ होना है।





अत: हम अल्लाह तआला से अपने लिए और सभी मुसलमानों के लिए उस चीज़ से बचाव और सुरक्षा का प्रश्न करते हैं जिस से उन्हें परीक्षित किया है, तथा हम अल्लाह सुब्हानहु से यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और उन सब को शुद्ध मार्ग का मार्गदर्शन करे, नि:सन्देह वह सब सुनने वाला और क़बूल करने वाला है।" संछेप के साथ संपन्न हुआ।





"मजमूअ़ फतावा इब्ने बाज़" (3 / 381- 383)





हमारी साइट पर इस बात का जवाब पहले गुज़र चुका है, और वहाँ पर विद्वानों के ढेर सारे उद्धरण उल्लिखित किये गये हैं, और यह प्रश्न संख्या : (70364) के उत्तर में है, अत: कृपया उस से लाभ उठायें, तथा प्रश्न संख्या : (21524) का उत्तर भी देखिये।





तथा जो इन विषयों और उद्धरणों के बारे में विस्तृत जानकारी चाहता है, वह "सैदुल फवाइद" नामी साइट पर इस लिंक को देखे :





http://www.saaid.net/feraq/sufyah/30.htm





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।





अह्ले सुन्नत व जमाअत के निकट ईमान (दिल के इक़रार, ज़ुबान से बोलने, और अंगों के द्वारा अमल करने) का नाम है। इस प्रकार यह तीन तत्वों को सम्मिलित है :





1- दिल से इक़रार करना।





2- ज़ुबान से बोलना।





3- अंगों से अमल करना।





जब ऐसी बात है तो वह बढ़े और घटे गा, क्योंकि दिल के द्वारा इक़्रार भिन्न भिन्न होता है, किसी सूचना का इक़रार करना किसी आँखों देखी चीज़ के इक़रार के समान नहीं है, तथा एक आदमी की सूचना का इक़रार दो आदमियों की सूचना के इक़रार करने की तरह नहीं है। इसीलिए इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा था कि :"ऐ मेरे प्रभु! मुझे दिखा तू मृतकों को किस प्रकार जीवित करेगा? (अल्लाह तआला ने) फरमाया: क्या तुम्हें ईमान (विश्वास) नहीं? उत्तर दिया : ईमान तो है किन्तु मेरे हृदय का आश्वासन हो जाएगा।" (सूरतुल-बक़रा: 260)





अत: ईमान दिल के इक़रार, उसके आश्वासन और सन्तुष्टि के ऐतिबार से बढ़ता रहता है, और मनुष्य को अपने मन में इसका एहसास और अनुभव होता है, चुनाँचि जब वह किसी ज़िक्र की मज्लिस में उपस्थित होता है जिसमें उपदेश होता है, और स्वर्ग और नरक का चर्चा होता है तो उसका ईमान बढ़ जाता है यहाँ तक कि ऐसा लगता है मानो वह उसे अपनी आँख से देख रहा है, और जब गफलत पाई जाती है और वह इस मज्लिस से उठ जाता है तो उसके दिल में यह विश्वास कम हो जाता है।





इसी तरह उसका ईमान कथन के ऐतिबार से भी बढ़ता है, क्योंकि जो व्यक्ति कुछ बार अल्लाह का ज़िक्र करता है उस आदमी के समान नहीं है जो सौ बार अल्लाह का ज़िक्र करता है, दूसरा व्यक्ति पहले से बहुत अधिक बढ़कर है।





इसी प्रकार जो आदमी संपूर्ण रूप से इबादत करता है उसका ईमान उस आदमी से कहीं बढ़कर होता है जो इबादत की अदायगी में कमती करता है।





इसी प्रकार अमल का भी मामला है, क्योंकि जब इंसान अपने अंगों से कोई अमल दूसरे आदमी से अधिकतर करता है तो अधिक अमल करने वाले का ईमान कम अमल करने वाले से बढ़कर होता है। ईमान के घटने और बढ़ने का सबूत क़ुर्आन और सुन्नत में भी आया है, अल्लाह तआला का फरमान है :"और हम ने उनकी संख्या केवल काफिरों की परीक्षा के लिए निर्धारित कर रखी है ताकि अह्ले किताब यक़ीन कर लें और ईमान वाले ईमान में बढ़ जायें।" (सूरतुल मुद्दस्सिर :31)





तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :"और जब कोई सूरत उतारी जाती है तो कुछ (मुनाफिक़) कहते हैं कि इस सूरत ने तुम में से किस के ईमान को बढ़ाया है? तो जो लोग ईमानदार हैं इस सूरत ने उनके ईमान में वृद्धि की है और वे खुश हो रहे हैं। और जिन के दिलों में रोग है, इस सूरत ने उन में उनकी गंदगी के साथ और गंदगी बढ़ा दी है और वे कुफ्र की हालत ही में मर गये।" (सूरतुत्तौबा :124,125)





तथा हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :"मैं ने तुम कम दीन और बुद्धि वाली औरतों से अधिक होशियार आदमी के दिमाग को खा जाने वाला किसी को नहीं देखा।"





अत: ज्ञात हुआ कि ईमान घटता और बढ़ता है।





फज़ीलतुश्शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह के फतावा व रसाईल का संग्रह 1/49.





 



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