कुछ लोग कहते हैं कि अल्लाह तआला आसमानों के ऊपर है, और कुछ उ'लमा कहते हैं कि अल्लाह का कोई स्थान नहीं, तो इस बारे में सहीह कथन क्या है?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।
अह्ले सुन्नत ने अल्लाह तआला के अपनी मख्लूक़ पर उलू (बुलंद) होने पर क़ुर्आन, सुन्नत, इज्मा-ए-उम्मत, बुद्धि और फित्रत (प्राकृतिक स्वभाव) के द्वारा तर्क स्थापित किया है :
प्रथम : क़ुर्आन करीम में अल्लाह के उलू पर विभिन्न प्रकार के प्रमाण आये हैं, कभी तो उलू का उल्लेख किया गया है, तो कभी फौक़ियत (ऊपर होने) का उल्लेख किया गया है, कभी उसके पास से चीज़ों के उतरने का वर्णन है, तो कहीं उसकी तरफ चीज़ों के चढ़ने का उल्लेख है, और कभी उसके आसमान में होने का वर्णन किया गया है...
अल्लाह के उलू (बुलन्द और ऊँचा होने) के बारे में उस का यह कथन है :
"वह बहुत ऊँचा और महान है।" (सूरतुल बक़रा :255)
"अपने बहुत ही बुलन्द रब के नाम की पाकी बयान कर।" (सूरतुल आला : 1)
अल्लाह तआला की 'फौक़ियत' (ऊपर होने) के बारे में उसका यह फरमान है :
"वही अपने बन्दों के ऊपर प्रभावशाली (ग़ालिब) है।" (सूरतुल अंआम : 18)
"और अपने रब से जो उनके ऊपर है कपकपाते रहते हैं और जो हुक्म मिल जाये उसके पालन करने में लगे रहते हैं।" (सूरतुन नहल : 50)
उसकी तरफ से चीज़ों के उतरने के बारे में उदाहरण के तौर पर उसका यह फरमान है:
"वह आकाश से धरती तक कामों का प्रबंध करता है।" (सूरतुस्सज्दा :5)
"बेशक हम ने ही इस क़ुरआन को उतारा है।" (सूरतुल हिज्र :9)
उसकी ओर चीज़ों के चढ़ने के बारे में, उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला का यह फरमान है :
"सभी पाक कलिमे उसी की तरफ चढ़ते हैं, और नेक अमल उन को ऊँचा करता है।" (सूरत फातिर : 10)
"जिसकी तरफ फरिश्ते और रूह चढ़ते हैं।" (सूरतुल मआरिज : 4)
उसके आसमान में होने के बारे में फरमाया : "क्या तुम इस बात से निडर हो गये हो कि आकाशों वाला तुम पर पत्थर बरसा दे।" (सूरतुल मुल्क : 16)
दूसरा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन, कृत्य और इक़रार (स्वीकृति) से मुतवातिर तौर पर साबित है:
1- उलू और फौक़ियत के उल्लेख में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से विर्णत कथनों में से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अपने सज्दे में "सुब्हाना रिब्बयल आला" (अर्थात् मेरा बुलन्द व ऊँचा रब बहुत पाक व पवित्र है) कहना है।
इसी प्रकार हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है कि : "और अल्लाह अर्श (सिंहासन) के ऊपर है।"
2- आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कृत्य (करनी) से, उदाहरण के तौर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का हज्जतुल वदाअ के साल, अरफा के दिन, सब से बड़े जमावड़े में भाषण देते हुए अपनी अंगुली को आसमान की ओर उठाना है, चुनाँचि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सुनो! क्या मैं ने (अल्लाह के दीन को) पहुँचा दिया?" सहाबा ने उत्तर दिया : जी हाँ, (आप ने फिर कहाः) "सुनो! क्या मैं ने पहुँचा दिया?" लोगों ने जवाब दिया : जी हाँ, (आप ने तीसरी बार कहा :) "सावधान! क्या मैं ने पहुँचा दिया?" लोगों ने कहा : जी हाँ। आप हर बार अपनी अंगुली से आसमान की ओर इशारा करते हुए कहतेः "ऐ अल्लाह! तू गवाह रह", फिर लोगों की ओर संकेत करते।
इसी में से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दुआ के अंदर अपने दोनों हाथों को आसमान की ओर उठाना है, जैसाकि दसियों हदीसों में इसका वर्णन है।
यह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कर्म (कृत्य) से उलू का सबूत है।
3- आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इक़रार (स्वीकृति) से उलू का सबूत वह हदीस है जिसमें एक लौंडी का वर्णन है जिस से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा था कि : "अल्लाह कहाँ है?" उस ने कहा : आसमान में। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "मैं कौन हूँ?" उस ने जवाब दिया : अल्लाह के पैग़ंबर। इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस के मालिक से कहा : "इसे आज़ाद कर दो, क्योंकि यह ईमान वाली है।"
यह एक अशिक्षित लौंडी है जैसाकि अधिकांश रूप से लौंडियाँ हुआ करती हैं, तथा वह एक दास है आज़ाद नहीं है, जो अपने आप पर भी अधिकार नहीं रखती, किन्तु वह जानती है कि उसका रब आसमान में है, और पथ भ्रष्ट लोग अल्लाह के आसमान में होने का इंकार करते हैं और कहते हैं : वह न ऊपर है, न नीचे है, न दायें है न बायें है, बल्कि कहते हैं कि : वह हर स्थान पर है !!
