मैं अक़ीदा के बारे में प्रश्न करना चाहता हूँ, क्या हमारे अक़ीदा में से यह ईमान रखना है कि पैगंबरों से पाप हो सकता है, और यह कि वो लोग गुनाहों से मा'सूम (सुरक्षित और पवित्र) नहीं हैं?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
पैगंबर मानवजाति के चुनिंदा लोग हैं, और वे अल्लाह तआला के निकट सब से सम्मानित सृष्टि हैं, उन्हें अल्लाह तआला ने लोगों को ला-इलाहा इल्लल्लाह का निमन्त्रण पहुँचाने के लिए चयन कर लिया है, और उन्हें शरीअतों के प्रसार के लिए अपने और अपने बन्दों के बीच माध्यम (वास्ता) बनाया है, वे लोग अल्लाह की ओर से प्रसार करने का आदेश दिये गये हैं, अल्लाह तआला ने फरमाया : "इन्हीं को हम ने किताब और हिक्मत और नुबुव्वत प्रदान किया, और अगर यह लोग इसे न मानें तो हम ने ऐसे लोगों को तैयार कर रखा है जो इसका इंकार नहीं करेंगे।" (सूरतुल अंआम :89)
अंबिया का कर्तव्य उनके मनुष्य होने के उपरान्त अल्लाह की ओर से प्रसार करना है, इसलिए गलतियों से सुरक्षित होने के मामले में उनकी दो स्थितियाँ हैं :
1- धर्म के प्रसार में गलतियों से सुरक्षित होना।
2- मानवीय गलतियों से सुरक्षित होना।
प्रथम : जहाँ तक पहली स्थिति का संबंध है, तो पैग़बर (सन्देष्टा) अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम (उन पर अल्लाह की दया और शान्ति अवतरित हो) अल्लाह तबारका व तआला की ओर से (उसके संदेश का) प्रसार व प्रचार करने में गलतियों से सुरक्षित (मा´सूम अनिल खता) हैं, अल्लाह ने उनकी तरफ जो वह्य (प्रकाशना) की है उस में से कोई चीज़ छिपाते नहीं हैं और न ही अपनी तरफ से उस में कोई चीज़ बढ़ाते हैं। अल्लाह तआला ने अपने ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फरमाया : "ऐ पैग़म्बर, जो कुछ भी आप की ओर आप के पालनहार की ओर से उतारा गया है उस का प्रचार-प्रसार कीजिए। यदि आप ने ऐसा न किया तो आप ने अपने पालनहार के संदेश को नहीं पहुंचाया और आप को अल्लाह तआला लोगों से बचा ले गा।" (सूरतुल माईदा5:67)
तथा अल्लाह तआला ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "और अगर यह हम पर कोई बात गढ़ लेते, तो अवश्य हम उनका दाहिना हाथ पकड़ लेते, फिर उनके दिल की नस काट लेते। फिर तुम में से कोई भी मुझे इस से रोकने वाला न होता।" (सूरतुल हाक़्क़ा:44-47)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और वह ग़ैब (परोक्ष) की बातें बताने में कंजूस भी नहीं हैं।" (सूरतुत्तक्वीर :24)
शैख अब्दुर्रहमान अस्सअ-दी रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्या में फरमाते हैं : "अल्लाह तआला ने जिस चीज़ की आप की ओर वह्य की है, आप उस के बारे में बखील (कंजूस) नहीं हैं कि उस में से कुछ छुपा लें, बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तो आसमान वालों और ज़मीन वालों के अमीन (विश्वस्त) हैं जिस ने अपने पालनहार के संदेशों को स्पष्ट और खुले रूप से पहुँचा दिया, आप ने उस में से किसी चीज़ के पहुँचाने में किसी धनी, किसी निर्धन, किसी राजा, किसी प्रजा, किसी पुरूष, किसी महिला, किसी शहरी और किसी देहाती से कंजूसी से काम नहीं लिया। इसीलिए अल्लाह तआला ने आप को एक अपनढ़ और अति जाहिल समुदाय में भेजा था। चुनाँचि जब आप की मृत्यु हुई तो ये लोग रब्बानी विद्वान बन चुके थे, सभी विज्ञानों (उलूम) का इन्हीं पर अंत होता था..."
