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मेरा एक भाई था जिसका निधन हो गया, और वह कर्तव्यों में कोताही करने वाला था, वह अवज्ञा और बड़े पाप किया करता था, लेकिन मैं उस से बहुत प्यार करती थी, मैं ने क़ब्र की यातना के बारे में बहुत भयानक, भयावह और डरावनी चीज़ें पढ़ी हैं, तो क्या उसके ऊपर क़ब्र में यातना और अज़ाब निरंतर जारी रहेगा ॽ और क्या मैं अगर नेकियाँ करूँ और उनके सवाब उसे भेंट कर दूँ (बख्श दूँ ) जैसे - सदक़ा व खैरात या हज्ज, तो क्या उसके अज़ाब में कमी कर दी जायेगी ॽ कृपया, मुझे इस से अवगत करायें क्योंकि मैं उसके ऊपर बहुत दुःखी हूँ।





उत्तर





उत्तर




जहाँ तक आपके भाई के अंजाम और ठिकाने का संबंध है तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है, यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे और चाहे तो उसे क्षमा कर दे। उसके के बारे में कोई निश्चित बात कहना संभव नहीं है, किंतु हम बिना किसी एतिबार के मात्र इस मुद्दे के बारे में बात करेंगे :





जहाँ तक इस मुद्दे का संबंध है कि क्या क़ब्र का अज़ाब स्थायी और निरंतर है या उसमें कटौती (कमी) या अवकाश होता रहता है ॽ





तो इब्ने तैमिय्या ने इस मुद्दे के बारे में फरमाया है :





उसका उत्तर यह है कि उसके दो प्रकार हैं :





एक प्रकार स्थायी है सिवाय इसके जो कुछ हदीसों में वर्णित है कि (नरसंघा में) दोनों फूँकों के बीच उनकी यातना में कमी कर दी जायेगी, जब वे अपनी क़ब्रों से उठ खड़े होंगे तो कहें गे:





﴿ يا ويلنا من بعثنا من مرقدنا ﴾ [سورة يس : 52]





 “हाय अफसोस, हमें हमारी आरामगाहों से किस ने उठा दिया।” (सूरत यासीनः 52)





तथा उसके स्थायी होने पर अल्लाह तआला का यह फरमान तर्क स्थापित करता है :





﴿ النار يعرضون عليها غدوا وعشيا ﴾ [سورة غافر : 46]





“वे लोग आग के सामने सुबह व शाम पेश किए जाते हैं।” (सूरतुल मोमिनः 46).





तथा इस पर समुरह रज़ियल्लाहु अन्हु की पिछली हदीस भी तर्क स्थापित करती है जिसे बुखारी ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सपने के बारे में रिवायत किया है जिसमें यह वर्णित है कि “तो उसके साथ क़ियामत के दिन तक ऐसा ही किया जायेगा।”





तथा इब्ने अब्बास की हदीस में दोनों टेहनियों (डालियों) की कहानी में है कि शायद उन दोनों की यातना में कमी कर दी जाए जबतक कि वे दोनों सूखती नहीं हैं, तो यातना की कमी (राहत) को केवल उन दोनों के तर रहने पर लंबित किया गया है।





तथा रबी बिन अनस की हदीस में अबू आलिया के माध्यम से अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : “फिर वह ऐसे लोगों के पास आए जिनके सिर को बड़े पत्थर (चट्टान) से कुचला जा रहा था, जब भी उसे कुचला जाता वह फिर उसी तरह लौट कर हो जाता, उनसे इस चीज़ में कमी नहीं जायेगी।” यह हदीस पहले गुज़र चुकी है।





तथा सहीह में उस आदमी की कहानी में जो दो चादरें पहन कर घमंड करते हुए चल रहा था, वर्णित है कि अल्लाह तआला ने उसे ज़मीन में धंसा दिया, तो वह क़ियामत के दिन तक उसमें धंसता (घुसता) रहेगा।





