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इब्राहीम कई वर्षों तक कनान में रहे और एक शहर से दूसरे शहर में प्रचार करते रहे और लोगों को ईश्वर के पास लाने के लिए आमंत्रित करते रहे, जब तक कि अकाल ने उन्हें और सारा को मिस्र जाने के लिए मजबूर न कर दिया। मिस्र में एक निरंकुश फिरौन था जिसे विवाहित महिलाओं पर अधिकार करने की तीव्र इच्छा थी।[1] यह इस्लामी वर्णन यहूदी -ईसाई परंपराओं से काफी अलग है, जो कहता है कि इब्राहिम ने दावा किया कि सारा[2] उसकी बहन थी ताकि वह फिरौन [3] से खुद को बचा सके। फिरौन ने सारा को अपने अन्त:पुर में ले लिया और इसके लिए इब्राहीम को सम्मानित किया, लेकिन जब उनका घर गंभीर विपत्तियों से त्रस्त हो गया, तो उसे पता चला कि वह इब्राहीम की पत्नी थी और उसे यह बात न बताने के लिए दंडित किया, इस प्रकार उसे मिस्र से निकाल दिया।[4]





इब्राहीम जानता था कि सारा उसका ध्यान खींच लेगी, इसलिए उसने उससे कहा कि यदि फिरौन ने उससे पूछा, तो वह कहे कि वह इब्राहीम की बहन है। जब उन्होंने उसके राज्य में प्रवेश किया, जैसा कि अपेक्षित था, फिरौन ने सारा के साथ उसके रिश्ते के बारे में पूछा, और इब्राहीम ने उत्तर दिया कि वह उसकी बहन है। हालांकि उत्तर ने उसके कुछ जुनून को कम किया, फिर भी उसने उसे बंदी बना लिया। लेकिन सर्वशक्तिमान की सुरक्षा ने उसे उसकी दुष्ट साजिश से बचा लिया। जब फिरौन ने सारा को अपनी गलत इच्छाओं को पूरा करने के लिए बुलाया, तो सारा ने ईश्वर से प्रार्थना की। जैसे ही फिरौन सारा के पास पहुंचा, उसका ऊपरी शरीर अकड़ गया। उसने संकट में सारा को पुकारा, और वादा किया कि अगर वह उसके इलाज के लिए प्रार्थना करेगी तो उसे रिहा कर देगा! उसने उसकी रिहाई के लिए प्रार्थना की। लेकिन तीसरे असफल प्रयास के बाद उन्होंने प्रयास करना छोड़ दिया। उनके विशेष स्वभाव को महसूस करते हुए, उसने उसे जाने दिया और उसे उसके कथित भाई को लौटा दिया।





जब इब्राहीम प्रार्थना कर रहे थे तभी सारा फिरौन से उपहारों के साथ लौट आई, क्योंकि फिरौन को उसकी विशेष प्रकृति का एहसास हो गया था, यहूदी-ईसाई परंपराओं के अनुसार, फ़िरौन ने अपनी बेटी हाजिरा को एक दासी[5] के रूप में सारा के साथ भेजा। उसने फिरौन और मूर्तिपूजक मिस्रियों को एक शक्तिशाली संदेश दिया था।





फ़िलिस्तीन लौटने के बाद, सारा और इब्राहिम निःसंतान बने रहे, ईश्वरीय वादों के बावजूद कि उन्हें एक बच्चा दिया जाएगा। ऐसा लगता है कि एक बांझ महिला द्वारा अपने पति को संतान पैदा करने के लिए एक दासी का उपहार देना उस समय की एक सामान्य प्रथा थी [6], सारा ने इब्राहिम को सुझाव दिया कि वह हाजिरा को अपनी उपपत्नी बना ले। कुछ ईसाई विद्वान इस घटना के बारे में कहते हैं कि उन्होंने वास्तव में उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था [7]। जो भी मामला हो, यहूदी और बेबीलोनियन परंपरा में, एक उपपत्नी से पैदा होने वाली किसी भी संतान पर उपपत्नी की पूर्व मालकिन द्वारा दावा किया जाएगा और उससे पैदा हुए बच्चे के समान ही व्यवहार किया जाएगा [8], जिसमें विरासत के मामले भी शामिल हैं। फिलिस्तीन में रहते हुए, हाजिरा से उन्हें एक बेटा इस्माईल पैदा हुआ।





