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जिस आदमी को जादू कर दिया गया हो, या जादू-मंत्र के द्वारा उसके अंदर किसी के प्रति घृणा या किसी के प्रति प्रेम पैदा कर दिया गया हो, उसका उपचार क्या है ? मोमिन के लिए कैसे सम्भव है कि वह उस से छुटकारा पा जाये और जादू उसे नुक़सान न पहुँचाये, और क्या इस चीज़ के लिए क़ुर्आन और हदीस से कोई ज़िक्र या दुआयें हैं ?





उत्तर


हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।





जादू के उपचार के कई प्रकार हैं :





सर्व प्रथम : यह देखा जायेगा कि जादूगर ने क्या किया है, अगर पता चल जाये कि उदाहरण के तौर पर उस ने किसी जगह कुछ बाल रखा है, या उसे कंघियों में रखा है, या इसके अलावा किसी अन्य चीज़ में रखा है, अगर पता चल जाये कि उस ने फलाँ स्थान पर जादू रखा है तो उस चीज़ को हटा दिया जायेगा, उसे जला दिया जायेगा और नष्ट कर दिया जायेगा, ऐसा करने से जादू का प्रभाव समाप्त हो जायेगा और जादूगर का जो मक्सद था वह विफल हो जायेगा।





दूसरा : अगर जादूगर का पता चल जाये तो जो कुछ जादू उसने किया है उसे नष्ट करने पर बाध्य किया जायेगा, उस से कहा जायेगा : या तो तू ने जो जादू किया है उसे नष्ट कर दे या फिर तेरी गर्दन उड़ा दी जायेगी, फिर जब वह उस जादू की हुई चीज़ को निरस्त कर दे तो मुसलमानों का शासक उसे क़त्ल कर देगा, क्योंकि शुद्ध कथन के अनुसार जादूगर को बिना तौबा करवाये ही क़त्ल कर दिया जायेगा, जैसाकि उमर रज़ियल्लाहु उन्हु ने ऐसा ही किया था, तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया गया है कि आप ने फरमाया : "जादूगर की सज़ा (दण्ड) तलवार से उसकी गर्दन मारना है", तथा जब उम्मुलमोमिनीन हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा को पता चला कि उनकी एक लौंडी जादू का काम करती है तो उसे क़त्ल करवा दिया।





तीसरा : क़ुर्आन पढ़ना ; क्योंकि क़ुरआन पढ़ने का जादू के निवारण में बड़ा प्रभाव है : उसका तरीक़ा यह है कि जादू से पीड़ित व्यक्ति पर या किसी बर्तन में आयतुल कुर्सी, तथा सूरतुल आराफ, सूरत यूनुस और सूरत ताहा में जादू से संबंधित आयतें, और उनके साथ ही सूरतुल काफिरून, सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) पढ़ी जायें, और उसके लिए शिफा (रोगनिवारण) और अच्छे स्वास्थ्य की दुआ की जाये, विशेषकर वह दुआ जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है और वह यह है :





"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"





(ऐ अल्लाह, लोगों के रब! संकट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे प्रदान किये हुये स्वास्थ्य (रोग निवारण) के अलावा कोई और स्वास्थ्य (रोग निवारण) नहीं है, ऐसी स्वास्थ्य प्रदान कर जो किसी बीमारी को न छोड़े।)





इसी में से वह दुआ भी है जिसके द्वारा जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दम किया था और वह दुआ यह है :





"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन्  ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"





(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)





और इस दम (दुआ) को तीन बार दोहराये। इसी तरह "क़ुल हुवल्लाहु अहद्" और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) को भी तीन बार दोहराये।





तथा जादू के उपचार में से ही यह भी है कि हम ने जो दुआयें उल्लिखित की हैं उन्हें पानी में पढ़े और जादू से पीड़ित व्यक्ति उस में से कुछ पानी पिये और शेष पानी से आवश्यकता के अनुसार एक या अधिक बार स्नान करे, अल्लाह के हुक्म से उसका निवारण हो जायेगा। उलमा रहिमहुमुल्लाह ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है, जैसाकि शैख अब्दुर्रहमान बिन हसन रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब (फत्हुल मजीद शरह किताबुत्तौहीद) के अध्याय (मा जा-आ फिन्नुश्रा) में किया है, और इनके अलावा अन्य विद्वानों ने भी इसका उल्लेख किया है।





