क्या इस्लाम में प्यार की कहानी के बाद की जाने वाली शादी अधिक स्थिरता वाली है या वह शादी जिसे परिवार के लोग संगठित करते हैं ?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
इस शादी का मामला इस आधार पर भिन्न होता है कि वह प्यार इस (शादी) से पूर्व कैसा था। यदि दोनों पक्षों के बीच जो प्यार था उसने अल्लाह तआला की शरीअत का उल्लंघन नहीं किया और दोनों साथी अवज्ञा (पाप) में नहीं पड़े: तो यह आशा की जाती है कि इस प्यार से निष्किर्षित होने वाली शाली अधिक स्थायी और स्थिर होगी; क्योंकि यह उन दोनों के एक दूसरे में रूचि रखने के नतीजे में हुई है।
यदि किसी आदमी का दिल किसी ऐसी औरत से लग जाये जिस से शादी करना उसके लिए जाइज़ है तो उसके लिए शादी के अलावा कोई अन्य समाधान नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: "प्रेमियों के लिए शादी के समान हमने कोई चीज़ नहीं देखी।" इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या: 1847) ने रिवायत किया है, तथा बोसीरी ने इसे सहीह कहा है इसी तरह अल्बानी ने भी "अस्सिलसिला अस्सहीहा" (हदीस संख्या: 624) में इसे सहीह कहा है।
अल्लामा सिंधी कहते हैं -जैसा कि सुनन इब्ने माजा के हाशिया में है -:
"आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान "प्रेमियों के लिए शादी के समान हमने कोई चीज़ नहीं देखी।" में "प्रेमियों" के शब्द में दो और दो से अधिक दोनों की संभावना है, और सका अर्थ यह है कि: जब दो के बीच प्रेम हो तो उस प्रेम को शादी के समान कोई अन्य संबंध न बढ़ा सकता है और न ही उसे सदैव बाक़ी रख सकता है, यदि उनके बीच उस प्रेम के साथ शादी भी हो जाये तो वह प्रेम प्रति दिन बढ़ता ही जायेगा और उसमें शक्ति पैदा होगी। (सिंधी की बात समाप्त हुई).
और यदि यह शादी अवैध प्रेम संबंध के परिणाम में हुई है जैसे कि उस प्रेम में मुलाक़ातें, एकांत (खल्वत) और चुंबन और इसके समान अन्य चीज़ें होती थीं, तो वह शादी स्थिर नहीं होगी ; इस कारण कि इन लोगों ने शरीअत का उल्लंघन किया है और उस पर अपने जीवन का आधार रखा है जिसके परिणामस्वरूप बर्कत (ईश्वरीय आशीर्वाद) और तौफीक़ में कमी हो सकती है। क्योंकि पाप इस का सबसे बड़ा कारण हैं, यद्यपि बहुत से लोगों को शैतान के आकर्षण से यह प्रतीक होता हैं कि प्रेम -जबकि उसमें शरीअत का उल्लंघन पाया जाता है- शादी को अधिक मज़बूत बनाता है।
फिर ये अवैध संबंध जो उन दोनों के बीच शादी से पूर्व स्थापित थे उन दोनों में से हर एक के दूसरे के बारे में संदेह करने का कारण बन सकते हैं, चुनाँचि पति सोचे गा कि हो सकता है कि उसकी पत्नी इस तरह के (अवैध) संबंध उसके अलावा किसी और के साथ भी रखती रही हो, यदि वह इस सोच को टाल देता है और इसे असंभव समझता है तो वह अपने बारे में सोचे गा कि उसके साथ ऐसा घटित हुआ है। बिल्कुल यही मामला पत्नी के साथ भी होगा, वह अपने पति के बारे में सोचे गी कि संभव है कि वह किसी अन्य महिला के साथ संबंध रखता हो, यदि वह इसे असंभव समझती है तो वह अपने बारे में सोचे गी कि उसके साथ ऐसा हुआ है।
