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जब मैं अपने पति से शादी के पूर्व मिली तो हम दोनों मुसलमान थे, किंतु हम (अल्लाह माफ करे) अपनी मुलाक़ात की थोड़ी अवधि के बाद इस्लाम से फिर गए, फिर हम ने ब्रिटिश क़ानूनों के अनुसार शादी कर ली और एक गैर इस्लामी समारोह आयोजित किया (इस कारण कि हम उस समय मुसलमान नहीं थे)। फिर उसके दो साल बाद मेरे पति ने पुनः इस्लाम स्वीकार कर लिया और मैं उसके बाद कुछ महीनों तक कुफ्र की अवस्था में बाक़ी रही, किंतु अंत में, मैं ने भी पुनः इस्लाम स्वीकार कर लिया, और अल्लाह ही के लिए सभी प्रशंसा है। हम इस समय सर्वश्रेष्ठ हालत पर हैं।


अब प्रश्न यह है कि : क्या हमारी शादी सही है ॽ और यदि मामला इसके अलावा है तो हमारे ऊपर क्या अनिवार्य है ॽ ज्ञात रहे कि हमारे आस पास के सभी लोग जानते हैं कि हमने शादी की है, लेकिन समस्या यह है कि हम उस समय गैर मुस्लिम थे और हमारी शादी ब्रिटिश क़ानूनों के अनुसार हुई थी, इस्लामी क़ानून के अनुसार नहीं हुई थी।





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





यदि दो मुर्तद एक साथ इस्लाम स्वीकार कर लें तो वे दोनों अपने निकाह पर बरक़रार रखे जायेंगे, जिस प्रकार कि दो असली काफिर अपने निकाह पर बरकरार रखे जाते हैं, जैसाकि इसका वर्णन प्रश्न संख्या : (118752) के उत्तर में गुज़र चुका है।





और यदि पति और पत्नी में से कोई एक इस्लाम स्वीकार कर ले, और दूसरे का इस्लाम विलंब हो जाए यहाँ तक कि औरत की इद्दत समाप्त हो जाए, तो अधिकतर विद्वानों के निकट निकाह का नवीकरण करना आवश्यक है।





इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यदि पति और पत्नी में से कोई मुसलमान बन जाए, और दूसरा इस्लाम से पीछे रह जाए यहाँ तक कि औरत की इद्दत समाप्त हो जाए, तो सामान्य विद्वानों के कथन के अनुसार निकाह टूट जायेगा। इब्ने अब्दुल बर्र ने कहा : विद्वानों ने इसमें मतभेद नहीं किया है, सिवाय थोड़ी चीज़ के जो नखई से वर्णन की जाती है, जिसमें उन्हों ने विद्वानों के समूह से अलग थलग विचार अपनाया है, उस पर किसी ने उनका अनुसरण नहीं किया है, उनका विचार है कि उसे उसके पति की ओर लौटा दिया जायेगा, भले ही अवधि लंबी हो गई हो, क्योंकि इब्ने अब्बास ने रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ैनब को उनके पति अबुल आस पर उनके पहले निकाह के साथ ही लौटा दिया था। इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। और अहमद ने इस से दलील पकड़ी है। उनसे कहा गया: क्या यह बात रिवायत नहीं की जाती है कि आप ने उन्हें एक नये निकाह के साथ लौटाया ॽ तो उन्हों ने कहा : उसकी कोई असल (आधार) नहीं है। तथा कहा गया है कि : उनके इस्लाम लाने और उनके अपने पति की ओर लौटाये जाने के बीच आठ साल की अवधि थी।” किताब “अल-मुग़नी” (7 / 188) से समाप्त हुआ। 





तथा कुछ विद्वानों ने इस बात को चयन किया है कि निकाह नहीं टूटेगा यद्यपि इद्दत समाप्त हो जाए। अतः अगर पति और पत्नी इद्दत समाप्त होने के बाद एक दूसरे की ओर पलटना चाहें तो दोनों के लिए ऐसा करना जाइज़ और निकाह के अनुबंधन के नवीकरण की आवश्यकता नहीं है।





इस कथन को शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या और उनके शिष्य इब्नुल क़ैयिम ने चयन किया है और शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुमुल्लाह ने इसे राजेह करार दिया है।





और इन लोगों ने अबुल आस की पिछली हदीस से दलील पकड़ी है, और इस बात से कि सुन्नत (हदीस) में इस मामले को इद्दत के समाप्त होने से निर्धारित करना वर्णित नहीं है।





देखिए: “अश्शरहुल मुम्ते” (12 / 245 – 248).