तथा बरा बिन आज़िब की हदीस में काफिर के बारे में है कि : “फिर उसके लिए जहन्नम की ओर एक खिड़की खोल दी जाती है, तो वह उसमें अपनी जगह को देखता रहता है यहाँ तक कि क़ियामत क़ायम हो जायेगी।” इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है, और उसके कुछ तरीक़ों में है कि : “फिर उसके लिए जहन्नम की ओर एक सूराख कर दिया जाता है, तो उसके पास क़ियामत के दिन तक उसकी पीड़ा और उसका धुँआं आता रहता है।





दूसरा प्रकार : एक अवधि तक रहने के बाद समाप्त हो जायेगा।





और वह कुछ अवज्ञाकारियों का अज़ाब है जिनके अपराध हल्के या छोटे हैं, तो उसे उसके अपराध के हिसाब से सज़ा दी जायेगी, फिर उसमें कमी कर दी जायेगी जैसेकि उसे एक अवधि के लिए जहन्नम में दंडित किया जायेगा फिर उसका अज़ाब समाप्त हो जायेगा।





तथा कभी कभार दुआ, या सदक़ा व खैरात, या इस्तिग़फार, या हज्ज के सवाब के द्वारा उसे अज़ाब से राहत मिल जाती है जो उसे उसके किसी रिश्तेदार या उनके अलावा की ओर से पहुँचती है . . .” किताब “अर्रूह” (पृष्ठ : 89).





उनकी अंतिम बात में प्रश्न के दूसरे अंश का उत्तर मौजूद है, हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं  कि वह हमें अपनी रहमत से ढांप ले, तथा हमारे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह की अपार दया और शांति अवतरित हो।





शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-मुनज्जिद





वो कौन से पाप हैं जिनके करने वाले क़ब्रों में दंडित किये जायेंगे?





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।





प्रश्न संख्या (45325) के उत्तर में इन कारणों का उल्लेख किया जा चुका है, यहाँ पर हम उन्हीं गुनाहों में से एक समूह का उल्लेख क़ुर्आन और सहीह हदीस से उनकी दलीलों के साथ कर रहे हैं।





अल्लाह के साथ शिर्क (किसी को साझीदार बनाना) और कुफ्र करनाः





अल्लाह तआला ने आले फिर्औन के बारे में फरमाया : "आग है जिस पर यह प्रात: काल और सांयकाल प्रस्तुत किये जाते हैं, और जिस दिन महाप्रलय होगा (आदेश होगा कि) फि़र्औनियों को अत्यन्त कठिन यातना में झोंक दो।" (सूरतुल-मोमिन: 46)





तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और यदि आप उस समय देखें जब यह अत्याचारी यम यातना (मरते समय की तक्लीफ) से पीड़ित होंगे और फरिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होंगे कि हां अपनी प्राणों को निकालो, आज तुम को इस प्रत्याप्राध में निंदात्मक (अपमानजनक) यातना दी जायेगी जो तुम अल्लाह तआला पर असत्य बातें कहा करते थे और तुम अल्लाह की आयतों से अहंकार करते थे।" (सूरतुल-अन्आम: 93)





जब काफिर की जान निकलने का समय होता है तो फरिश्ते उसे यातना, सज़ा, बेड़ियों, ज़ंजीरों, नरक और उस पर अल्लाह तआला के क्रोधित होने की सूचना देते हैं, तो उसकी आत्मा उसके शरीर में भटकने लगती है और बाहर निकलने से इंकार करती है, तो फरिश्ते उन्हें मारते हैं यहाँ तक कि उनकी जानें उनके शरीर से बाहर निकलती हैं, यह कहते हुए कि : "अपनी प्राणों को निकालो, आज तुम को इस प्रत्याप्राध में निंदात्मक यातना दी जायेगी .." (सूरतुल-अन्आम: 93)





इस बात का प्रमाण कि शिर्क क़ब्र के अज़ाब के कारणों में से एक कारण है, ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने फरमाया :





