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(प्रश्न9): स् न्दू: ह िंदू िमि ग यको पस्वत्र म नते हुए उसकी वि तथ म िंस ख ने पर प्रस्तबिंि िग त ै जबकक इलि म उसकी(और अन्य श क री ज नवरों क )वि तथ म िंस ख ने को अस्िकृत करत ै इस ब रे में इलि म क क्य दृस्िकोण ै?
(उत्तर9): मुस्लिम: ग य इलि म में अन्य प ितू ज नवरों की तर ै स्जसे सविशस्िम न ईश्वर ने म नव म नस के ि भ के स्िए बन य ै त कक इिंस न उसके दूि, म िंस और ख ि इत्य कद से ि भ उठ सके और अगर ऐस न ीं ै तो स् न्दू उसके म िंस को छोड दूि इत्य कद से क्यों ि भ उठ ते ैं? चिें सविशस्िम न ईश्वर की सृस्ि पर थोड स्वच र करते ैं कक म नव और अन्य प्र स्णयों को उसने ककस प्रक र पैद ककय :यकद म ग य सस् त श क री पशुओं को देखें तो म प एिंगे कक ईश्वर ने उसके द िंत फ्िैि बन य ै (नुकीिे न ीं बन य ) और उसके आिंतों को पतिी बन य (मोिी न ीं बन य ) और य सब उसके श क री इत्य कद आ र पैिनि सूि करने के स्िए ै!
इससे लपि सिंकेत स्मित ै की इस तर के ज नवरों को इस प्रक र के आ र(श क री इत्य कद) ख ने और पोिण करने की अनुमस्त ै!यकद म म िंसभक्षी पशु को देखें तो म प एिंगे कक ईश्वर ने उसके द िंत नुकीिे और आिंतें मोिी बन य ै और य सब उसके आ र पैिनि के अनुरूप ै।
इससे लपि सिंकेत स्मित ै की इस तर के ज नवरों को इस प्रक र के आ र(म िंस) ख ने और पोिण करने की अनुमस्त ै!
और यकद म मनुष्य को देखें तो म प एिंगे कक ईश्वर ने इनके द िंत फ्िैि एविं नुकीिे बन य ै तथ ईश्वर ने इनकी आिंतें पतिी और मोिी बन य ै और य सब उनके आ र पैिनि के अनुरूप ै।
इससे लपि सिंकेत स्मित ै की मनुष्य को भोजन के स्िए दोनों प्रक र के ख नों की अनुमस्त ै (सस्ब्जय िं इत्य कद और म िंस, गौम िंस सस् त) और दोनों प्रक र के ख ने पोिण करने की अनुमस्त ै(अल्ि के र म ककये हुए को छोड कर स्नक रक और नुकस नदे म िंस में से जैसे सड हुआ म िंस,मृत म िंस और पोकि..गिंभीर बीम ररयों की बडी सिंख्य के क रण स्जसक आिुस्नक स्वज्ञ न नेस्िलकवर ककय ै)
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( प्रश्न10): स् न्दू: इलि म क्यों मनुष्य, स्चत्रों, मूर्तियों, ग यें और अन्य ज नवरों एविं पररसिंपस्त्तयों में सम ि न के स्सद्ध िंत को स्निेस्ित करत ै (और उनकी पूज एविं श्रद्ध को अवैस्ित करत ै)?
(उत्तर10): मुस्लिम: य लपि ै कक सम ि न के स्सद्ध िंत (मूर्तियों प्रस्तम ओं और ज नवरों एविं अन्य में भगव न क सम ि स्नत ोकर एक ो ज न ) एकेश्रव द के स्वरूद्ध ै जो स्नम ित ईश्वर को अपने प्र स्णयों की अिग अिग छस्वयों में उपस्लथत ोने की आलथ को जन्म देत ै - प्रत्येक अपनी इच्छ अनुस र - य ी क रण कोई सम ि स्नत स्सद्ध िंत सूयि, त रे और ग्र ों में समझत ै तो कोई ग यों और अन्य पशुओं में म सूस करत ै!
इसके अि व कोई सम ि स्नत स्सद्ध िंत मूर्तियों प्रस्तम ओं और पत्थरों में देखत ै तो कोई पेडों और पौिों में म सूस करत ै…और बहुत से िोग ऐसे ै जो सम ि स्नत स्सद्ध िंत अशुद्ध एविं बदबूद र लथ नों सस् त र वलतु में म सूस करते ैं!
स्पछिे एक प्रश्न के उत्तर में लपि ककय गय ै की स्नम ित और प्र णी के बीच, बन ने व ि और जीविंत के बीच बड अिंतर ै दो अस्तव द के बीच पूणि सम नत न ीं ककय ज सकत , कफर भी प्र णी और स्नम ित के बीच सम नत की ब त करन अन्य यपूणि और प्र णी द्व र स्नम ित क बड अपम न ै!