अत: ईश्दूत (सन्देष्टा) अपने पालनहार के धर्म और उसकी शरीअत को पहुँचाने में कदापि गलती नहीं करता है, चाहे कोई छोटी चीज़ हो या बड़ी, बल्कि वह सदा अल्लाह की तरफ से गलतियों से सुरक्षित होता है।
समाहतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह (फतावा इब्ने बाज़ 6/371) फरमाते हैं :
"सभी मुसलमानों का इस बात पर सर्व सम्मत है कि अंबिया (सन्देष्टा) अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम - और विशेषकर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तरफ से संदेश को पहुँचाने में गलती से सुरक्षित (मा´सूम अनिल खता) हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : "क़सम है सितारे की जब वह गिरे। कि तुम्हारे साथी ने न रास्ता खोया है न वह टेढ़े रास्ते पर है। और न वह अपनी इच्छा से कोई बात कहते हैं। वह तो केवल वह्य (ईश्वरवाणी) है जो उतारी जाती है। उसे पूरी ताक़त वाले फरिश्ते ने सिखाया है।" (सूरतुन्नज्म:1-5) अत: हमारे पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की तरफ जिस चीज़ को भी पहुँचाते हैं, चाहे उसका संबंध कथन से हो या कर्म से हो या तक़रीर (पुष्टिकरण और स्वीकृत) से हो, प्रत्येक चीज़ में गलती से सुरक्षित हैं, इस बारे में उलमा (विद्वानों) के बीच कोई मतभेद नहीं है।"
तथा उम्मत का इस बात पर सर्व सम्मत है कि सन्देष्टा अल्लाह के संदेश को उठाने में गलतियों से सुरक्षित हैं, अत: अल्लाह तआला ने उनकी तरफ जो वह्य की है उस में से कोई भी चीज़ नहीं भूलते हैं, सिवाय उस चीज़ के जो निरस्त कर दी गई हो, अल्लाह तआला ने अपने पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए यह ज़मानत ली है कि वह आप को पढ़ा देगा जिसे आप नहीं भूलें गे, सिवाय उस चीज़ के जिसे अल्लाह तआला आप से भुलाना चाहे, तथा अल्लाह तआला ने आप के लिए यह ज़िम्मेदारी ली है कि आप के लिए क़ुर्आन को आप के सीने में जमा कर देगा। अल्लाह तआला ने फरमाया : "हम तुझे पढ़ायेंगे, फिर तू न भूले गा, सिवाय उसके जो अल्लाह चाहे।" (सूरतुल आला :6-7) तथा अल्लाह तआला ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "उसको जमा करना और (आप के मुँह से) पढ़ाना हमारा कर्तव्य है। (इसलिए) हम जब उसे पढ़ लें, तो आप उस के पढ़ने का अनुकरण (इत्तेबा) करें।" (सूरतुल क़ियामा :17-18)
शैखुल इस्लाम रहिमहुल्लाह (मजमूउल फतावा 18/7) में फरमाते हैं : "पैगंबरों के ईश्दूतत्व पर दलालत करने वाली आयतें इस बात पर तर्क हैं कि वे लोग अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तरफ से जिन चीज़ों की सूचना देते हैं उनमें वे गलतियों से सुरक्षित होते हैं। अत: उनकी सूचना सत्य ही होती है। और यही नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) का अर्थ है, और यह इस बात को सम्मिलित है कि अल्लाह तआला ईश्दूत को ग़ैब (परोक्ष) की सूचना देता है, और वह लोगों को ग़ैब की सूचना देता है, और ईश्दूत को इस बात का आदेश किया गया है कि वह लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाये और उन्हें अपने रब का संदेश पहुँचाये।"
दूसरा: जहाँ तक मानव के रूप में अंबिया की स्थिति का संबंध है तो उनसे गलती होती है और इसकी कई हालतें हैं :
1- ऐसी गलती नहीं होती है जिस से घोर पाप होता हो :
