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(प्रश्न 17): स् न्दू: क्य आप ज नते ैं कक स् न्दू िमि के अनुस र सम ज च र अिग अिग परतों में स्वभ स्जत ै? इस सिंबिंि में इलि म क दृस्िकोण क्य ै?


(उत्तर17): मुस्लिम: ूँ: मुझे पत ै, उसकी चच ि स्वलत र से:


ह िंदू िमि में सम ज च र स्वस्भन्न परतों में स्वभ स्जत ै उच्चतम वगि को (ब्र ह्ण) जबके स्नचिे वगि को (शूद्र) क ज त ै, शूद्र अछूत ैं और केवि उच्चतम वगि की सेव के स्िए पैद ककये गए ैं, ह िंदू िमि क द व ै कक {1}ब्र ह्ण परत (पुज री, स्वद्व न और स्शक्षक) भगव न के स्सर से पैद ककये गए ैं,


{2}क्षस्त्रय परत (श सक, योद्ध और प्रश सक) भगव न के थ से पैद ककये गए ैं {3}वैश्य परत (चरव े, ककस न, क रीगर और व्य प री) भगव न के ज िंघ से पैद ककये गए ैं, {4}और शूद्र परत (मजदूर और सेव प्रद त ) भगव न के पैर से पैद ककये गए ैं, इनमें से प्रत्येक क सम ज में अपन वगि और अपनी जग ै िेनदेन और श दी इत्य कद में उन के बीच अिंतर ै!


अनुमस्त की श दी से दूसरे एक में आपस क परतों तीन प्र रिंस्भक :उद रण इसक ै िेककन उन् ें चौथी परत से श दी करने की अनुमस्त न ीं ै, ठीक इसी तर चौथी परत (शूद्र) को उनमें से शीिि तीन वगों से श दी करने की अनुमस्त न ीं ै!


:लपिीकरण प िे से बत ने दृस्िकोण की इलि म


से इस ैं स्नव िस्सत भेदभ व नलिीय बीच के समू ों और व्यस्ियों और वगि :प्रथमसम ज के स्वस्भन्न वगों के बीच नफरत क प्रस र ोत ै स्जससे सम ज क स्वभ जन ोत ै और सम ज में अस्लथरत ोती ै ।


इलि म सम ज और समुद यों में व्यस्ियों और समू ों के बीच वगीय मतभेद दूर करने और अच्छ ई, पुडय, स म स्जक एकत और स्लथरत बन ए रखने के स्िए आय ै!


य लपि ै की इलि म में ककसी भी म नव ज स्त के बीच कोई अिंतर न ीं ै और न ी एक क़ौम क दूसरे क़ौम, र ष्ट्र और अन्य के बीच कोई अिंतर ै!


र कोई सविशस्िम न ईश्वर के स्नकि एक जैस ै क्योंकक सविशस्िम न ने ी सब को पैद ककय ै ईश्वर के स्नकि ककसी व्यस्ि को ककसी स्वयस्ि पर प्र थस्मकत


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न ीं परिंतु ईम न,ईश्वर भस्ि और अच्छे कमों से, स्जस क रण पृथ्वी क अच्छी तर से पुनर्निम िण ोत ै और भूस्म पर भ्रि च र की कमी ोती ै!


पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम, ने फ़रम य :





" ककसी अरबी को ककसी अज मी (ग़ैर अरबी) पर कोई प्र थस्मकत न ीं ै और ककसी अज मी को ककसी अरबी पर कोई प्र थस्मकत न ीं ै और न ककसी गोरे को क िे पर और न ककसी क िे को गोर पर िेककन केवि ईश्वर भस्ि से, िोग आदम से ै और आदम स्मट्टी से "! (अ मद द्व र वर्णित)


इलि म देशों और िोगों को एकजुि करने के स्िए आय ै अल्ि सविशस्िम न क फरम न ै :





"ऐ िोगों मने तुम् ें एक मदि और एक औरत से पैद ककय और तुम् ें श िें और क़बीिे ककय कक आपस में प च न रखो बेशक अल्ि के य ूँ तुम में ज़्य द ईज़़्ित व ि व जो तुम में ज़्य द पर े़िग र ैं बेशक अल्ि ज नने व ि िबरद र ै "[ सूरए हुजुर त 13]


अिंतर बड में व्यवलथ ज ती की िमों अन्य और िमि स् न्दू कक ै लपि य :दूसर ै अन्य िमों की ज ती व्यवलथ में सुि र ककय ज सकत ै जबकक स् न्दू िमि में सुि र न ीं ककय ज सकत क्योंकक स् न्दू िमि में इसे दैवीय और ईश्वरीय ठ र य गय ै ह िंदू िमि से ज ती व्यवलथ ि ने के स्िए लवयिं को स् न्दू िमि से लवतिंत्र करन ोग और इसी से य ब त म िूम ोती ै की ज ती व्यवलथ को भगव न से जोड कर भगव न को भी अन्य य और नलिव द से जोड कदय गय ै!