और कफर प्रश्न य ै कक:
- क्य य म न परमेश्वर के योग्य ै कक अपने प्र स्णयों में से ककसी प्र णी मे सम ि स्नत ो जो सभी कमी और दोि से प क ै और उत्तमत के सभी गुण स्जसके स थ स्वशेि ै ? स्नस्ित रूप से: न ीं।
-क्य य म न परमेश्वर के योग्य ै कक उस मनुष्य में सम ि स्नत ो जो सोत पेश ब और मित्य ग करत ै स्जसके पेि में (गिंद अशुद्ध मिमूत्र) मि र त ै! ै! - क्य य म न और अनिंत परमेश्वर के योग्य ै कक ऐसे इिंस न में सम ि स्नत ो स्जसे अस्नव यि रूप से मरन ै और कफर मृत्यु के ब द एक बदबूद र ि श बन ज न ै? स्नस्ित रूप से:न ीं।
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- क्य य म न परमेश्वर के योग्य ै कक ऐसी हनिंदनीय मूर्ति में सम ि स्नत ो (न ़िुक और ि क ो ज ने व िी) स्जसे एक कमजोर प्र णी ने बन य ै? स्नस्ित रूप से: न ीं।
- क्य य म न परमेश्वर के योग्य ै कक पेश ब और गोबर करती ै और (स्जसके पेि में रि, गोबर और अशुद्धत ै) और स्जसे वि ोन य मरन ै और एक बदबूद र ि श बन ज न ै? स्नस्ित रूप से: न ीं। - क्य य म न परमेश्वर के योग्य ै कक व एक िूिमय और न पसिंदीद पशु न ीं।: से स्नस्ितरूप )?आकद.. चू े( ो सम ि स्नत मेंमें लथ नों और अशुद्ध वलतु र व कक ै योग्य के परमेश्वर म न य क्य -सम ि स्नत ो? स्नस्ितरूप से: न ीं।
परमेश्वर क अपने प्र स्णयों एविं पररसिंपस्त्तयों में सम ि न के स्सद्ध िंत से दुस्नय की र ची़ि को परमेश्वर म नन और उसकी पूज करन ि स़्िम आएग और अस्िक सिंक्षेप में क ज ए तो स्नम ित और जीव क अिंतर खत्म ो ज एग , व लतव में य सविशस्िम न परमेशर क क़ छीनन ै (जो अपनी ईश्वरत में स्नर ि ै ) और उसकी ईश्वरत में झगड खड करन ै!
आएिं म इस ब स को दूसरे तरीके से समझने की कोस्शश करते ैं:
- अल्ि ने स्जस मनुष्य को अक्ि की नेमत से नव ़ि , स री मििूक़ त पर प्र थस्मकत दी और अफजि- उि-मििूक़ त बन य क्य य उसके योग्य ै कक अपने से कमजोर वलतु की पूज करे (मूर्ति य ज नवर ...) ऐसी ची़ि की पूज करे स्जसके प स ़िर भी अक़्ि न ीं, स्जसके प स अपने नफ नुकस न क भी ज्ञ न न ीं और न ी मृत्यु, न जीवन, न ी पुनरूत्थ न क म स्िक ै ।?
स्नस्ितरूप से: न ीं।
- अच्छ अगर कोई मनुष्य पूज की ज ने व िी सम ि स्नत प्रस्तम को तोड दे तो क्य भगवन क देवत्व दो स् लसों में बि ज एग और उसक कुछ स् लस बि कर िूिे हुए स् लसे में चि ज एग ? स्नस्ितरूप से: न ीं।
- यकद ककसी ने प्रस्तम को ध्वलत कर कदय तोड कदय तो खुद प्रस्तम अपनी रक्ष करने में सक्षम न ीं हुआ और खुद को मुसीबत से न ीं बच सक कफर उस भगवन क क्य ोग स्जसके ब रे सोच ज त ै की व प्रस्तम के अिंदर सम ि स्नत
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ै? क्य भगव न उसके अिंदर सम ि स्नत र ेग य उससे अिग ो ज एग ? और गर य समझ ज त ै कक भगव न उस ध्वलत प्रस्तम के अिंदर सम ि स्नत ै तो कफर क्यों प्रस्तम खुद को मुसीबत से न ीं बच सक ?
-यकद कोई मनुष्य उस ग य की बस्ि करत ै स्जसकी पूज की ज ती ै और स्जसके ब रे में क ज त ै की इसके अिंदर भगव न सम ि स्नत ै तो क्य उस कदव्यत में से कुछ उसके और कुछ बस्ि के बीच कनविि ो ज त ै? स्नस्ितरूप से: न ीं।
-और यकद ग य की बस्ि कर दी गई और व खुद की रक्ष में सक्षम न ीं तो कफर उस भगव नों के ब रे में क्य क ज एग स्जसके ब रे क ज त ै की वे ग य के अिंदर सम ि स्नत ै? क्य भगव न उसके अिंदर सम ि स्नत र ेग य उससे अिग ो ज एग ? और अगर य क ज त ै की बस्ि के ब द भी, शव में पररवतिन ोने के ब द भी भगव न ग य में सम ि स्नत ै तो कफर ग य को इस मुसीबत क्यों न ीं बच य ?
