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हबल का नियम


हजारों वर्षों से खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) को ब्रह्मांड से संबंधित बुनियादी सवालों में परेशानी हुई है। 1920 के दशक की शुरुआत तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड हमेशा से ही रहा है, और यह भी कि ब्रह्मांड का आकार एक सामान है और यह बदलता नहीं है। हालांकि, 1912 में अमेरिकी खगोलशास्त्री वेस्टो स्लिफर ने एक ऐसी खोज की जिससे जल्द ही ब्रह्मांड के बारे में खगोलविदों की मान्यतायें बदल जाएगी। स्लिफर ने देखा कि आकाशगंगाएं काफी तेज गति से पृथ्वी से दूर जा रही थीं। इससे बढ़ने वाले ब्रह्मांड के सिद्धांत का पहला सबूत मिला।[1]





 





1608 में दूरबीन के आविष्कार से पहले मनुष्य ब्रह्मांड के बनने के बारे में आश्चर्य करने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था। (सौजन्य: नासा) 


1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपना सापेक्षता (रिलेटिविटी) का सामान्य सिद्धांत बनाया जिससे पता चला कि या तो ब्रह्मांड बढ़ता हुआ होना चाहिए या सिकुड़ता हुआ। बढ़ते हुए ब्रह्मांड के सिद्धांत की पुष्टि आखिरकार 1929 में प्रसिद्ध अमेरिकी खगोलशास्त्री एडविन हबल ने की।





आकाशगंगाओं से निकलने वाली प्रकाश तरंगदैर्घ्य में रेडशिफ्ट[2] को देखकर हबल ने पाया कि आकाशगंगाएं अपनी जगह पर स्थिर नहीं थीं; बल्कि ये वास्तव में पृथ्वी से उनकी दूरी के समानुपाती गति से दूर जा रहे थे (हबल का नियम)। इस अवलोकन का एकमात्र स्पष्टीकरण यह था कि ब्रह्मांड का विस्तार होना था। हबल की इस खोज को खगोल विज्ञान के इतिहास में की गई बड़ी खोजों में से एक माना जाता है। 1929 में उन्होंने वेग-समय संबंध प्रकाशित किया जो आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान का आधार है। आने वाले समय में, अधिक अवलोकनों के बाद बढ़ते हुए ब्रह्मांड के सिद्धांत को वैज्ञानिकों और खगोलविदों ने समान रूप से स्वीकार किया।





 





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हूकर टेलीस्कोप से हबल ने खोज की, कि आकाशगंगाएँ हमसे दूर जा रही हैं। ऊपर ज्ञात आकाशगंगाओं की तस्वीरें हैं। (सौजन्य: नासा)


 





लेकिन आश्चर्य वाली बात यह है कि टेलीस्कोप का आविष्कार होने से पहले और हबल का नियम प्रकाशित होने से पहले, पैगंबर मुहम्मद अपने साथियों को क़ुरआन का एक छंद सुनाते थे जिसमें कहा गया था कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है।





“आसमान (स्वर्ग) को हमने हाथों से बनाया है और यक़ीनन हम इसको बढ़ाने वाले हैं।“ (क़ुरआन 51:47)





क़ुरआन के आने के समय "अंतरिक्ष" शब्द के बारे में कोई नहीं जानता था, और लोग पृथ्वी के ऊपर की चीज को "स्वर्ग" कहते थे। ऊपर के छंद में "स्वर्ग" शब्द का मतलब अंतरिक्ष और ज्ञात ब्रह्मांड है। यह छंद अंतरिक्ष यानि ब्रह्मांड के विस्तार को बताता है, जैसा कि हब्बल के नियम में बताया गया है।





क़ुरआन ने दूरबीन के आविष्कार से सदियों पहले इस बात को बताया था, उस समय जब विज्ञान की थोड़ी सी जानकारी को भी काफी माना जाता है। और सोचने वाली बात यह है कि उस समय के कई लोगों की तरह पैगंबर मुहम्मद भी अनपढ़ थे और इस तरह की बातों को वो खुद नहीं जान सकते थे। क्या ऐसा हो सकता है कि वास्तव में ब्रह्मांड को पैदा करने वाले और बनाने वाले से उन्हें यह दिव्य ज्ञान मिला हो?





बिग बैंग सिद्धांत


अपने सिद्धांत को प्रकाशित करने के तुरंत बाद हबल ने पाया कि आकाशगंगाएं न केवल पृथ्वी से दूर जा रहे थे बल्कि वे एक दूसरे से दूर भी जा रहे थे। इसका मतलब यह था कि जिस तरह एक गुब्बारा हवा भरने पर फैलता है उसी तरह ब्रह्मांड भी हर दिशा में बढ़ रहा था। हबल की इन नयी खोजों ने बिग बैंग सिद्धांत की नींव रखी।





बिग बैंग सिद्धांत में कहा गया है कि लगभग 12 से 15 अरब साल पहले एक बेहद गर्म और घने केंद्र से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था, और इस केंद्र मे किसी वजह से विस्फोट हुआ जिससे ब्रह्मांड की शुरुआत हुई और तब से ब्रह्मांड इसी एक केंद्र से फैल रहा है।  