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और कफर य प्रश्न उठत ै: कक क्य य सिंभव ै कक भगव न अन्य यपूणि और नलिव द ो? क्य य ो सकत ै कक भगव न को अन्य य और नलिव द के चररत्र से जोड ज ए ?


जव ब: रस्ग़ि न ीं सविशस्िम न ईश्वर सत्य न्य य और अच्छे गुणों व ि ै स्जसे कोई नुकस न उत्पन्न न ीं ोत !


- इसस्िए, इलि म अन्य य और नलिव द से स्नम ित भगव न को प क ोने की द वत देत ै सविशस्िम न केवि ककसी ख स व्यस्ियों, समू ों, जनत , र ष्ट्र क ईश्वर न ीं व सविशस्िम न स रे सिंस रों क ईश्वर ै व स रे िोगों को लवीक र करत ैं (यकद इस पर ईम न ि ए और उसक अनुप िन करे) और तौब करे तो व म फ़ कर देत ै और उनके स्िए लवगि क द्व र खोि देत ै!


बस्ल्क उन् ें लवगि में प्रवेश देत ै और उन से र ़िी ो ज त ै व सविशस्िम न सच्च परमेश्वर ै व अपने बन्दों पे कुछ जुल्म न ीं करत सविशस्िम न अल्ि के स्नकि सब बर बर ै और ककसी को ककसी पे प्र थस्मकत न ीं िेककन अल्ि और स्नम ित पे ईम न, ईश्वर भस्ि और अच्छे क म द्व र सविशस्िम न अल्ि के स्नकि सविशस्िम न प्र प्त ककय ज सकत ै!


और जो कुछ भी मैंने स़्िक्र ककय इससे इलि म में नलिव द को स्निेि करने एविं स्वस्भन्न व्यस्ियों समू ों और समुद यों में वगि के मतभेद दूर करने की स् कमत क पत चित ै!


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मुस्लिम: अब स्वलतृत उत्तर देने के ब द स्नम्नस्िस्खत कुछ म त्वपूणि सव ि और अिंतर्निस् त उत्तर आपके समक्ष रखन च त हूूँ:


(1) क्य सविशस्िम न भगव न इनस न आदमी और अन्य प्र स्णयों क सृस्िकत ि न ीं ै, क्य व उनक मु कफ़ि न ीं और क्य व अकेि ी इस ब्रह् िंि क म स्िक न ीं ै ?! उत्तर: क्यों न ीं।


(2) क्य सविशस्िम न ईश्वर अकेि ी मनुष्य को बेशुम र नेमत से न ीं नव ़ि उत्तर: क्यों न ीं ?!


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(3) क्य सविशस्िम न ईश्वर के कुदरत में इन म और सज न ीं ै ?!


उत्तर: क्यों न ीं।


(4) तो क्य इसके ब द अल्ि के स थ ककसी को उसकी इब दत य उिूस् यत में शरीक ठ र ने की अनुमस्त ै?


उत्तर: स्बिकुि न ीं, सविशस्िम न ईश्वर एक ी परमेश्वर ै स्जस ने मनुष्य को स री नेमतों से नव ़ि , उसी के दलते क़ुदरत में इन म और सज ै, स्सफि सविशस्िम न ईश्वर ी इब दत के ि यक ै!


(5) इन दोनों में से व्य पक कदम ग के करीब कौन स ै: कई देवत ओं के अस्लतत्व में स्वश्व स स्वस्भन्न स्चत्रों में भगव न क स्चत्रण और स्वस्भन्न देवत ओं क स्वस्भन्न तरीके से पूज (स्वस्भन्न देवत ओं के पत्थरों की स्वस्भन्न मूर्तिय िं) अन्यथ छस्वय ूँ सूयि की श्रद्ध और पूज और ग्र ों, स्वस्भन्न ज नवरों ग यों और पेडों ... की श्रद्ध और पूज अवम नन को कम करत ै? य सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और कफर िोगों क एकजुि ोकर एक भगव न की पूज और प्र थिन कस्मयों और ख स्मयों एविं कुरूप कृत्यों से सविशस्िम न को प क म नन और उसकी श्रद्ध और पूज ?


उत्तर: इसमें कोई शक न ीं ै कक सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक भगव न की पूज और प्र थिन करन कस्मयों और ख स्मयों एविं कुरूप कृत्यों से सविशस्िम न को प क म नन और उसकी श्रद्ध और पूज करन थोडी सी भी स्वपक्षी के स्बन व्य पक कदम ग के करीब ै!


(6) इन दोनों में से शुद्ध वृस्त्त और शुद्ध आत्म की तरफ ककस क झुक व ै: बहुदेवव दी स्वश्व स और पूज की स्वस्शि तरीक में अिंतर और अभ व स्वपरीत? य सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक ी रूप त्मकत में एक ी ईश्वर की पूज ?


उत्तर: स्नलसिंदे शुद्ध वृस्त्त और शुद्ध आत्म क झुक व सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक ी रूप त्मकत में एक ी ईश्वर की पूज की तरफ ै !