चौथा : बैरी के सात हरे पत्ते लेकर उसे कूट लें और पानी में मिला लें और उस में पीछे गुज़र चुकी आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ें, फिर उस में से कुछ पानी पी लें और बाक़ी पानी से स्नान करें। इसी प्रकार यह उस आदमी के उपचार में भी उपयोगी है जिसे उसकी पत्नी से (संभोग करने से) रोक दिया गया हो, चुनाँचि बैरी के सात हरे पत्ते पानी में डाल कर उसमें पिछली आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ी जायें, फिर उस से पिया जाये और स्नान किया जाये, अल्लाह के हुक्म से यह लाभदायक सिद्ध होगा।





जादू से पीड़ित और अपनी पत्नी से संभोग करने से रोक दिये गये आदमी के उपचार के लिए बैरी के पत्ते और पानी में पढ़ी जानी वाली आयतें निम्नलिखित हैं :





1- सूरतुल-फातिहा पढ़ना।





2- सूरतुल बक़रा से आयतुल कुर्सी पढ़ना, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :





اللهُ لا إِلَهَ إِلا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَلا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ





"अल्लाह (तआला) ही सच्चा पूज्य है, जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं, जो ज़िन्दा है और सब का थामने वाला है, जिसे न ऊँघ आये न नींद, उस की मिल्कियत में धरती और आकाश की सभी चीज़ें हैं, कौन है जो उसके हुक्म के बिना उसके सामने सिफारिश कर सके, वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है और वह उसके इल्म में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, लेकिन वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी के विस्तार ने धरती और आकाशों को घेर रखा है, वह अल्लाह उनकी हिफाज़त से न थकता है और न ऊबता है, वह तो बहुत महान और बहुत बड़ा है।" (सूरतुल बक़रा : 255)





3- सूरतुल आराफ की यह आयतें पढ़ना :





قَالَ إِنْ كُنْتَ جِئْتَ بِآيَةٍ فَأْتِ بِهَا إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (106) فَأَلْقَى عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُبِينٌ (107) وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاءُ لِلنَّاظِرِينَ (108) قَالَ الْمَلأُ مِنْ قَوْمِ فِرْعَوْنَ إِنَّ هَذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ (109) يُرِيدُ أَنْ يُخْرِجَكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ (110) قَالُوا أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَأَرْسِلْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ (111) يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (112) وَجَاءَ السَّحَرَةُ فِرْعَوْنَ قَالُوا إِنَّ لَنَا لأَجْرًا إِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغَالِبِينَ (113) قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ لَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ (114) قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ نَحْنُ الْمُلْقِينَ (115) قَالَ أَلْقُوا فَلَمَّا أَلْقَوْا سَحَرُوا أَعْيُنَ النَّاسِ وَاسْتَرْهَبُوهُمْ وَجَاءُوا بِسِحْرٍ عَظِيمٍ (116) وَأَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنْ أَلْقِ عَصَاكَ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ (117) فَوَقَعَ الْحَقُّ وَبَطَلَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (118) فَغُلِبُوا هُنَالِكَ وَانْقَلَبُوا صَاغِرِينَ (119) وَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ (120) قَالُوا آَمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ (121) رَبِّ مُوسَى وَهَارُونَ (122)





