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প্রশ্ন: আমার প্রশ্নটির বিভিন্নরকম উত্তর পাওয়া যায়। সহবাসকালে কোন কিছু পড়া কি আবশ্যকীয়? প্রথমবার সহবাস করার পূর্বে নামায পড়া কি মুসলিম স্বামী-স্ত্রীর উপর আবশ্যকীয়?





उत्तर




সমস্ত প্রশংসা আল্লাহর জন্য।





 ইসলামী আদব হচ্ছে কোন মুসলিম তার স্ত্রীর সাথে সহবাস করার পূর্বে নিম্নোক্ত বাক্যটি পড়বে, বিসমিল্লাহ্‌। আল্লাহুম্মা জান্নিবনাশ শায়তান ও জান্নিবিশ শায়তানা মা রাযাকতানা (আল্লাহর নামে শুরু করছি। হে আল্লাহ, আমাদেরকে শয়তান হতে বাঁচান এবং আমাদেরকে যদি কোন সন্তান দেন তাকেও শয়তান হতে বাঁচান) [সহিহ বুখারী, ফাতহুল বারি হাদিস নং ১৩৮]





 এই দোয়াটি পড়ার উপকার হচ্ছে- যদি এই সহবাসের মাধ্যমে আল্লাহ কোন সন্তান দান করেন তাহলে শয়তান তার কোন ক্ষতি করতে পারবে না।





 আর বাসর রাতে বর কনেকে কি বলবে সেটা ইতিপূর্বে (854) নং প্রশ্নোত্তরে উল্লেখ করা হয়েছে।





ইসলাম জিজ্ঞাসা ও জবাব





उसकी पत्नी का विचार है कि नक़ाब अनिवार्य नहीं है तो क्या वह उसे इस पर बाध्य करेगा ॽ





मैं ने इस बारे में कई फत्वे पढ़े हैं कि विद्वानों के सबसे राजेह (दृढ़) राय के अनुसार नक़ाब पहनना अनिवार्य है, किंतु मेरी पत्नी अन्य विद्वानों के राय को अपनाते हुए इस बात से आश्वस्त है कि यह मुसतहब (वांछनीय) या सुन्नत है, इसीलिए वह कहती है कि हो सकता है कि मैं भविष्य में इन शा अल्लाह इसे पहनूंगी। और अल्लाह की सर्वप्रशंसा है कि वह एक प्रतिबद्ध महिला है, मेरा प्रश्न यह है कि क्या मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं उसे अभी से ही उसे नक़ाब पहनने पर मजबूर करूँ या उसके लिए चुनाव की स्वतंत्रता छोड़ दूँ और उसे नसीहत करता रहूँ ॽ





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





विद्वानों के दो कथनों में से सबसे सही कथन के अनुसार महिला के लिए अपने चेहरे को पराये पुरूषों से छिपाना अनिवार्य है, जिसके प्रमाण प्रश्न संख्या (11774) के उत्तर में उल्लेख किए जा चुके हैं।





तथा जिन लोगों का विचार यह है कि चेहरा छिपाने (पर्दा करने) की चीज़ नहीं है उन में से बहुत से धर्मशास्त्री इस बात की ओर गए हैं कि फित्ना के डर के समय और भ्रष्टाचार की अधिकता के समय उसे छिपाना अनिवार्य है।





पति को इस बात का आदेश है कि वह अपने परिवार की सुरक्षा करे और उन्हें हराम से रोक कर रखे, इसीलिए उचित यह है कि वह अपनी पत्नी को चेहरा ढाँकने पर आश्वस्त करने का प्रयास करे, यदि वह इनकार करे तो उसे पर्दा करने पर बाध्य करे और उसके ऊपर आज्ञापालन करना अनिवार्य है ; क्योंकि वह उसे ऐसी चीज़ का आदेश दे रहा है जो उसके निकट अनुमेय है, और उसका संबंध इस बारे में उसके इस हक़ से है कि उसके सतीत्व की रक्षा की जाए, और उसकी हुर्मत को न देखा जाए।