जहाँ तक कबीरा गुनाहों का संबंध है तो वो अंबिया से कभी सादिर नहीं होते हैं, वे लोग कबीरा गुनाहों से मासूम और सुरक्षित हैं, चाहे इसका संबंध पैग़ंबर बनाये जाने से पहले से हो या उसके बाद से।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह (मज्मूउल फतावा 4/319) फरमाते हैं :
"यह कहना कि अंबिया किराम छोटे गुनाहों को छोड़ कर कबीरा गुनाहों से मा´सूम और सुरक्षित हैं, यही अधिकतर इस्लाम के विद्वानों और सभी गिरोहों का कथन है ... और यही अधिकांश अह्ले तफसीर और अह्ले हदीस, तथा फुक़हा का कथन है, बल्कि सलफ सालेहीन, अईम्मा, सहाबा, ताबेईन और उनका अनुकरण करने वालों से इस कथन के अनुकूल बातें ही वर्णित हैं।"
2- जिन बातों का संबंध संदेश और वह्य के प्रसार से नहीं है।
जहाँ तक छोटे गुनाहों का संबंध है तो वे उन से या उन में से कुछ से घटित हो जाते हैं, इसीलिए अधिकांश उलमा इस बात की ओर गये हैं कि वे (अंबिया) इस से मा´सूम नहीं हैं, और जब उन से इस तरह का गुनाह हो जाता है तो उन्हें इस पर बरकरार नहीं रखा जाता है, बल्कि अल्लाह तआला उन्हें इस पर चेतावनी देता है और वो तुरन्त उस से क्षमा याचना करते हैं।
उन से छोटे गुनाह होने और उन्हें उस पर बरक़रार न रखे जाने की दलील अल्लाह तआला का आदम अलैहिस्सलाम के बारे में यह फरमान है : "आदम ने अपने रब का अवज्ञा किया और बहक गया। फिर उसके रब ने उसे नवाज़ा, उसकी तौबा को स्वीकार किया और उसका मार्गदर्शन किया।" (सूरत ताहा :121-122) यह आयत आदम अलैहिस्सलाम से गुनाह होने, और उन्हें उस पर बरक़रार न रखे जाने और उनके अल्लाह तआला से उस अवज्ञा से तौबा करने पर तर्क है।
तथा अल्लाह तआला का यह फरमान भी कथित मसअले का तर्क है : "(मूसा) कहने लगे कि यह तो शैतानी काम है, नि:सन्देह वह (शैतान) दुश्मन और खुले तौर से बहकाने वाला है। फिर वह दुआ करने लगे कि हे रब! मैं ने तो स्वयं अपने ऊपर अत्याचार किया, तु मुझे माफ कर दे। अल्लाह तआला ने उसे माफ कर दिया, नि:सन्देह वह माफ करने वाला और बहुत दया करने वाला है।" (सूरतुल क़सस : 15-16) चुनाँचि मूसा अलैहिस्सलाम ने क़िब्ती को क़त्ल करने के बाद अपने गुनाह को स्वीकार किया और अल्लाह तआला से क्षमा याचना की, और अल्लाह तआला ने उन्हें क्षमा कर दिया।
तथा अल्लाह तआला का यह फरमान है : "फिर तो अपने रब से तौबा करने लगे और आजिज़ी (विनम्रता) के साथ गिर पड़े और (पूरी तरह से) मुतवज्जिह हो गये। तो हम ने भी उनकी यह (बुराई) माफ कर दिया, बेशक वह हमारे निकट बड़े ऊँचे पद और सब से अच्छे ठिकाने वाले हैं।" (सूरत साद :24-25) दाऊद अलैहिस्सलाम का पाप दूसरे पक्ष की बात सुनने से पहले ही फैसला करने में जल्दबाज़ी से काम लेना था।
और यह हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं जिन्हें आप का रब सुब्हानहु व तआला कुछ मामलों में डांट डपट करता है जिनका उल्लेख क़ुर्आन में किया गया है, उन्हीं में से कुछ यह हैं :
अल्लाह तआला का फरमान है : "ऐ नबी! (ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल कर दिया है उसे आप क्यों हराम करते हैं? (क्या) आप अपनी पित्नयों की प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते हैं? और अल्लाह तआला क्षमा करने वाला दया करने वाला है।" (सूरा तहरीम:1)
इसी तरह अल्लाह तआला ने बद्र के क़ैदियों के बारे में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर इताब (डाँट-डपट) किया :