इस तरह पति-पत्नी में से प्रत्येक संदेह, शक और बदगुमानी (अविश्वास) में जीवन व्यतीत करेंगे, और इसके परिणाम स्वरूप दोनों के बीच का रिश्ता जल्दी ही या बाद में नष्ट हो जाये गा। तथा संभव है कि पति अपनी पत्नी की निंदा करे कि उसने अपने लिए इस बात को स्वीकार कर लिया कि उसके साथ शादी से पहले संबंध बनाये, जिसके कारण उसे चोट और पीड़ा पहुँचे गी और उनके बीच का संबंध दुष्ट हो जायेगा।
इसलिए हमारे विचार में वह शादी जो शादी से पूर्व अवैध संबंध पर क़ायम होती है वह अक्सर स्थिर और सफल नहीं होती है।
जहाँ तक परिवार के लोगों (माता पिता) के चयन करने का प्रश्न है, तो वह न तो सब के सब अच्छी होती है और न ही सब के सब बुरी होती है। यदि माता पिता का चुनाव अच्छा है, और महिला धार्मिक और सुंदर है, और यह पति की पसंद के अनुकूल है और वह उस से शादी की इच्छा रखता है: तो आशा है कि उन दोनों की शादी स्थिर और सफल होगी। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शादी का प्रस्ताव देने वाले को वसीयत की है कि वह उस महिला को देख ले जिसे शादी का पैगाम दे रहा है। मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने एक औरत को शादी का पैगाम दिया तो इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "तुम उसे देख लो क्योंकि यह इस बात के अधिक योग्य है कि तुम दोनों के बीच प्यार स्थायी बन जाये।’’ इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1087) ने रिवायत किया है और उसे हसन कहा है तथा नसाई (हदीस संख्या: 3235) ने रिवायत किया है।
इमाम तिर्मिज़ी ने फरमाया: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन "तुम्हारे बीच महब्बत पैदा होने के अधिक योग्य है।" का अर्थ यह है कि तुम दोनों के बीच महब्बत और प्यार के स्थायी होने के अधिक संभावित है।
यदि माता पिता ने अच्छा चुनाव नहीं किया है, या उन्हों ने चुनाव अच्छा किया परंतु पति उस पर सहमत नहीं है तो आम तौर पर इस शादी को असफलता और अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जो चीज़ अरूचि और गैरदिल्चस्पी पर आधारित हो वह अक्सर स्थिर नहीं रहती है।
और अल्लाह सर्वशक्तिमान ही अधिक ज्ञान रखता है।
क्या गंजापन उन दोषों में से है जिनके बारे में मंगेतर को सूचना देना अनिवार्य है?
मेरे सिर के अगले हिस्से में हल्के बाल हैं, अर्थात सामने से मेरे सिर के पूरे बाल हल्के हैं, और मेरे सिर की त्वचा दिखाई देती है। तथा मेरे सिर के पीछे का एक छोटा हिस्सा भी इसी तरह है। तो क्या मेरे लिए संभव है कि मैं किसी वैध या अनुमेय कार्य के लिए आवेदन करूँ, जबकि वह अपने नये रूप में दिखाई दे रहा हो। यदि मैं उस पर सुरमे (काजल) का रंग लगाकर नौकरी के लिए आवेदन करूँ तो इस बारे में आपका क्या विचार है?
क्या इससे यह समझा जायेगा कि मैं ने अपनी कंपनी के मालिक या मैनेजर के साथ धोखा किया है और मेरा वेतन संदिग्ध होगा? या कि मैं अपने काम और कड़ी मेहनत का वेतन लेता हूँ और उसका मेरे बालों से कोई संबंध नहीं है?