"उस (फिरऔन) ने कहा, अगर आप कोई मोजिज़ा (चमत्कार) ले कर आये हैं तो उसे पेश कीजिये, यदि आप सच्चे हैं। फिर आप (मूसा अलैहिस्सलाम) ने अपनी छड़ी डाल दी तो अचानक वह एक साफ अजगर साँप बन गया। और अपना हाथ बाहर निकाला तो वह अचानक सभी देखने वालों के समाने बहुत ही चमकता हुआ हो गया। फिरऔन की क़ौम के सरदारों ने कहा कि यह बड़ा माहिर जादूगर है। वह तुम्हें तुम्हारे देश से निकालना चाहता है फिर तुम लोग क्या विचार देते हो ? उन्हों ने कहा कि आप उसे और उस के भाई को समय दीजिये और नगरों में इकट्ठा करने वालों को भेज दीजिये कि वे सभी माहिर जादूगरों को आप के समाने लाकर हाज़िर करें। और जादूगर फिरऔन के पास आये और कहा कि अगर हम सफल हो गये तो क्या हमारे लिए कोई बदला है ? उस ने कहा, हाँ, और तुम सब क़रीबी लोगों में हो जाओ गे। उन (जादूगरों) ने कहा कि ऐ मूसा! चाहे आप डालिये या हम ही डालें। (मूसा ने) कहा कि तुम ही डालो तो जब उन्हों ने डाला तो लोगों की नज़रबन्दी कर दी और उनको डरा दिया, और एक तरह का बड़ा जादू दिखाया। और हम ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी छड़ी डाल दो, फिर वह अचानक उनके स्वांग (ढोंग) को निगलने लगी। अत: सच स्पष्ट हो गया और उन्हों ने जो कुछ बनाया था सब जाता रहा। अत: वो लोग इस मौक़ा पर हार गये और बहुत अपमानित होकर लौटे। और जादूगर सज्दे में गिर गये। कहने लगे कि हम ईमान लाये सारी दुनिया के रब पर। जो मूसा और हारून का भी रब है।" (सूरतुल आराफ: 106-122)





4- सूरत यूनुस की निम्नलिखित आयतें पढ़ना :





وَقَالَ فِرْعَوْنُ ائْتُونِي بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (79) فَلَمَّا جَاءَ السَّحَرَةُ قَالَ لَهُمْ مُوسَى أَلْقُوا مَا أَنْتُمْ مُلْقُونَ (80) فَلَمَّا أَلْقَوْا قَالَ مُوسَى مَا جِئْتُمْ بِهِ السِّحْرُ إِنَّ اللهَ سَيُبْطِلُهُ إِنَّ اللهَ لا يُصْلِحُ عَمَلَ الْمُفْسِدِينَ (81) وَيُحِقُّ اللهُ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُجْرِمُونَ (82)





"और फिरऔन ने कहा कि मेरे पास सभी माहिर जादूगरों को लाओ। फिर जब जादूगर आये तो मूसा ने उन से कहा कि डालो जो कुछ तुम डालने वाले हो। तो जब उन्हों ने डाला तो मूसा ने कहा कि यह जो कुछ तुम लाये हो जादू है, तय बात है कि अल्लाह इस को अभी बरबाद किये देता है, अल्लाह ऐसे फसादियों का काम बनने नहीं देता। और अल्लाह तआला सच्चे सुबूत को अपने क़ौल से स्पष्ट कर देता है, चाहे मुजरिमों को कितना ही बुरा लेगे।" (सूरत यूनुस: 79-82)





5- सूरत ताहा की ये आयतें पढ़ना :





قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَلْقَى (65) قَالَ بَلْ أَلْقُوا فَإِذَا حِبَالُهُمْ وَعِصِيُّهُمْ يُخَيَّلُ إِلَيْهِ مِنْ سِحْرِهِمْ أَنَّهَا تَسْعَى (66) فَأَوْجَسَ فِي نَفْسِهِ خِيفَةً مُوسَى (67) قُلْنَا لا تَخَفْ إِنَّكَ أَنْتَ الأَعْلَى (68) وَأَلْقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلْقَفْ مَا صَنَعُوا إِنَّمَا صَنَعُوا كَيْدُ سَاحِرٍ وَلا يُفْلِحُ السَّاحِرُ حَيْثُ أَتَى (69)