मक्का में इब्राहिम


जब इस्माईल अभी भी स्तनपान कर रहा थे, तब ईश्वर ने फिर से अपने प्रिय इब्राहीम के विश्वास का परीक्षण करने के लिए चुना और उसे हाजिरा और इस्माईल को हेब्रोन से 700 मील दक्षिण-पूर्व में बक्का की एक बंजर घाटी में जाने का आदेश दिया। बाद के समय में इसे मक्का कहा गया। वास्तव में यह एक बड़ी परीक्षा थी, क्योंकि वह और उसका परिवार संतान के लिए तरस रहे थे, और जब उनकी आंखे एक वारिस के आनंद से भर गईं, तो उसे एक दूर देश में ले जाने की आज्ञा दी गई, वो स्थान अभाव और कठिनाई के लिए जाना जाता था।जहां क़ुरआन पुष्टि करता है कि इब्राहीम के लिए यह एक और परीक्षा थी, वहीं इस्माईल अभी भी एक बच्चा था, बाइबिल और यहूदी-ईसाई परंपराओं का दावा है कि यह सारा के क्रोध का परिणाम था, जिसने इब्राहिम से हाजरा और उसके बेटे को देखने के लिए अनुरोध किया था। इस्माईल दूध छुड़ाने के बाद इसहाक[10] पर "मजाक"[9] कर रहा था। चूंकि दूध छुड़ाने की सामान्य उम्र, कम से कम यहूदी परंपरा में 3 साल थी[11], इससे पता चलता है कि इस घटना के समय इस्माईल की उम्र लगभग 17 साल थी [12]। यह तार्किक रूप से असंभव प्रतीत होता है, कि हाजिरा एक युवक को अपने कंधों पर रख कर सैकड़ों मील तक ले जाने में सक्षम होगी, जब तक कि वह पारान तक नहीं पहुंच जाती, उसके बाद ही उसे एक झाड़ी [13] के नीचे लिटाती है, जैसा कि बाइबल कहती है। इन छंदों में इस्माईल को उसके निर्वासन का वर्णन करने वाले शब्द से भिन्न शब्द से संदर्भित किया गया है। यह शब्द इंगित करता है कि वह एक बहुत छोटा लड़का था, संभवतः एक युवा होने के बजाय एक बच्चा था।





इब्राहीम, हाजिरा और इस्माईल के साथ कुछ समय रहने के बाद उन्हें कुछ पानी और खजूर से भरे चमड़े के थैले के साथ वहीं छोड़ देते हैं। जैसे ही इब्राहीम उन्हें छोड़कर दूर जाने लगा, हाजिरा को चिंता हुई कि क्या हो रहा है। इब्राहिम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हाजिरा ने उसका पीछा किया, 'हे इब्राहीम, आप हमें इस घाटी में छोड़कर कहाँ जा रहे हैं, जहाँ ना तो कोई व्यक्ति है और ना ही यहाँ कुछ और है?'





इब्राहीम ने अपनी गति तेज कर दी। अंत में हाजिरा ने पूछा,'क्या ईश्वर ने आपको ऐसा करने के लिए कहा है?'





अचानक, इब्राहीम रुक गया, पीछे मुड़ा और कहा, 'हाँ!'





इस उत्तर में कुछ हद तक आराम महसूस करते हुए हाजिरा ने पूछा, 'हे इब्राहीम, तू हमें किसके पास छोड़ रहा है?'