इस कथन के आधार पर, आप दोनों अपने पिछले निकाह पर बरक़रार हैं, निकाह के अनुबंधन के नवीकरण की आवश्यकता नहीं है।





हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आप दोनों को हर भलाई की तौफीक़ प्रदान करे।





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





शादी के अनुबंध के स्तंभ क्या हैं और उसकी शर्तें क्या है ?





उत्तर





उत्तर




हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





इस्लाम में निकाह के अनुबंध के स्तंभ तीन हैं :





सर्व प्रथम : निकाह की शुद्धता को रोकने वाली बाधाओं जैसे - नसब या रज़ाअत आदि की वजह से महरम होने, तथा आदमी के काफिर और औरत के मुसलमान होने और इसके अलावा अन्य बाधाओं से खाली पति और पत्नी का होना।





दूसरा : ईजाब का होना और वह वली (अभि भावक) या उसके प्रतिनिधि की तरफ से जारी होनेवाला शब्द है, इस प्रकार कि वह पति से कहे कि मैं ने फलाँ औरत से तुम्हारी शादी कर दी।





तीसरा : स्वीकृति का होना और वह पति या उसके प्रतिनिधि की ओर से जारी होनेवाला शब्द है, इस तरह कि वह कहे : मैं ने क़बूल किया।





जहाँ तक निकाह के शुद्ध होने की शर्तों का संबंध है तो वे यह हैं :





प्रथम : संकेत से, या नाम लेकर, या गुणविशेषण आदि के द्वारा पति और पत्नी में से प्रत्येक को निर्धारित करना।





दूसरी : पति और पत्नी में से प्र्रत्येक का दूसरे से सहमत होना क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘बिना पति वाली औरत (मृत्यु या तलाक़ की वजह से जिसका पति न रह गया हो) की शादी न की जाय यहाँ तक कि उससे परामर्श कर लिया जाय (अर्थात उसका आदेश ले लिया जाय, चुनाँचे उसका स्पष्टीकारण करना ज़रूरी है) तथा कुंवारी औरत की शादी न की जाय यहाँ तक कि उसकी अनुमति ले ली जाय (अर्थात यहाँ तक कि वह शब्दों के द्वारा या मौन धारण करके सहमति व्यक्त कर दे), लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! उसकी अनुमति कैसे होगी (क्योंकि वह शरमाती है) आप ने फरमाया : वह खामोश रहे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4741) ने रिवायत किया है।





तीसरी : महिला का निकाह उसका वली (सरपरस्त, अभि भावक) कराए क्योंकि अल्लाह तआला ने वलियों को निकाह कराने के लिए संबोधित किया है, चुनाँचे फरमाया :





﴿وَأَنْكِحُوا الْأَيَامَى مِنْكُمْ ﴾ [ سورة النور : 32]





“और तुम अपने में से अविवाहितो का विवाह कर दो।” (सूरतुन्नूरः 32).





तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :





“जिस औरत ने भी अपने वली की अनुमति के बिना निकाह किया तो उसका निकाह बातिल है, तो उसका निकाह बातिल है, तो उसका निकाह बातिल है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1021) वगैरह ने रिवायत किया है और यह एक सहीह हदीस है।





चौथी : निकाह के अनुबंध पर गवाही रखना, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “एक वली और दो गवाहों के बिना निकाह नहीं है।” इसे तबरानी ने रिवायत किया है और वह सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 7558) में है।





तथा निकाह की घोषणा और प्रचार करना निश्चित है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरामन है : “निकाह का एलान करो।” इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है और उसे सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 1072) में हसन करार दिया है।





जहाँ तक वली की बात है तो उसके अंदर निम्नलिखित चीज़ों की शर्त लगाई जाती है :