1965 में रेडियो खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) अर्नो पेनज़ियास और रॉबर्ट विल्सन ने एक ऐसी खोज की जिसने बिग बैंग सिद्धांत की पुष्टि की और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी खोज से पहले ये माना जाता था कि यदि ब्रह्मांड एक अत्यधिक गर्म केंद्र से अस्तित्व में आया था तो इस गर्मी का अवशेष होना चाहिए। पेनज़ियास और विल्सन ने इसी बची हुई गर्मी की खोज की थी। 1965 में पेनज़ियास और विल्सन ने 2.725 डिग्री केल्विन कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन (सी एम बी) की खोज की जो ब्रह्मांड में फैलता है। इससे यह माना गया कि पाया गया रेडिएशन बिग बैंग के प्रारंभिक चरणों का अवशेष था। इस समय बिग बैंग सिद्धांत को अधिकांश वैज्ञानिक और खगोलविद स्वीकार करते हैं।





 





Cosmic Background Explorer Data





ब्रह्मांड को बनाने वाले बिग बैंग के बचे हुए अवशेष का माइक्रोवेव मैप। (सौजन्य: नासा)


 





क़ुरआन मे इसका जिक्र है:





"वह (ईश्वर) आसमानों और ज़मीन को पैदा करने वाला है..." (क़ुरआन 6:101)





"क्या वो जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया, इसकी कुदरत नहीं रखता कि इन जैसों को पैदा कर सके? क्यों नही, जबकि वो माहिर बनाने वाला है। वो तो जब किसी चीज़ का इरादा करता है तो उसका काम बस ये है कि उसे हुक्म दे कि हो जा और वह हो जाता है।" (क़ुरआन 36:81-82)





ऊपर के छंद साबित करती है कि ब्रह्मांड की शुरुआत थी, इसको बनाने वाला ईश्वर है, और बनाने के लिए ईश्वर को सिर्फ यह कहना है की हो जा और वह हो जाता है। क्या यह इस बात का स्पष्टीकरण हो सकता है कि जिस विस्फोट से ब्रह्मांड की शुरुआत हुई वो कैसे हुआ?





क़ुरआन यह भी कहता है:





"क्या वो लोग जो इनकार करते हैं ये नही देखते कि आसमान और जमीन आपस मे जुड़े हुए थे, फिर हमने इन्हें अलग किया, और पानी से हर जिन्दा चीज पैदा की? क्या वो इसे नहीं मानते?" (क़ुरआन 21:30)





मुस्लिम विद्वान जिन्होंने पिछले छंद का मतलब बताया है वो कहते हैं कि आसमान और जमीन एक समय जुड़े हुए थे, और फिर ईश्वर ने उन्हें अलग कर के सात आसमान और जमीन बनाया। फिर भी क़ुरआन के आने के समय (और आने वाली कई शताब्दियों तक) विज्ञान और टेक्नोलॉजी की कमी के कारण कोई भी विद्वान इस बारे में अधिक नहीं बता पाया कि वास्तव में आसमान और जमीन कैसे बने। विद्वान छंद में सिर्फ अरबी के प्रत्येक शब्द का सही मतलब और साथ ही पुरे छंद का मतलब बता सकते थे।





पिछले छंद में अरबी के शब्द रत्क़ और फ़तक़ का उपयोग हुआ है। रत्क़ शब्द का अनुवाद "इकाई" "सिलना" "एक साथ जुड़ा हुआ" या "बंद" में किया जा सकता है। इन सभी अनुवादों का मतलब किसी ऐसी चीज़ से है जो मिला हुआ है और जिसका एक अलग और विशेष अस्तित्व है। क्रिया फ़तक़ का अनुवाद "हमने खोल दिया" "हमने उन्हें अलग कर दिया" "हमने अलग कर दिया" या "हमने उन्हें खोल दिया" है। इनका मतलब है कि कोई चीज अलग करने और तोड़ने से अस्तित्व में आती है। मिट्टी से एक बीज का अंकुरित होना क्रिया फ़तक़ का एक अच्छा उदाहरण है।





बिग बैंग सिद्धांत के आने से मुस्लिम विद्वानों के लिए जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि इस सिद्धांत में जो बताया गया है वह क़ुरआन की सूरत 21 के छंद 30 में ब्रह्मांड के निर्माण के बारे में बताये गए विवरण के साथ पूरी तरह मेल खाता है। इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की सभी चीजे एक अत्यंत गर्म और घने केंद्र से ही बानी है; इसमें विस्फोट हुआ और ब्रह्मांड के बनने की शुरुआत हुई, जो इस छंद से पूरी तरह मेल खाता है जिसमे बताया गया है कि आसमान और जमीन (ब्रह्मांड) एक समय जुड़े हुए थे और फिर अलग हुए। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब ब्रह्मांड को बनाने वाले और पैदा करने वाले ईश्वर ने पैगंबर मुहम्मद को इसके बारे में बताया हो। 



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