"इस बीच कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बनू नज्जार के एक बगीचे में अपने एक खच्चर पर सवार थे और हम आप के साथ थे कि सहसा आप का खच्चर मुड़ गया और क़रीब था कि आप को गिरा दे, और वहाँ छ: या पाँच या चार क़ब्रें दिखाई दीं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "इन क़ब्रों वालों को कौन जानता है? एक आदमी ने कहा : मैं। आप ने कहा : "ये लोग कब मरे थे? उसने कहा : शिर्क के ज़माने में मरे थे ... तो आप ने फरमाया : "इस उम्मत को उसकी क़ब्रों में आज़माया जाता है, यदि यह भय न होता कि तुम मुर्दों को गाड़ना छोड़ दोगे, तो मैं अल्लाह तआला से प्रार्थना करता कि वह तुम्हें भी क़ब्र की कुछ वह यातना सुना दे जो मैं सुनता हूँ।" ... फिर आप ने हमारी ओर अपना चेहरा किया और फरमाया: नरक की यातना से अल्लाह तआला की पनाह मांगो ..." (मुस्लिम हदीस संख्याः 2867)





उक्त हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान : "शिर्क के ज़माने में मरे थे।" इस बात का प्रमाण है कि शिर्क क़ब्र के अज़ाब का कारण है।





निफाक़ भी क़ब्र के अज़ाब के कारणों में से एक कारण हैः





और मुनाफिक़ लोग, लोगों में सब से अधिक क़ब्र के अज़ाब के पात्र हैं, क्यों नहीं, जबकि वे नरक के पाताल में होंगे।





अल्लाह तआला का फरमान है : "और कुछ तुम्हारे आस पास के देहातियों में से और अहले मदीना में ऐसे मुनाफिक़ हैं जो निफाक़ पर अड़े हुये हैं, आप उन को नहीं जानते, उनको हम जानते हैं, हम उन को दोहरी सज़ा देंगे, फिर वे बहुत बड़े अज़ाब की तरफ भेजे जायेंगे।" (सूरतुत्तौबा : 101)





क़तादा और अर्रबीअ़ बिन अनस अल्लाह तआला के फरमान : (हम उन्हें दो बार अज़ाब देंगे) के बारे में कहते हैं : उनमें से एक बार दुनिया में है, और दूसरी बार यही क़ब्र का अज़ाब है।





तथा दोनों फरिश्तों के प्रश्न और क़ब्र की परीक्षा की हदीसों में स्पष्ट रूप से कई रिवायतों में मुनाफिक़ या शक्की का नाम आया है, जैसाकि बुखारी में हदीस संख्या (1374) के तहत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस के शब्द यह हैं : (...तथा काफिर और मुनाफिक़ से कहा जाये गा ...), और बुखारी व मुस्लिम में अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस के शब्द यह हैं : (और मुनाफिक़ या शक्की ...)





अल्लाह तआला की हलाल की हुई चीज़ को हराम ठहरा कर और उसकी हराम की हुई चीज़ को हलाल करके अल्लाह की शरीअत को बदल डालनाः





इस बात का प्रमाण कि अल्लाह तआला की शरीअत में इस प्रकार की नास्तिकता क़ब्र में दंडित किये जाने का कारण है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : "मैं ने अम्र बिन आमिर अल-ख़ुज़ाई को देखा कि वह अपनी अंतड़ियों को नरक में घसीट रहा था ; वह पहला आदमी है जिस ने जानवरों को छोड़ा।" (बुखारी हदीस संख्याः 4623)





साईबा : उस ऊँटनी, गाय या बकरी को कहते हैं जिन्हें वे छोड़ देते थे और उसकी न सवारी की जाती, न उसे खाया जाता, और न उस पर लादा जाता, और कुछ लोग अपने धन का कुछ भाग मन्नत मान कर उसे साईबा घोषित कर देते थे।





शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : "इस्माईल अलैहिस्सलाम की संतान और उनके अलावा से अरब के लोग जो कि अल्लाह के उस प्राचीन घर के पड़ोसी थे जिसे इब्राहीम और इस्माईल अलैहिमस्सलाम ने बनाया था, वे लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मिल्लत (धर्म) पर एकेश्वरवादी थे, यहाँ तक कि खुज़ाआ नामी क़बीले के कुछ सरदारों ने उनके धर्म को बदल डाला और वह व्यक्ति "अम्र बिन लुहै" है, और वह सर्वप्रथम आदमी है जिस ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म को शिर्क के द्वारा और ऐसी चीज़ को हराम करके जिसे अल्लाह ने हराम नहीं किया था, बदल दिया, इसी लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि : "मैं ने अम्र बिन लुहै को देखा कि वह नरक में अपनी अंतड़ियों को घसीट रहा था।" (दक़ाईक़ुत्तफसीर 2/71)





पेशाब से पवित्रता प्राप्त न करना, और लोगों के बीच चुगली खाते फिरनाः





इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो क़ब्रों के पास से गुज़रे तो फरमाया : इन दोनों क़ब्रों वालों को दंडित किया जा रहा है, और उन्हें किसी बड़े मामले में दंडित नही किया जा रहा है, उन में से एक पेशाब (की छींटों) से नहीं बचता था और दूसरा चुगलखोरी करता फिरता था... हदीस के अंत तक। (बुखारी हदीस संख्या: 218, मुस्लिम हदीस संख्या: 292)





तथा इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सामान्य रूप से क़ब्र का अज़ाब पेशाब की वजह से है, अत: उस से बचो।" (इसे दारक़ुत्नी ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुत्तरग़ीब (1/152) में सहीह कहा है।)





गीबत (पिशुनता) :





इसी पर इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह ने किताबुल जनाइज़ में इस तरह शीर्षक लगाया है : "ग़ीबत और पेशाब के कारण क़ब्र का अज़ाब"





फिर इस में दोनों क़ब्रों वाली पिछली हदीस का वर्णन किया है, जबकि बुखारी की हदीस के शब्दों में ग़ीबत का उल्लेख नहीं है, बल्कि उस में चुगलखोरी का शब्द है, किन्तु उन्हों ने अपनी आदत के अनुसार हदीस के कुछ तरीक़ों में वर्णित शब्द की ओर संकेत किया है : "और दूसरा आदमी ग़ीबत के बारे में दंडित किया जा रहा है।"





इसे अहमद (5/35) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तरग़ीब व तरहीब (1/66) में इसे सहीह कहा है।





झूठ बोलनाः





समुरह बिन जुनदुब रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम से रिवायत किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फिर हम चल दिये और एक आदमी के पास आये जो अपनी गुद्दी के बल चित लेटा हुआ था, और उसके साथ ही एक दूसरा आदमी लोहे का आँकुस लिए हुये उसके पास खड़ा था, और वह उसके मुँह के एक किनारे आता है और उसके जबड़े को उसकी गुद्दी तक, और उसके नथने को उसकी गुद्दी तक और उसकी आँख को उसकी गुद्दी तक फाड़ देता है, आप ने फरमाया : फिर वह दूसरी तरफ जाता है और उसी तरह करता है जिस तरह पहली तरफ किया था, उस तरफ से फारिग नहीं होता है कि दूसरी तरफ वाला उसी तरह सहीह हो जाता है जैसाकि पहले था, फिर वह दूसरी बार आता है और उसी तरह करता है जैसाकि पहली बार किया था। आप ने फरमाया : सुब्हानल्लाह ! यह दोनों कौन हैं? फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस दंडित किये जा रहे आदमी के बारे में हदीस के अंत में फरमाया कि : "यह वह आदमी है जो अपने घर से सुबह निकलता था और झूठ बोलता था जो चारों ओर फैल जाता था।" (बुखारी : 7074)





क़ुरआन को सीखने के बाद उसे परित्याग कर देना, और फर्ज़ नमाज़ से सोया रहना :





समुरह बिन जुन्दुब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हम एक ऐसे आदमी के पास आये जो लेटा हुआ था और एक दूसरा आदमी उसके पास एक चट्टान (भारी पत्थर) लिए हुये खड़ा था, कि वह चट्टान को लेकर उसके सिर पर पटक देता है और उसे फाड़ देता है, तो पत्थर वहाँ से लुढ़क जाता है, तो वह पत्थर का पीछा करता है और उसे उठा लेता है, फिर वह उसके पास अभी लौटकर नहीं आता है कि उसका सिर ठीक ठाक हो जाता है जिस तरह कि पहले था, फिर वह दुबारा उसके पास लौटता है और उसके साथ वैसा ही करता है जिस तरह पहली बार किया था। आप ने फरमाया : मैं ने उन दोनों से कहा : सुब्हानल्लाह ! यह दोनों कौन हैं?