चुनाँचि इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह में (4588) रिवायत किया है कि अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने कहा : जब लोगों ने क़ैदियों को बंदी बना लिया तो अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से कहा : "इन क़ैदियों के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?" तो अबू बक्र ने कहा: ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! ये लोग चचेरे भाई और कुंबे क़बीले के लोग हैं, मेरा विचार है कि आप उन से फिद्या (हरजाना) ले लें, जो हमारे लिए काफिरों के विरूद्ध शक्ति का काम देगा, और आशा है कि अल्लाह तआला उन्हें इस्लाम की हिदयात दे दे, फिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "इब्नुल खत्ताब! तुम्हारा क्या विचार है?" उन्हों ने कहा : नहीं, अल्लाह की क़सम ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, मेरा विचार वह नहीं है जो अबू बक्र का है, परन्तु मेरा विचार यह है कि आप इन्हें हममारे हवाले कर दें और हम इनकी गर्दनें मार दें, अक़ील को अली के हवाले कर दें और वह उसकी गर्दन मार दें, फलाँ को -जो उमर की क़रीबी था- मेरे हवाले कर दें और मैं उसकी गर्दन मार दूँ, क्योंकि ये कुफ्र के सरदार और उसके बड़े-बड़े लोग हैं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू बक्र की बात पसंद की और मेरी बात को पसंद नहीं किया, फिर जब अगले दिन मैं आया तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और अबू बक्र को देखा कि दोनों बैठे रो रहे हैं, मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! मुझे बतायें कि आप और आप के साथी क्यों रो रहे हैं? अगर मुझे रोने का कारण मिला तो मैं भी रोऊँगा और अगर रोने का कारण नहीं मिला तो आप दोनों के रोने के कारण रोऊँगा। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फिद्या स्वीकार करने की वजह से आप के असहाब पर जो चीज़ पेश की गई है उसके कारण रो रहा हूँ, -आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने करीब ही एक पेड़ की ओर इशारा करते हूए फरमाया :- मुझ पर उनका अज़ाब इस पेड़ से भी करीब पेश किया गया, और अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी : "नबी के हाथ में बन्दी नहीं चाहिये जब तक कि धरती में अच्छी रक्तपात की युद्ध न हो जाये। तुम तो दुनिया का धन-दौलत चाहते हो और अल्लाह की इच्छा आखिरत की है, और अल्लाह सर्व शक्तिमान और सर्व बुद्धिमान है। अगर पहले ही से अल्लाह की ओर से बात लिखी हुई न होती तो जो कुछ तुम ने लिया है उस बारे में तुम्हें कोई बड़ी सज़ा होती। और जो हलाल और पाक धन लड़ाई से हासिल करो उसे खाओ। और अल्लाह से डरते रहो, बेशक अल्लाह तआला बड़ा बख्शने वाला और दया करने वाला है।" (सूरतुल अन्फाल: 67-69) तो अल्लाह तआला ने इस आयत के द्वारा उनके लिए गनीमत का धन हलाल कर दिया।
इस हदीस से स्पष्ट हो गया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क़ैदियों को फिद्या लेकर क्षमा कर देने का फैसला अपने सहाबा से सलाह (मश्वरा) करने के बाद आपकी तरफ से एक इज्तिहादी मामला था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास इस संबंध में अल्लाह तआला की ओर से कोई नस (आदेश) नहीं था।