क्य य एक बुस्द्धम न और अक्िमिंद इिंस न के योग्य ै की ककसी भी वलतु की पूज इसस्िए करे की व उपयोगी ै स्नस्ितरूप से: न ीं। बस्ल्क बुस्द्धम न मनुष्य इस योग्य ै कक उस ईश्वर की इब दत करे स्जस ने इन स री चीजों क स्नम िण ककय ै और उसमें ि भ रख ै और य ईश्वर सविशस्िम न अल्ि ै।
सविशस्िम न अल्ि क य स्नयम ै की उसने कोई भी ची़ि व्यथि न ीं बन य , र वलतु स्जसकी सृस्ि अल्ि ने की ै ि भद यक ै य अिग ब त ै की म उसे प च न न ीं सकते अथव देख न ीं सकते पर य पय िवरण प्रण िी के सिंरक्षण में और सिंतुस्ित रखने में भूस्मक स्नभ त ै, इसस्िए बे तर य ै की सबब पैद करने व िे स्नम ित की पूज की ज ए न की सबब की पूज की ज ए और व सबब पैद करने व ि भगव न अल्ि सविशस्िम न ै और य ब त र तकिसिंगत मन को लवीक यि ै!
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अिंत में इस हबिंदु पर भी एक चच ि:
-भगव न क्यों ककसी मनुष्य में सम ि स्नत ोग वे तो भगव न द्व र ी स्नर्मित ैं य कफर क्यों स्नर्मित मूर्तियों एविं ग यों में सम ि स्नत ोग ?
- क्य भगव न को इस तर के क यि करने की जरूरत ै? स्नस्ितरूप से: न ीं। सविशस्िम न अल्ि स री सृस्ि से िनी ै उसे ककसी ची़ि में उनकी ़िरुरत न ीं बस्ल्क जीव को अपने स्नम ित की जरूरत ै!
-क्य इस जैसी ब तों की थोडी सी भी सबूत ै स्जसे अक्ि(स्जसे अल्ि ने मनुष्य को प्रद न ककय ै) क़ुबूि करत ो? स्नस्ितरूप से: न ीं। य एक भ्रम ै और व लतस्वकत से इसक कोई सिंबिंि न ीं ै।
-अगर कोई व्यस्ि अपने भगव न अपने स्नम ित के स्नकि ोन च त ै उसकी पूज करन च त ै उसे पुक रन च त ै तो इस ब त की क्य आवश्यकत ै की व उसकी पत्थर अथव उस जैसी स्वस्शि छस्व में मूर्ति िरीदे य बन ए त कक भगव न उसमें सम ि स्नत ो सके य ग यों में से ककसी ग य की पूज करे?
- क्य म य आलथ न ीं रखते की स्नम ित भगव न लवयिं में, अनपी स्वशेित ओं में एविं अस्िस्नयमों में म न ो, दोि और कस्मय िं के स्िए अथव कुरूप हनिंदनीय कृत्यों के स्िए उसे स्जम्मेद र ठ र न उस्चत न ीं और कफर ईश्वर सविशस्िम न से दोि और कस्मय िं प्रकि न ीं ोती?!
उत्तर: िं क्यों न ीं, य तो म रे स्िए जरूरी ै की सविशस्िम न ईश्वर को र उन चीजों से पस्वत्र रखें जो उसकी श न के योग्य न ीं और उसकी रचन एविं प्र स्णयों में से ककसी में सिंघ एविं सम ि न करने योग्य जैसी स्सद्ध िंत से पस्वत्र रखें त कक सविशस्िम न ईश्वर की प्रस्तष्ठ पर कोई आिंच न आए!
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( प्रश्न11): स् न्दू: क्य आप ज नते ैं की स् न्दू अनेक देवत ओं के अिीन तीन प्रमुख देवत ओं को आि र म नते ैं वे क ते ैं कक अनेक देवत व लतव में 3 छस्वयों अथव अस्भभ व के रूप में एक ी भगव न ै इलि म क इस ब रे में क्य दृस्िकोण ैं ?