हम प्रश्न संख्या (97125) के उत्तर में इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि विवादास्पद मुद्दों में पति पत्नी के बीच कैसे व्यवहार और निपटारा करना चाहिए, उस उत्तर में वर्णित बातों में से कुछ यह हैं : “और हर वह चीज़ जो उसके लिए अनुमेय है, पति के लिए उसे उससे रोकना, या उसके कहने पर उसे बाध्य करना जायज़ है यदि वह उसे हराम समझता है। और यह उस औरत के ऊपर अनिवार्य हो जाता है यदि उसके करने में उसके पति के साथ दुर्व्यवहार है, या उसे अपमान या हीनता से दोचार होना पड़ता है, इसका उदाहरण : उसके चेहरे का ढाँकना है, तो यह एक विवादास्पद मुद्दा है, और कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो यह कहता हो कि उसका अपने चेहरे को ढांकना हराम है, यदि वह यह समझती है कि उसके लिए अपने चेहरे को खोलने की गुंजाइश है : तो वह (पति) उसे पराये लोगों के सामने ज़ाहिर करने से रोक सकता है, और उसके लिए उसे अपनी राय और अपनी प्राथमिकता पर बाध्य करने की अनुमति है, और वह उसका अपने चेहरे को कवर करने (ढांकने) की अनिवार्यता है, - और यही राजेह (दृढ़) कथन है -, और उसके लिए इसका विरोध करना जायज़ नहीं है, तथा वह ऐसा करने पर अज्र व सवाब की अधिकृत होगी यदि उसने अपने पति के आज्ञापालन के द्वारा अपने पालनहार के आज्ञापालन की नीयत की है और ऐसा काम किया है जो उसकी सत्रपोशी का अधिक पात्र है।”





फिर हम कहते हैं कि : औरत को अपने चेहरे को कवर करने और अपने आपको दर्शकों की निगाहों से सुरक्षित रखने से कौन सी चीज़ रोक देती है ॽ जबकि सर्वज्ञात है कि चेहरा सुंदरता का केंद्र और फित्ने का स्थान है, तथा उसी पर सबसे पहले निगाह पड़ती है ॽ मान लो कि वह उसे मुसतहब (वांछनीय) समझती है अनिवार्य नहीं समझती है, तो फिर वह इस मुसतहब के करने में क्यों कोताही बरती जा रही है जो उसे उसके पालनहार से निकट करने वाली, उसके पति को उससे खुश करने वाली और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों और आपके सहाबा की पत्नियों जैसी ईमान वाली औरतों के गुणों से सुसज्जित करने वाली है।





अतः प्रति ईमान वाली महिला को इस पर्दे का लालायित होना चाहिए, और उसकी ओर पहल करनी चाहिए, तथा उसे इस बात पर अल्लाह का गुणगान करना चाहिए कि उसने उसके पति को ऐसा बनाया है कि वह उसे इसका आदेश कर रहा है और उसे इसकी अभिरूचि दिला रहा है।





हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह सभी लोगों को उस चीज़ की तौफीक़ प्रदान करे जिसे वह पसंद करता औ जिससे प्रसन्न हेाता है।





और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर





क्या सुहाग रात में संभोग करना अनिवार्य है ॽ





मैं जानना चाहता हूँ कि क्या शादी की पहली रात में संभोग करना अनिवार्य है ॽ क्या पहली रात में संभोग करना वाजिब है ॽ





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





आदमी के ऊपर सुहाग रात में अपनी पत्नी से संभोग करना अनिवार्य नहीं है, और वे दोनों उसे उस समय तक के लिए विलंब कर सकते हैं जिसे वे उचित समझते हैं, लेकिन - आम तौर पर - संभोग करना अनिवार्य है, और वह पति पत्नी का अधिकार (हक़) है, अतः पत्नि के लिए ज़रूरी है कि वह अपने पति को अपने ऊपर सक्षम बनाए जब भी वह इसकी इच्छा करे जब तक कि उसे इससे कोई नुकसान न पहुँचता हो, इसी तरह पति के लिए भी अनिवार्य है कि वह अपनी पत्नी से उसकी पर्याप्त मात्रा में संभोग करे जब तक कि वह उसके शरीर को कमज़ोर न करता या उसे उसकी जीविका कमाने से विचलित न करता हो।





तथा प्रश्न संख्या (1078) का उत्तर देखें।





और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।





औरत का अपने पति को खुश करने के लिए झूठ बोलना





मैं ने अपने पति से उसके अल्लाह की इबादत में इख्लास और उसके इस्लाम से मोहब्बत के कारण शादी की, उस समय मैं जानती थी कि उसका रूप सुंदर नहीं है, और इस बात से मुझे कोई दुःख नहीं हुआ, उसने मुझसे बहुत बार पूछा कि क्या मैं उसे रूपवान पाती हूँ, और मैं उसे हाँ में उत्तर देती थी ताकि उसकी भावनाओं को ठेस न पहुँचाऊँ, किंतु मैं झूठ बोलती थी और इससे अब मुझे सख्त बुराई का एहसास होता है, और मुझे डर लगता है कि मैं अपने इस कथन की वजह से गुनहगार हूँगी, और मैं समझती हूँ कि यह पूरी तरह घृणित है, परंतु मैं उसके अच्छे गुणों को याद करने का प्रयास करती हूँ ताकि घर का माहोल आनन्दमय रहे, तो क्या मैं उसकी भावनाओं की रक्षा के लिए झूठ बोलने पर पापी हूँगी ? क्योंकि सत्य बात उसे बहुत आघात पहुँचायेगी ; इसलिए कि वह अपने रूप दृष्टि में बहुत भरोस का मालिक नहीं है।





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।





मेरी सम्मानित बहन - अल्लाह आपको तौफीक़ दे, और आपको सौभाग्य व खुशहाल विवाहित जीवन प्रदान करे - आपका इस उद्देश्य से शादी का क़दम उठाना अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से एक नेमत और तौफीक़ है, अतः आप इस पर अल्लाह के आभारी बनें, वह आपके ऊपर अपनी नेमत स्थायी कर देगा और आपके ऊपर अपने उपकार में वृद्धि कर देगा।





जहाँ तक आप ने अपने पति को खुश करने और उसकी भावनाओं की रक्षा के लिए झूठ बोलने के बारे में प्रश्न किया है, तो आपके ऊपर इस बारे में कोई आपत्ति की बात नहीं है, क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “वह व्यक्ति झूठा नहीं है जो लोगों के बीच सुधार करता है, चुनांचे वह भलाई को फैलाता है या भली बात कहता है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2692) ने रिवायत किया है।





तथा मुस्लिम की एक रिवायत में है : ‘‘वह व्यक्ति झूठा नहीं है जो लोगों के बीच सुधार करता है, और वह भली बात कहता है और भलाई को फैलाता है।’’ इब्ने शिहाब ने फरमाया : (मैं ने नहीं सुनी है कि लोगों की कही जाने वाली झूठ बातों में से किसी चीज़ के अंदर रूख्सत (छूट) दी गई है सिवाय तीन चीज़ों के : युद्ध, लोगों के बीच इस्लाह कराना, तथा आदमी की अपनी पत्नी से बातचीत और औरत की अपने पति से बातचीत।’’





शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह रियाज़ुस्सालेहीन की व्याख्या (1/1790) में इस हदीस की व्याख्या करते हुए फरमाते हैं : ‘‘इसी तरह मसलहत (हित) में से : आदमी का अपनी पत्नी से और पत्नी का अपने पति से ऐसी बातचीत करना जो प्यार और मोहब्बत पैदा करने का कारण है, उदाहरण के तौर पर वह यह कहे कि : तू मेरे निकट बहुमूल्य है, और तू मेरे निकट सभी औरतों से अधिक प्यारी है, और इसके समान अन्य बातें, भले ही वह झूठ बोलने वाला हो, किंतु यह प्यार व मोहब्बत पैदा करने के लिए है, और हित इसकी अपेक्षा करता है।’’ अंत हुआ।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर



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