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क्या नास्तिक व्यक्ति दूसरों को बुरी नज़र लगा सकता है ?





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





जी हाँ, काफिर (नास्तिक) की बुरी नज़र लग सकती है और इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :





﴿وإن يكاد الذين كفروا ليزلقونك بأبصارهم لما سمعوا الذكر ويقولون إنه لمجنون ﴾ [سورة القلم : 51]





“और क़रीब है कि (ये) काफिर (नास्तिक) अपनी निगाह से आप को फिसला दें, जब कभी क़ुरआन सुनते हैं और कह देते हैं कि यह तो यक़ीनी तौर से दीवाना है।” (सूरतुल क़लम : 51).





सुद्दी कहते हैं कि (आयत अर्थ यह है कि) : वे (काफिर) आप को अपनी नज़र लगा दें। तफसीर बग़वी 8/202.





इसी तरह इस बात पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन का सामान्य अर्थ भी तर्क है : “नज़र लगना सच है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5740) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2187) ने रिवायत किया है।





शैख मुहम्मद सालेह अल मुनज्जिद





क्या इबलीस एक फरिश्ता है या जिन्न? अगर वह फरिश्ता है तो उस ने अल्लाह की अवज्ञा क्यों की जबकि फरिश्ते अल्लाह की नाफरमानी नहीं करते हैं? और अगर वह एक जिन्न है तो इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि उसे आज्ञापालन या अवज्ञा करने का अधिकार है। आशा है कि उत्तर देने का कष्ट करेंगे।





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।





इबलीस -उस पर अल्लाह की धिक्कार हो- जिन्नों में से है, वह एक दिन भी बल्कि पलक झपकने के बराबर भी फरिश्तों में से नहीं था। क्योंकि फरिश्ते अल्लाह के सम्मानित प्राणी हैं जो अल्लाह के आदेश की नाफरमानी नहीं करते हैं बल्कि जो कुछ उन्हें आदेश किया जाता है उसे तुरन्त कर गुज़रते हैं। क़ुर्आन करीम की स्पष्ट आयतों मे इस का वर्णन हुआ है, जो इस बात पर तर्क हैं कि इबलीस जिन्नों में से है, फरिश्तों में से नहीं है, उन्हीं आयतों में से निम्नलिखित हैं :





1- अल्लाह तआला का फरमान है : "और जब हम ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करो तो इबलीस के सिवाय सब ने सज्दा किया, यह जिन्नों में से था। उस ने अपने रब के हुक्म की नाफरमानी की, क्या फिर भी तुम उसे और उसकी औलाद को, मुझे छोड़ कर अपना दोस्त बना रहे हो? हालाँकि वह तुम्हारा दुश्मन है, ऐसे ज़ालिमों का कितना बुरा बदला है।" (सूरतुल कह्फ :50)





2- अल्लाह तआला ने वर्णन किया है कि उस ने जिन्नों को आग से पैदा किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : "और इस से पहले जिन्नात को हम ने लौ (ज्वाला) वाली आग से पैदा किया।" (सूरतुल हिज्र :27)  तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और जिन्नात को आग की लपट से पैदा किया।" (सूरतुर्रहमान : 15) और सहीह हदीस में आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फरिश्ते नूर (प्रकाश) से पैदा किये गये, और जिन्नात आग की लपट से पैदा किये गये हैं, और आदम उसी चीज़ से पैदा किये गये हैं जिस का तुम से उल्लेख किया गया है।" (सहीह मुस्लिम हदीस नं. : 2996, मुस्नद अहमद हदीस नं.: 24668, सुनन कुब्रा लिल् बैहक़ी हदीस नं. :18207, इब्ने हिब्बान हदीस नं.: 6155)





फरिश्तों की विशेषताओं में से यह है कि वे नूर (प्रकाश) से पैदा किया गये हैं, और जिन्नात आग से पैदा किये गये हैं, और क़ुर्आन की आयतों में आया है कि इबलीस -उस पर अल्लाह की धिक्कार हो- आग से पैदा किया गया है, और इबलीस की ज़ुबानी आया है कि जब अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने उस से आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा न करने का कारण पूछा, जबकि अल्लाह ने उसे इसका हुक्म दिया था,  तो उसने -उस पर अल्लाह की फट्कार हो- कहा : "मैं इस से अच्छा हूँ, तू ने मुझे आग से पैदा किया और इसे मिट्टी से पैदा किया है।" (सूरतुल आराफ :12, सूरत साद् : 76)





यह इस बात पर तर्क है कि वह जिन्नात में से है।                                                                                                                                                                                       





3- अल्लाह तआला ने क़ुर्आन करीम में फरिश्तों के गुणों की व्याख्या करते हुये फरमाया : "हे ईमान वालो! तुम खुद अपने आप को और अपने परिवार वालों को उस आग से बचाओं जिस का ईंधन इंसान और पत्थर हैं, जिस पर कठोर दिल वाले सख्त फरिश्ते तैनात हैं, जिन्हें जो हुक्म अल्लाह तआला देता है उसकी नाफरमानी नहीं करते बल्कि जो हुक्म दिया जाये उसका पालन करते हैं।" (सूरतुत्तह्रीम :6) तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने फरमाया : "बल्कि वे सम्मानित बन्दे हैं, उस (अल्लाह) के सामने बढ़कर नहीं बोलते, और उस के हुक्म पर अमल करते हैं।" (सूरतुल अंबिया :26-27)





और एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "और बेशक आकाशों और धरती के सभी जानदार और सभी फरिश्ते अल्लाह के सामने सज्दा करते हैं और तनिक भी घमंड नहीं करते। और अपने रब से जो उनके ऊपर है कपकपाते रहते हैं और जो हुक्म मिल जाये उस के पालन करने में लगे रहते हैं।" (सूरतुन्नह्ल : 49-50) अत: फरिश्तों के लिए संभव ही नहीं है कि वे अपने रब की नाफरमानी करें, क्योंकि वे गलती से पवित्र हैं और आज्ञापालन पर पैदा किये गये हैं।





4- और चूँकि इबलीस फरिश्तों में से नहीं है इसलिए वह आज्ञापालन करने पर विवश नहीं है, और हम इंसानों के समान उसे अच्छा या बुरा चयन करने का अधिकार प्राप्त है, अल्लाह तआला का फरमान है : "हम ने उसे रास्ता दिखाया, अब चाहे वह शुक्रगुज़ार बने या नाशुक्रा।" (सूरतुल इंसान :3)





तथा जिन्नों में से मुसलमान भी हैं और काफिर भी, सूरतुल जिन्न की आयतों में आया है : "(हे मुहम्मद!) आप कह दें कि मुझे वह्य (ईश्वाणी) की गयी है कि जिन्नों के एक गिरोह ने (क़ुर्आन) सुना, और कहा कि हम ने अजीब क़ुर्आन सुना है। जो सच्चे रास्ते की तरफ मार्गदर्शन करता है, हम तो उस पर ईमान ला चुके, (अब) हम कभी अपने रब का किसी दूसरे को साझीदार न बनायेंगे।" (सूरतुल जिन्न :1-2) इसी सूरत में जिन्नों की ज़ुबानी अल्लाह तआला का यह फरमान आया है : "और हम हिदायत की बात सुनते ही उस पर ईमान ला चुके, और जो भी अपने रब पर ईमान लायेगा उसे न किसी नुक़सान का डर है और न ज़ुल्म (और दुख) का। और हम में से कुछ मुसलमान हैं और कुछ बेइंसाफ हैं।" (सूरतुल जिन्न : 13-14)





इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह अपनी तफ्सीर में कहते हैं : (हसन बसरी रहिमहुल्ल कहते हैं : "पलक झपकने के बराबर भी इबलीस फरिश्तों में से नहीं था, वास्तव में वह जिन्नों का असल (मूल) है, जिस प्रकार कि आदम अलैहिस्सलाम मानव के असल (मूल) हैं।" (तब्रानी ने इसे सहीह सनद के साथ रिवायत किया है। 3/89)





कुछ उलमा ने कहा है कि इबलीस फरिश्तों में से एक फरिश्ता है, और वह फरिश्तों का मोर है, और यह कि वह फरिश्तों में सब से अधिक इबादत करने वाला था ... इसके अतिरिक्त अन्य रिवायतें भी हैं जिन में से अधिकांश इस्राईलीयात में से हैं, और उन में से कुछ ऐसी भी रिवायतें हैं जो क़ुर्आन करीम के स्पष्ट प्रमाणों के विरूद्ध हैं ...





इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने इस को स्पष्ट करते हुए फरमाया है : "इस बारे में सलफ (पूर्वजों) से बहुत से आसार (रिवायतें) वर्णित हैं, और उन में से अधिकांश इस्राईलीयात में से हैं -जो केवल उनमें विचार करने के लिए वर्णन की जाती हैं- और उन में से अधिकतर का हाल अल्लाह ही बेहतर जानता है, उन में से कुछ को निश्चित रूप से झूठ कहा जा सकता है क्योंकि वह हमारे पास मौजूद सत्य के खिलाफ है, और क़ुर्आन के अंदर मौजूद सूचनायें, उसके सिवाय पिछली सूचनाओं से बेनियाज़ (निस्पृह) कर देती हैं; क्योंकि वे लगभग परिवर्तन और कमी व बेशी से खाली नहीं है, और उन में बहुत सारी चीज़ें गढ़ ली गई हैं, और उनके यहाँ सुदृढ़ और मज़बूत स्मरण वाले लोग भी नहीं थे जो गुलू करने वालों (अतिवादियों) के हेरफेर और असत्यवादी लोगों की जाली बातों (प्रतिरूपण) को दूर कर सकें जिस प्रकार कि इस उम्मत में उत्कृष्ट इमाम, विद्वान, सज्जन, संयमी और कुलीन आलोचक और हदीसों के हुफ्फाज़ (स्मरणकर्ता) रहें हैं जिन्हों ने हदीसों को दर्ज किया, उनकी जाँच परख करके सहीह, हसन, ज़ईफ (कमज़ोर) मुन्कर, मनगढ़त, मतरूक, झूठी हदीसों को स्पष्ट करके बयान किया, हदीसें गढ़ने वाले, झूठे, अपरिचित, और अन्य वर्ग के रावियों (हदीस को नक़ल करने वालों) को परिभाषित किया और उनका पहचान करवाया, ये सारे प्रयास केवल मानव के सरदार, अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर झूठी या ऐसी बातें मन्सूब किये जाने से रक्षा के लिए किये गये थे जो आप ने नहीं कही हैं। अत: अल्लाह उन से प्रसन्न हो और उन्हें प्रसन्न कर दे और जन्नतुल फिरदौस (स्वर्ग) को उनका अनन्त निवास बनाये।" (तफ्सीरुल क़ुर्आनिल अज़ीम 3/90)





शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद



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