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इन प्रश्नों और उत्तरों के ब द आप को ज नने के स्िए क फी ै कक यकद आप स् न्दू ग्रन्थों क अध्ययन करेंगे तो आप प एिंगे कक एक ईश्वर (सविशस्िम न ईश्वर) में स्वश्व स करने और उसके के स थ स्शकि न करने क इलि म के मूि सिंदेश में स् न्दू ग्रन्थों क सिंगत ै इसी तर छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न क स्चत्रण अस्नि ै!


और य इलि म के मुत स्बक ै, ईश्वर सविशस्िम न फरम त ै:





" ऐ नबी आप फरम दीस्जये, " व अल्ि ै जो यकत ै, अल्ि स्नरपेक्ष (और सव िि र) ै, उसके औि द न ीं, और न व ककसी क औि द ै, और न कोई उसके बर बर क ै" {अि-इखि स:1-4}


और कफर पत चित ै कक ईश्वर के स थ अन्य देवत ओं के अस्लतत्व में स्वश्व स उसकी मूर्तिय िं इिस्तय र करन और उसकी पूज करन ै स् न्दू ग्रिंथों की स्शक्ष और इलि म के स्वपरीत ै!


इसके अस्तररि अिंस्तम समय में पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क सभी नस्बयों और दूतों क अिंस्तम बनकर आने क उपदेश ह िंदू ि र्मिक ककत बों में मौजूद ै!


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(प्रश्न): स् न्दू: आप ने अपनी ब तचीत में क कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क सभी नस्बयों और दूतों क अिंस्तम बनकर आने क उपदेश ह िंदू ि र्मिक ककत बों में मौजूद ै, क्य आपको इस ब रे में पूणि स्वशव स ै? और य क्य ै?


(मुस्लिम): स्नस्ित रूप से ूँ, य कई लथ नों में ै, और मैं प िे इसे लपि करन च त हूूँ:


ईश्वर सविशस्िम न क्रस्मक अवस्ि में समय समय पर अपने नस्बयों और दूतों को स्वस्भन्न देशों और िोगों के स्िए भेजत ै त कक नबी और दूत अपने िोगों की स्वशेि रूप से स् द यत कर सकें, अिंस्तम स्मशन को छोडकर स्जसमें ़िरत मु म्मद


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सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम आए कक व सभी िोगों के स्िए र जग और र समय के स्िए नबी ैं क्योंकक य स्नष्किि सिंदेश ै, इसस्िए, पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम नस्बयों और रसूिों में अिंस्तम पैगिंबर ैं!


इसके अि व यकद स्पछिी ककत बों की बत ई हुई ब तें क़ुर न करीम से मेि ख ती ैं तो म उसक स्वश्व स करते ैं और अगर स्पछिी ककत बों की बत ई हुई ब तें क़ुर न करीम से असिंगत ैं तो म उसक स्वश्व स न ीं करते ैं इसके इि व स्जसक कुर न करीम और दीस शरीफ में उल्िेख न ीं ै म न उसक स्वश्व स करते ै और न ी उसे झुठि ते ैं !


और अिंस्तम समय में ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की बहुत सी लपि भस्वष् यव स्णय िं मौजूद ैं स्जसमें स् न्दू ग्रिंथ भी श स्मि ैं:


1- भस्वष् यव णी (नर शिंस) ह िंदुओं के च र पुलतकों में से प्रत्येक में इस क स़्िक्र मौजूद ै ((ऋग्वेद- यजुवेद- स मवेद- अथविवेद))


नर शिंस दो शब्दों से स्मिकर बन ै: प ि शब्द (नर) ै, स्जसक अथि ै: पुरुि - दूसर शब्द (आशिंस), स्जसक अथि ै: "प्रशिंस्सत"


ज्ञ त य हुआ कक स्जस व्यस्ित्व को प्रशिंस के स्िए चुन गय ै व व्यस्ि प्रशिंस्सत ोग और मनुष्य की ज स्त से ोग , और य स्वकदत ै कक पैगिंबर क न म "मो म्मद" ( मद) से स्िय गय ै, स्जसक अथि ै: “प्रशिंस्सत मनुष्य और य सब अच्छी तर से ज नते ैं कक पैगिंबर क दूसर न म "अ मद" ै और य "मु म्मद" न म क पय िय ै


और मो म्मद न म भी ( मद) से स्िय गय ै स्जसक अथि ै: प्रशिंस्सत मनुष्य! अथ ित नर शिंस क अरबी अनुव द मु म् मद ोत ै!