इसी प्रकार अल्लाह तआला का यह फरमान भी प्रमाण है : "उसने अभिरूचि प्रकट की और मुँह मोड़ लिया (केवल इस लिए) कि उस के पास एक अन्धा आया।" (सूरत अबस:1-2) यह जलीलुल-क़द्र सहाबी अब्दुल्लाह इब्ने उम्मे मक्तूम का अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ सुप्रसिद्ध क़िस्सा है जिस में अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को डांट डपट किया है।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह (मज्मूउल फतावा 4/320 में) फरमाते हैं :
"जम्हूर उलमा से जो आम बात वर्णन की जाती है वह यह है कि अंबिया अलैहिमुस्सलाम छोटे गुनाहों से मा´सूम और सुरक्षित नहीं हैं, और उन्हें उन पर बरक़रार नहीं रखा जाता है, और न ही उनका यह कहना है कि ये (छोटे गुनाह) उनसे किसी भी हाल में घटित नहीं होते हैं। उम्मत के गिरोहों में से मुतलक़ तौर पर अंबिया के मा´सूम अनिल खता होने की बात सबसे पहले जिसके बारे में वर्णन किया गया है और जो लोग इस कथन के सबसे बड़े समर्थक हैं, वो राफिज़ी लोग हैं, क्योंकि ये लोग हर हाल में मासूम अनिल खता होने के क़ायिल हैं यहाँ तक कि जो गलती़ भूल चूक, सह्व और तावील के तौर पर हो जाती है उस से भी।" (अर्थात् भूल-चूक, सह्व और तावील के तौर पर भी उनसे गलती नहीं हो सकती)
कुछ लोग इस तरह की बात को बहुत गंभीर समझते हैं और इस पर दलालत करने वाले क़ुर्आन व हदीस के नुसूस की तावील करते हैं और उन में हेर फेर करते हैं (अर्थात उनके स्पष्ट अर्थ को बदल कर दूसरा अर्थ लेते हैं)। उनके इस कथन का कारण दो सन्देह हैं :
पहला सन्देह : अल्लाह तआला ने पैग़ंबरों की पैरवी और उनका अनुसरण करने का आदेश दिया है, और उनकी पैरवी करने का आदेश इस बात को आवश्यक कर देता है कि उनसे सादिर होने वाली हर चीज़ पैरवी करने के योग्य है, और उनकी हर कृत्य और आस्था नेकी का काम है, इसलिए अगर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाफरमानी (अवज्ञा) में पड़ना संभव हो गया तो इस से तनाकुज़ (अन्तर्विरोध) पैदा होगा, क्योंकि यह इस बात की अपेक्षा करता है कि इस अवज्ञा में जो रसूल से हुई है उसकी पैरवी करने और उसे करने का आदेश भी एक साथ पाया जाता है, इस ऐतिबार से कि हमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी करने का आदेश है, और दूसरी तरफ उस काम के नाफरमानी (गुनाह) होने के कारण उस को करने से निषेद्ध भी है।
यह सन्देह सहीह और अपनी जगह पर उचित है यदि अवज्ञा गुप्त होती स्पष्ट न होती, इस ऐतिबार से कि नेकी के साथ मिली-जुली होती, किन्तु अल्लाह तआला अपने रसूलों को बिना किसी विलंब के सचेत कर देता है, उनके लिए मुखालफत (उस काम के असत्य होने) को स्पष्ट कर देता है, और उन्हें उस से तौबा करने की तौफीक़ दे देता है।
दूसरा सन्देह : यह कि गुनाह पूर्णता के विरूद्ध हैं और कमी का प्रतीक हैं। यह बात विशुद्ध है यदि उसके साथ तौबा और क्षमा याचना न होती, क्योंकि तौबा गुनाह को क्षमा कर देती है, और यह पूर्णता के विरूद्ध नहीं है, उसके करने वाले पर कोई मलामत और दोष नहीं है, बल्कि अधिकांश ऐसा होता है कि बन्दा तौबा करने के बाद गुनाह करने से पहले की हालत से कहीं बेहतर और श्रेष्ठ हो जाता है। तथा यह बात ज्ञात है कि जिस नबी से भी कोई गुनाह हुआ है उस ने तुरन्त उस से तौबा और क्षमा याचना किया है। अत: नबियों को गुनाह पर बरक़रार नहीं रखा जाता है और न ही वे लोग तौबा में विलंब करते हैं, क्योंकि अल्लाह तआला ने उन्हें इस से सुरक्षित रखा है, और वे लोग तौबा करने के बाद पलहे से कहीं अधिक संपूर्ण हो जाते हैं।