1- बुद्धि का होना।





2- व्यस्क (बालिग) होना।





3- आज़ादी।





4- धर्म की एकता (अर्थात दोनों का धर्म एक हो), चुनाँचे एक नास्तिक को किसी मुसलमान पुरूष या मुसलमान महिला के ऊपर सरपरस्ती का अधिकार नहीं है, इसी तरह किसी मुसलमान को किसी नास्तिक पुरूष या नास्तिक महिला पर सरपरस्ती हासिल नहीं है, जबकि नास्तिक को एक नास्तिक महिला के ऊपर शादी कराने की सरपरस्ती प्राप्त है भले ही दोनों का धर्म अलग-अलग हो, तथ मुर्तद्द (धर्म से फिर जानेवाले) आदमी को किसी पर सरपरस्ती का अधिकार नहीं है।





5- सत्यवाद व न्यायप्रियताः जो दुराचार के विपरीत हो, यह कुछ विद्धानों के निकट शर्त है, जबकि कुछ लोगों ने केवल ज़ाहिरी सत्यवाद व न्याय प्रियता पर बस किया है, तथा कुछ लोगों ने कहा है कि इतनी बात काफी है कि वह जिसकी शादी के मामले की सरपरस्ती कर रहा है उसके हित के बारे में चिंतन करने वाला हो।





6- पुरूषत्व : अर्थात पुरूष होना क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “कोई महिला किसी महिला की शदी न करे, और न ही कोई महिला अपनी शादी स्वयं करे। क्योंकि व्यभिचारणी महिला ही अपनी शादी स्वयं करती है।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 782) ने रिवायत यिका है और यह हदीस सहीहुल जामे (7298) में है।





7- विवेक व समझ बूझ : अर्थात कुशल व योग्य व्यक्ति और निकाह के हितों की पहचान करने पर सक्षमता का होना।





फुक़हा के यहाँ वलियों का एक क्रम (तर्तीब) है चुनाँचे निकटतम वली को छोड़कर दूसरे का चयन उसी समय किया जायेगा जब वह मौजूद न हो या वह वली की शर्तों पर न उतरता हो। महिला का वली (सरपरस्त) उसका पिता, फिर उसका वसीयत किया हुआ आदमी, फिर बाप की तरफ से उसका दादा अगरचे ऊपर तक चला जाए, फिर उस महिला का बेटा, फिर उसके बेटे अगरचे नीचे तक चले जाएँ, फिर उसका सगा भाई, फिर बाप की तरफ से भाई फिर उन दोनों के बेटे, फिर उस महिला का सगा चाचा फिर उसका अल्लाती चाचा फिर उन दोनों के बेटे, फिर असबह में से नसब के एतिबार से निकटतम रिश्तेदार, तथा मुसलमान बादशाह (और उसका प्रतिनिधित्व करने वाला जैसे क़ाज़ी) उस का वली (सरपरस्त) है जिसका कोई सरपरस्त नहीं है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।





यदि मैं अपनी पत्नी को एक तलाक़ दे दूँ और वह अपनी इद्दत के अंतराल में हो तो क्या मेरे लिए एक नया मिस्यार विवाह करना जाइज़ है ? तथा क्या मेरे लिए नये विवाह के लिए अभिभावकों (सरपरस्तों) की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है ? यदि उसके अभिभावक को मिसयार विवाह का ज्ञान न हो और वह उस पर सहमत न हो, तो क्या इमाम के लिए जाइज़ है कि वह उसके अभिभावक की भूमिका निभाये ?