(उत्तर 11):मुस्लिम: सबसे प िे, मुझे पत ै कक ह िंदु तीन प्रमुख देवत ओं की पूज करते ै, कुछ ह िंदू 33 देवी देवत ओं की कुछ 1000 देवी देवत ओं की और कुछ ह िंदू 330 स्मस्ियन देवी देवत की पूज करते ैं। और बहुत से स् न्दू अनेक देवी देवत ओं को तीन प्रमुख देवत ओं में स्विय कर देते ैं य क ते ैं की अनेक देवत व लतव में ३ छस्वयों के रूप में एक ी भगव न ै! और य इस प्रक र ै:
भगव न ब्रह् :ह िंदू आलथ के अनुस र,स्नम ित – भगव न स्वष्णु: रक्षक- इसक स्मशन दुस्नय बन ए रखन ै- भगव न स्शव:स्वन श और तब ी क देवत -व दुस्नय क स्वध्विंसक ै इसक स्मशन ठीक स्वष्णु के स्मशन के स्वपरीत ै! स र िंश में रचन भगव न ब्रह् क स्मशन ै अन्य देवत इस क म में लतक्चेप न ीं करते इसी तर अच्छ ई भगव न स्वष्णु क स्मशन ै अन्य देवत इस क म में लतक्चेप न ीं करते और बुर ई भगव न स्शव क स्मशन ै अन्य देवत इस क म में लतक्चेप न ीं ै लपलि िकुिस्ब दृस्िकोण क इलि म प्रस्त के आलथ की तर इस !करतेतीन स्वस्भन्न में अस्लतत्व व लतव क भगव न के य छस्वय ूँ अस्भभ व तीन :प ि देवत ओं में स्वश्व स रखन ै न की एक भगव न पर, उनमें से सभी के ब रे य आलथ रख ज त ै कक वे व्यस्िगत रूप से एक दूसरे से अिग ै उनके व्यस्ित्व दूसरे से लवतिंत्र ै और उनक अपन अिग अिग भूस्मक ै कफर य क न कक तीनो देवत व लतव में एक ी भगव न ै य तकिसिंगत और िमि की आवश्यकत ओं क लपि उल्ििंघन ै!
दूसर : प िंचवें प्रश्न के उत्तर में मैंने स क्ष्य से लपि कर कदय ै की परमेश्वर न ीं।अस्िक य तीन दो ै ी एक केवि) आयोजक क ब्रह् िंि, रक्षक,स्नम ित ( अकेि ब्रह् िंि जो ै क स्वश्व स में ऐसे ईश्वर एक शसन्दे लपि क इलि मजबकक भगव न कोई इि व के ईश्वर और सविशस्िम न न ीं कोई जैस उस ै आयोजक क न ीं !
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(प्रश्न12): स् न्दू: आप ज नते ैं कक ह िंदू िमि में एक स्सद्ध िंत(अवत र)क ै इसक मतिब ै कक: म नव के रूप में भगव न क पृथ्वी में अवतरण हुआ ै जो(कृष्ण ) से की पररस्लथस्तयों सृस्ि त कक अपनी ै करत क प्रस्तस्नस्ित्व सृजन चररत्र में के दृस्िकोण क इलि म में ब रे इस ?एविं सुि र करे स्शक्षण क िोगों और र े सचेत ? ै क्य ह िंदु( ष्णुस्व :कक ै मतिब इसक में स्वलत र ै पत मुझे, ूँ:मुस्लिम):12 उत्तर( अवतरण क ) ै म नते उत्तरद यी क रक्ष स्वश्व की ैं और देते न म क रक्षक स्जसेम गिदशिक य में रूप की पशु चरव े लकेच स्जसक (हुआ ै में रूप म नव के कृष्ण से गिती मृत्यु उसकी कक ै ज त क य और बन य ज त ै मेंरूप र जकुम र केएक स्शक री के स्वि ि ब ण िगने के क रण हुई,ह िंदू िमि में कृष्ण के ब रे में स्वस्भन्न अिग-अिग ि रण एिं ैं िेककन अिंत में एक कदव्य अवत र पर स मस्त ैं! इस तर के आलथ के ब रे में इलि म क स्वच र स्बिकुि लपलि ै!
-इलि म क सन्देश सविशस्िम न ईश्वर पर ईम न ि न ै और उसकी बड ई, गुणों, बहुमुखी प्रस्तभ और क्षमत पर ईम न ि न ै, उसके व्य पक तथ पूणि इल्म ए ग़ैब (पूविज्ञ न) पर ईम न ि न ै, ईश्वर सविशस्िम न समय य जग के ब रे सब कुछ ज नत ै (अतीत- वतिम न- भस्वष्य) और सविशस्िम न ईश्वर को य आवश्यकत न ीं की अपनी स्नर्मित के बीच र ने के स्िए उनके सम च र और स्लथस्त पत करने के स्िए व प्र णी क रूप ि रण करे, और ऐसी ब तें उसके योग्य न ीं !