और अगर इसके अि व क ीं और पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम की भस्वष् यव णी न ीं ोती तो लपित एविं लपिव कदत के स्िए केवि य ी क फी थ परिंतु नर शिंस के स्ववरण अनुस र बहुत स रर जग ों पे पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की भस्वष् यव स्णय िं मौजूद ैं! जैसे कक:


ऋग्वेद: ((मडिि: 1/ सूि 106 सिंख्य : 4))


ऋग्वेद: ((मडिि: 5/ सूि 5 सिंख्य : 2))


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2- स् न्दू ग्रिंथों में (कस्ल्क) न म से उल्िेस्खत अिंस्तम मैसेंजर एविं सभी पूवि पैग़म्बरों के अिंस्तम के गुणों क विव्य:


अिंस्तम मैसेंजर और उसकी स्वशेित ओं की भस्वष्यव णी ग्रिंथों में:


((ककत ब :कस्ल्क पुर ण / खिंि:2 / सिंख्य : 4,5,7,11,15))


-पुलतक में क ै कक उनके म त क न म (सुमस्त) ोग और सिंलकृत में इस शब्द क अथि: श िंस्त और सुरक्ष ै


और य ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम की म ूँ क न म: (अमीन ) ै स्जसक अथि: श िंस्त और सुरक्ष ै !


-(ककत ब में) य उल्िेस्खत ै कक उनके स्पत क न म (स्वष्णुयश) ोग और शब्द (स्वष्णु) क अथि ै: भगव न और शब्द (यश) क अथि ै: गुि म, अरबी भ ि में इस क अथि ै: (अब्दुल्ि ) और य पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के स्पत क न म ै !


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व श िंस्त और सुरक्ष के देश में पैद ोग और य ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क जन्मलथ न: (मक्क ) ै, और (मक्क ) को सिंरक्षक देश क ज त ै, क्योंकक य श िंस्त और सुरक्ष क एक देश ै।


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व स विभौस्मक उपदेशक ोग , और य ी वणिन कुर न में भी पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के ब रे में आय ै, ईश्वर सविशस्िम न फरम त ै:





" ऐ ग़ैब की िबरें बत ने व िे (नबी) बेशक मने तुम् ें भेज स़्िर न स़्िर और िुशिबरी देत और िर सुन त " [सूरए अ ़ि ब:45]


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक उसे पवित पर र लयोद्घ िन (इि म) प्र प्त ोग और पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम को नूर पवित पर (इि म) र लयोद्घ िन प्र प्त हुआ


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-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व उत्तर की ओर पि यन करेग और कफर व पस आ ज एग और य सब को ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद (मक्क ) से (मदीन ) उत्तर की ओर स् जरत ककये थे और कफर स्वजय के कदन मक्क िौि आए।


और कफर य लपि ो ज त ै कक य बश रतें मैसेंजर ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के स थ स्वशेि ै!


3- और कई लथ नों में ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम को उनके दूसरे न म "अ मद" के स थ उल्िेख ककय गय ै "अ मद" क अथि ै: ईश्वर क प्रशिंसक, उल्िेस्खत सथ नो में से कुछ क स्जक्र !


- ऋग्वेद: ((मडिि: 8/ सूि 6 सिंख्य :10))


और इसके इि व भी बहुत सी बश रतें ैं स्जस क म प िे भी स़्िक्र कर चुके ैं जो अिंस्तम समय में नस्बयों के अिंस्तम ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की भस्वष्व णी करती ैं!


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(प्रश्न): स् न्दू: इलि म में भगव न की स्वशेित एिं क्य ैं


(उत्तर): मुस्लिम: इलि म िमि क सन्देश भगव न के अच्छे गुणों उसकी म नत एविं सुिंदरत पे ईम न ि न ै और य स रे गुण अच्छे ,पूणित और सम्म नत के गुण ैं इसमें कोई कमी न ीं आती और य स्सफि एक ी ईश्वर के योग्य ै (स्जसक कोई स थी न ीं ै) स्जसके दलते कुदरत में सृजन,रचन और सिंरक्षण ै। और स्जसके दलते कुदरत में अकेिे स री चीजों क इस्ततय र ै और य भगव न सविशस्िम न ै !


-सविशस्िम न ईश्वर की स्वशेित ओं में से कुछ क स्ववरण:


सन तन: इसक मतिब य ै कक सविशस्िम न ईश्वर प ि ै उस से प िे कोई न ीं और अिंस्तम ै उसके ब द कोई न ीं व न सोत ै और न ी अनदेखी करत ै व हजिंद ै उसे मौत न ीं आती जग तथ ़िम ने के अिंत ोने से उसक अिंत न ीं ोत व ी जग और समय क स्नम ित ै!


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- योग्यत : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न पूणि शस्ि क म स्िक ै, सविशस्िम न सब कुछ करने में सक्षम ै, व अगर कुछ करने क इच्छ करत ै तो उस से क त ै कक ो ज और व ची़ि ो ज ती ै, और सविशस्िम न ईश्वर की छमत पर दि ित करने व िी आस र बेशुम र ै (रचन में व ब्रह् िंि क स्नम ित ै स्जसमें म नव सस् त मौजूद त और जीव सभी श स्मि ैं और रचन त्मकत में आत्म , मन, कदि और जरिि आिंतररक व्यवलथ सस् त... अन्यथ सब श स्मि ै)!