इब्राहीम ने उत्तर दिया, 'मैं तुम्हें ईश्वर की देखरेख में छोड़ रहा हूं।'





हाजिरा अपने ईश्वर की प्रति समर्पित हुई और कहा, 'मैं ईश्वर के साथ संतुष्ट हूँ!'[14]





जब वह नन्हे इस्माईल के पास वापस लौट रही थी, इब्राहीम तब तक आगे बढ़ता रहे जब तक कि वह पहाड़ के एक संकरे रास्ते पर नहीं पहुँच गया, जहाँ से वे उसे न देख पाए। वह वहीं रुक गया और प्रार्थना में ईश्वर का आह्वान किया:





"हमारे पालनहार! मैंने अपनी कुछ संतान मरुस्थल की एक वादी में तेरे सम्मानित घर (काबा) के पास बसा दी है, ताकि वे प्रार्थना की स्थापना करें। अतः लोगों के दिलों को उनकी ओर आकर्षित कर दे और उन्हें जीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ हों।" (क़ुरआन 14:37)





जल्द ही, पानी और खजूर ख़तम हो गए और हाजिरा की हताशा बढ़ गई। अपनी प्यास बुझाने या अपने छोटे बच्चे को स्तनपान कराने में असमर्थ, हाजिरा पानी की तलाश करने लगी। इस्माईल को एक पेड़ के नीचे छोड़कर, वह पास की एक पहाड़ी की चट्टानी ढलान पर चढ़ने लगी। 'शायद वहाँ से कोई कारवां गुजर रहा होगा,' उसने मन ही मन सोचा। वह सफा और मारवा की दो पहाड़ियों के बीच सात बार पानी या मदद की तलाश में गई, बाद में हज में सभी मुसलमानों द्वारा ऐसा करना अनिवार्य कर दिया गया। थकी और व्याकुल, उसने एक आवाज सुनी, लेकिन उसके स्रोत का पता नहीं लगा सकी। फिर घाटी में नीचे की ओर देखते हुए, उसने एक स्वर्गदूत को देखा, जिसे इस्लामिक स्रोतों [15], में जिब्रईल के रूप में पहचाना जाता है, जो इस्माईल के बगल में खड़ा था। स्वर्गदूत ने बच्चे के पास अपनी एड़ी से जमीन में खोदा, और पानी बह निकला। यह एक चमत्कार था! हाजिरा ने उसके चारों ओर एक बांध बनाने की कोशिश की, ताकि वह बह ना जाए, और उसकी पानी की थैली भर गई। [16]  'उपेक्षित होने से डरो मत,' स्वर्गदूत ने कहा,' क्योंकि यह ईश्वर का भवन है जो इस लड़के और उसके पिता द्वारा बनाया जाएगा, और ईश्वर अपने लोगों की कभी उपेक्षा नहीं करता।'[17] इसे ज़मज़म कहा गया और यह कुआं अरब प्रायद्वीप में मक्का शहर में आज भी बह रहा है।





कुछ ही समय बाद दक्षिणी अरब से आगे बढ़ते हुए, जुरहम की जनजाति, मक्का की घाटी से अपनी दिशा में जाते हुए एक पक्षी की असामान्य दृष्टि को देखकर रुक गई, जिसका अर्थ केवल पानी की उपस्थिति हो सकता था। वे अंततः मक्का में बस गए और इस्माईल उनके बीच बड़ा हुआ।





इस कुएं का एक समान विवरण उत्पत्ति 21 में बाइबिल में दिया गया है। इस वर्णन में, बच्चे से दूर जाने का कारण मदद की तलाश के बजाय उसे मरते हुए देखने से बचना था। फिर, जब बच्चा प्यास से रोने लगा, तो उसने ईश्वर से उसे मरते हुए देखने से बचाने के लिए कहा। कहा जाता है कि कुएं की उपस्थिति इस्माईल के रोने की प्रतिक्रिया के रूप में थी, न कि उसकी प्रार्थना के, और हाजिरा द्वारा सहायता प्राप्त करने के किसी भी प्रयास की सूचना नहीं है। साथ ही, बाइबल बताती है कि कुआं पारान के जंगल में था, जहां वे बाद में रहते थे। यहूदी-ईसाई विद्वान अक्सर उल्लेख करते हैं कि व्यवस्थाविवरण 33:2 में माउंट सिनाई के उल्लेख के कारण पारान सिनाई प्रायद्वीप के उत्तर में कहीं है। हालांकि, आधुनिक बाइबिल पुरातत्वविद कहते हैं कि माउंट सिनाई वास्तव में आधुनिक सऊदी अरब में है, जिससे यह आवश्यक हो जाता है कि पारान भी वहीं हो।[18]