- इलि म क सन्देश सविशस्िम न ईश्वर की पस्वत्रत और उसकी योग्यत पर ईम न ि न ै सविशस्िम न ईश्वर स री ख स्मयों और अज्ञ नत से पस्वत्र ै, और उन स री ब तों से पस्वत्र ै जो मनुष्य के स्वच र में उसकी छमत और म् णत की कमी क कल्पन पैद करे कमजोर प्र णी क कल्पन पैद करे और य द व करन कक से की पररस्लथस्तयों त कक सृस्ि ै िेत अवतरण चररत्र में पृथ्वी में भगव न म नव करत पैद कल्पन क कमी में त म् ण की ईश्वर सविशस्िम न र ेसचेत ै!
- इलि म क सन्देश सविशस्िम न ईश्वर को दोि और बदन मी से पस्वत्र म नन ै, म नव और अन्य प्र स्णयों के क यों और जरूरतों (स्जसकी उसे आवश्यकत ोती ै) से पस्वत्र म नन ै (आ र, पेय, शौच, नींद , आर म, श दी और प्रजनन ..., सविशस्िम न ईश्वर इन स री चीजों से प क ै!
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वणिन के स्िए अस्िक स्वलत र में स्वच र:
-क्य य सविशस्िम न ईश्वर के योग्य ै कक व मस् ि के गभि में प्रवेश करने के स्िए ककसी आदमी क शुक्र णु बने, व िं म िंस और खून के बीच र े और कफर भ्रूण में पररवस्तति ोने तक एक अवलथ से दूसरी अवलथ में पररवर्तित ोते र े कफर भ्रूण से स्शशु कफर बच्च बने... एक इिंस न की छस्व में इिंस न के रूप में उसके स थ सिूक ककय ज ए? स्नस्ित रूप से: न ीं, इसके और उसके के बीच कोई सिंबिंि न ीं ै देवत्व और म नवत के बीच बहुत अिंतर ै सविशस्िम न ईश्वर तुच्छत न ीं करत ै क्योंकक इससे व देवत्व के गुणों से ख िी ो ज एग ! -क्य म नवत और पशुत आपस में स्मि सकत ै स्नस्ित रूप से: न ी
- क्य य सिंभव ै आदमी ग य य अन्यथ (स्वस्भन्न प्रक र के ज नवरों) के स थ सिंभोग लवीक र करे और क्य य सिंभव ै ज नवरों के स थ सिंभोग से आि इिंस न और आि ज नवर पैद ो? स्नस्ित रूप से: न ीं। य एक नैस्तक पुनरोदय ै और म नवत की बेइज़़्िती ै स्जसे सविशस्िम न ईश्वर ने सबसे सम्म ननीय बन य ै, मनुष्य ज नवरों से उद त्त में म त्व और दजे में बे तर ै इस के ब वजूद कक वे सभी सविशस्िम न ईश्वर के जीव ैं!
- यकद म नव प्रकृस्त और पशुत प्रकृस्त दोनों अिग अिग ै ि िंकक दोनों जीव ैं तो यकद स्विय सविशस्िम न ईश्वर से सम्बस्न्ित ो तो क्य दृस्ि ोगी?
क्य कदव्य प्रकृस्त क म नव प्रकृस्त के स थ अस्भसरण सम्भव ै (कमजोर प्र णी जो अपनी म िं के योनी से जन्म िेत ै और स्जसे ऊष्म यन और देखभ ि की आवश्यकत ोती ै और मृत्यु के ब द अन्य प्र स्णयों की तर दफन कदय ज त ै) य कफर अन्य के स थ अस्भसरण सम्भव ै त कक म नव प्रकृस्त य अन्य परम त्म क अवत र बने?
स्नस्ित रूप से न ीं।, य भगव न के स्िए ग िी, अपम स्नत करन , और उसकी इज़़्ित कम करन समझ ज एग !
इसी क रन इलि म क सन्देश ईश्वर को ख स्मयों और तुच्छत से पस्वत्र म नन ै सविशस्िम न ईश्वर एक ी परमेश्वर ै जो अस्भन्न ै न उसने ककसी को जन न उसको ककसी ने जन उसक कोई बर बर, समरूप य अनुरूप न ीं!
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( प्रश्न13): स् न्दू: ह िंदुओं क क न ै कक म र म और कृष्ण की पूज के मध्यम से भगव न की पूज करते ैं क्योंकक वे भगव न के म गिदशिक ैं और उन् ोंने में भगव न क र लत बत य , इस सिंबिंि में इलि म क दृस्िकोण क्य ै?
जब वे कक ैं क ते ह िंदु कक ै पत मुझे :कक य :प्रथम :मुस्लिम): 13उत्तर(म नव रूप में सस्न्नस् त भगव न की पूज करते ैं तो इसक मतिब वे सविशस्िम न ईश्वर की पूज िेते ैं न की म नव रूप की, और स्पछिे जव ब में मैंने इसे लपि रूप से बत य ै कक इलि म क सन्देश भगवन को उन स री ब तों से पस्वत्र रखन ै जो की उसके योग्य न ीं और कफर सविशस्िम न ईश्वर त्रुरि और अप्र सिंस्गक से बेस्नय ज ै!