दूसरा : क्या अगर मैं शादी करूँ और अपनी मंगेतर को अपने सिर के बाल का तथ्य न बताऊँ, या उदाहरण के तौर पर यदि मैं उसे खुलकर बता दूँ परंतु वह मेरे सिर को न देखे, तो क्या मेरा निकाह व्यर्थ (अमान्य) समझा जायेगा?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
प्रश्न संख्या (194116) के उत्तर में यह बीत चुका है कि : गंजापन को छुपाने के लिए सुरमा (काजल) लगाने में कोई समस्या नहीं है, और इसे अल्लाह सर्वशक्तिमान की रचना में परिवर्तन करना नहीं समझा जायेगा, बल्कि वह अनुमेय सजावट (श्रृंगार) में से है।
तथा आप के लिए नियोक्ता (मालिक) को इसके बारे में सूचना देना ज़रूरी नहीं है ; क्योंकि यह आपके कार्य को प्रभावित नहीं करता है, इसलिए आपके वेतन पर इसका कोई प्रभाव नहीं है।
दूसरा :
दरअसल विवाह करने वाले कि लिए उन दोषों को छुपाना जायज़ नहीं है जो वैवाहिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जैसे कि वे पत्नी को उससे घृणित करने वाले हों, या उन दोनों के बीच आनंद उठाने में रूकावट बनते हों, या उसके अपनी पत्नी के अधिकारों को पूरा करने में गड़बड़ी पैदा करते हों।
इस आधार पर :
यदि गंजापान थोड़ा, व्यावहारिक और प्रचलित है, तो आपके लिए उसे बयान करना ज़रूरी नहीं है।
परंतु यदि गंजापन संपूर्ण रूप से है, जो घृणा का कारण बन सकता है, या शादी के बारे में महिला के फैसले को प्रभावित कर सकता है, तो ऐसी स्थिति में उसे छिपाना जायज़ नहीं है ; क्योंकि यह धोखा और छल है।
आपके लिए बाल प्रत्यारोपण करवाने के लिए सर्जरी करवाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, और इसके द्वारा इन शा अल्लाह द्वोष समाप्त हो जायेगा।
अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (13215) और (47664) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
शादी के अनुबंध पर चार महिलाओं की गवाही पर्याप्त नहीं है
चार महिलाओं की गवाही पर निकाह का क्या हुक्म है? जिस व्यक्ति ने शादी की है उसका गुमान यह था कि दो महिलाओं की गवाही एक आदमी की गवाही के बराबर है, इस आधार पर चार महिलाओं की गवाही पर लड़की के माता पिता की स्वीकृति से विवाह संपन्न हुआ। लेकिन वे दोनों निकाह के समय मौजूद नहीं थे। तो क्या यह निकाह सही है या नहीं? और यदि वह सहीह नहीं है तो अब क्या करना चाहिए ?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
विद्वानों की बहुमत ने निकाह के सहीह होने के लिए दो न्याय प्रिय लोगों की गवाही होने की शर्त लगाई है। और उनके यहाँ निकाह में महिलाओं की गवाही सही नहीं है। चाहे चार महिलाएं गवाही दें या एक आदमी और दो महिलाएं गवाही दें। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ''वली और दो न्याय प्रिय गवाहों के बिना निकाह सही नहीं है।'' इसे बैहक़ी ने इमरान और आयशा की हदीस से रिवायत किया है। और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 7557) में इसे सही कहा है।
इब्ने क़ुदामा ''अल-मुग़नी'' (8/7) में फरमाते हैं : ''एक पुरूष और दो महिलाओं की गवाही से निकाह संपन्न नहीं होगा।'' यही नखई, औज़ाई और शाफेई का थन है।
क्योंकि ज़ुहरी का कहना है : ‘‘पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह सुन्नत (परंपरा) चली आ रही है कि हुदूद (शरई दण्ड) में महिलाओं की गवाही जायज़ नहीं है, इसी तरह निकाह और तलाक़ में भी है।'' इसे अबू उबैद ने किताब ‘‘अल-अमवाल'' में रिवायत किया है। संक्षेप के साथ अंत हुआ।
इसी कथन को इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों ने चयन किया है। उनका कहना है कि : निकाह के अनुबंध में औरत के वली का शादी के अनुबंध पर गवाह रखे बिना उस व्यक्ति के साथ उसकी शादी करने पर सहमत हो जाना जिसने उसे शादी के लिए प्रस्तावित किया है, काफी नहीं है। भले ही उन दोनों की ओर से ईजाब व क़बूल पाया जाता हो। बल्कि दो न्याय प्रिय गवाहों का शादी के अनुबंध के समय उपस्थिति होना ज़रूरी है ; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन से रिवायत किया गया है कि : ''वली और दो न्याय प्रिय गवाहों के बिना निकाह नहीं है।'' अंत हुआ।
फतावा स्थायी समिति 18/182
अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, अब्दुल्लाह बिन क़ऊद, अब्दुल्लाह बिन गुदैयान
हनफिया का मत : यह है कि एक पुरूष और दो औरतों की गवाही से निकाह सही है। ''बदाये-उस्सनाइअ'' (2/255).