उत्तर





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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। सर्व प्रथम: जब पति ने अपनी पत्नी को एक तलाक़ दे दिया तो जब तक वह इद्दत में है उसके लिए उसे वापस लौटाना जाइज़ है, और वापस लौटाना कथन के द्वारा (अर्थात मुँह से कहकर), तथा वापस लौटाने की इच्छा से संभोग के द्वारा संपन्न होता है, यदि इद्दत समाप्त हो गई तो वह (पत्नी) उसके पास एक नये विवाह के द्वारा ही वापस लौट सकती है। तथा पति के लिए, पहली पत्नी को तलाक़ देने से पहले और उसके बाद तथा इद्दत के अंतराल में, दूसरी बीवी से विवाह करना जाइज़ है ; क्योंकि दोनों मामलों में कोई संबंध नहीं है, तथा उसके लिए पहली पत्नी को सूचित करना या उसकी सहमति प्राप्त करना ज़रूरी नहीं है ; क्योंकि अल्लाह तआला ने आदमी के लिए न्याय की शर्त के साथ एक ही समय में चार औरतों से शादी करना वैध ठहराया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : “औरतों में से जो भी तुम्हें अच्छी लगें तुम उनसे निकाह कर लो, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से, लेकिन यदि तुम्हें न्याय न कर सकने का भय हो तो एक ही काफी है।” (सूरतुन्निसा : 4) दूसरा: मिस्यार नामक विवाह यदि उसके अंदर निकाह की शर्तें पूरी हैं जैसे कि महिला की सहमति, अभिभावक (वली, सरपरस्त), दो गवाह और महर की उपस्थिति, तो वह सही (शुद्ध) शादी है, और औरत के लिए अपने कुछ हुक़ूक़ (अधिकारो) जैसे कि निवास, या रात ग़ुजारना, या र्ख्च को त्याग कर देने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। बिना वली (अभिभावक) की उपस्थिति के निकाह शुद्ध नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘वली के बिना निकाह नहीं है।’’ इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या: 2085), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1101) और इब्ने माजा (हदीस संख्या: 1881) ने अबू मूसा अल अश्अरी की हदीसे से रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘वली और दो न्यायपूर्ण गवाहों के बिना निकाह नहीं है।’’ इसे बैहक़ी ने इम्रान और आइशा रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस से रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामे में हदीस संख्या (7557) के अंतर्गत सहीह है कहा है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘जिस औरत ने भी अपने वली (सरपरस्त) की अनुमति के बिना निकाह किया तो उसका निकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है, तो उसका निकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है, तो उसका निकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है।’’ इसे अहमद (हदीस संख्या: 24417), अबू दाऊद (हदीस संख्या: 2083) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1102) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या: 2709) के तहत इसे सहीह कहा है। अतः इस मामले को अभिभावक (वली) से छुपाना जाइज़ नहीं है, और निकाह शुद्ध नहीं हो सकता सिवाय इसके कि अभिभावक स्वयं उसे आयोजित करे या अभिभावक किसी को प्रतिनिध बना दे जो उसकी ओर से निकाह का आयोजन करे। तथा इमाम के लिए जाइज़ नहीं है कि वह वली (अभिभावक) का स्थान ग्रहण करे सिवाय इसके कि वली उसे निकाह आयोजित करने के लिए प्रतिनिधि बना दे। मिसयार नामक शादी में वली (अभिभावक) के उपस्थित होने की बहुत कड़ी शर्त है, ताकि उसके और व्यभिचार (अवैध संबंध) के बीच अंतर किया जा सके। तथा प्रश्न संख्या (82390) का उत्तर भी देखें। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





मै 18 वर्ष की एक लड़की हूँ, मुझे पाँच बार शादी का प्रस्ताव दिया गया लेकिन मैं ने उन सभी को मना कर दिया क्योंकि (उस समय) मैं छोटी थी और अब मैं शादी के बारे में सोच रही हूँ, मेरा प्रश्न यह है कि : एक अच्छे मुसलमान को पाने के लिए मुझे किस चीज़ की तलाश करनी चाहिए ॽ सबसे महत्व पूर्ण चीज़ें क्या हैं ॽ