व बेस्नय ज ै इससे की कोई अपनी सोच से एक कमजोर प्र णी मनुष्य के रूप में भवग न की छस्व बन कर उसकी क्षमत , श न और दज ि में कमी पैद करे, इस द वे के स थ कक भवग न इस प्रक र अपनी रचन की पररस्लथस्तयों से पररस्चत र त ै और उसकी स्शक्ष एविं म गिदशिन करत ै,
य स री ब तें य इसके इि व स्जसकी उल्िेख मैं ने पि े भी की ै सविशस्िम न ईश्वर के ि यक न ीं ै!
ै भेज दूत और नबी से बहुत ने ईश्वर की ै लपि य में इलि म )प्रश्न( :दूसर त कक वे िोगों को ईश्वर पर ईम न ि ने के स्िए आमिंस्त्रत करें एविं उनक म गिदशिन और ग इिेंस करें उन् ें एक ईश्वर की पररचय कर एिं उसकी म न गुणों और क्षमत से अवगत कर एिं इत्य कद... परमेश्वर की ओर से जो उद त्त स्शक्ष वे िेकर आएिं ैं िोगों को बत एिं त कक िोग अपने जीवन में उसे स्वस्ि बन एिं, परिंतु क्य य सिंभव ै कक भस्वष्यद्वि ओं और मैसेंजसि की पूज की ज ए इस क रण की वे िोगें के म गिदशिक और स् द यत के सबब ैं?
स्नस्ित रूप से: न ीं, य सविशस्िम न ईश्वर के स थ स्शकि ै उसके स थ ककसी को शरीक बन न ै (जैस कक मैंने प िे भी लपि ककय ै) और य भस्वष्यद्वि ओं और मैसेंजसि की मूिभूत सिंदेश के स्वपरीत ै! और य सन्देश: एक ी परमेश्वर में स्वश्व स क सन्देश ै और व परमेश्वर सविशस्िम न ै!
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लवीक र कद स्प इलि म स्वच र जैसी औत र क भगव न में ज स्त म नव :तीसर न ीं कर सकत क्योंकक य ईश्वर के स्जलम ोने के स्सद्ध िंत की ओर और कई मनुष्यों की कदव्यत की ओर िे ज त ै (जैस कक स्वस्भन्न समुद य क म मि ै, प्रत्येक अपनी अपनी इच्छ अनुस र) उन् ें म नव रूप में परम त्म क अवत र समझकर पस्वत्र म नने और उसकी पूज करने िगते ैं और य ीं से ईश्वर क स थी म नन अवश्य ो ज त ै जो कक परमेश्वर के अस्िक र में स्वव द खड करन ै क्योंकक सविशस्िम न ईश्वर क अकेिे ईश्वर ोन और अन्य मनुष्यों य जीव के स्बन अकेिे पूज के योग्य ोन परमेश्वर क स्वस्शित ै!
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(प्रश्न14): स् न्दू: ह िंदू, अपने मृत के शव जि ते ैं जबकक मुस्लिम मृत्यु के ब द म नव शरीर को जि ने के बज य स्मट्टी में दफन ते ैं, क्यों? और इलि म की दृस्ि में क्य स ी ै?
(उत्तर14): मुस्लिम: सबसे प िे, मुसिम न सविशस्िम न अल्ि क आदेश ि गू करते हुए मृतकों के शव दफन ते ैं जो कक अल्ि ने अपने नस्बयों और रसूिों को इल् म के म ध्यम से बत य ै और उन् ोंने ने इस तरीके से िोगों को सूस्चत और स्शस्क्षत ककय ै,
आप जब दफन ए ज ने के ब रे में स्वस्ि एविं अवस्ि की शुद्धत पूछत छ करेंगे तो मैं इसे म नव सिंदभि तथ आर्थिक एविं वैज्ञ स्नक गिंतव्य के स् स ब से लपि करूिंग :
क- म नव सिंदभि में: मौत के ब द शव को जिन ,जिने के ब द नदी में फेंक देन (गिंग ह िंदू रीस्त-ररव ज के अनुस र) और कुत्तों, जिंगिी ज नवरों एविं स्शक री पस्क्षयों के स्िए खोर क बन न (और तरिंि बन ज ने के ब द मौज क उसे ककसी नदी के ति में िे ज न ) उसे म त्व ीन और व्यवस यी शव बन त ै, जबकक इलि म म नव सम्म न को अस्िक गिंभीरत से िेत ै च े वे जीस्वत हूूँ य मृत, मृत्यु के ब द म नव शरीर को सम्म न और प्रशिंस की ऩिर से देख ज त ै म नव शव क सम्म न करन इलि म की स्शक्ष ओं में से ै त कक उसे न्यूनतम नुकस न से भी बच य ज ए, उसे सम्म न के स थ कब्र में उतर ज त ै और कफर दफन ने के प्र वि नों के अिीन सम्म न के स थ दफन य ज त ै!
