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मानवाधिकार की आिारधिला





बिजस्मल्लाहिरमिमाधनरमिीम


मैं अधत मेिरिान और दयालु अल्लाि के नाम से आरम्भ करता ि ूँ।


إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله ن ورو


أنفسنا، وسيئات أعمالنا، ن يهده الله فلا مضل له، و ن يضلل


فلا هادي له، وبعد:


िर प्रकार की िम्द व सना (प्रिंसा और गुणगान) केवल


अल्लाि के धलए योग्य िै, िम उसी की प्रिंसा करते िैं, उसी


से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते िैं, तथा िम


अपने नफ्स की िुराई और अपने िुरे कामों से अल्लाि की


पनाि में आते िैं, जिसे अल्लाि तआला हिदायत प्रदान कर दे


उसे कोई पथभ्र􀆴 (गुमराि) करने वाला निीं, और जिसे गुमराि


कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला निीं। िम्द व सना के िाद


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मानवाधिकार की आिारधिला


पैग़म्िर मुिम्मद (सल्लल्लािु अलैहि व सल्लम)


का बवदायी अधभभाषण इस्लाम में मानवाधिकार


पैग़म्िर मुिम्मद (सल्लल्लािु अलैहि व सल्लम)


ईश्वर की ओर से, सत्यिमम को उसके प णम और


अजन्तम रूप में स्थाबपत करने के जिस धमिन पर


धनयुक्त हकए गए थे वि 21 वषम (23 चांद्र वषम) में


प रा िो गया और ईिवाणी अवतररत िुई :


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‘‘...आि मैंने तुम्िारे दीन (इस्लामी िीवन व्यवस्था की प णम रूपरेखा) को तुम्िारे धलए प णम कर हदया िै और तुम पर अपनी नेमत प री कर दी और मैंने तुम्िारे धलए इस्लाम को तुम्िारे दीन की िैधसयत से क़ि ल कर धलया िै...।’’ (कुु़रआन, 5:3)


आप (सल्लल्लािु अलैहि व सल्लम) ने िि के दौरान ‘अरफ़ात’ के मैदान में 9 माचम 632 ई॰ को एक भाषण हदया िो मानव-इधतिास के सफ़र में एक ‘मील का पत्थर’ (Milestone) िन गया। इसे धनःसन्देि ‘मानवाधिकार की आिारधिला’ का नाम हदया िा सकता िै। उस समय इस्लाम के लगभग सवा लाख अनुगामी लोग विाूँ उपजस्थत थे। थोड़ी-


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थोड़ी द री पर ऐसे लोगों को धनयुक्त कर हदया गया था िो आपके वचन-वाक्यों को सुनकर ऊूँची आवा़ि में िब्दतः दोिरा देते; इस प्रकार सारे श्रोताओं ने आपका प रा भाषण सुना।


भाषण


आप ने पिले ईश्वर की प्रिंसा, स्तुधत और गुणगान हकया, मन-मजस्तष्क की िुरी उकसािटों और िुरे कामों से अल्लाि की िरण चािी; इस्लाम के म लािार ‘बविुद्द एकेश्वरवाद’ की गवािी दी और फ़रमाया :


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● ऐ लोगो! अल्लाि के धसवा कोई प ज्य निीं िै, वि एक िी िै, कोई उसका साझी निीं िै। अल्लाि ने अपना वचन प रा हकया, उसने अपने िन्दे (रस ल) की सिायता की और अकेला िी अिमम की सारी िबक्त को पराजित हकया।


● लोगो मेरी िात सुनो, मैं निीं समझता हक अि कभी िम इस तरि एकत्र िो सकेंगे और संभवतः इस वषम के िाद मैं िि न कर सक ूँगा।


● लोगो, अल्लाि फ़रमाता िै हक, इन्सानो, िम ने तुम सि को एक िी पुरुष व स्त्री से पैदा हकया िै और तुम्िें धगरोिों और क़िीलों में िाूँट हदया गया हक


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तुम अलग-अलग पिचाने िा सको। अल्लाि की दृब􀆴 में तुम में सिसे अच्छा और आदर वाला वि िै िो अल्लाि से ज़्यादा डरने वाला िै। हकसी अरिी को हकसी ग़ैर-अरिी पर, हकसी ग़ैर-अरिी को हकसी अरिी पर कोई प्रधतष्टा िाधसल निीं िै। न काला गोरे से उत्तम िै न गोरा काले से। िाूँ आदर और प्रधतष्टा का कोई मापदंड िै तो वि ईिपरायणता िै।