"वे कहने लेगे कि हे मूसा! या तो तू पहले डाल या हम पहले डालने वाले बन जायें। जवाब दिया : नहीं, तुम ही पहले डालो। अब तो मूसा को यह ख्याल होने लगा कि उन की रस्सियाँ और लकड़ियाँ उन के जादू की ताक़त से दौड़ भाग रही हैं। इस से मूसा अपने मन ही मन में डरने लगे। हम ने कहा कि कुछ डर न कर, बेशक तू ही गालिब और ऊँचा होगा। और तेरे दाहिने हाथ में जो है उसे डाल दे कि उनकी सारी कारीगरी को यह निगल जाये, उन्हों ने जो कुछ बनाया है यह केवल जादूगरों के करतब हैं, और जादूगर कहीं से भी आये कामयाब नहीं होता।" (सूरत ताहा: 65-69)





6- सूरतुल काफिरून पढ़ना।





7- तीन बार सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन यानी सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास पढ़ना।





8- कुछ शरई दुआयें पढ़ना, उदाहरण के तौर पर :





"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"





(ऐ अल्लाह, लोगों के रब! कष्ट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे रोग निवारण के अलावा कोई रोग निवारण नहीं, ऐसी स्वास्थ्य (रोग निवारण) प्रदान कर कि कोई बीमारी बाक़ी न रहे।)





इसे तीन बार पढ़ें तो अच्छा है। और अगर इसके साथ ही निम्नलिखित दुआ भी तीन बार पढ़ें तो बेहतर है :





"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन्  ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"





(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)





और अगर उपर्युक्त आयतें और दुआयें सीधे जादू से प्रभावित व्यक्ति पर पढ़ें और उसके सिर या उसके सीने पर फूँक मारें (दम करें), तो यह भी अल्लाह के हुक्म से शिफा (रोग निवारण) के कारणों में से है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।





समाहतुश्शैख अल्लामा अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ रहिमहुल्लाह की किताब "मजमूअ़ फतावा व मक़ालात मुत-नव्विआ" पृ0 8/144.





बुरी नज़र (नज़र-बद) क्या है ? मैं ने इस वेबसाइट पर यह शब्दावली अधिक बार पढ़ी है, आप से अनुरोध है कि इसकी व्याख्या करें।





उत्तर


हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिये योग्य है।





बुरी नज़र से संबंधित ये कुछ प्रश्न और फत्वे प्रस्तुत हैं, अल्लाह तआला से दुआ है कि इन के द्वारा लोगों को लाभ पहुँचाये।





इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया :





बुरी नज़र की क्या हक़ीक़त (यथार्थता) है ? अल्लाह तआला फरमाता है : "और द्वेष (हसद) करने वाले की बुराई से जब वह द्वेष करे।" (सूरतुल फ़ल्क़ : 5) और क्या रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यह हदीस सहीह है जिस का अर्थ यह है कि : "क़ब्रों में एक तिहाई लोग बुरी नज़र के कारण हैं।"? और जब इंसान किसी के हसद के बारे में शक करे तो मुसलमान पर क्या करना और कहना अनिवार्य है ? और क्या बुरी नज़र लगाने वाले आदमी के धोवन (स्नान किये हुये पानी) को लेने से बुरी नज़र से प्रभावित आदमी को शिफा मिलती है ? और क्या वह उसे पिये गा या उस से स्नान करे गा ?





उनहों ने जवाब दिया :





