सामग्री

हम आप से अनुरोध करते हैं कि हिसाब -क़ियामत- के दिन और उसके अज़ाब से संबंधित बातों और पूछे जाने वाले प्रश्नों से हमें सूचित करें।





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए है।





क़ुर्आन और सुन्नत में यह बात प्रमाणित है कि इंसान जब मर जाता है, तो उसने दुनिया में अच्छाई या बुराई में से जो भी छोटा या बड़ा अमल किया है उसके बारे में उस से हिसाब लिया जाता है, अच्छाई पर उसे बदला दिया जाता है और बुराई पर उसे सज़ा मिलती है, और हिसाब व किताब का पहला चरण क़ब्र है। क़ब्र में इंसान से सर्व प्रथम यह पूछा जाता है कि तुम्हारा रब कौन है? तुम्हारा धर्म क्या है? और वह कौन सा आदमी है जो तुम्हारे बीच भेजा गया था? जैसाकि बरा बिन आज़िब रज़ियल्लहु अन्हु की हदीस में है जिसे अबू दाऊद ने अपनी सुनन में (हदीस संख्याः 4753 के अंतरगत) रिवायत किया है। और अल्बानी ने उसे सहीह अबू दाऊद में (हदीस संख्याः 2979 के तहत) सहीह कहा है।





फिर क़ियामत के दिन हर छोटे और बड़े अमल के बारे में उस से हिसाब लिया जायेगा अगरचि क़ब्र में उनके बार हिसाब लिया जा चुका है, और सब से पहले नमाज़ का हिसाब होगा।





अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया : "नि:सन्देह लोगों से क़ियामत के दिन उनके कामों में से सर्व प्रथम नमाज़ के बारे में प्रश्न किया जायेगा।" आप ने फरमाया : "हमारा महान और प्रतिभा वाला पालनहार अपने फरिश्तों से कहेगा -और वह सर्वश्रेष्ठ जानने वाला है- : मेरे बन्दे की नमाज़ को देखो, क्या उसने उसे पूरा किया है या उस में कमी की है?" अगर वह मुकम्मल और परिपूर्ण है तो उसके लिए वह मुकम्मल नमाज़ लिखी जायेगी, और अगर उसमें कुछ कमी की होगी तो अल्लाह तआला फरमाये गा : "देखो क्या मेरे बन्दे की कोई नफ्ल नमाज़ है?" यदि उसकी कोई नफ्ल नमाज़ होगी तो फरमाये गा : मेरे बन्दे की फर्ज़ नमाज़ को उसकी नफ्ल नमाज़ से पूरा कर दो।" फिर इसी तरीक़े से अन्य कामों का हिसाब लिया जायेगा।"





इसे अबू दाऊद ने (हदीस संख्याः 864 के अंतरगत) रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में (हदीस संख्याः 770 के तहत) सहीह कहा है।





तथा बन्दे से क़ियामत के दिन अन्य बातों के बारे में भी पूछा जायेगा जिन में से कुछ यह हैं :





इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया: "क़ियामत के दिन बन्दे के क़दम उसके रब के पास से उस वक़्त नक नहीं टल सकते जब तक कि उस से पाँच चीज़ों के बारे में न पूछ लिया जाये : उसकी आयु के बारे में कि उसने उसे किस चीज़ में बिताई, उसकी जवानी के बारे में कि उसे किस चीज़ में लगाई, उसके धन के बारे में कि उसे कहाँ से कमाया और किस चीज़ में खर्च किया, और जो कुछ उसे ज्ञान प्राप्त था उस के अनुसार कितना अमल किया।"





इस हदीस को इमाम तिर्मिज़ी ने (हदीस संख्याः 2422 के तहत) रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे (हदीस संख्याः 1969 के तहत) हसन कहा है।





और उम्मतों (समुदायों) से क़ियामत के दिन पूछा जायेगा : "तुम ने सन्देष्टाओं को क्या जवाब दिया था।" (सूरतुल क़सस : 65)





ये थीं कुछ वो बातें जिनके बारे में बन्दे से क़ियामत के दिन प्रश्न किया जायेगा, अत: अपनी नजात (मुक्ति) के लालायित और अभिलाषी बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि प्रश्न का उत्तर तैयार कर ले। हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि हमें शुद्ध मार्ग दिखाये।





 





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर





उन काफिरों का अंजाम क्या है जिन्हें इस्लाम का निमंत्रण नहीं पहुँचा है?