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इसके अि व य कक मृत शवों को जि ने जैसे कठोर पररदृश्य देख म नव आत्म को घृण ोती ै और जिने के ब द उसे दुरुपयोग एविं कुत्तों, जिंगिी ज नवरों एविं स्शक री पस्क्षयों के स्िए खोर क के तोर पे छोड कदय ज त ै!
ख- आर्थिक सिंदभि में: मृतकों के शव जि ने के स्िए उच्च ि गत दर क र ै जैसे की प्र कृस्तक सिंस िनों की बब िदी (पेड और पौिों से ,,,. जि ने की प्रकक्रय में ख स प्रक र की िकडी क प्रयोग ककय ज त ै) जबकक म नव शव को स्मट्टी में दफन ने में कोई िगत न ीं ोती!
ग- वैज्ञ स्नक हबिंदु से: म नव शव को जि ने से पय िवरण प्रण िी असिंतुस्ित ोती ै तथ सिंक्रमण के प्रस र एविं म म रर रोगों क क रण ोत ै (नकदयों और ब ररश के प नी में प्रदूिण के क रण...)
और इससे म नव, ज नवरों और पेड पौिों को नुकस न ो सकत ै जबकक म नव शरीर को स्मट्टी में दफ़न ने से इस तर को कोई खतर न ीं र त !
इलि मी स्वि न में मृत्यु के ब द म नव शरीर को जि ने के बज य स्मट्टी में दफ़न ने की स् कमत य ीं से प्रदर्शित ोती ै!
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(प्रश्न15): स् न्दू: आप ज नते ैं कक ह िंदू िमि में एक स्सद्ध िंत (पुनजिन्म) क ै स्जसक मतिब ै मृत्यु के ब द मनुष्य की आत्म एक दूसरे शरीर में लत िंतरण ो ज ती ै? इस सिंबिंि में इलि म क दृस्िकोण क्य ै?
(उत्तर15): मुस्लिम: ूँ, मुझे पत ै कक ह िंदू िमि में पुनजिन्म क स्सद्ध िंत ै स्वलत र में इसक मतिब ै: मृत्यु के ब द मनुष्य की आत्म क एक और शरीर में व पस ो ज न च े व मनुष्य क शरीर ो य ज नवर क (जैसे पशु, कुत्त और सूअर ..) य कफर कीडों,पेडों अथव स्नजीव वलतुओं में से ककसी में व पस ो ज न ... और य दुस्नय में अपने अच्छे बुरे क म के फिलवरूप दिंस्ित य पुरलकृत करने के स्िए ै यकद उस ने अच्छ क म ककय ै तो स्जस शरीर में लत िंतरण ोग आर म करेग और अगर बुर क म ककय ै तो दिंस्ित ककय ज एग !
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पुनजिन्म स्सद्ध िंत क स र िंश (ह िंदू िमि के अनुस र):
क - स्सद्ध िंत (कमि): जुम िन और सज क क नून, इसक मतिब ै: प पी की आत्म ककसी बुरे शरीर में लत िंतरण करके अस्भश स्पत एविं दस्डित ककय ज एग !
ख- स्सद्ध िंत (स्नव िण): इसक मतिब ै: आत्म ओं क पुनजिन्म चक्र से मुस्ि (स्जसमें आत्म एक शरीर से दूसरी शरीर में लत िंतरण ोत र त ै) य नी स्पछिे सत्र से वैित प्र प्त करके स्नव िण ो ज त ै स्जसक अथि ै कक आत्म परमेश्वर से एकजुि ो ज त ै ।
इस सिंबिंि में इलि मी स्सद्ध िंत स्बिकुि ी लपि ै:
इलि म क सन्देश अिंस्तम कदवस के अस्लतत्व पर ईम न ि न ै उस कदन सिंपूणि प्र णी को मौत के ब द दोब र हजिंद ककय ज एग सविशस्िम न ईश्वर द्व र आत्म को कफर से उसके म स्िक के शरीर में व पस कर कदय ज एग कफर सभों क स् स ब ोग अच्छ करने के स्िए म न इन म से पुरलकृत ककय ज एग (अनन्त में अनुग्रस् त जीवन) और बुर ई करने व िों को गिंभीर सज ोगी(शैत नी जीवन) इसी वज से मनुष्य अच्छे कमि की चेलि करत ै नैस्तकत , मूल्यों और स्सद्ध िंतों क प िन करत ै स्वपरीत एव बुर और अश्लीि क यि छोड देत ै! और जो कुछ मैं ने बत य इससे स फ म िूम ोत ैं कक इलि म में पुनजिन्म की आलथ अलवीकृस्त ै और आत्म क परमेश्वर से एकजुि य स्विय ोने के स्वरोिी ै! और इस की पुस्ि स्नम्नस्िस्खत उत्तर से भी ोती ै जो इस म त्वपूणि प्रश्न के उत्तर में इलि म ने कदय ै त कक म मि स्बिकुि लपि ो ज ए:
यकद म प्रश्न करें कक क्य म नव में से कोई अपने स्पछिे जीवन के ब रे कुछ म सूस करत ै जो की उसने दूसरे शरीर में इस जीवन से प िे गुज री ै (ह िंदू िमि के आलथ अनुस र)? इसके ब रे में ककसी को कुछ भी य द ै?