तथा कुछ अइम्मा जैसे इमाम मालिक, इस बात की ओर गए हैं कि अनिवार्य निकाह का एलान करना है, गवाही नहीं। अतः जब भी निकाह का एलान हो गया तो वह निकाह सही है चाहे उस पर गवाह रखा है या उस पर गवाह नहीं रखा है।
इस कथन को शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने चयन किया है, तथा वर्तमान विद्वानों में से शैख इब्ने उसैमीन ने इसे चयन किया है।
देखिए : ''मजमूओ फतावा इब्ने तैमिया'' (32/127), ''अल-इख्तियारात'' (पृष्ठ 210), ''अश-शरहुल मुम्ते'' (12/94).
इन लोगों ने निकाह के अंदर दो गवाहों की शर्त लगाने के बारे में वर्णित हदीसों पर ज़ईफ़ (कमज़ोर) होने का हुक्म गलाया है। अतः इस कथन के आधार पर : यदि निकाह का ऐलान किया गया है तो वह सही है।
लेकिन आपके लिए अधिक एहतियात और सावधानी का पत्र यह है कि आप दो गवाहों की उपस्थिति में निकाह के अनुबंध को दोहरा लें, क्योंकि इस बाबत वर्णित हदीसों के सहीह होने की संभावना है, तथा जमहूर विद्वानों के विचार को ध्यान में रखते हुए। तथा इसलिए भी कि इस मामले का संबंध एक महत्वपूर्ण चीज़ निकाह से है।
चेतावनी : आपके प्रश्न में आया है कि बीवी का बाप मौजूद नहीं था। तो यदि उसने किसी व्यक्ति को अपना वकील निर्धारित किया था कि वह उसकी बेटी का विवाह कर दे, तो निकाह सही है। क्योंकि औरत अपना विवाह स्वयं नहीं करेगी। बल्कि जमहूर विद्वानों के कथन के अनुसार उसका वली (अभिभावक) या उसके वली का वकील उसका विवाह करेगा। उसका निकाह से संतुष्ट होने का ज्ञान होना काफी नहीं है।
यदि वह स्वयं या उसका वकील उपस्थित नहीं थे, तो निकाह सही नहीं है। और ऐसी स्थिति में दुबारा अक़्दे निकाह करना अनिवार्य है। तथा प्रश्न संख्या (97117) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर
क्या वेब केमरा के माध्यम से निकाह करना सहीह है? क्योंकि मैं ने सुना है कि विवाह की शर्तों में से बैठक (सभा) का एक होना है।
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
ईजाब व क़बूल विवाह के स्तंभों में से एक स्तंभ है, जिसके बिना वह शुद्ध नहीं होता है। ईजाब उस शब्द को कहते हैं जो वली (लड़की के अभिभावक) या उसके वकील (एजेंट) की ओर से जारी होता है। तथा क़बूल (स्वीकृति) : वह शब्द है जो पति या उसके अभिभावक की ओर से जारी होता है।
तथा ईजाब व क़बूल का एक ही बैठक (सभा) में होना शर्त है। ''कश्शाफुल क़िनाअ'' (5/41) में कहा गया है : ''यदि क़बूल (स्वीकृति) ईजाब से विलंब हो जाती है तो सही है जबतक कि वे दोनों उसी सभा में हैं और वे दोनों ऐसी चीज़ में व्यस्त नहीं हुए हैं जो परंपरागत रूप से उसे काट देती है, भले ही जुदाई लंबी हो गई हो ; और यदि वे दोनों क़बूल से पहले और ईजाब के बाद अलग हो जाते हैं तो ईजाब व्यर्थ और अमान्य हो जाता है। इसी तर यदि वे दोनों ऐसी चीज़ में व्यस्त हो जाते हैं जो परंपरागत उसे (यानी सभा के एक होने को) काट देती है, तब भी यही हुक्म होगा। क्योंकि यह उसके उपेक्षा करने का प्रतीक है तो वह ऐसे ही है जैसे कि यदि वह उसे ठुकरा दे।