उत्तर





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ऐ प्रश्नकर्ता बहन, हम आपकी उन गुणों को तलाश करने की उत्सुकता पर आभारी हैं जो अल्लाह की इच्छा से एक नेक पति के चुनाव पर सहायक हों, हम निम्न में सबसे महत्वपूर्ण गुण का उल्लेख कर रहे हैं जिसका उस व्यक्ति के अंदर पाया जाना उचित है जिसे आप चुनेंगी या एक पति के रूप में उसे पसंद करेंगी और वह आप के बेटों का बाप होगा यदि अल्लाह ने आप दोनों के बीचे बेटे को मुक़द्दर किया। - दीन (धर्मनिष्ठा) : और यह सबसे महान गुण है जिसका उस व्यक्ति के अंदर पाया जाना उचित है जिस से आप शादी करना चाहती हैं, चुनांचे इस पति को अपने जीवन में इस्लाम के सभी प्रावधानों का प्रतिबद्ध मुसलमान होना चाहिए, तथा औरत के सर परस्त (अभिभावक) को ज़ाहिरी चीज़ों को छोड़ कर इसी चीज़ को तलाश करने का लालायित होना चाहिए, और सबसे महान चीज़ जिसके बारे में पूछ ताछ करनी चाहिए वह इस आदमी की नमाज़ है, क्योंकि जिसने अल्लाह सर्वशक्तिमान के हक़ को नष्ट कर दिया वह उसके अलावा के हक़ को और अधिक नष्ट करने वाला होगा, और मोमिन अपनी पत्नी पर अत्याचार नहीं करता है, यदि वह उस से प्यार करता है तो उसका सम्मान करता है, और यदि वह उस से प्यार नहीं करता है, तो उस पर अत्याचार भी नहीं करता है और न उसका अपमान करता है, और सच्चे मुसलमानों के अलावा में यह गुण बहुत कम ही पाया जाता है। अल्लाह तआला ने फरमाया : ﴿وَلَعَبْدٌ مُّؤْمِنٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ﴾ [سورة البقرة : 221] “और ईमानवाला (विश्वासी) गुलाम (दास) आज़ाद मुशरिक से अच्छा है, अगरचे कि तुम्हें मुशरिक अच्छा लगे।” (सूरतुल बक़रा : 221). तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : ﴿إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ﴾ [سورة الحجرات : 13] “अल्लाह के निकट तुम सब में सबसे इज़्ज़त वाला वह है जो सबसे अधिक डरने वाला है।” (सूरतुल हुजुरात : 13). तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : ﴿وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ﴾ [سورة النور : 26]. “और पाक औरतें पाक मर्दों के लायक़ हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लायक हैं।” (सूरतुन नूर : 26). तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : जब तुम्हारे पासे कोई ऐसा आदमी (विवाह का प्रस्ताव लेकर) आये जिस के धर्म (दीनदारी) और व्यवहार (शिष्टाचार ) से तुम सन्तुष्ट (राज़ी) हो तो उस से विवाह कर दो। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो धरती पर फित्ना (उपद्रव) और बड़ा फसाद (भ्रष्टाचार) पैदा होगा।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 866) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह सुनन तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1084) में इसे सहीह कहा है। - तथा दीन के साथ यह भी मुस्तहब है कि वह एक अच्छे परिवार और परिचित वंश से हो, अगर औरत के पास दो आदमी शादी के लिए आयें जिनका दर्जा दीन के अंदर एक हो, तो अच्छे खानदान और अल्लाह के आदेश के पालन के साथ परिचित वंश और परिवार वाले को प्राथमिकता दी जायेगी, जबकि दूसरा दीन के अंदर उस से अच्छा नहीं है। क्योंकि पति के रिश्तेदारों की अच्छाई उसके बच्चों में भी सरायत कर जाती है तथा मूल (असल) और वंश का अच्छा होना बहुत से मामूली और अनर्थक चीज़ों से रोक देता है, तथा बाप और दादा की अच्छाई बेटों और पोतों को लाभ पहुंचाती है। अल्लाह तआला ने फरमाया : ﴿وَأَمَّا الْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلامَيْنِ يَتِيمَيْنِ فِي الْمَدِينَةِ وَكَانَ تَحْتَهُ كَنزٌ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَالِحًا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَنْ يَبْلُغَا أَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنزَهُمَا رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ﴾ [سورة الكهف : 82]. “और जहाँ तक दीवार का मामला है तो वह उस नगर के दो अनाथ बच्चों की थी, जिसके नीचे उन दोनों का खज़ाना गड़ा था, और उन दोनों का बाप एक सदाचारी व्यक्ति था, तो