ईश्वर ने मनुष्यों तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए जिन कुछ नबियों को चुना, उनमें विश्वास इस्लामी आस्था का एक आवश्यक स्तंभ है।
"पैगंबर (मुहम्मद) उस चीज़ पर विश्वास लाया, जो उसके लिए ईश्वर की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले उसपर ईमान लाये। वे सब ईश्वर तथा उसके फ़रिश्तों और उसकी सब पुस्तकों एवं नबियों पर ईमान लाये। (वे कहते हैः) हम उसके नबियों में से किसी के बीच अन्तर नहीं करते...’" (क़ुरआन 2:285)
ईश्वर मानव नबियों के माध्यम से अपना संदेश भेजते हैं और अपनी इच्छा बताते हैं। वे सांसारिक प्राणियों और स्वर्ग के बीच एक कड़ी बनते हैं, इस अर्थ में कि ईश्वर ने उन्हें अपना संदेश मनुष्यों तक पहुँचाने के लिए चुना है। दिव्य सन्देश प्राप्त करने के लिए कोई अन्य मार्ग नहीं हैं। यह रचियता और रचना के बीच संचार की एक प्रणाली है। ईश्वर हर एक व्यक्ति को फ़रिश्ता नहीं भेजते, न ही वह स्वर्ग के दरवाजे खोलता है कि कोई भी व्यक्ति संदेश प्राप्त करने के लिए ऊपर चढ़ जाए। उसके संचार का तरीका मानव नबियों के माध्यम से सन्देश भिजवाना है जो फरिश्तों के माध्यम से दिव्य संदेश प्राप्त करते हैं।
नबियों (या पैगम्बरों) पर विश्वास करने का अर्थ है दृढ़ता से यह विश्वास करना कि ईश्वर ने अपने संदेश को पाने और उसे मानवता तक पहुंचाने के लिए नैतिक रूप से खरे लोगों को चुना है। धन्य थे वे जो उनका अनुसरण करते थे, और अधम थे वे जिन्होंने आज्ञा मानने से मना कर दिया था। उन्होंने सच्चाई से संदेश को बिना छुपाए, बदले या भ्रष्ट किए सन्देश को प्रचारित-प्रसारित किया। नबी को ठुकराना उसके भेजने वाले को ठुकराना है, और नबी की अवज्ञा करना उसकी आज्ञा का उल्लंघन करना है जिसने उसकी आज्ञा पालन करने आदेश दिया है।
ईश्वर ने प्रत्येक राष्ट्र को एक नबी भेजा, जो वहीं के थे, और उन्हें केवल और केवल ईश्वर की आराधना करने और झूठे ईश्वरों से दूर रहने का सन्देश फ़ैलाने को कहा गया।
"और (ऐ मुहम्मद) पूछो हमारे उन नबियों में से जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था: 'क्या हमने कभी सबसे दयालु (ईश्वर) के अलावा किन्हीं अन्य ईश्वरों को पूजे जाने के लिए नियुक्त किया था?’" (क़ुरआन 43:45)
मुस्लिम उन पैगंबरों में विश्वास करते हैं जिनका उल्लेख इस्लामिक स्रोतों में किया गया है, जैसे कि आदम, नूह, अब्राहम, इसहाक, इश्माएल, डेविड, सुलैमान, मूसा, यीशु और मुहम्मद, ईश्वर की दया और आशीर्वाद उन पर सदा रहे, इत्यादि। जिनके नाम का उल्लेख नहीं है उनमें भी सामान्य विश्वास किया जाता है, जैसा कि ईश्वर कहते हैं:
"और वास्तव में हमने तुमसे (ऐ मुहम्मद) पहले नबियों को भेजा है, उनमें से कुछ की कथा हमने आपको सुनाई है, और कुछ के बारे में हमने आपको नहीं बताया है..." (क़ुरआन 40:78)