कुछ परिवर्तन के साथ अंत हुआ।
इसी तरह विवाह के शुद्ध होने के लिए गवाही की भी शर्त लगाई जाती है।
इस आधार, पर विद्वानों ने टेलीफोन और इंटरनेट जैसी आधुनिक साधनों (सुविधाओ) द्वारा विवाह के अनुबंध के संचालन के बारे में मतभेद किया है। उनमें से कुछ विद्वानों ने गवाही के अभाव की वजह से इससे रोका है, जबकि वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि एक ही समय पर दो आदमियों का टेलीफोन पर उपस्थित होना, एक ही सभा में होने के हुक्म में है। इसी बात को इस्लामी फिक़्ह परिषद ने मान्यता दी है।
जबकि कुछ लोगों ने विवाह के लिए एहतियात और सावधानी का पक्ष अपनाते हुए इससे मना किया है। क्योंकि संभव है कि आवाज़ की नक़ल कर ली जाय और धोखा हो जाए। इफ्ता की स्थायी समिति ने इसी का फत्वा दिया है।
तथा कुछ लोगों ने इसे जायज़ ठहराया है यदि खिलवाड़ और हेरफेर के खतरे से सुरक्षित हो। शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने इसी का फत्वा दिया है।
इससे पता चलता है कि समस्या और दुविधा सभा के एक होने में नहीं है, क्योंकि दोनों पक्षों की ओर से एक ही समय में टेलीफोन या इंटरनेट द्वारा संपर्क एक ही सभा का हुक्म रखता है।
तथा इस अनुबंध पर गवाही रखना संभव है, टेलीफोन या इंटरनेट द्वारा बोलने वाले की आवाज़ को सुनकर। बल्कि आज के वैज्ञानिक प्रगति की छत्रछाया में वली (अभिभावक) को देखना और ईजाब के दौरान उसकी आवाज़ सुनना संभव है, इसी तरह पति को भी देखना संभव है।
इसलिए, इस मुद्दे में प्रत्यक्ष कथन यह है कि : टेलीफोन या इंटरनेट के माध्यम से विवाह करना जायज़ है यदि वह खिलवाड़ और हेरफेर के खतरे से सुरक्षित हो, पति और वली के व्यक्तित्व की जाँच कर ली गई हो, और दोनों गवाहों ने ईजाब व क़बूल को सुना हो। शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लसह ने इसी का फत्वा दिया है, जैसाकि बीत चुका है। तथा यही स्थायी समिति के फत्वा की अपेक्षा है जिन्हों ने यहाँ पर सावधानी के तौर पर और धोखे की आशंका पर विवाह से मना किया है।
जो व्यक्ति सुरक्षा और बचाव चाहता है, वह वकील बनाकर विवाह आयोजित कर सकता है। चुनाँचे पति या वली (अभिाभावक) किसी को वकील बना दे जो उनके लिए दो गवाहों के सामने विवाह आयोजित करे।
हम ने विद्वानों की जिस बात की ओर संकेत किया है निम्न में उसके मूलशब्द हैं :
1- इस्लामी फिक़्ह परिषद की क़रारदाद :
क़रारदाद संख्या : 52 (6/2) संपर्क के आधुनिक उपकरणों द्वारा विवाह का अनुबंद्ध आयोजित करने के प्रावधान से संबंधित
परिषद ने संपर्क के आधुनिक उपकरणों द्वारा अनुबंधों के आयोजित करने की वैद्धता का फैसला करने के बाद फरमाया :
''फिछले नियम निकाह को सम्मिलित नहीं हैं क्योंकि उसमें गवाह रखने की शर्त लगाई जाती है।'' परिषद की बात समाप्त हुई।
2- इफ्ता की स्थायी समिति का फत्वा :
प्रश्न : यदि निकाह के स्तंभ और उसकी शर्तें पाई जाती हों परन्तु वली (अभिभावक) और पति उनमें से हर एक अलग-अलग शहर में हों, तो क्या टेलीफोन के द्वारा विवाह का अनुबंध आयोजित करना जायज़ है या नहीं ?