● सारे मनुष्य आदम की संतान िैं और आदम धमट्टी से िनाए गए। अि प्रधतष्टा एवं उत्तमता के सारे दावे, ख़ न एवं माल की सारी मांगें और ित्रुता के सारे िदले मेरे पाूँव तले रौंदे िा चुके िैं। िस, कािा का प्रिंि और िाजियों को पानी बपलाने की


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सेवा का क्रम िारी रिेगा। कुु़रैि के लोगो! ऐसा न िो हक अल्लाि के समक्ष तुम इस तरि आओ हक तुम्िारी गरदनों पर तो दुधनया का िोझ िो और द सरे लोग परलोक का सामान लेकर आएूँ, और अगर ऐसा िुआ तो मैं अल्लाि के सामने तुम्िारे कुछ काम न आ सक ंगा।


● कुु़रैि के लोगो, अल्लाि ने तुम्िारे झ ठे घमंड को ख़त्म कर डाला, और िाप-दादा के कारनामों पर तुम्िारे गवम की कोई गुंिाइि निीं। लोगो, तुम्िारे ख़ न, माल व इज़़्ित एक-द सरे पर िराम कर दी गईं िमेिा के धलए। इन ची़िों का मित्व ऐसा िी िै िैसा तुम्िारे इस हदन का और इस मुिारक मिीने का,


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बविेषतः इस ििर में। तुम सि अल्लाि के सामने िाओगे और वि तुम से तुम्िारे कमों के िारे में प छेगा।


● देखो, किीं मेरे िाद भटक न िाना हक आपस में एक-द सरे का ख़ न ििाने लगो। अगर हकसी के पास िरोिर (अमानत) रखी िाए तो वि इस िात का पािन्द िै हक अमानत रखवाने वाले को अमानत पिुूँचा दे। लोगो, िर मुसलमान द सरे मुसलमान का भाई िै और सारे मुसलमान आपस में भाई-भाई िै। अपने गुु़लामों का ख़्याल रखो, िां गुु़लामों का ख़्याल रखो। इन्िें विी जखलाओ िो ख़ुद खाते िो, वैसा िी पिनाओ िैसा तुम पिनते िो।


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● िाहिधलयत (अज्ञान) का सि कुछ मैंने अपने पैरों से कुचल हदया। िाहिधलयत के समय के ख़ न के सारे िदले ख़त्म कर हदये गए। पिला िदला जिसे मैं क्षमा करता ि ं मेरे अपने पररवार का िै। रिीअ़-बिन-िाररस के द ि-पीते िेटे का ख़ न जिसे िन -िु़िैल ने मार डाला था, मैं क्षमा करता ि ं। िाहिधलयत के समय के ब्याि (स द) अि कोई मित्व निीं रखते, पिला स द, जिसे मैं धनरस्त कराता ि ं, अब्िास-बिन-अब्दुल मुत्तधलि के पररवार का स द िै।


● लोगो, अल्लाि ने िर िक़दार को उसका िक़ दे हदया, अि कोई हकसी उत्तराधिकारी (वाररस) के िक़ में वसीयत न करे।


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● िच्चा उसी के तरफ़ मन्स ि हकया िाएगा जिसके बिस्तर पर पैदा िुआ। जिस पर िरामकारी साबित िो उसकी स़िा पत्थर िै, सारे कमों का हिसाि-हकताि अल्लाि के यिाूँ िोगा।


● िो कोई अपना वंि (नसि) पररवतमन करे या कोई गुु़लाम अपने माधलक के िदले हकसी और को माधलक ़िाहिर करे उस पर ख़ुदा की हिटकार।


● क़़िम अदा कर हदया िाए, माूँगी िुई वस्तु वापस करनी चाहिए, उपिार का िदला देना चाहिए और िो कोई हकसी की ़िमानत ले वि दंड (तावान) अदा करे।


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● हकसी के धलए यि िाय़ि निीं हक वि अपने भाई से कुछ ले, धसवा उसके जिस पर उस का भाई रा़िी िो और ख़ुिी-ख़ुिी दे। स्वयं पर एवं द सरों पर अत्याचार न करो।