और उसी हदीस में है कि : "और वह आदमी जिसे आप ने देखा कि उसका सिर कुचला जा रहा था, तो वह ऐसा आदमी है जिसे अल्लाह ने क़ुर्आन सिखाया, तो वह रात को उस से सोया रहा, और दिन में उस पर अमल नहीं किया।"





और एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : "जहाँ तक उस आदमी का मामला है जिसके पास आप आये तो उसका सिर पत्थर से कुचला जा रहा था, तो वह आदमी ऐसा था कि वह क़ुरआना को सीखता था फिर उसे छोड़ देता था और फर्ज़ नमाज़ से सोया रहता था।" (बुखारी हदीस संख्या : 7076)





हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने उल्लेख किया है कि यह रिवायत पहली रिवायत से अधिक स्पष्ट है, क्योंकि पहली हदीस के ज़ाहिर से यह पता चलता है कि उसे रात के समय क़ुर्आन की तिलावत छोड़ देने के कारण दंडित किया जा रहा है, और दूसरी रिवायत इस बात को दर्शाती है कि उसे फर्ज़ नमाज़ से सोये रहने के कारण दंडित किया जा रहा है।





हाफिज़ इब्ने हजर आगे फरमाते हैं : और यह भी हो सकता है कि उसे दोनों चीज़ों के समूह पर दंडित किया जा रहा हो अर्थात् तिलावत न करने और अमल न करने पर।





इब्ने हजर फरमाते हैं कि: "इब्ने हुबैरा कहते हैं : क़ुरआन को याद करने के बाद उसे छोड़ देना एक बहुत बड़ा अपराध है, क्योंकि इस से इस बात का भ्रम पैदा होता है कि उसने उसके अंदर कोई ऐसी चीज़ देखी है जो उसको छोड़ने की अपेक्षा करती है, और जब उसने सब से सर्वोच्च और श्रेष्ठ चीज़ क़ुरआन को छोड दिया, तो उसे उसके शरीर के सबसे श्रेष्ठ भाग सिर में सज़ा दिया गया।" (फत्हुल बारी 3/251)





सूद (व्याज़) खाने वालाः





समुरह रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फिर हम चल दिये और एक ऐसी नदी पर आये जो खून के समान लाल थी, नदी में एक आदमी तैर रहा था, और नदी के किनारे एक आदमी था जो अपने पास ढेर सारे पत्थर एकत्र किये हुये था, वह तैरने वाला आदमी जितना तैरना होता तैरता फिर उस आदमी के पास आता जो अपने पास पत्थर एकत्र किये हुए था और उसके सामने अपना मुँह खोलता और वह उसके मुँह में पत्थर डाल देता और वह तैरने चला जाता, फिर वह उसके पास वापस आता, जब भी वह उसके पास वापस आता, तो अपना मुँह खोल देता और वह उसमें पत्थर डाल देता।"  यहाँ तक कि आप ने फरमाया : "और वह आदमी जिसके पास आप आये तो वह नदी में तैर रहा था और उसके मुँह में पत्थर डाला जा रहा था, तो वह सूद खाने वाला है।"





व्यभिचारः





समुरह रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है : "फिर हम चल दिये और तन्नूर (भट्ठी) के समान जगह पर आये जिस में कोलाहल और आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।" आप ने फरमाया : "हम ने उस में झाँक कर देखा, तो उस में नंगे गर्द और औरतें थीं और उनके नीचे से उन पर आग के शोले आ रहे थे, जब उन पर वो शोले आते, तो वे चींखते चिल्लाते थे।" आप ने फरमाया : "मैं ने उन दोनों (फरिश्तों) से कहा : ये कौन लोग हैं?"