अरबी का शब्द "ऐ़न" (जिस का अनुवाद है: बुरी नज़र) "आ़ना यईनो" से निकला है, जो उस समय प्रयोग किया जाता है जब वह किसी को अपनी आँख (बुरी नज़र) का शिकार बना ले, और उसका असल (यथार्थता) यह है कि बुरी नज़र वाला आदमी किसी चीज़ पर मोहित और लोभित हो जाता है, फिर उसकी दुष्ट आत्मा की कैफियत उसके पीछे पड़ जाती है, फिर अपने ज़हर को उतारने के लिये बुरी नज़र से पीड़ित व्यक्ति की ओर देखने के द्वारा सहायता हासिल करती है, अल्लाह तआला ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को हसद करने वाले से पनाह मांगने का आदेश दिया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : "और द्वेष (हसद) करने वाले की बुराई से जब वह द्वेष करे।" (सूरतुल फ़ल्क़ : 5) चुनाँचि हर बुरी नज़र लगाने वाला हसद करने वाला होता है और हर हसद करने वाला, बुरी नज़र लगाने वाला नहीं होता। और जब हसद करने वाला, बुरी नज़र लगाने वाले से अधिक सामान्य है, तो उस से पनाह मांगने में बुरी नज़र वाले से भी पनाह मांगना शामिल है, और यह एक ऐसा तीर है जो हसद करने वाले और बुरी नज़र वाले की नफ़्स से उस आदमी की ओर निकलता है जिस से हसद किया जा रहा होता और जिसे बुरी नज़र का शिकार बनाया जा रहा होता है। कभी यह तीर निशाने पर लग जाता है और कभी चूक जाता है, अगर यह (दुष्ट नज़र) उसे खुला हुआ पाती है उस पर कोई बचाव की चीज़ नहीं होती है, तो उसे प्रभावित कर देती है, और अगर उसे चौकस (सतर्क) और हथियार से लैस पाती है जिस में तीर के घुसने का कोई रास्ता नहीं होता है, तो उसे प्रभावित नहीं कर पाती है, और सम्भावत: वह तीर उसके चलाने वाले पर ही वापस आ सकता है। (ज़ादुल मआद से थोड़े परिवर्तन के साथ उद्धृत)





बुरी नज़र के लगने के विषय में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कई हदीसें प्रमाणित हैं, उन्ही में से बुखारी व मुस्लिम में आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की यह हदीस है, वह कहती हैं : "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुझे हुक्म देते थे कि मैं बुरी नज़र से दम (झाड़-फूँक) करूँ।"





तथा मुस्लिम, अहमद, और तिर्मिज़ी ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है और तिर्मिज़ी ने इसे सहीह कहा है, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "बुरी नज़र सच है, अगर कोई चीज़ तक़्दीर से आगे बढ़ने वाली होती तो बुरी नज़र उस से आगे निकल जाती, और जब तुम से स्नान करवाया जाये तो स्नान कर लिया करो।" (अल्बानी ने "अस्सिलसिला अस्सहीहा" (हदीस संख्या: 1251) में इसे सहीह कहा है)





तथा इमाम अहमद और तिर्मिज़ी (2059) ने असमा बिन्त उमैस रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है और तिर्मिज़ी ने सहीह कहा है, कि उन्हों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! जा'फर के बेटों को बुरी नज़र लग जाया करती है, तो क्या हम उन पर दम (झाड़-फूँक) करें ? आप ने कहा: हाँ, अगर कोई चीज़ तक़्दीर से आगे बढ़ने वाली होती तो बुरी नज़र उस से आगे निकल जाती।" (अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है।)





तथा अबू दाऊद ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : बुरी नज़र लगाने वाले को वुज़ू करने का हुक्म दिया जाता था तो वह वुज़ू करता था, फिर बुरी नज़र से पीड़ित आदमी उस से स्नान करता था।" (अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में इसे सहीह कहा है)