इब्राहिम ने अपने पुत्र की बलि दी


इब्राहीम को ईश्वर की देखरेख में मक्का में अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़े हुए करीब दस साल हो चुके थे। दो महीने की यात्रा के बाद, वह मक्का को देख के हैरान रह गए, मक्का बदल गया था जैसा वो छोड़ के गए थे। पुनर्मिलन का आनंद जल्द ही बाधित हो गया, जो उसके विश्वास की अंतिम परीक्षा थी। ईश्वर ने इब्राहीम को एक सपने के माध्यम से अपने बेटे की बलि देने का आदेश दिया, वह पुत्र जो उसको वर्षों की प्रार्थनाओं के बाद और एक दशक के अलगाव के बाद मिला था।





हम क़ुरआन से जानते हैं कि जिस बच्चे की बलि दी जानी थी वह इस्माईल था, ईश्वर ने जब इब्राहिम और सारा को इसहाक के जन्म की खुशखबरी दी, तो उसने एक पोते याकूब (इस्राईल) की भी खुशखबरी दी:





"…लेकिन हमने उसे इसहाक और उसके बाद याकूब के बारे में खुशखबरी दी।" (क़ुरआन 11:71)





इसी तरह, बाइबिल के पद उत्पत्ति 17:19 में, इब्राहिम से वादा किया गया था:





"तेरी पत्नी सारा तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न करेगी जिसका नाम इसहाक होगा। मैं उसके साथ अपनी वाचा को सदा की वाचा ठहराऊंगा [और] उसके बाद उसके वंश के साथ।"





क्योंकि ईश्वर ने सारा को इब्राहिम से एक बच्चा और उस बच्चे के पोते-पोतियों को देने का वादा किया था, इसलिए ईश्वर के लिए यह ना तो तार्किक रूप से और ना ही व्यावहारिक रूप से संभव है कि वह इब्राहिम को इसहाक की बलि देने की आज्ञा दे, क्योंकि ईश्वर ना तो अपना वादा तोड़ता है, और ना ही वह "भ्रम का लेखक" है।





यद्यपि उत्पत्ति 22:2 में इसहाक को स्पष्ट रूप से उस व्यक्ति के रूप में उल्लेख किया गया है जिसका बलिदान दिया जाना था, हम बाइबिल के अन्य संदर्भों से सीखते हैं कि यह स्पष्ट प्रक्षेप है, और जिस व्यक्ति की बलि देनी थी वह इस्माईल थे।





"तेरा इकलौता बेटा"


उत्पत्ति 22 के पदों में, ईश्वर इब्राहिम को अपने इकलौते पुत्र की बलि चढ़ाने का आदेश देता है। जैसा कि इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म के सभी विद्वान सहमत हैं, इस्माईल का जन्म इसहाक से पहले हुआ था। इससे इसहाक को इब्राहीम का इकलौता पुत्र कहना उचित नहीं होगा।