● औरत के धलए यि िाय़ि निीं िै हक वि अपने पधत का माल उसकी अनुमधत के बिना हकसी को दे।


● देखो, तुम्िारे ऊपर तुम्िारी पजियों के कुछ अधिकार िैं। इसी तरि, उन पर तुम्िारे कुछ अधिकार िैं। औरतों पर तुम्िारा यि अधिकार िै हक वे अपने पास हकसी ऐसे व्यबक्त को न िुलाएूँ, जिसे तुम पसन्द निीं करते और कोई ख़्यानत (बवश्वासघात) न


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करें, और अगर वि ऐसा करें तो अल्लाि की ओर से तुम्िें इसकी अनुमधत िै हक उन्िें िल्का िारीररक दंड दो, और वि िा़ि आ िाएूँ तो उन्िें अच्छी तरि जखलाओ, पिनाओ।


● औरतों से सद्वव्यविार करो क्योंहक वि तुम्िारी पािन्द िैं और स्वयं वि अपने धलए कुछ निीं कर सकतीं। अतः इनके िारे में अल्लाि से डरो हक तुम ने इन्िें अल्लाि के नाम पर िाधसल हकया िै और उसी के नाम पर वि तुम्िारे धलए िलाल िुईं। लोगो, मेरी िात समझ लो, मैंने तुम्िें अल्लाि का संदेि पिुूँचा हदया।


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● मैं तुम्िारे िीच एक ऐसी ची़ि छोड़ िाता ि ं हक तुम कभी निीं भटकोगे, यहद उस पर क़ायम रिे, और वि अल्लाि की हकताि (क़ुरआन) िै और िाूँ देखो, िमम के (दीनी) मामलात में सीमा के आगे न िढ़ना हक तुम से पिले के लोग इन्िीं कारणों से न􀆴 कर हदए गए।


● िैतान को अि इस िात की कोई उम्मीद निीं रि गई िै हक अि उसकी इस ििर में इिादत की िाएगी हकन्तु यि संभव िै हक ऐसे मामलात में जिन्िें तुम कम मित्व देते िो, उसकी िात मान ली िाए और वि इस पर रा़िी िै, इसधलए तुम उससे अपने िमम (दीन) व बवश्वास (ईमान) की रक्षा करना।


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● लोगो, अपने रि की इिादत करो, पाूँच वक़्त की नमा़ि अदा करो, प रे मिीने के रो़िे रखो, अपने िन की ़िकात ख़ुिहदली के साथ देते रिो। अल्लाि के घर (कािा) का िि करो और अपने सरदार का आज्ञापालन करो तो अपने रि की िन्नत में दाजख़ल िो िाओगे।


● अि अपरािी स्वयं अपने अपराि का ज़िम्मेदार िोगा और अि न िाप के िदले िेटा पकड़ा िाएगा न िेटे का िदला िाप से धलया िाएगा ।


● सुनो, िो लोग यिाूँ मौि द िैं, उन्िें चाहिए हक ये आदेि और ये िातें उन लोगों को िताएूँ िो यिाूँ निीं


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िैं, िो सकता िै, हक कोई अनुपजस्थत व्यबक्त तुम से ज़्यादा इन िातों को समझने और सुरजक्षत रखने वाला िो। और लोगो, तुम से मेरे िारे में अल्लाि के यिाूँ प छा िाएगा, िताओ तुम क्या िवाि दोगे? लोगों ने िवाि हदया हक िम इस िात की गवािी देंगे हक आप (सल्लल्लािु अलैहि व सल्लम) ने अमानत (दीन का संदेि) पिुूँचा हदया और ररसालत (ईिद तत्व) का िक़ अदा कर हदया, और िमें सत्य और भलाई का रास्ता हदखा हदया। यि सुनकर मुिम्मद (सल्लल्लािु अलैहि व सल्लम) ने अपनी ििादत की उूँगुली आसमान की ओर उठाई और लोगों की ओर इिारा करते िुए तीन िार


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फ़रमाया, ऐ अल्लाि, गवाि रिना! ऐ अल्लाि, गवाि रिना! ऐ अल्लाि, गवाि रिना।