इमाम अहमद (हदीस संख्या: 15550) और मालिक (हदीस संख्या: 1811) नसाई, इब्ने हिब्बान ने सहल बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है और अल्बानी ने मिश्कात (हदीस संख्या: 4562) में इसे सहीह कहा है, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके साथ निकले और मक्का की ओर रवाना हुये, यहाँ तक कि जह्फा में शिअबुल-खरार नामी स्थान पर पहुँचे तो सह्ल बिन हुनैफ ने स्नान किया और वह सफेद त्वचा वाले एक गोरे खूबसूरत आदमी थे, तो बनू अदी बिन कअब के एक आदमी आमिर बिन रबीआ ने उनको स्नान करते हुये देखा तो कहा : मैं ने आज की तरह (खूबसूरत) तो किसी कुँवारी की भी त्वचा को नहीं देखा। इस पर सह्ल बेहोश होकर गिर पड़े, उन्हे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास लाया गया और कहा गया : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! क्या आप सह्ल के लिए कुछ करेंगे? अल्लाह कि क़सम वह अपना सिर नहीं उठा रहे हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: क्या तुम उसके विषय में किसी पर आरोप (तोहमत) लगाते हो ? लोगों ने कहा : आमिर बिन रबीआ ने उनकी ओर देखा है। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आमिर को बुलाया और उन पर क्रोधित हुये, और कहा :"तुम में से कोई अपने भाई को क्यों क़त्ल करता है ? जब तू ने कोई पसंदीदा चीज़ देखी तो उसके लिए बरकत की दुआ क्यों न की? फिर आप ने आमिर से कहा :  उनके लिए स्नान करो (अर्थात् अपने शरीर को धुलो), चुनाँचि उन्हों ने अपना चेहरा, अपने दोनों हाथों, दोनों कोहनियों, दोनों घुटनों, दोनों पाँवों के किनारों और अपनी तहबंद के भीतरी हिस्से को एक प्याले में धुला, फिर वह पानी उनके ऊपर उँडेल दी गया, एक आदमी उनके पीछे से उनके सिर और पीठ पर डालता था, फिर उनके पीछे प्याला उंडेल दिया गया, जब उनके साथ ऐसा किया गया, तो सह्ल (चंगा होकर) लोगों के साथ चलने लगे जैसे कि उन्हें कुछ भी नहीं हुआ था।"





तहबंद के भीतरी हिस्से से अभिप्राय तहबंद का वह हिस्सा है जो शरीर से मिला होता है।





उपर्युक्त हदीसों तथा उनके अलावा अन्य हदीसों के आधार पर जमहूर (अधिकांश) विद्वानों का मानना यह है कि आदमी बुरी नज़र से पीड़ित हो सकता है, तथा यह चीज़ वस्तुस्थिति के अनुकूल है और देखने और सुनने (मुशाहदे) में आती रहती है।





जहाँ तक उस हदीस का संबंध है जिसका आप ने वर्णन किया है कि "क़ब्रों में एक तिहाई लोग बुरी नज़र के कारण हैं।" : तो हमें इस हदीस के सहीह होने की जानकारी नहीं है, किन्तु "नैलुल अवतार" के लेखक ने उल्लेख किया है कि "बज़्ज़ार" ने हसन सनद के साथ जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु के हवाले से यह हदीस रिवायत की है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह तआला की क़ज़ा व क़द्र के बाद मेरी उम्मत के सबसे अधिक लोग बुरी नज़र के कारण मरेंग।"





मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह अल्लाह पर विश्वास, उस पर भरोसा और तवक्कुल की शक्ति, उसका सहारा लेकर, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित शरण मांगने वाली दुआओं, तथा अधिक से अधिक मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास), सूरतुल इख्लास, सूरतुल फातिहा और आयतुल कुर्सी पढ़कर अपने आप को इंसान और जिन्नात में से शैतानों से सुरक्षित और क़िलाबन्द कर ले। 





नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित शरण और पनाह मांगने वाली दुआओं में से कुछ निम्नलिखित हैं:





"अऊज़ो बि-कलिमातिल्लाहित्ताम्मात मिन शर्रे मा खलक़"





(मैं अल्लाह के सम्पूर्ण कलिमात की शरण में आता हूँ उस चीज़ की बुराई से जिसे उस ने पैदा किया है।)





"अऊज़ो बि-कलिमातिल्लाहित्ताम्मा मिन ग़ज़-बिहि व इ़क़ाबिहि, व मिन शर्रे इबादिहि, व मिन हम-ज़ातिश्शयातीनि व अंयह़ज़ोरूनि"