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए है।





अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का यह न्याय है कि वह किसी क़ौम को संदेश पहुँचाने और हुज्जत स्थापित करने के बाद ही सज़ा देता है, और तुम्हारा पालनहार किसी पर ज़ुल्म नहीं करता, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है : "और हम सज़ा नहीं देते यहाँ तक कि हम किसी संदेष्टा को भेज दें।" (सूरतुल इस्राः 15) इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्या करते हुए कहते हैं : अल्लाह तआला का कथन : "और हम सज़ा नहीं देते यहाँ तक कि हम किसी संदेष्टा को भेज दें।" अल्लाह तआला के न्याय की सूचना देता है, और यह कि अल्लाह किसी को सज़ा नहीं देता मगर उसकी ओर सन्देष्टा को भेजकर उस पर हुज्जत क़ायम करने के बाद, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "जब कभी उसमें कोई गिरोह डाला जायेगा उस से नरक के दरोगा पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था? वे जवाब देंगे कि बेशक आया तो था, लेकिन हम ने उसे झुठलाया और कहा कि अल्लाह ने कुछ भी नाज़िल नहीं किया, तुम बहुत बड़ी गुमराही में ही हो।" (सूरतुल मुल्क : 8-9)





इसी तरह अल्लाह तआला का यह फरमान : "और काफिरों के झुण्ड के झुंड नरक की तरफ हाँके जायेंगे, जब वे उसके क़रीब पहुँच जायेंगे, उसके दरवाज़े उनके लिए खोल दिये जायेंगे और वहाँ के रक्षक (निगराँ) उन से पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम में से रसूल (सन्देष्टा) नहीं आये थे? जो तुम पर तुम्हारे रब की आयतें पढ़ते थे और तुम्हें इस दिन के भेंट से सावधान करते थे, ये जवाब देंगे कि हाँ, क्यों नहीं, लेकिन अज़ाब का हुक्म काफिरों पर साबित हो गया।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 71)





जिस आदमी ने इस्लाम के बारे में और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में नहीं सुना है और उसे शुद्ध रूप से इस्लाम की दावत (निमंत्रण) नहीं पहुँची है, तो अल्लाह तआला उसे कुफ्र की हालत में मरने पर सज़ा नहीं देगा। यदि कहा जाये कि: तो फिर उसका अंजाम और ठिकाना क्या है? तो उसका उत्तर यह है किः अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उसकी परीक्षा लेगा, अगर उसने आज्ञा पालन किया तो स्वर्ग में जायेगा, और यदि नाफरमानी किया तो नरक में जायेगा, इसका प्रमाण अल-अस्वद बिन सरीअ़ की हदीस है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "चार लोग क़ियामत के दिन बहस करेंगे, एक बहरा आदमी जो कुछ नहीं सुनता, एक बेवक़ूफ आदमी, और एक बूढ़ा आदमी और एक वह आदमी जो दो पैगंबरों के बीच की अवधि में मर गया हो। बहरा आदमी कहेगा कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ सुनता ही नहीं था। बेवक़ूफ आदमी कहेगा कि इस्लाम इस हाल में आया कि बच्चे मुझे मेंगनी से मारते थे, और बूढ़ा आदमी कहेगा कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ समझता बूझता ही नहीं था, और दो नबियों के बीच की अवधि में मरने वाला आदमी कहेगा कि मेरे रब मेरे पास तेरा कोई सन्देष्टा नहीं आया। तो अल्लाह तआला उनसे अह्द व पैमान (प्रतिज्ञा) लेगा  कि वे उसकी अवश्य आज्ञा पालन करेंगे। फिर उनके पास सूचना भेजे गा कि जहन्नम में दाखिल हो जाओ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "उस अस्तित्व की क़सम जिसके हाथ में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जान है, यदि वे उसमें प्रवेश कर लेते हैं तो वह उनके लिए ठंडी और शांति वाली हो जायेगी।





और एक रिवायत में है कि : "जो उस में दाखिल हो गया उस पर वह ठंडी और शांति वाली बन जायेगी, और जो उसमे दाखिल नहीं होगा, वह उसकी तरफ घसीट लिया जायेगा ..."  इसे इमाम अहमद और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़ हदीस संख्या : 881 के अंतरगत सहीह कहा है।





अत: हर वह व्यक्ति जिसे उचित ढंग से इस्लाम की दावत पहुँच चुकी है उस पर हुज्जत क़ायम हो चुकी है, और जो इस हाल में मरा है कि उसे दावत नहीं पहुँची या अनुचित रूप से पहुँची है तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है, वह अपनी सृष्टि को सर्वश्रेष्ठ जानता है और तुम्हारा रब किसी पर अत्याचार नहीं करता है, और अल्लाह तआला बन्दों को जानने वाला है।





शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद



हाल के पोस्ट

जैविक विकास - एक इस्ल ...

जैविक विकास - एक इस्लामी परिप्रेक्ष्य

सृजनवाद, विकासवाद, बु ...

सृजनवाद, विकासवाद, बुद्धिमान डिज़ाइन या इस्लाम?

एक मुस्लिम उपदेशक का ...

एक मुस्लिम उपदेशक का एक ईसाई व्यक्ति के लिए एक संदेश

शवल के छह दिन के उपवा ...

शवल के छह दिन के उपवास का पुण्य