- स्वद्य : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न सब कुछ ज नने व ि ै उसक ज्ञ न जग और समय र ची़ि को इ त ककये हुए ै(अतीत- वतिम न- भस्वष्य) व सविशस्िम न ईश्वर एक अकेि , स्नम ित और अनस्लतत् व से स री चीजों को अस्लतत्व में िेन व ि ै!


- बुस्द्धमत्त : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न बुस्द्धम न ै और उसकी बुस्द्ध म न एविं पूणि ै !


- इर द : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न जो कुछ भी च त ै करत ै और य उसके इन म और न्य य के रूप में ै क्योंकक व र ची़ि क ज नने व ि कम ि और स् कमत व ि ै!


- क्षम , करुण और उद रत : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न क्षम , करुण और उद रत पसिंद करत ै यकद कोई बन्द अपने प प और चूक की पि त प करत ै ईश्वर पर ईम न ि त ै उसकी आज्ञ क प िन करत ै तो व अपने बन्दों की प प और चूक म फ कर देत ै उसे अपनी ऱि मिंदी से नव ़ित ै और उसके स्िए जन्नत के दरव ़िे खोि देत ै जन्नत ज ूँ ढेर स रे नेमत ैं और ज ूँ मेश मेश के स्िए र न ै!


- सत्य और न्य य: इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न सत्य और न्य य पसिंद करत ै और अपने बन्दों पे ़िर ि बर बर भी अत्य च र न ीं करत और न ी उनके बीच अिंतर करत ै, म नव ज स्त में ककसी के बीच कोई फकि न ीं ै और इश्वर के स्नकि ककसी को भी ककसी दूसरे पे प्र थिस्मकत न ीं ै परिंतु ईश्वर भस्ि, ईम न एविं अच्छे कमों से!


और एक की ग़िती दूसरे पे ग्र ण न ीं ककय ज सकत यद्यस्प वे म त स्पत ी क्यों न ों , र आदमी खुद के स्िए स्जम्मेद र ै, अगर कोई ़िर ि बर बर भी


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अच्छ क म करत ै तो उसक इन म कय मत के कदन प एग (उस कदन िोगों को मौत के ब द दुस्नय में उनके क यों के जव ब दे ी के स्िए और क यि अनुस र भुगत न के स्िए दोब र ह़ििंद ककय ज एग ) और जो ़िर ि बर बर भी बुर क म करेग उसे उसक जव बदे आयोस्जत ककय ज एग !


- श िंस्त: सविशस्िम न ईश्वर श िंस्त पसिंद करत ै और अपने बन्दों को जमीन पर श िंस्त लथ स्पत करने क आदेश देत ै, श िंस्त लथ स्पत करने के क रण को इस्ततय र करने क आदेश देत ै और उन् ें अन्य य और अत्य च र से मन फरम त ै इसी तर श िंस्त और सुरक्ष लथ स्पत ो सकती ै, और स विजस्नक रूप से इलि म में ग्रीटििंग के ज्ञ न को प च नने की आवश्यकत ै, इलि म में ग्रीटििंग श िंस्त ै इस अथि में कक ग्रीटििंग करने व ि क त ै (तुम पर श िंस्त ो) और उत्तर देन व ि क त ै (तुम पर श िंस्त ो) इस से सुरक्ष और स्वश्व स क भ व पैद ोत ै!


और इलि म में य लपि आय ै कक पूणित में, सुिंदरत में, प्रस्तष्ठ में,म नत में, त कत में, प्रव की क्षमत में,ज्ञ न की क्षमत में, और कम िे स् कमत में.. और अन्य ईश्वर की अच्छी स्सफ़तों में सविशस्िम न अल्ि के तर कोई भी न ीं!


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(प्रश्न): स् न्दू: कुर न प क पर ईम न ि न क्यों जरूरी ै (अिंस्तम आसम नी ककत ब के रूप में)?


(उत्तर): मुस्लिम: इसक क रण य ै कक कुर न सचची और पस्वत्र ककत ब ै उसकी सच्च ई और पस्वत्रत क सबूत स्नम्न ै:


- पस्वत्र कुर न की स्शक्ष सविशस्िम न ईश्वर में शुद्ध स्वश्व स पे श स्मि ै(जो सिंस्क्षप्तत में आस नी के स्िए सूचीबद्ध ै) और ख स्िस द वत एविं म गिदशिक पूज पे श स्मि ै (जो आत्म को अनैस्तकत की चररत्र से बिन्दी, नवीनीकरण, सिंलतुस्त एविं पस्वत्रत की अनुदेश देत ै) जो स ी स्वि न, उच्च स्शक्ष , अच्छ म गिदशिन क अनुदेश देत ै स्जस से म नव जीवन ईश्वर के बत ए हुए तरीके पर लथ स्पत ोत ै (सविशस्िम न ईश्वर) स्जसके द्व र सम्पूणि समलय ओं क सम ि न ोत ै और य सब पस्वत्र क़ुर न की शैिी की सुिंदरत , सिंगरठत ढिंग से स्परोय हुआ, म न व स्ग्मत , शब्दों की सिीकत , सिंपूणि कवरेज एविं भव्यत के क रण ै ,