''इन दिनों धोखेबाज़ी और छल की बहुलता, तथा लोगों के एक दूसरे की बात का नक़ल उतारने में कुशलता, और यह देखते हुए कि वे दूसरों की उनकी आवाज़ों में नक़ल उतारने में निपुड़ता यहाँ तक कि उनमें से एक व्यक्ति छोटे व बड़े, पुरूषों व महिलाओं के एक समूह का अभिनय करने पर सक्षम होता है। तथा वह उनकी आवाज़ों में और उनकी विभिन्न भाषाओं में उनकी इस प्रकार नक़ल उतारता है कि सुनने वाले के दिल में यह बात आती है कि बोलने वाले अनेक व्यक्ति हैं, जबकि वह एक ही व्यक्ति होता है। तथा इस्लामी शरीअत के सतीत्व और इज़्ज़त व आबरू की रक्षा और उसके लिए अन्य मामलों के अनुबंधों से अधिक एहतियात व सावधानी बरतने को देखते हुए - समिति का विचार यह है कि निकाह के अनुबंधों में ईजाब व क़बूल और वकील बनाने में टेलीफोन द्वारा बातचीत पर भरोसा करना उचित नहीं है ; ताकि शरीअत का उद्देश्य प्राप्त हो सके और सतीत्व की रक्षा करने में अतिरिक्त ध्यान दिया जा सके। ताकि इच्छा के पुजारी और वे लोग जिनके दिलों में धोखाधड़ी और छल का ख्याल पैदा हो रहा है, खिलवाड़ न कर सकें। और अल्लाह ही तौफीक़ देनेवाला है। ''फतावा स्थायी समिति'' (18/90) से अंत हुआ।
3- शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह का फत्वा :
प्रश्न : मैं एक युवती से शादी करना चाहता हूँ और उसका बाप एक दूसरे शहर में है। मैं इस समय उसके पास यात्रा करने पर सक्षम नहीं हूँ ताकि हम शादी की कार्रवाई के लिए एक साथ एकत्र हो सकें। इसके आर्थिक या अन्य कारण हैं, और मैं प्रवासी हूँ। तो क्या मेरे लिए जायज़ है कि मैं उसके बाप से संपर्क स्थापित करूँ और वह मुझसे कहे कि मैं ने अपनी बेटी फलाँ की तुझसे शादी कर दी और मैं कहूँ कि मैं ने क़बूल किया, और लड़की संतुष्ट (रज़ामंद) हो। तथा दो मुसलमान गवाह हों जो मेरी और उसकी बात चीत को टेलीफून के माध्यम से लाउड स्पीकर के द्वारा सुन रहे हों ? और क्या इसे शई निकाह समझा जायेगा?
उत्तर :
''साइट ने इस प्रश्न को शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ रहमिहुल्लाह पर पेश किया तो उन्हों ने उत्तर दिया कि जो बात उल्लेख की गई है यदि वह सहीह है (और उसमें कोई खिलवाड़ और हेरफेर नहीं है) तो उससे शरई निकाह के अनुबंध की शर्तों का लक्ष्य प्राप्त हो जाता है और निकाह का अनुबंध सहीह हो जाता है।
तथा प्रश्न संख्या (2201) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर