इस्लाम व्यक्ति को कई मानवाधिकार प्रदान करता है। इन मानवाधिकारों में से कुछ निम्नलिखित हैं जिनकी इस्लाम रक्षा करता है।
एक इस्लामी राज्य में सभी नागरिकों के जीवन और संपत्ति को पवित्र माना जाता है, चाहे कोई व्यक्ति मुस्लिम हो या नहीं। इस्लाम सम्मान की भी रक्षा करता है। इसलिए इस्लाम में दूसरों की बेइज्जती करने या उनका मजाक उड़ाने की सख्त मनाही है। पैगंबर मुहम्मद, उन पर ईश्वर की दया और कृपा बनी रहे, ने कहा: "आपका खून, आपकी संपत्ति और आप की इज़्ज़त पाक और पवित्र हैं”[1]
इस्लाम में किसी तरह के जातिवाद की इजाजत नहीं है, क्योंकि क़ुरआन बताता है कि ईश्वर के लिए सब बराबर है, जैसा कि नीचे दिया गया है:
“ओ इंसान, हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है और तुम्हें देशों और कुलों में बनाया है ताकि तुम एक दूसरे को जान सको। हकीकत में, ईश्वर के नजदीक तुम में से सबसे बेहतर वो है जो पाक है। [2] अस्ल में, ईश्वर सब कुछ जानने वाला, ईश्वर सबसे वाकिफ है।" (क़ुरआन 49:13)
इस्लाम इजाजत नहीं देता कि कुछ इंसानों या देशों को उनके पैसे, ताकत या नस्ल के बिना पर पसंद किया जाए। ईश्वर ने इंसानों को बराबर बनाया है, जो सिर्फ अपने यकीन और मजहब के आधार पर ही एक-दूसरे से अलग हैं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा: “ओ लोगों! तुम्हारा ईश्वर एक है और तुम्हारा पूर्वज (आदम) भी एक है। एक अरब एक गैर-अरब से बेहतर नहीं है और एक गैर-अरब एक अरब से बेहतर नहीं है, और एक लाल (गोरा आदमी) एक काले से बेहतर नहीं है और एक काला गोरे से बेहतर नहीं है,[3] सिवाय उसके तक़्वा के”[4]
मानवता और इंसानियत के सामने इस समय सब से बड़ी मुश्किल और चुनौती नस्लभेद है। विकासशील देश एक व्यक्ति को चंद्रमा पर भेज सकते हैं, किंतु वे उसे किसी व्यक्ति से घृणा करने और झगड़ने से नहीं रोक सकते। पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय में ही इस्लाम ने नस्लभेद पर पूर्ण रूप से काबू पाने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया था। वार्षिक तीर्थ यात्रा (हज) जो मक्का शहर में होता है, इस्लाम के वास्तविक भाईचारे को दर्शाता है, जब दुनिया भर के दो मिलियन के करीब मुसलमान हज करने मक्का आते हैं। जो इस्लामी भाईचारे का एक बेहतरीन उदाहरण है।
इस्लाम एक न्याय का धर्म है। ईश्वर ने कहा है:
“ईश्वर आप को आदेश देता है कि अमानत लौटाओ उस व्यक्ति को, जो उसका वास्तविक हक़दार है। और जब तुम लोगों के बीच न्याय और निर्णय करो तो सम्पूर्ण निष्पक्षता के साथ न्याय किया करो...." (क़ुरआन 4:58)
और उसने निर्देश दिया है:
“...और न्याय के साथ फैसला करो। निःसंदेह ईश्वर उनको ही पसंद करते हैं,जो न्याय करते हैं।” (क़ुरआन 49:9)
हमें उन लोगों के साथ भी इंसाफ करना चाहिए, जिनसे हम नफरत करते हैं:
“...किसी समुदाय की दुश्मनी तुमको अन्याय पर न उभार दे, सदैव न्याय ही करो। यही ईश्वर से तक़वे के अधिक करीब है।....” (क़ुरआन 5:8)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा: “लोग अन्याय से सावधान रहें, [5] क्योंकि अन्याय क़यामत के दिन अंधेरों का कारण बनेगा।”[6]
और वह जिन्हें इस जिंदगी में (यानि जिस पर उनका हक है) अपने हक नहीं मिले हैं, वे उन्हें कयामत के दिन मिलेंगे, जैसा कि पैगंबर ने कहा:“फैसले के दिन उन लोगों को न्याय मिलेगा, जिसनके साथ दुनिया में अन्याय हुआ था। (और गलत करने वालों से हिसाब लिया जाएगा।)...”[7]