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और य सब इस तरीके से ै कक मनुष्य उस जैस एक सूरत भी ि ने में असमथि ैं (पस्वत्र कुर न की सूरत जैस )।


-2 पस्वत्र कुर न और दीस शरीफ ने प्रभ वश िी वैज्ञ स्नक तथ्यों की खबर 1400 से भी अस्िक विों प िे दी ै (आक श ,पृथ्वी, प ड, समुद्र, म नव, पशु, पक्षी और पौि में) स्वशेि रूप से सृजन के म मिे में, और ऐसे समय में जब ककसी को इसके ब रे में थोडी भी ज नक री न ीं थी , कफर उसकी प्र म स्णकत और स्वश्वसनीयत की खोज के स्िए एिव िंलि तकनीक के स थ आिुस्नक स्वज्ञ न आय स्जस से इस ब त की गव ी स्मि गई कक य ककत ब (पस्वत्र कुर न) सविशस्िम न ईश्वर क शब्द ै और स्जसमे कोई कमी न ीं आती !


सृजन ,ब्रह् िंि के उद्गम एविं ईश्वर द्व र आक श और पृथ्वी बन ने से सम्बिंस्ित वैज्ञ स्नक तथ्यों क उद रण इसी प्रक र भ्रूण की रचन और इसके स्वक स के चरणों क उद रण:


प ि उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(क्य क कफ़रों ने य िय ि न ककय कक आसम न और ़िमीन बन्द थे तो मने उन् ें खोि और मने र ज नद र ची़ि प नी से बन ई तो क्य वो ईम न ि एिंगे) [सूरए अिंस्बय :30]!


: अथि क " थे बन्द " "كانتا رتقا"


" बन्द थे " क अथि: सिंयुि आपस में जुडे, य स्न आसम न और ़िमीन दोनों आपस में जुडे थे, अिग न ीं थे!


:अथि क " खोि " " ففتقناهُا "


" खोि " क अथि: उन् ें अिग ककय , य स्न आसम न और ़िमीन को सिंयुि के ब द अिग कर कदय !


पस्वत्र कुर न की आयतें बत ती ैं कक सविशस्िम न ईश्वर ने आक श और पृथ्वी की रचन कैसे की और (सविशस्िम न ने) उनके स्नम िण क प्र रिंभ कैसे ककय , और


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पस्वत्र कुर न की आयतें सविशस्िम न ईश्वर की बडी सृस्ि और इस बहुप्रशिंस्सत ब्रह् िंि के स्नम िण की प्र रिंस्भक कैकफयत में स्वच र एविं हचिंतन की द वत देती ै , त कक अपने स्नम ित को प च न सकें और उस पे उसके म न गुणों पे उसकी बहुमुखी प्रस्तभ और क्षमत पे ईम न ि सकें !


पस्वत्र कुर न की आयत ने में बत य ै कक आक श और पृथ्वी प िे आपस में एक ची़ि की तर स्मिे हुए थे क़ुर न की आय त ै " आसम न और ़िमीन बन्द थे " कफर उन दोनों को अिग ककय गय क़ुर न की आय त ै " मने उन् ें खोि " !


सच्च ई की आयतों की कुर न से पस्वत्र तथ्य वैज्ञ स्नक ने खोज की स्वज्ञ न आिुस्नक पे वैज्ञ स्नकों के युग आिुस्नक इस सच्च ई की कुर न पस्वत्र और िग य पत क स स्बत ो गय और कफर य ीं से (म न स्वलफोि) के स्सद्ध िंत की बुस्नय द पडी य इस आिुस्नक युग में प्रचस्ित स्सद्ध िंत ै और य सब ब्रह् िंि के स्वलत र और फैि व की खोज के ब द हुआ ै।


स्सद्ध िंत (म न स्वलफोि) क त ै: आज जब ब्रह् िंि एक दूसरे से दूर ो र ै तो अवश्य ककसी कदन सिंस्मस्ित थ और अगर म इन आक शगिंग ओं के स्वपरीत कदश से आज दूर ो र े कदश में प ठ्यक्रम की कल्पन करते ैं


तो ज्ञ त ोत ै कक य एक-दूसरे के करीब से गश्त कर र े ैं और कुि आक शगिंग ओं के घिक आक र के बर बर एक िुकड म िूम ोते ैं (एक दूसरे से !)"थे बन्द ़िमीन और आसम न " मुत स्बक के शब्द के भगव न हुआ जुड


और भौस्तक स्वज्ञ स्नयों क क न ै कक: जब य आक शगिंग एक दूसरे के करीब ोते ैं और एक दूसरे में स्मि ज ते ैं तो उसके खिंि में बडे पैम ने पर वृस्द्ध ो ज ती ै और उसके आकििण की तीित अस्िक ो ज ती ै और चोिी द मन क स थ ो ज त ै (भगव न के शब्द के मुत स्बक" आसम न और ़िमीन बन्द थे"), और स्सत रों से स्मि गरठत आक शगिंग ओं के बीच क ररि लथ न ग यब ो ज त ै, कफर खुद स्सत रों पर गुरुत्व कििण दब व बढ़ ज त ै और इसी तर दब व ज री र त ै य िं तक कक ब्रह् िंि के घिक स मग्री परम णु आक र में पररवर्तित ो ज त ै कफर दब व ज री र त ै य िं तक कक स्जतन सिंभव ो य एिम छोि से छोि ोत ज त ै कफर स्वलफोि ो ज त ै (भगव न के शब्द के मुत स्बक " तो मने उन् ें खोि " ) और इस अत्यस्िक एिम के प ्सि अत्यस्िक


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दब व और स्वश ि ऊज ि के स थ रेस्िएशन के रूप में फैि ज त ै और ठिंि ोन शुरू ो ज त ै और उससे िीरे-िीरे आक श और पृथ्वी क प्रशिंस्सत ब्रह् िंि क स्नम िण ोत ै!


पस्वत्र कुर न के शब्द सिीकत और सुवि से ककतन भरपूर ै?!! और य ककस ची़ि पे इिंस्गत करत ै?!!


स्नस्ित रूप से, य पस्वत्र कुर न की स्वश्वसनीयत पर इिंस्गत करत ै, और य परमेश्वर की ओर से अपने सच्चे नबी नस्बयों और रसूिों के अिंस्तम ़िरत मो म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम पे प्रगि इि म ै!


*******


दूसर उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





परमेश्वर फरम त ै:(कफर आसम न की तरफ़ क़लद फ़रम य और व िुिंआ थ ) [सूरए फुलसीित:11]


इस आय त में क गय ै कक प्र रिंभ में आक श एक िुआिं थ कफर ईश्वर िुआिं ब्रह् िंिीय प िी स्वज्ञ न और आिुस्नक ! बन य आक श उसे ने सविशस्िम न ब्रह् िंि द्व र ईश्वर सविशस्िम न य कक गय ो सक्षम कक्रय में की खींचने स्चत्र केके उद्भव की शुरुआत में म न स्वलफोि के पररण मलवरूप ै जैस कक कस्थत ब्रह् िंि के ब री स् लसे में उसकी पुर त स्त्वक अवशेि प ए गए जो इस ब त की पुस्ि करत ै कक प्र रिंभ में आक श एक िुआिं थ कफर ईश्वर सविशस्िम न ने उसे आक श बन य जैस कक भगव न के शब्द से म िूम ोत ै "कफर आसम न की तरफ़ क़लद फ़रम य और व िुिंआ थ " !


पस्वत्र कुर न के शब्द सिीकत और सुवि से ककतन भरपूर ै?!! और य ककस ची़ि पे इिंस्गत करत ै??


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तीसर उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(जब तुम् रे रब ने आदम की औि द की पीठ से उनकी नलि स्नक िी और उन् ें िुद उनपर गव ककय )[ सूरए अअर फ़:172]


पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम फरम ते ैं:





" परमेश्वर ने आदम {अिैस् वसल्िम } की पीठ से अनुबिंि स्िय ै.. कफर उनके सुल्ब से प्रत्येक विंश को ब र खींच स्िय .." [वणिनकत ि अननेस ई]


उल्िेस्खत सूर और दीस शरीफ इस ब त को लपि करती ैं कक ़िरत आदम के सभी विंश (स्जन् ें अल्ि ने सभी मनुष्यों के प िे स्पत और प्रथम इिंस न बन य ) उनकी सृस्ि के समय उनके सुल्ब में मौजूद थे!


गुणसूत्र आनुविंस्शक भ्रूण एविं क्रोमोसोमि स्वज्ञ न ने आिुस्नक ै ककय स स्बत ने के वैज्ञ स्नकों भ्रूणस्वज्ञ न कफर और , ै की खोज की भूस्मक कीकक अस्ग्रम से ी मनुष्य की रचन अपने म त स्पत के शुक्र णु से पूविस्नि िररत ोती ै (स्नर्दिि और लपि ोती ै) और य स्वलत र करत हुआ म त -स्पत और द द -द दी के जेनेरिक कोि द्व र स्पछिे सकदयों तक ़िरत आदम अिैस् लसि म तक पहुूँच ज त ै (मनुष्य के प िे स्पत ), और य आनुविंस्शक कोि को उच्च सिीकत से क्रम देस्शत ककय ै और य गुणन कोस्शक ओं से जीस्वत न स्भक कोस्शक के अिंदर मुड हुआ ै, इसक मतिब य ै कक: ़िरत आदम के बेिों के र सदलय उनकी रचन के समय अपने स्पत आदम के जेनेरिक्स कोि में उपस्लथत थे! और य ीं से उल्िेस्खत पस्वत्र क़ुर न की आय त और दीस शरीफ से सिंगतत क प्रदशिन ोत ै (इस हबिंदु पर म पूवि ब त कर चुके ैं) स थ स थ आिुस्नक स्वज्ञ न की खोज भी इस तक पहुिंच चुकी ै!