यह सच है कि यहूदी-ईसाई विद्वान अक्सर तर्क देते हैं कि चूंकि इस्माईल एक उपपत्नी से पैदा हुआ था, इसलिए वह एक वैध पुत्र नही था। हालांकि, हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं कि यहूदी धर्म के अनुसार संतान पैदा करने के लिए बांझ पत्नियों द्वारा अपने पतियों को उपपत्नी का उपहार देना एक सामान्य, वैध और स्वीकार्य कार्य था, और उपपत्नी द्वारा उत्पन्न बच्चे का दावा पिता की पत्नी द्वारा किया जाएगा [1], विरासत सहित उसके, पत्नी के, अपने बच्चे के रूप में सभी अधिकार मिलते थे। इसके अलावा, उन्हें अन्य बच्चों की तुलना में दोगुना हिस्सा प्राप्त होता था, भले ही वे उनसे "नफरत" क्यों न हो [2]।





इसके अलावा, बाइबल में यह अनुमान लगाया गया है कि सारा खुद हाजिरा से पैदा हुए बच्चे को एक सही उत्तराधिकारी मानती थी। यह जानते हुए कि इब्राहीम से वादा किया गया था कि उसका वंश नील और फरात (उत्पत्ति 15:18) नदी के बीच की भूमि को अपने शरीर से भर देगा (उत्पत्ति 15:4), उसने इब्राहीम को हाजिरा की पेशकश की ताकि वह इस भविष्यवाणी को पूरा करने का माध्यम बने। उसने कहा,





"सारा ने इब्राहिम से कहा, ‘देखो, प्रभु ने मुझे सन्‍तानहीन रखा है। इसलिए मैं तुमसे विनती करती हूं, तुम मेरी दासी के पास जाओ। सम्‍भव है, उससे पुत्र हों और मैं पुत्रवती बन जाऊं।" (उत्पत्ति 16:2)





यह भी इसहाक के पुत्र याकूब की पत्नियों लिआ और राहेल के समान है, जो अपनी दासियों को याकूब को संतान उत्पन्न करने के लिए देती हैं (उत्पत्ति 30:3, 6-7, 9-13)। उनके बच्चे दान, नप्ताली, गाद और आशेर थे, जो याकूब के बारह पुत्रों में से थे, जो इस्राएलियों के बारह गोत्रों के पिता थे, और इसलिए वैध वारिस थे।[3].





इससे, हम समझते हैं कि सारा का मानना ​​था कि हाजिरा से पैदा हुआ बच्चा इब्राहीम को दी गई भविष्यवाणी की पूर्ति होगी, और ऐसा होगा जैसे वह अपने आप से पैदा हुआ हो। इस प्रकार, केवल इस तथ्य के अनुसार, इस्माईल नाजायज नहीं है, बल्कि एक सही वारिस है।





ईश्वर स्वयं इस्माईल को एक वैध उत्तराधिकारी मानता है, क्योंकि कई जगहों पर, बाइबिल में उल्लेख किया गया है कि इस्माईल इब्राहिम का "बीज" है। उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 21:13 में:





"और दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति बनाऊंगा, क्योंकि वह तेरा वंश है।





ऐसे और भी कई कारण हैं जो यह साबित करते हैं कि इसहाक की बजाय इस्माईल की बलि दी जानी थी, और ईश्वर की इच्छा से, इस मुद्दे पर एक अलग लेख लिखा जाएगा।





वर्णन को जारी रखते हुए, इब्राहीम ने अपने पुत्र से यह देखने के लिए परामर्श किया कि क्या वह समझ गया है कि उसे ईश्वर ने क्या आज्ञा दी थी,





"तो हमने शुभ सूचना दी उसे, एक सहनशील पुत्र की। फिर जब वह पहुँचा उसके साथ चलने-फिरने की आयु को, तो इब्राहीम ने कहाः हे मेरे प्रिय पुत्र! मैं देख रहा हूँ स्वप्न में कि मैं तुझे वध कर रहा हूँ। अब, तू बता कि तेरा क्या विचार है? उसने कहाः हे पिता! पालन करें, जिसका आदेश आपको दिया जा रहा है। आप पायेंगे मुझे सहनशीलों में से, यदि ईश्वर की इच्छा हूई। " (क़ुरआन 37:101-102)