इस्लाम में मानव-अधिकारों की अस्ल िैधसयत


िि िम इस्लाम में मानवाधिकार की िात करते िैं तो इसके मायने अस्ल में यि िोते िैं हक ये अधिकार ख़ुदा के हदए िुए िैं। िादिािों और क़ान न िनाने वाले संस्थानों के हदए िुए अधिकार जिस तरि हदए िाते िैं, उसी तरि िि वे चािें वापस भी धलए िा सकते िैं। हडक्टेटरों के तस्लीम हकए िुए अधिकारों का भी िाल यि िै हक िि वे चािें प्रदान करें, िि चािें


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वापस ले लें, और िि चािें खुल्लम-खुल्ला उनके जख़लाफ़ अमल करें। लेहकन इस्लाम में इन्सान के िो अधिकार िैं, वे ख़ुदा के हदए िुए िैं। दुधनया की कोई बविानसभा और दुधनया की कोई िुक मत उनके अन्दर तब्दीली करने का अधिकार िी निीं रखती िै। उनको वापस लेने या ख़त्म कर देने का कोई िक़ हकसी को िाधसल निीं िै। ये हदखावे के िुधनयादी िुक़ क़ भी निीं िैं, िो काग़़ि पर हदए िाएूँ और ़िमीन पर छीन धलए िाएूँ। इनकी िैधसयत दािमधनक बवचारों की भी निीं िै, जिनके पीछे कोई लाग करने वाली ताक़त (Authority) निीं िोती। संयुक्त राष्ट्रसंघ के चाटमर, एलानात और क़रारदादों को भी उनके


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मुक़ािले में निीं लाया िा सकता। क्योंहक उन पर अमल करना हकसी के धलए भी ़िरूरी निीं िै। इस्लाम के हदए िुए अधिकार इस्लाम िमम का एक हिस्सा िैं। िर मुसलमान इन्िें िक़ तस्लीम करेगा और िर उस िुक मत को इन्िें तस्लीम करना और लाग करना पड़ेगा िो इस्लाम की नामलेवा िो और जिसके चलाने वालों का यि दावा िो हक ‘‘िम मुसलमान’’ िैं। अगर वि ऐसा निीं करते और उन अधिकारों को िो ख़ुदा ने हदए िैं, छीनते िैं, या उनमें तब्दीली करते िैं या अमलन उन्िें रौंदते िैं तो उनके िारे में कुु़रआन का िैु़सला यि िै हक ‘‘िो लोग अल्लाि के िुक्म के जख़लाफ़ िैसला करें विी काहफ़र


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िैं।’’ (5:44)। इसके िाद द सरी िगि फ़रमाया गया ‘‘विी ़िाधलम िैं।’’ (5:45)। और तीसरी आयत में फ़रमाया ‘‘विी फ़ाधसक़ िैं।’’ (5:47)। द सरे िब्दों में इन आयतों का मतलि यि िै हक अगर वे ख़ुद अपने बवचारों और अपने िैु़सलों को सिी-सच्चा समझते िों और ख़ुदा के हदए िुए िुक्मों को झ ठा क़रार देते िों तो वे काहफ़र िैं। और अगर वि सच तो ख़ुदाई िुक्मों िी को समझते िों, मगर अपने ख़ुदा की दी िुई ची़ि को िान-ि झकर र􀆧 करते और अपने िैसले उसके जख़लाफ़ लाग करते िों तो वे फ़ाधसक़ और ़िाधलम िैं। फ़ाधसक़ उसको किते िैं िो फ़रमांिरदारी से धनकल िाए, और ़िाधलम वि िै िो


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सत्य व न्याय के जख़लाफ़ काम करे। अतः इनका मामला दो स रतों से ख़ाली निीं िै, या वे कुफ़्र में िंसे िैं, या हिर वे हफ़स्क़ और िुु़ल्म में िंसे िैं। ििरिाल िो िुक़ क़ अल्लाि ने इन्सान को हदए िैं, वे िमेिा रिने वाले िैं, अटल िैं। उनके अन्दर हकसी तब्दीली या कमीिेिी की गुंिाइि निीं िै।


ये दो िातें अच्छी तरि हदमाग़ में रखकर अि देजखए हक इस्लाम मानव-अधिकारों की क्या पररकल्पना पेि करता िै।



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