(मैं अल्लाह के सम्पूर्ण कलिमात की पनाह और शरण में आता हूँ उसके क्रोध और सज़ा से, और उसके बन्दों की बुराई से, और शैतानों के वस्वसे से और इस बात से कि वे मेरे पास आयें।)





और अल्लाह तआला का यह फरमान :





"ह़स्बियल्लाहु ला-इलाहा इल्ला हुवा अ़लैहि तवक्कल्तु व हुवा रब्बुल् अर्शिल् अ़ज़ीम"





(मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है, उसके सिवाय कोई सच्चा पूज्य नहीं, उसी पर मैं ने भरोसा किया, और वह महान अर्श का रब है।)





और इसी तरह की अन्य शरई दुआयें, और उत्तर के शुरू भाग में उल्लिखित इब्नुल क़ैयिम की बात का यही अर्थ है।





अगर यह पता चल जाये कि किसी इंसान ने उसे बुरी नज़र लगा दी है, या किसी की बुरी नज़र लगने के बारे में उसे शक हो, तो बुरी नज़र लगाने वाले को हुक्म दिया जायेगा कि वह अपने भाई के लिए स्नान करे (अपने शरीर को धुले)। चुनाँचि पानी से भरा एक बर्तन लाया जाये और संदिग्ध आदमी उसमें अपनी हथेली डाले, फिर कुल्ली करे और बर्तन में थूक दे, और बर्तन में अपना चेहरा धोये, फिर अपना बाँया हाथ डाले और अपने दाहिने घुटने पर बर्तन ही में पानी डाले, फिर अपना दाहिना हाथ डाले और अपने बायें घुटने पर पानी डाले, फिर अपना तहबंद धोये, फिर बुरी नज़र से पीड़ित आदमी के सिर पर उसके पीछे से एक बार में उँडेल दिया जाये। ऐसा करने पर अल्लाह के हुक्म से वह चंगा हो जायेगा।





"फताव अल्लजना अद्दाईमा लिल-बुहूस अल-इल्मिय्या वल-इफ्ता" (1/186)





शैख मुहम्मद सालेह अल-उसैमीन (रहिमहुल्लाह) से प्रश्न किया गया :





क्या इंसान को बुरी नज़र लगती है ? और इसका उपचार क्या है ? और क्या उस से बचाव करना अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा) के विरूद्ध है ?





तो उन्हों ने इस तरह उत्तर दिया :





बुरी नज़र के बारे में हमारी राय (विचार) यह है कि वह सत्य है और इस्लामी शरीअत के प्रमाणों और वास्तविक जीवन के अनुभवों से प्रमाणित है, अल्लाह तआला का फरमान है :





"और क़रीब है कि (ये) काफिर अपनी (तेज़) निगाहों से आप को फिसला दें।" (सूरतुल क़लम: 51)





इब्ने अब्बास वगैरा इसकी व्याख्या में फरमाते हैं : "यानी वे आपको अपनी बुरी निगाहों से नज़र लगा देते।" तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : "बुरी नज़र सच है, और अगर कोई चीज़ तक़्दीर से आगे बढ़ने वाली होती तो बुरी नज़र उस से बढ़ जाती, और जब तुम से स्नान करवाया जाये तो स्नान कर लिया करो।" इस हदीस को मुस्लिम ने रिवायत किया है, और इसी से संबंधित वह हदीस है जिसे नसाई और इब्ने माजा ने रिवायत किया है कि आमिर बिन रबीआ, सह्ल बिन हुनैफ के पास से गुज़रे और वह स्नान कर रहे थे... -और शैख ने पूरी हदीस बयान की-।





तथा वस्तुस्थिति इसका साक्षी और गवाह है, जिसका इनकार करना सम्भव नहीं।





बुरी नज़र लगने की अवस्था में शरई उपचारों का प्रयोग किया जायेगा, और वह निम्नलिखित हैं :





1- पढ़ कर दम करना : जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "बुरी नज़र या बुखार के अलावा किसी और चीज़ के कारण झाड़-फूँक (दम) करना जाइज़ नहीं।" (तिर्मिज़ी: 2057, अबू दाऊद: 3884) तथा जिब्रील अलैहिस्सलाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दम करते हुए कहते थे :





"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन्  ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"





(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)





2- स्नान करवाना: जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पीछे उल्लिखित हदीस में आमिर बिन रबीआ को हुक्म दिया, फिर उस पानी को बुरी नज़र से पीड़ित व्यक्ति पर उंडेल दिया जाये।





जहाँ तक बुरी नज़र वाले आदमी के पेशाब या मल को लेने का संबंध है तो इस का कोई आधार नहीं है, तथा यही मामला उसके शरीर से मिल कर (छू कर) अलग होने वाले अवशेष का भी है। इस संबंध में जो चीज़ वर्णित (प्रमाणित) है, वह उसके शरीर कें अंगों और उसके तहबंद के भीतरी भाग को धोना है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। और शायद इसी के समान उसके गुत्रा (रूमाल, पगड़ी), टोपी और कपड़े का भीतरी भाग भी है, और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





तथा बुरी नज़र से पहले ही से बचाव करने (यानी सावधानी बरतने) में कोई बात नहीं है, और ऐसा करना अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा) करने के विपरीत और विरूद्ध नहीं है, बल्कि इसी का नाम तवक्कुल है ; क्योंकि तवक्कुल कहते हैं : जिन कारणों को अल्लाह तआला ने वैध किया है या उनका आदेश दिया है, उन्हें अपनाते हुए अल्लाह सुब्हानहु व तआला पर भरोसा करना। और स्वयं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हसन और हुसैन को पनाह (शरण) देते हुये कहते थे :





"ओईज़ोकुमा बि-कलिमातिल्लाहित्ताम्मा मिन कुल्ले शैतानिन् व हाम्मा व मिन कुल्ले ऐनिन् लाम्मा"





(मैं तुम दोनों को अल्लाह के सम्पूर्ण कलिमात की शरण में देता हूँ हर शैतान और ज़हरीले जानवर से और हर बुरी नज़र से।) तिर्मिज़ी (2060) अबू दाऊद (4737)





और आप फरमाते थे कि : "इसी प्रकार इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी इसहाक़ और इसमाईल अलैहिमस्सलाम को पनाह दिया करते थे।" (बुखारी हदीस संख्या: 3371)





"फतावा अश्शैख इब्ने उसैमीन" (2/117, 118)





तथा प्रश्न संख्या : (7190) और (11359) के उत्तर भी देखिये।





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर





वो कौन से शरई साधन और उपाय हैं जिन के द्वारा जादू से उसके लगने से पहले बचा जा सकता है?





उत्तर


हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।





जादू लगने से पहले उस के खतरे से बचाव के सब से महत्व पूर्ण साधनों में से शरई ज़िक्र व अज़कार, दुआओं और शरीअत में निर्धारित पनाह देने वाली सूरतों के द्वारा अपने आप को सुरक्षित और क़िलाबन्द करना है, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं :





1- हर फर्ज़ नमाज़ के पीछे सलाम फेरने के बाद मस्नून अज़कार पढ़ने के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ना।





2- इसी तरह सोते समय आयतुल कुर्सी पढ़ना, और आयतुल कुर्सी क़ुर्आन करीम की सब से महान आयत है, वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :





اللهُ لا إِلَهَ إِلا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَلا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ





"अल्लाह (तआला) ही सच्चा पूज्य है, जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं, जो ज़िन्दा है और सब का थामने वाला है, जिसे न ऊँघ आये न नींद, उस की मिल्कियत में धरती और आकाश की सभी चीज़ें हैं, कौन है जो उसके हुक्म के बिना उसके सामने सिफारिश कर सके, वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है और वह उसके इल्म में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, लेकिन वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी के विस्तार ने धरती और आकाशों को घेर रखा है, वह अल्लाह उनकी हिफाज़त से न थकता है और न ऊबता है, वह तो बहुत महान और बहुत बड़ा है।" (सूरतुल बक़रा : 255)



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