और उसी हदीस के अंत में है कि : "और वे नंगे मर्द और औरतें जो तन्नूर के समान जगह में थे, वे व्यभिचार (ज़िना) करने वाले मर्द और व्यभिचार करने वाली औरतें हैं।"





लेगों को भलाई का आदेश देना और अपने आप को भुला देनाः





अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस रात मुझे रातों रात (आसमान पर) ले जाया गया, मैं ने कुछ लोगों को देखा जिनके होंठों को आग की क़ैंचियों से काटा जा रहा था। मैं ने कहा : ऐ जिब्रील! ये कौन लोग हैं? उन्हों ने जवाब दिया : आप की उम्मत के खतीब (भाषण देने वाले) लोग हैं, जो लोगों को नेकी का आदेश करते थे और अपने आप को भूल जाते थे, हालाँकि वे किताब की तिलावत करते थे, क्या ये लोग समझ बूझ नहीं रखते?" इस हदीस को इमाम अहमद (3/120) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने "अस्सहीहा" में (हदीस संख्या : 291 के तहत) इसे सहीह कहा है।





बैहक़ी में है : "जिस रात मुझे रातों रात (आसमान पर) ले जाया गया, मैं एक ऐसी क़ौम के पास आया जिनके होठों को आग की क़ैंचियों से काटा जा रहा था, जब भी उन्हें काटा जाता था, वे पूरी हो जाती थीं, तो मैं ने कहा : "ऐ जिब्रील यह कौन हैं?"  उन्हों ने उत्तर दियाः आपकी उम्मत के खतीब (भाषणकर्ता) लोग हैं जो ऐसी बातें कहते थे जो स्वयं नहीं करते थे, और अल्लाह की किताब पढ़ते थे और उस पर अमल नहीं करते थे।" इस हदीस को बैहक़ी ने अपनी किताब "शुअ´बुलईमान" में रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़ (हदीस संख्या : 128) में इसे हसन कहा है।





बिन उज़्र (धार्मिक कारण) के रमज़ान के दिन में खाना पीना (रोज़ा तोड़ देना) :





अबू उमामा अल-बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा कि मैं ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : "मैं सो रहा थी कि इसी हालत में मेरे पास दो आदमी आये, और मेरे दोनों बाज़ू पकड़ कर मुझे एक पहाड़ पर ले गये और कहा : चढ़िये। तो मैं ने कहा : मैं इसकी ताक़त नहीं रखता। उन दोनों ने कहा: हम आप के लिए आसान कर देंगे। आप ने फरमाया : तो मैं चढ़ गया, यहाँ तक कि जब मैं पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया, तो मैं ने तेज़ आवाज़ें सुनीं, मैं ने कहा :ये कैसी आवाज़ें हैं? उत्तर मिला : ये नरकवासियों की चीखें हैं। फिर मुझे (आगे) ले जाया गया, तो ऐसे लोग दिखाई दिये जो अपनी ऐड़ियों से लटके हुये थे और उनके जबड़े फटे हुये थे जिनसे खून बह रहे थे, आप ने फरमाया कि मैं ने कहा : "ये लोग कौन हैं? जवाब दिया गया : ये वो लोग हैं जो अपने रोज़ों के पूरा होने से पूर्व ही रोज़ा तोड़ देते थे।"





इब्ने हिब्बान और हाकिम (1/210, 290) ने इसे रिवायत किया है और अल्बानी ने "अस्सहीहा" (3951) में इसे सहीह कहा है।





ग़नीमत के धन में खियानत करना :





इस का प्रमाण अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की उस आदमी के बारे में हदीस है जिस ने एक युद्ध में गनीमत के माल के वितरण से पूर्व एक कपड़ा ले लिया था, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके बारे में फरमाया : "उस अस्तित्व की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, वह चादर (कपड़ा) जो उसने खैबर के दिन गनीमत के माल से उसके बटवारे से पहले ही ले लिया था, उस पर आग बन कर भड़क रही है।" (बुखारी हदीस संख्या : 4234, मुस्लिम हदीस संख्या : 115)