वास्तव में यदि किसी व्यक्ति को उनका पिता कहे कि तुझे सपने के कारण वध करना है, तो वह इसे अच्छे तरीके से नहीं लेगा। व्यक्ति के सपने के साथ-साथ विवेक पर भी संदेह हो सकता है, लेकिन इस्माईल अपने पिता की स्थिति को जानता था। एक धर्मपरायण पिता का धर्मपरायण पुत्र ईश्वर को समर्पित करने के लिए प्रतिबद्ध था। इब्राहीम अपने पुत्र को उस स्थान पर ले गया, जहां उसकी बलि देनी थी, और उसे मुंह के बल लिटा दिया। इसलिए ईश्वर उन्हें सबसे सुंदर शब्दों में वर्णित करता है, प्रस्तुत करने के सार का एक चित्र चित्रित किया है; जो आंखों में आंसू ला देता है:





"अन्ततः, जब दोनों ने स्वयं को अर्पित कर दिया और पिता (इब्राहीम) ने उसे (इस्माईल) गिरा दिया माथे के बल (बलिदान के लिए)।" (क़ुरआन 37:103)





जैसे ही इब्राहीम का चाकू काटने को तैयार था, एक आवाज ने उसे रोक लिया





"तब हमने उसे आवाज़ दी कि हे इब्राहीम! तूने सच कर दिया अपना स्वप्न। इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को। वास्तव में, ये खुली परीक्षा थी।" (क़ुरआन 37:104-106)





वास्तव में, यह सबसे बड़ी परीक्षा थी, अपने इकलौते बच्चे का बलिदान, जो उसके बुढ़ापे में और संतान की लालसा के वर्षों के बाद पैदा हुआ था। यहां, इब्राहीम ने ईश्वर के लिए अपनी सारी संपत्ति का बलिदान करने की इच्छा दिखाई, और इस कारण से, उन्हें पूरी मानवता का प्रमुख नामित किया गया, ईश्वर ने उसके संतानो को पैगंबर बना के उसे आशीर्वाद दिया।





"और जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का धर्मगुरु बनाने वाला हूं। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी।" (क़ुरआन 2:124)





इस्माईल की जगह एक मेढ़े को रख के उसे बचाया गया था,





‘…और हमने उसके मुक्ति-प्रतिदान के रूप में, प्रदान कर दी एक महान बली।' (क़ुरआन 37:107)





यह ईश्वर में समर्पण और विश्वास का प्रतीक है, जिसे हर साल लाखों मुसलमान हज के दिनों में दोहराते हैं, एक दिन जिसे यवम-उन-नाहर - बलिदान का दिन, या ईद उल-अज़हा - या बलिदान का उत्सव कहा जाता है।





इब्राहीम फिलिस्तीन लौट आये, और ऐसा करने पर, स्वर्गदूतों ने उससे मुलाकात की जिन्होंने इब्राहिम और सारा को एक बेटे इसहाक की खुशखबरी सुनाई,





"उन्होंने कहाः डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानी बालक की शुभ सूचना दे रहे हैं।" (क़ुरआन 15:53)





उसी समय उन्हें लूत के लोगों के विनाश के बारे में भी बताया गया था।





इब्राहीम और इस्माईल काबा का निर्माण करते हैं


कई वर्षों के अलगाव के बाद, पिता और पुत्र फिर से मिले। इस यात्रा पर दोनों ने स्थायी पुण्यस्थान के रूप में ईश्वर की आज्ञा पर काबा का निर्माण किया; ईश्वर की पूजा की जगह। यहीं पर, इसी बंजर रेगिस्तान में, जहां इब्राहिम ने हाजिरा और इस्माईल को पहले छोड़ दिया था, उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह इसे एक ऐसा स्थान बना दे जहां वे मूर्ति पूजा से मुक्त होकर प्रार्थना स्थापित करें।