तेरे रब ने चाहा कि वे दोनों जवानी की उम्र को पहुँचकर तेरे रब की दया से अपना यह खज़ाना निकाल लें।” (सूरतुल कहफ : 82). तो आप देखें कि अल्लाह तआला ने किस तरह दोनों बच्चों के लिए उनके बाप के धन को, उसकी अच्छाई और तक़्वा के कारण उसके सम्मान के तौर पर, उसकी मृत्यु के बाद सुरक्षित रखा। इसी प्रकार अच्छे परिवार और सम्मानि माता पिता से होने वाले पति के मामले को अल्लाह आसान कर देगा, और उसके माता पिता के सम्मान में उसकी रक्षा करेगा। - तथा बेहतर है कि वह माल वाला हो जिस से वह अपने आपको और अपने घर वालों को (भीख मांगने से) बचा सके (अर्थात उन्हें खिला पिला सके), क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फातिमा बिंत क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हा से उस समय जब वह आप से इस बारे में सलाह (परामर्श) लेने के लिए आईं कि तीन आदमियों ने उन्हें शादी का संदेश (प्रस्ताव) दिया है, तो फरमाया : “रही बात मुआविया की तो वह एक गरीब आदमी हैं उनके पास धन नहीं है।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1480) ने रिवायत किया है। और यह शर्त (ज़रूरी) नहीं है कि वह व्यापारी और धनवान (अमीर) हो, बल्कि इतना पर्याप्त है कि उसके पास आय या धन हो जिस से वह अपने आपको और अपने घर वालों को (लोगों के सामने हाथ फैलाने से) पाक रख सके और उन्हें लोगों से बेनियाज़ कर दे। यदि धन वाले और धर्म वाले के बीच टकराव हो जाए तो वह धर्म वाले को धन वाले पर प्राथमिकता दे। - तथा बेहतर है कि वह औरतों के साथ कोमल और विनम्र व्यवहार वाला हो, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फातिमा बिंत क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हा की पूर्व हदीस में फरमाया : “रही बात अबू जह्म की तो वह अपने कंधे से लाठी को नहीं उतारते हैं।” यह इस बात का संकेत है कि वह औरतों को बहुत मारते हैं। - तथा अच्छा है कि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ और दोषों से सुरक्षित हो, जैसे कि बीमारियाँ, या विकलांगता और बाँझपन। - तथा बेहतर है कि वह किताब व सुन्नत का ज्ञान रखने वाला हो, और यह अगर प्राप्त हो जाए, तो ठीक है अन्यथा इसका पाया जाना दुर्लभ है। - तथा महिला के लिए उस व्यक्ति को देखना जाइज़ है जो उसके लिए शादी का प्रस्ताव लेकर आया है, जिस तरह कि उस आदमी के लिए इसे देखना पसंदीदा है। और यह देखना उसके किसी मह्रम की उपस्थिति में होगा, तथा उसके अंदर सीमा उल्लंघन करना जाइज़ नहीं है कि वह उसे अकेले एकांत में देखे या उसके साथ अकेले बाहर निकले, और बिना जरूरत के बार बार मिले। - तथा महिला के अभिभावक को चाहिए कि वह अपनी मुवल्लिया को शादी का पैगाम देने वाले के बारे में जाँच पड़ताल करे, और उसके साथ रहने वालों और उसे जानने वालों में से जिसके दीन और अमानत पर उसे भरोसा है उस से इसके बारे में पूछ ताछ करे, ताकि उसके बारे में वह उसे विश्वस्त राय और शुद्ध सलाह दे सके। - इन सभी चीज़ों से पहले और उनके साथ साथ अल्लाह की ओर दुआ के साथ मुतवज्जेह होना चाहिए कि वह आपके लिए आपके मामले को आसान कर दे और अच्छे चुनाव पर आपकी मदद करे, और आपको मार्गदर्शन और भलाई की तौफीक़ प्रदान करे। फिर कोशिश करने और किसी निर्धारित व्यक्ति पर आपकी राय जम जाने के बाद आपके लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान से इस्तिखारा करना धर्मसंगत है। - तथा इस्तिखारा की नमाज़ का तरीक़ा जानने के लिए प्रश्न संख्या (2217) को देखें - फिर पूरी कोशिश कर लेने के बाद अल्लाह सर्वशक्तिमान पर भरोसा करें, वही बेहतरीन सहायक है। “जामिओ अहकामिन निसा लिश-शैख मुस्तफा अल-अदवी” कुछ वृद्धि के साथ। हम अल्लाह सर्वोच्च सर्वशक्तिमान से प्रश्न करते हैं कि आपके लिए आपके मामले को आसान कर दे, आपको मार्गदर्शन की तौफीक़ प्रदान करे, और आप को नेक पति और अच्छी संतान प्रदान करे, वह इसका स्वामी और इस पर सर्वशक्तिमान है। तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद पर शांति अवतरित करे। इस्लाम प्रश्न और उत्तर शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद



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