ग़नीमत के माल में खियानत से अभिप्राय यह है कि गाज़ी (योद्धा) गनीमत के धन से, उसे हाकिम के सामने बटवारे के लिए प्रस्तुत किये गये बिना ही, कुछ ले ले।





घमंड से कपड़े घसीटना :





इसका प्रमाण इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया : इस बीच कि एक आदमी अपने इज़ार (तहबंद) को घसीट कर चल रहा था कि उसे धंसा दिया गया और वह क़ियामत तक धरती में धंसता रहेगा।" (बुखारी हदीस संख्या : 3485, मुस्लिम हदीस संख्या :2088)





हाजियों की चोरी करना :





इसका प्रमाण सलातुल कुसूफ के बारे में जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है ... जिस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : "नि:सन्देह नरक को लाया गया, और यह उस समय जब तुम ने मुझे देखा कि मैं इस भय से कि कहीं उसकी लपट मुझे न पहुँच जाए, मैं पीछे हट गया, यहाँ तक कि मैं ने उस में छड़ी वाले आदमी को देखा जो अपनी अंतड़ियों को घसीट रहा था ; वह अपनी छड़ी से हाजियों का सामान चुराया करता था, अगर उसे भाँप लिया जाता तो कहता कि : यह मेरी छड़ी में फंस गया था, और यदि लोग उस से गाफिल होत तो उसे लेकर चलता बनता।" (मुस्लिम हदीस संख्या : 904)





जानवर को बांध कर उसे यातना देना और उस पर दया न करना:





सलातुल कुसूफ के बारे में जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मैं ने नरक में उस बिल्ली वाली महिला को देखा जिस ने उसे बाँध दिया था, फिर उसे न खाना खिलाया और न ही उसे छोड़ा कि वह ज़मीन के कीड़े-मकोड़े खाती यहाँ तक कि वह भूख से मर गयी।" (मुस्लिम : 904)





बैहक़ी ने अपनी किताब "इस्बातो अज़ाबिल क़ब्र" (कब्र की सज़ा का सबूत) (पृष्ठ संख्या: 97) में कहते हैं : "आप ने जब खुसूफ (ग्रहण) की नमाज़ पढ़ी तो उस आदमी को देखा जो अपनी अंतड़ियों को नरक में घसीट रहा था, और उस व्यक्ति को जो चोरी की वजह से दंडित किया जा रहा था, और उस महिला को जो बिल्ली के कारण सज़ा दी जा रही थी, जब कि वे सब अपने समय के लोगों की निगाहों में सड़ी हुई हड्डी बन चुके थे, तथा आप के साथ नमाज़ पढ़ने वाले लोगों ने इनमें से कुछ भी नहीं देखा जो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने देखा था।"





क़र्ज़ (ऋण):





मृतक (मैयित) को जो चीज़ें उसकी क़ब्र में हानि पहुँचाती हैं, उन में से एक उसके ऊपर अनिवार्य क़र्ज़ भी है, सअद बिन अल-अत्वल से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मेरा भाई मर गया और उसने तीन सौ दीनार छोड़ा, और युवा लड़के छोड़े, मैं ने चाहा कि उन पर खर्च करूँ, तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझ से फरमाया : "तुम्हारा भाई क़र्ज़ की वजह से बंदी बना है, जाओ उसके क़र्ज़ को चुका दो।" वह कहते हैं कि मैं गया और उनकी तरफ से क़र्ज़ को चुका दिया, फिर आया और कहा : ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं ने उसकी की तरफ से क़र्ज़ को चुका दिया है और केवल एक महिला बाक़ी रह गई है जो दो दीनार का दावा करती और उसके पास कोई सबूत (गवाह) नहीं है। आप ने फरमाया : "उसे दे दो ; क्योंकि वह सच्च कह रही है।" इस हदीस को इमाम अहमद (हदीस संख्या :16776) इब्ने माजा (2/82) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़ (हदीस संख्या :1550) में इसे सहीह कहा है।





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