मुसलमान दृढ़ता से मानते हैं कि इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद अंतिम पैगंबर थे, और उनके बाद कोई नबी या पैगंबर नहीं होगा।
इस तथ्य को जानने-मानने-विश्वास करने के लिए, यह समझना आवश्यक है कि अंतिम नबी की शिक्षायें प्राथमिक स्रोतों में मूल भाषा में संरक्षित हैं। दूसरे नबी की आवश्यकता नहीं है। पहले के नबियों के विषय में, उनके धर्मशास्त्र खो गए थे अथवा उनका संदेश इस हद तक भ्रष्ट हो गया था कि क्या सत्य है और क्या असत्य, पता नहीं किया जा सकता था। पैगंबर मुहम्मद का संदेश स्पष्ट और संरक्षित है और काल के अंत तक ऐसा ही रहेगा।
नबियों को भेजने का प्रयोजन
नबियों को भेजने के पीछे हम निम्नलिखित मुख्य कारणों का अनुमान कर सकते हैं:
(1) रचित प्राणियों की उपासना और उनके रचयिता की पूजा में अंतर बतलाने, रचित की दासता की स्थिति से उन के प्रभु की आराधना की स्वतंत्रता तक ले जाने के लिए, मानवता का मार्गदर्शन करना।
(2) सृष्टि या रचना या रचित का उद्देश्य मानवता को स्पष्ट करना: ईश्वर की पूजा करना और उसकी आज्ञाओं का पालन करना, साथ ही यह स्पष्ट करना कि यह जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक परीक्षा है जिसके परिणाम यह तय करेंगे कि मृत्यु के बाद व्यक्ति किस प्रकार का जीवन व्यतीत करेगा; शाश्वत दुख या शाश्वत आनंद का जीवन। सृष्टि के वास्तविक प्रयोजन को समझने का कोई अन्य निश्चित तरीका नहीं है।
(3) मानवता को सही रास्ता दिखाना जो उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाये और नरक की अग्नि से मुक्ति दिलाये।
(4) नबियों को भेजकर मानवता को साक्ष्य उपलब्ध कराना ताकि लोगों के पास कोई बहाना न हो जब उनसे न्याय के दिन पूछताछ की जाए। वे अपनी रचना और मृत्यु के बाद के जीवन के उद्देश्य से अज्ञान का दावा नहीं कर पाएंगे।
(5) अनदेखी 'दुनिया' को उद्घाटित करना जो सामान्य इंद्रियों और भौतिक ब्रह्मांड से परे अस्तित्वमान है, जैसे कि ईश्वर का ज्ञान, फरिश्तों का अस्तित्व और न्याय के दिन की वास्तविकता।
(6) नैतिक, धर्म-परायण, प्रयोजन से चालित जीवन जीने हेतु संदेह और भ्रम से मुक्त करने के लिए मनुष्य को व्यावहारिक उदाहरण प्रदान करना। स्वाभाविक रूप से, मनुष्य साथी मनुष्यों के प्रति आदर-भाव रखते हैं, इसलिए मनुष्यों के अनुकरण के लिए धार्म-परायणता के सर्वोत्तम उदाहरण ईश्वर के नबी हैं।
(7) भौतिकवाद, पाप और असावधानी हटाकर आत्मा को शुद्ध करना।
(8) मानवता को ईश्वर की शिक्षाओं से अवगत कराना, जो इस जीवन में और परलोक में उनके स्वयं के लाभ के लिए है।
उनके सन्देश
अपने लोगों के लिए सभी नबियों का एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण संदेश केवल और केवल ईश्वर की आराधना करना और किसी और को नहीं पूजना और उनकी शिक्षाओं का पालन करना था। नूह, इब्राहीम, इसहाक, इश्माइल, मूसा, हारून, डेविड, सुलैमान, यीशु, मुहम्मद और अन्य तथा वे जिन्हें हम नहीं जानते सहित, सभी ने - लोगों को ईश्वर की पूजा करने और झूठे ईश्वरों से दूर रहने के लिए आमंत्रित किया।