3- बिना इच्छा और इरादा के कुद दुनियावी मामलों में गलती का होना :
जहाँ तक सांसारिक मामलों में पैग़ंबरो से गलती होने का संबंध है, तो उनकी पूर्ण बुद्धि, विशुद्ध विचार और समझबूझ (दूरदृष्टि) की शक्ति के उपरान्त भी गलती हो सकती है, और ऐसा कुछ पैगंबरों से हुआ भी है और उन में से हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी हैं, और यह चीज़ जीवन के विभिन्न पक्षों जैसे चिकित्सा और कृषि इत्यादि में होता है।
इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या :6127) में राफिअ बिन खदीज से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना आये, और वहाँ लोग खजूर के पेड़ों में ताबीर करते थे। कहते थे कि खजूर के पेड़ को गर्भिणी करते थे। तो आप ने कहा : "तुम लोग क्या करते हो?" लोगों ने जवाब दिया : हम ऐसा करते चले आ रहे हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : शायद अगर तुम ऐसा न करो तो बेहतर होगा।" तो लोगों ने इसे छोड़ दिया। तो खजूर के फल गिर गए या रावी ने यह कहा कि : फल कम हो गए। तो लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इसका उल्लेख किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : "मैं एक मनुष्य ही हूँ, जब मैं तुम्हें तुम्हारे दीन में से किसी चीज़ का आदेश दूँ तो तुम उसे ले लो, और जब मैं तुम्हें (दुनिया के मामले में) अपनी राय से किसी चीज़ का हुक्म दूँ, तो मैं एक इंसान ही हूँ।"
इस से यह पता चला कि अंबिया अलैहिमुस्सलाम वह्य के अंदर गलतियों से सुरक्षित हैं, तथा हमें उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तब्लीग और अल्लाह के संदेश को पहुँचाने के बारे में आलोचना करते हैं और आप के शास्त्रों के बारे में सन्देह फैलाते हैं और कहते हैं कि ये आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से निजी इज्तिहादात हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस आरोप से बिल्कुल पवित्र हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : "और न वह अपनी इच्छा से कोई बात कहते हैं। वह तो केवल वह्य होती है जो उतारी जाती है।" (सूरतुन्नज्म:3-4)
इफ्ता की स्थायी कमेटी से प्रश्न किया गया : क्या अंबिया और रसूलों से गलती होती है?
तो उस का उत्तर यह था कि :
हाँ, उनसे गलती होती है किन्तु अल्लाह तआला उन्हें उनकी गलती पर बाक़ी नहीं रखता है, बल्कि उन पर और उनकी उम्मत पर दया करते हुए उनकी गलती को उनके लिए स्पष्ट कर देता है, उनकी लग्ज़ि़श (चूक) को क्षमा कर देता है, और अपनी अनुकम्पा और दया से उनकी तौबा को स्वीकार कर लेता है, और अल्लाह तआला अत्यन्त क्षमा करने वाला बड़ा दयावान् है, जैसाकि इस संबंध में वर्णित क़ुर्आन की आयतों का अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट होकर सामने आती है।" (फतावा अल्लज्नह अद्दाईमह 3/194)
अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (7208) देखिये।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
इसलाम प्रश्न और उत्तर