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चौथ उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(क्य आदमी इस घमिंि में ै की आ़ि द छोड कदय ज एग [36] ककय व एक बूिंद न थ उस मस्ण क कक स्गर ई ज ए [37]) {सूरए ककय म ३६- ३७}


अथि "क्य आदमी इस घमिंि में ै की उसे आ़ि द छोड कदय ज एग ": क्य इिंस न य सोचत ै की उसे बग़ैर ककसी स् स ब ककत ब के भगव न के आदेश क प िन ककये बगैर सविशस्िम न ईश्वर के आदेश की आज्ञ क ररत और अवज्ञ के स् स ब ककत ब के बग़ैर आ़ि द छोड कदय ज एग (इन म य सज ) की अद यगी के बग़ैर आ़ि द छोड कदय ज एग !


उत्तर,य ै कक: इिंस न को सविशस्िम न ईश्वर के आदेश की आज्ञ क ररत के स्बन रस्ग़ि आ़ि द न ीं छोड ज सकत और रस्ग़ि स्बन स् स ब ककत ब के उसे आ़ि द न ीं छोड ज एग आज्ञ क ररत और अवज्ञ पर (इन म य सज ) के बग़ैर आ़ि द न ीं छोड ज एग और परन्तु उस से प्रश्न ककय ज एग और जव बदे आयोस्जत ककय ज एग और जो कुछ उसने ककय उसक बदि प एग तो स्जस ने थोड भी नेकी ककय ोग उसे उसक इन म और सव ब स्मिेग और स्जस ने थोड भी बुर क म बुर क म ककय ोग तो उसे उसक जव बदे आयोस्जत ककय ज एग ।


""शुक्र णु" क अथि: نُطْفَةً"


जि जो पुरुिों और मस् ि ओं के जन्म क क रण ै !


"गभि में शुक्र णु क बूिंद" क अथि: "ن َُٰ "


जि जो भ्रूण बन ने और जन्म क क रण ो!


य नी: म नव रचन क प्र रम्भ एक वीयि से हुआ (आक र में बहुत छोि ) स्जस में व जि भी श स्मि ै जो जन्म क क रण ै और इस प नी में बहुत स रे शुक्र णु ोत ै (शुक्र णु आदमी के प नी सस् त)।


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आिुस्नक स्वज्ञ न द्व र स्सद्ध ब तें पस्वत्र कुरआन की आयत के अनुरूप ै, पस्वत्र कुरआन की आयत सिंदर्भित करत ै कक भ्रूण की रचन वीयि के (अस्िकतर- एक शुक्र णु )एक शुक्र णु से ोत ै, भगव न के शब्द के अनुस र "शुक्र णु" व्यस्ियों को सिंदर्भित करत ै सिंग्र को न ीं य स्न भ्रूण की रचन वीयि में से एक शुक्र णु से ोत ै सब से न ीं (वीयि ि खों शुक्र णु को श स्मि ोत ै) पस्वत्र क़ुर न ने बहुवचन (शुक्र णुओं) क उपयोग न ीं ककय परिंतु एकवचन क उपयोग ककय ै "शुक्र णु" अस्िकतर गभ िवलथ एक शुक्र णु क मस् ि के जनन िंग कोस्शक में एक अिंि से स्मिकर ोत ै और इस अिंिे क चयन अिंि शय के ज रों अडिों के बीच ोत ै और य शुक्र णु क अिंिे से स्मिकर ोत ै!


और य ीं से आिुस्नक स्वज्ञ न की खोज एविं पस्वत्र कुरआन की आयत में स मस्त ऩिर आती ै स्जस से पस्वत्र क़ुर न के शब्द की सिीकत ,सुवि और आिुस्नक स्वज्ञ न के स्सद्ध ककये गए खोज से स मस्त क पत चित ै!


प िंचव िं उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(कफर उसकी नलि रखी एक बे क़द्र प नी के िुि से से)[सूरए सज्द :8]


""शुक्र णु" क अथि: سُ ا لَ ا لة "


वीयि क स र िंश, स्नकिे हुए (चयस्नत) प नी क खुि स जो प्रसव क क रन ोत ै, य व ी शुक्र णु ै स्जसे स्पछिी आय त ने लपि ककय ै (स्जसक उल्िेख म ने ऊपर दूसरे उद रण में ककय ै) ।


आयते करीम क अथि: म नव की पैद इश की शुरुआत भ्रूण के रूप में शुक्र णु से (प नी के िुि से से) ोती ै (चयस्नत) स्नकिे हुए प नी क खुि स जो प्रसव क क रण बनत ै!


आिुस्नक स्वज्ञ न ने य स स्बत ककय ै कक शुक्र णु (आदमी के वीयि क शुक्र णु) से भ्रूण की तििीक़ ोती ै और इसी से म नव विंशज फैित ै और य पूरी तर कुर न के मुत स्बक ै, पस्वत्र क़ुर न ने इस ब त की तरफ इश र शब्द "विंश" क प्रयोग करके ककय ै भगव न क शब्द "विंश" क स्नम्न में स्ववरण:


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