मूसा ने घोषित किया था: "सुनो, हे इस्राएल, सुन, हमारा प्रभु हमारा ईश्वर ही एकमात्र प्रभु है।" (ड्यूटेरोनोमी 6:4)।
यह 1500 साल बाद यीशु द्वारा पुनः कहा गया था, जब उन्होंने कहा था: "सब आज्ञाओं में से पहली यह है, 'हे इस्राएल, सुनो, हमारा प्रभु हमारा ईश्वर ही एकमात्र प्रभु है।’" (मार्क 12:29)।
अंत में, लगभग 600 साल बाद मुहम्मद की वाणी मक्का की पहाड़ियों में गूंजी:
"और तुम्हारा ईश्वर ही एकमात्र ईश्वर है: वही ईश्वर है और कोई नहीं..." (क़ुरआन 2:163)
पवित्र क़ुरआन इस तथ्य को स्पष्ट रूप से बताती है:
"और हमने तुमसे (ऐ मुहम्मद) पहले ऐसा कोई रसूल नहीं भेजा, जिन्हें हमने प्रकट न किया हो (कहा): 'मेरे अलावा किसी को भी पूजे जाने का अधिकार नहीं है, इसलिए मेरी पूजा करो।’" (क़ुरआन 21:25)
सन्देश वाहक
ईश्वर ने अपना संदेश देने के लिए मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ को चुना। उच्च शिक्षा की तरह नबी होना अर्जित या प्राप्त नहीं किया जाता है। इस प्रयोजन के लिए ईश्वर जिसे चाहता है उसे चुनता है।
वे नैतिकता में सर्वश्रेष्ठ थे और वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ थे, ईश्वर द्वारा अधम, प्रमुख पापों में पड़ने से सुरक्षित थे। उन्होंने संदेश देने में कोई गलती या त्रुटि नहीं की। समस्त मानवजाति, समस्त राष्ट्रों , समस्त नृजातियों को संसार के कोने-कोने में एक लाख से अधिक नबी भेजे गए थे। कुछ नबी दूसरों से श्रेष्ठतर थे। उनमें से सबसे अच्छे थे नूह, इब्राहीम, मूसा, यीशु और मुहम्मद, ईश्वर की दया और आशीर्वाद उन पर हो।
लोगों ने नबियों के साथ अति की। उन्हें अस्वीकार किया और उन पर मायावी, पागल और झूठे होने का आरोप लगाया गया। दूसरों ने उन्हें ईश्वरीय शक्तियाँ देकर उन्हें ईश्वरों में बदल दिया, या उन्हें उसकी संतान घोषित कर दिया, जैसे कि यीशु के साथ हुआ था।
वास्तव में, वे पूरी तरह से मानव थे और उनमें कोई दैवीय गुण या शक्ति नहीं थी। वे ईश्वर के उपासक दास थे। उन्होंने सामान्य मनुष्यों की भांति खाया, पिया, निद्रा ली और सामान्य मानव जीवन व्यतीत किया। उनके पास किसी को अपना संदेश स्वीकार करा देने या पापों को क्षमा करने की शक्ति नहीं थी। भविष्य के बारे में उनका ज्ञान उस सीमा तक सीमित था जो ईश्वर ने उन्हें प्रकट किया था। ब्रह्मांड को चलायमान रखने में उनका कोई योगदान नहीं था।
ईश्वर की असीम दया और प्रेम के कारण, उन्होंने मानवता को नबी भेजे, जो उन्हें सबसे कल्याणकारी मार्ग पर चलने हेतु मार्गदर्शन दें। उन्होंने उन्हें एक उदाहरण के रूप में भेजा, ताकि मनुष्य उनका अनुसरण करें और यदि कोई उनका अनुसरण करे तो वह ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन व्यतीत करे, और उसके प्रेम का पात्र बने और आनंद अर्जित करे।