तीसरा : इज्माअ (सर्वसहमति) का प्रमाण, सलफ सालेहीन इस बात पर एक मत हैं कि अल्लाह तआला अपनी ज़ात के साथ आसमान में है, जैसाकि अह्ले-इल्म ने उनके कथनों का उल्लेख किया है, जैसाकि ज़हबी रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब "अल-उलुव्वो लिल-अलिय्यिल ग़फ्फ़ार" में किया है।
चौथा : बुद्धि का तर्क, चुनाँचि हम कहेंगे कि बुद्धिमानों का इस बात पर इत्तिफाक़ है कि उलू (ऊँचा और बुलन्द होना) एक ऐसा गुण है जो कमाल और संपूर्णता का प्रतीक है, और जब वह संपूर्णता का गुण है, तो उसका अल्लाह के लिए साबित होना अनिवार्य है, क्योंकि संपूर्णता का हर गुण अल्लाह के लिए साबित है।
पाँचवां: फित्रत का तर्क : इस में मतभेद करना और इसका इंकार करना संभव नहीं है, क्योंकि हर मनुष्य प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से इस बात को मानता है कि अल्लाह तआला आसमान में है। इसीलिए जब आप का सामना किसी ऐसी चीज़ से होता है जिसे आप रोकने की क्षमता नहीं रखते हैं और उसे रोकने के लिए अल्लाह की ओर रूख करते हैं, तो आप का दिल आसमान की ओर ही जाता है, किसी अन्य दिशा में नहीं जाता, बल्कि आश्चर्य की बात यह है कि जो लोग अल्लाह के अपनी मख्लूक़ पर उलू का इनकार करते हैं, वो भी दुआ में अपना हाथ आसमान ही की तरफ उठाते हैं।
यहाँ तक कि फिर्औन जो कि अल्लाह का दुश्मन था, जब उस ने मूसा अलैहिस्सलाम से उनके रब के बारे में बहस करना चाहा तो अपने मंत्री 'हामान' से कहा :"हे हामान, मेरे लिए एक ऊँची अटारी बना, शायद मैं उन दरवाज़ों तक पहुँच जाऊँ जो आकाश के दरवाज़े हैं और मूसा के इलाह (पूज्य) को झाँक लूँ, और मुझे तो पूरा यक़ीन है कि वह झूठा है।" (सूरतुल मोमिन : 36-37)
हालाँकि वास्तव में और अपने दिल में वह अल्लाह के वास्तविक अस्तित्व को जानता था जैसाकि अल्लाह अज़्ज़ा व जलल ने फरमाया है : "और उन्होंने इंकार कर दिया, जबकि उनके दिल यक़ीन कर चुके थे, केवज ज़ुल्म और घमण्ड के कारण।" (सूरतुन्नम्ल : 14)
ये क़ुर्आन व हदीस, इज्माअ, बुद्धि और फित्रत् बल्कि काफिरों के कथन से भी अल्लाह तआला के आसमान में होन के कुछ प्रमाण हैं। हम अल्लाह तआला से सत्य की ओर मार्गदर्शन का प्रश्न करते हैं।
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद