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मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ऊँचे पद को जानने की इच्छा रखता हूँ।





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





अज़ान सुनने वाले व्यक्ति के लिए धर्मसंगत है कि मुअज्जिन का अनुसरण करे अर्थात् मुअज्जिन के शब्दों को उसके पीछे दोहराए, संपूर्ण अज़ान में उसका अनुसरण करने के बाद अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद व सलाम भेजे, फिर उस के बाद वह दुआ पढ़े जो सही हदीस में जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः





"जिस आदमी ने अज़ान सुनकर यह दुआ पढ़ी :





((اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ وَالصَّلاةِ الْقَائِمَةِ آتِ مُحَمَّدًا الْوَسِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ))





"अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़ेहिद्दा'वतित्ताम्मह वस्सलातिल क़ाईमह आति मुहम्मद-निल वसीलता वल फज़ीलता वब्-अस्हु मक़ामन मह्मूदा अल्लज़ी व-अद्तह"





तो उसके लिए क़ियामत के दिन मेरी शफाअत (सिफारिश) पक्की होगयी।" इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 589) ने रिवायत किया है।





और दुआ में "अद्दरजतल आलियता अर्रफीअता" (الدرجة العالية الرفيعة) का शब्द नहीं है, अतः उसे नहीं पढ़ा जायेगा।





 तथा आप के फरमान "अल-वसीलता वल फज़ीलता" (الوسيلة والفضيلة) में अत्फ, बयान अर्थात तफ्सीर (व्याख्या) के लिए है। वसीला एक सारे लोगों से बढ़कर एक अतिरिक्त पद और स्थान है जिसकी व्याख्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने





उस हदीस में की है जिसे अबदुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने की है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुनाः "जब तुम मुअज़्ज़िन को अज़ान कहते हुए सुनो तो उसी तरह कहो जित तरह वह कहता है। फिर मेरे ऊपर दुरूद भेजो, क्योंकि जिसने मेरे ऊपर एक दुरूद भेजी अल्लाह उसके बदले उस पर दस रहमतें भेजेगा। फिर मेरे लिए अल्लाह से वसीला मांगो। क्योंकि यह स्वर्ग में एक स्थान है जो अल्लाह के किसी बंदे के लिए ही उचित है और मुझे आशा है कि वह मैं ही हूँ। अतः जिसने मेरे लिए वसीला मांगा उसके लिए मेरी शफाअत पक्की होगई। इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 577) ने रिवायत किया है।





मक़ामे महमूद से मुराद वह महान शफाअत है जो आप अल्लाह के पास लेगों के बीच फैसला के लिए करेंगे, और इस सिफारिश की अनुमति मात्र मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ही मिलेगी, और यही अल्लाह के इस फरमान में वर्णित है जिसमें अल्लाह ने अपने पैगंबर को संबोधित करते हुए फरमायाः





﴿ أَقِمِ الصَّلاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْءَانَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْءَانَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا(78) وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَكَ عَسَى أَنْ يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَحْمُودًا(79)﴾ [سورة الإسراء]





 "नमाज़ को क़ायम करें सूरज के ढलने से लेकर रात के अंधेरे तक, और फज्र का क़ुरआन पढ़ना भी, निः संदेह फज्र के समय क़ुरआन का पढ़ना हाज़िर किया गया है। तथा रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद की नमाज़ में क़ुरआन का पाठ करें, यह वृद्धि आपके लिए है, निकट ही आपका पालनहार आपको मक़ामे महमूद में खड़ा करेगा।" (सूरतुल इस्राः 78 - 79)





और इस सिफारिश का नाम "मक़ामे महमूद" इसलिए रखा गया है कि सारी मानव जाति उस मक़ाम पर आपकी प्रशंसा कर रही होगी। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सिफारिश के कारण उन्हें मैदाने मह्शर की परेशानी और बिपदा से मुक्ति मिल जायेगी और उस भयंकर दृश्य से निकलकर हिसाब व किताब और लोगों के बीच फैसला की शुरूआत हो जायेगी। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद





वो ईश्दूत कौन हैं जिन्हें अल्लाह तआला ने भेजा है? और वो कौन सी किताबें हैं जिन्हें उनके साथ उतारी हैं?





उत्तर





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हर प्रकार की प्रशंसा और गुण्गान अल्लाह के लिए योग्य है।





जब अल्लाह तआला ने आदम को धरती पर उतारा और उनकी संतान फैल गई तो अल्लाह तआला ने उन्हें बेकार नहीं छोड़ दिया, बल्कि उन के लिए जीविका का प्रबंध किया, आदम अलैहिस्सलाम और उनकी संतान पर वह्य (ईश्वाणी) अवतरित की। चुनाँचि उन में से कुछ ईमान लाये और कुछ ने कुफ्र का रास्ता अपनाया : "और हम ने प्रत्येक समुदाय में रसूल भेजा कि (लोगो!) केवल अल्लाह की उपासना करो और ताग़ूत (अल्लाह के अतिरिक्त सभी झूठे पूज्यों) से बचो। तो कुछ लोगों को अल्लाह ने हिदायत (मार्गदर्शन) प्रदान किया, और कुछ पर गुमराही साबित हो गई।" (सूरतुन-नह्ल: 36)





अल्लाह तआला ने जिन आसमानी किताबों को उतारा है, वो चार हैं, और वे तौरात, इंजील, ज़बूर और कु़रआन करीम हैं : "जिस ने हक़ के साथ इस किताब (पवित्र क़ुर्आन) को उतारा, जो अपने से पहले के (धर्मशास्त्रों) को प्रमाणित करती है, और उसी ने (इस से पहले के धर्मग्रन्थ) तौरात और इंजील को उतारा।" (सूरत आल-इम्रान :3)





तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और हम ने दाऊद को (धर्मग्रन्थ) ज़बूर प्रदान किया।" (सूरतुल इस्रा :55)





ईश्दूतों और सन्देष्टाओं की संख्या बहुत अधिक है और उनकी निश्चित गिन्ती का ज्ञान केवल अल्लाह तआला को है, उन में से कुछ के हालात से अल्लाह तआला ने हमें अवज्ञत कराया है और कुछ के हालात का हम से उल्लेख नहीं किया है : "और आप से पहले के बहुत से रसूलों के वाक़िआत हम ने आप से बयान किये हैं, और बहुत से रसूलों के हालात हम ने आप से बयान नहीं किये हैं।" (सूरतुन्निसा :164)





अल्लाह तआला की उतारी हुई सभी किताबों और अल्लाह के भेजे हुए सभी ईश्दूतों और सन्देष्टाओं पर ईमान लाना (विश्वास रखना) अनिवार्य है, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "हे ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (क़ुरआन) पर जिसे उस ने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों पर ईमान लाओं जो इस से पहले उतारी गयी, और जो अल्लाह और उस के फरिश्तों और उसकी किताबों और उस के रसूलों और क़ियामत के दिन को नहीं माने वह बहुत दूर बहक गया।" (सूरतुन्निसा :136)





रसूल और नबी (ईश्दूत और सन्देष्टा) एक ही अस्तित्व के दो नाम हैं जिस से अभिप्राय वह व्यक्ति है जिसे अल्लाह ने लोगों को मात्र एक अल्लाह की उपासना की ओर आमन्त्रण देने के लिए भेजा हो, इन नबियों और रसूलों को अल्लाह तआला ने चुन करके उन्हें अपने बन्दों की तरफ अपने धर्म के प्रसार के लिए भेजा है : "(हम ने इन्हें) शुभसूचना देने वाला और डराने वाला रसूल बनाया, ताकि लोगों को रसूलों के भेजे जाने के बाद अल्लाह तआला पर कोई बहाना न रह जाये।" (सूरतुन्निसा :165)





ईश्दूतों और सन्देष्टाओं की संख्या बहुत अधिक है, जिन में से पचीस का अल्लाह तआला ने क़ुर्आन में उल्लेख किया है, अत: उन सब पर ईमान लाना अनिवार्य है और वे आदम, इदरीस, नूह, हूद, सालेह, इब्राहीम, लूत, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब, यूसुफ, शुऐब, अय्यूब, ज़ुल किफ्ल, मूसा, हारून, दाऊद, सुलैमान, इलयास, अल-यसअ, यूनुस, जकरिय्या, यह्या, ईसा और मुहम्मद हैं, इन सब पर अल्लाह की दया और शांति अवतरित हो।





क़ुर्आन करीम, आसमानी किताबों में सब से महान, सब से अंतिम और अपने से पूर्व किताबों को निरस्त करने वाली और उनके ऊपर संरक्षक है, अत: इस पर ईमान लाना और इस के अतिरिक्त किताबों को त्यगना अनिवार्य है : "और हम ने आप की ओर सच्चाई के साथ यह पुस्तक उतारी है जो अपने से पूर्व (अगली) पुस्तकों की पुष्टि (प्रमाणित) करने वाली है और उन पर संरक्षक और शासक है। इसलिए आप उन के बीच अल्लाह की उतारी हुई किताब के ऐतिबार से फैसला कीजिए।" (सूरतुल-माईदा: 48)





अल्लाह तआला ने आदम की औलाद से ईश्दूतों और पैग़ंबरों को चयन कर लिया है और उन्हें प्रत्येक समुदाय में भेजा है, और उन्हें केवल एक अल्लाह की इबादत करने की ओर लोगों को बुलाने, उन धर्मशास्त्रों को स्पष्ट करने के लिए जिस में लोक परलोक का सौभाग्य है, ईमान लाने वाले के लिये स्वर्ग की शुभसूचना देने और कुफ्र करने वाले को नरक से डराने के लिए भेजा है : "और हम ने प्रत्येक समुदाय में रसूल भेजा कि (लोगो!) केवल अल्लाह की उपासना करो और ताग़ूत (अल्लाह के अतिरिक्त सभी झूठे पूज्यों) से बचो। तो कुछ लोगों को अल्लाह ने हिदायत (मार्गदर्शन) प्रदान किया, और कुछ पर गुमराही साबित हो गई।" (सूरतुन-नह्ल: 36)





अल्लाह तआला ने कुछ ईश्दूतों और पैग़ंबरों को कुछ पर फज़ीलत (प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता) प्रदान की है, चुनाँचि उन में सर्वश्रेष्ठ ऊलुल अज़्म (सुदृढ़ संकल्प वाले) पैगंबर हैं और वे नूह, इब्राहीम, मूसा, ईसा और मुहम्मद अलैहिमुस्सलातो वत्तस्लीम हैं, और ऊलुल अज़्म में सब से श्रेष्ठ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। प्रत्येक पैगंबर विशिष्ट रूप से अपनी क़ौम की ओर भेजा जाता था यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सर्व मानव जाति की ओर पैगंबर बनाकर भेजा, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अंतिम और सबसे श्रेष्ठ ईश्दूत और पैगंबर हैं, जैसाकि अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने आप के बोर में फरमाया है : "हम ने आप को समस्त मानव जाति के लिए शुभ सूचना देने वाला तथा डराने वाला बनाकर भेजा है, लेकिन (यह सच्च है कि) अधिकतर लोग नहीं जानते।" (सुरत सबा :28)





ईश्दूतों और सन्देष्टाओं को अल्लाह तआला ने चुन लिया है और उन्हें उनके समुदायों के लिए आदर्श बानाया है, तथा उनका प्रशिक्षण किया है, उन्हें व्यवहार और शिष्टाचार से सुसज्जित किया है, ईष्दूतत्व से सम्मानित किया है, पापों और अवज्ञाओं में पड़ने से सुरि़क्षत कर दिया है और चमत्कारों के द्वारा उनका समर्थन किया है। चुनाँचि वे रचना और सद्व्यावहार के ऐतिबार से लोगों में सब से संपूर्ण, सर्वाधिक ज्ञान वाले, सब से सच्ची बात वाले और सब से पवित्र आचरण वाले हैं, अल्लाह तआला उनके बारे में फरमाता है : "और हम ने उन्हें इमाम बना दिया कि हमारे हुक्म से लोगों की रहनुमाई करें और हम ने उनकी तरफ नेक अमल करने और नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने की वह्य (ईश्वाणी) की और वे सब के सब हमारे पुजारी थे।" (सूरतुल अंबिया :73)





जब ईश्दूतों और पैगंबरों का सत्कर्म, नेकी और सद्व्यवहार में इतना ऊँचा पद और स्थान है तो इसी कारण अल्लाह तआला ने हमें उनका अनुसरण करने का आदेश दिया है, चुनाँचि अल्लाह तआला ने फरमाया : "यही लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने शुद्ध मार्ग दर्शाया, इसलिए आप उनके रास्ते की पैरवीं करें।"(सूरतुल अंआम :90)





हमारे पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अंदर सभी ईश्दूतों और सन्देष्टाओं के गुण और विशेषण एकत्रित हो गये हैं, और अल्लाह तआला ने आप को महान सद्व्यवहार और शिष्टाचार से सम्मानित किया है, इसी कारण अल्लाह तआला ने आप के सभी अह्वाल में आप की पैरवी करने का हुक्म दिया है : "नि:सन्देह तुम्हारे लिए पैग़म्बर के जीवन में सर्व श्रेष्ठ आदर्श है, हर उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और क़ियामत के दिन की आशा रखता है और अल्लाह को अधिक याद करता है।" (सूरतुल-अह्ज़ाब: 21)





सभी ईश्दूतों और सन्देष्टाओं पर ईमान लाना और विश्वास रखना इस्लामी आस्था (अक़ीदा) के स्तंभों में से है जिस पर विश्वास रखे बिना मुसलमान का ईमान संपूर्ण नहीं हो सकता, क्योंकि वे सब एक ही अक़ीदा की दावत देते हैं और वह अल्लाह तआला पर ईमान लाना है। अल्लाह तआला फरमाता है : "(ऐ मुसलमानों!) तुम सब कहो हम अल्लाह पर ईमान लाये और उस पर भी जो हमारी तरफ उतारी गई और जो इब्राहीम,  इस्माईल, इसहाक़, याक़ूब और उनकी औलाद पर उतारी गई और जो कुछ अल्लाह की तरफ से मूसा, ईसा, और दूसरे नबियों को दिया गया, हम उन में से किसी के बीच अंतर (भेदभाव) नहीं करते, और हम अल्लाह ही के ताबेदार हैं।"  (सूरतुल बक़रा:136)





शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम अत्तुवैजरी की किताब उसूलुद्दीनिल इस्लामी से



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