"हे मेरे पालनहार! इस नगर (मक्का) को शान्ति का नगर बना दे और मुझे तथा मेरे पुत्रों को मूर्ति-पूजा से बचा ले। मेरे पालनहार! इन मूर्तियों ने बहुत-से लोगों को कुपथ किया है, अतः जो मेरा अनुयायी हो, वही मेरा है और जो मेरी अवज्ञा करे, तो वास्तव में, तू अति क्षमाशील, दयावान् है। हमारे पालनहार! मैंने अपनी कुछ संतान मरुस्थल की एक वादी (उपत्यका) में तेरे सम्मानित घर (काबा) के पास बसा दी है, ताकि वे प्रार्थना की स्थापना करें। अतः लोगों के दिलों को उनकी ओर आकर्षित कर दे और उन्हें जीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ हों। हमारे पालनहार! तू जानता है, जो हम छुपाते और जो व्यक्त करते हैं और ईश्वर से कुछ छुपा नहीं रहता, धरती में और न आकाशों में। सब प्रशंसा उस ईश्वर के लिए है, जिसने मुझे बुढ़ापे में (दो पुत्र) इस्माईल और इस्ह़ाक़ प्रदान किये। वास्तव में, मेरा पालनहार प्रार्थना अवश्य सुनने वाला है। मेरे पालनहार! मुझे प्रार्थना की स्थापना करने वाला बना दे तथा मेरी संतान को। हे मेरे पालनहर! और मेरी प्रार्थना स्वीकार कर। हे मेरे पालनहार! मूझे क्षमा कर दे तथा मेरे माता-पिता और विश्वासियों को, जिस दिन ह़िसाब लिया जायेगा।" (क़ुरआन 14:35-41)





अब वर्षों बाद, इब्राहीम फिर से अपने बेटे इस्माईल से मिलने के बाद, पूजा के केंद्र, ईश्वर के सम्मानित घर की स्थापना करने वाले थे, लोग प्रार्थना करते समय किस दिशा में अपना चेहरा रखेंगे, और इसे तीर्थस्थल बना देंगे। क़ुरआन में काबा की पवित्रता और उसके निर्माण के उद्देश्य का वर्णन करने वाले कई खूबसूरत छंद है।





"और जब हमने निश्चित कर दिया इब्राहीम के लिए इस घर (काबा) का स्थान (इस प्रतिबंध के साथ) कि साझी न बनाना मेरा किसी चीज़ को तथा पवित्र रखना मेरे घर को परिकर्मा करने, खड़े होने, रुकूअ (झुकने) और सज्दा करने वालों के लिए। और घोषणा कर दो लोगों में तीर्थ यात्रा (ह़ज) की, वे आयेंगे तेरे पास पैदल तथा प्रत्येक दुबली-पतली सवारियों पर, जो प्रत्येक दूरस्थ मार्ग से आयेंगी। (क़ुरआन 22:26-27)





"और जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि 'मक़ामे इब्राहीम' को प्रार्थना का स्थान बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़ करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।" (क़ुरआन 2:125)





मार्गदर्शन और आशीर्वाद के उद्देश्य के लिए काबा पूरी मानवता के लिए बना पूजा का पहला स्थान है:





"निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (ईश्वर की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है। उसमें खुली निशानियाँ हैं, जिनमें मक़ामे इब्राहीम है तथा जो कोई उस की सीमा में प्रवेश कर गया, तो वह शांत (सुरक्षित) हो गया। तथा ईश्वर के लिए लोगों पर इस घर की तीर्थ यात्रा अनिवार्य है, जो उस तक राह पा सकता हो।" (क़ुरआन 3:96-97)





पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:





"वास्तव में यह स्थान ईश्वर के द्वारा पवित्र किया गया है जिस दिन उसने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और यह न्याय के दिन तक ऐसा ही रहेगा।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)





इब्राहीम की प्रार्थना


वास्तव में, बाद की सभी पीढ़ियों के लिए पवित्र स्थान का निर्माण ईश्वर में विश्वास करने वाले लोगो द्वारा की जा सकने वाली पूजा के सर्वोत्तम रूपों में से एक था। उन्होंने अपने निवेदन के दौरान ईश्वर का आह्वान किया:





"हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है। हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।! (क़ुरआन 2:127-128)





"और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से ईश्वर और अंतिम दिन (प्रलय) पर विश्वास रखे ..." (क़ुरआन 2:126)





इब्राहीम ने यह भी प्रार्थना की कि इस्माईल की संतान से एक पैगंबर उठाया जाए, जो इस भूमि का निवासी होगा, क्योंकि इसहाक की संतान कनान की भूमि में निवास करेगी।





"हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक दूत भेज, जो उन्हें तेरे छंद सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुरआन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।" (क़ुरआन 2:129)





इब्राहिम और इस्माईल द्वारा निर्मित काबा और इब्राहिम का स्थानक, जिसमें पैगंबर इब्राहिम के पदचिह्न हैं।


एक दूत के लिए इब्राहिम की प्रार्थना का उत्तर कई हजार साल बाद दिया गया, जब ईश्वर ने अरब के लोगो के बीच पैगंबर मुहम्मद को भेजा, और जैसा कि मक्का को सभी मानवता के लिए एक अभयारण्य और पूजा के घर के रूप में चुना गया था, उसी तरह मक्का के पैगंबर को भी सभी मनुष्यों के लिए भेजा गया था।





यह इब्राहीम के जीवन का यह शिखर था, जो उसके उद्देश्य को पूरा कर रहा था: एक सच्चे ईश्वर की पूजा के लिए किसी भी चुनी हुई जाति या रंग के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए पूजा स्थल का निर्माण। इस घर की स्थापना के माध्यम से यह गारंटी थी कि ईश्वर, जिस ईश्वर को उन्होंने बुलाया और जिनके लिए उन्होंने अंतहीन बलिदान दिया, उनकी पूजा हमेशा के लिए की जाएगी, उनके साथ किसी अन्य ईश्वर की संगति के बिना। वास्तव में यह किसी भी इंसान पर दिए गए सबसे महान उपकारों में से एक था।





इब्राहिम और हज तीर्थयात्रा


हर साल, दुनिया भर के मुसलमान दुनिया के सभी क्षेत्रों से इकट्ठा होते हैं इब्राहीम की प्रार्थना का जवाब और तीर्थयात्रा के लिए। इस संस्कार को हज कहा जाता है, और यह ईश्वर के प्रिय सेवक इब्राहिम और उनके परिवार की कई घटनाओं की याद दिलाता है। काबा की परिक्रमा करने के बाद, एक मुसलमान इब्राहीम के स्थानक के पीछे प्रार्थना करता है, जिस पत्थर पर इब्राहीम काबा बनाने के लिए खड़े थे। प्रार्थना के बाद, एक मुसलमान उसी कुएं से पानी पीता है, जिसे ज़मज़म का पानी कहा जाता है, जो इब्राहीम और हाजिरा की प्रार्थना के जवाब में बना था, जिससे इस्माईल और हाजिरा का भरण-पोषण होता था, और भूमि के निवास का कारण था। सफा और मारवाह के बीच चलने की रस्म पानी के लिए हाजिरा की बेताब खोज की याद दिलाती है, जब वह और उसका बच्चा मक्का में अकेले थे। हज के दौरान मीना में एक जानवर की कुर्बानी, और दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा अपनी ही भूमि में, इब्राहीम की ईश्वर की खातिर अपने बेटे को बलिदान करने की इच्छा के बाद शुरू हुआ। अंत में, मीना में पत्थर के खंभों पर पत्थर मारना इब्राहीम को इस्माईल के बलिदान करने से रोकने के लिए शैतानी प्रलोभनों को अस्वीकार करने का उदाहरण है।





'ईश्वर का प्रिय सेवक' जिसके बारे में ईश्वर ने कहा, "मैं तुम्हें राष्ट्रों का प्रमुख बनाऊंगा,"[1] फिलिस्तीन लौट आये और वहीं मर गये।



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