अच्छ जव ब में अत्यस्िक स्वश्वसनीयत के स्िए इस प्रश्न को म अिंतरर ष्ट्रीय लतर पर मनुष्यों की अिग अिग गैर-ह िंदु ज स्तयों से पूछते ैं (स्वस्भन्न यूरोपीय देशों से, अफ्रीक , उत्तर और दस्क्षण अमेररक , ऑलरेस्िय , एस्शय )।
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इसके ब वजूद में कोई भी ऐस व्यस्ि न ीं स्मि र ै स्जसे इस तर के जीवन क ोश ो और इस से इस ब त की पुस्ि ोती ै कक पुनजिन्म केवि अव लतस्वक भ्रम ै और य स्बिकुि स्नर ि र। यकद इस जव ब को नए प्रक र से स्िय ज ए और म न स्िय ज ए कक कई मनुष्यों के स्िए नय जन्म ै तो कफर इस ब त की आवश्यकत न ीं ै की र इिंस न की स्पछिी ह़ििंदगी ो और स्जसक उसे ोश भी ो! और स फ़ ज स् र ै कक ककसी भी मनुष्य क पुनजिन्म के ब रे कुछ भी य द न ोन इस ब त की दिीि ै कक पुनजिन्म अम न्य ै और इस से प्र णी आत्म क स्नम ित ईश्वर के स थ स िंस्घत ोने के द वे क खिंिन ोत ै!
- इस के इि व यकद इस ब त को म न स्िय ज ए की मृत्यु के ब द मनुष्य क आत्म पशु में लत िंतरण ो ज त ै (तो इसमें म नव ि भ क्य ै) य पेड .. इत्य कद में लत िंतरण ो ज त ै ज ूँ मनुष्य को पुन और प प क बदि कदय ज त ै तो य प प और गुन तकि न करने के क रण से ै तो क्य मनुष्य की उपयोस्गत को देखते हुए ज नवर और पेड की सिंख्य में स्िस्द्ध की ज एगी!इसमें कोई शक न ीं कक य ूँ स् न्दू िमि की आलथ और प प छोड कर स्शि च र क प िन करने के द वे में अिंतर्विरोि ै!
- और य कक अगर इस ब त को म न स्िय ज ए की प प की सज के तोर पे मृत्यु क ब द मनुष्य क आत्म गरीब, बीम र और दोिी िोगों में लत िंतररत ो ज त ै तो इस से गरीब, बीम र और दोिी िोगों इत्य कद में बुर स्वच र पैद ोत ै वे य समझते ैं की उसकी बुरी ि त स्पछिे जनम में प प करने की वज से ै! स्नसिंदे य नैस्तक, म नवीय और म नस्सक दृस्ि से अलवीक यि ै!
मैं नैस्तक, म नवीय और म नस्सक पक्ष से लवीक यि स्वियों में और इलि स्मक सन्देश में पूणि स मस्त देखत हूूँ अिंस्तम कदन पर ईम न ि ने क द व स्जस कदन सभी प्र णी को मृत्यु के ब द स् स ब ककत ब के स्िए पुनः जीस्वत ककय ज एग ,अच्छे कमि उच्च मूल्यों और स्सद्ध िंतों क प िन और नैस्तकत के स्िए उत्स स् त करत ै (स्जसमे दूसरों के ब रे में अच्छे स्वच र रखन और बुर न सोचन श स्मि ै) और स्वपरीत बुर और अश्लीि क यि से रोकत ै!
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(प्रश्न 16):स् न्दू: अिंस्तम कदन पर ईम न ि ने के इलि मी सन्देश स्जस कदन प्र णी को मृत्यु के ब द दोब र जीस्वत ककय ज एग में क्य स् कमत ै?
(उत्तर 16): मुस्लिम: सबसे प िे, अिंस्तम कदन के अस्लतत्व क ज्ञ न स्जस कदन प्र णी को मृत्यु के ब द पुनः जीस्वत ककय ज एग त कक उसे अच्छे क म के बदिे म न इन म से पुरलकृत ककय ज ए (लवगि में नेमत और लथ यी स्नव सी) और बुर ई करने के स्िए सज दी ज ए (नरक, स्जसमे ददिन क पीड ै )
अच्छे कमि उच्च मूल्यों और स्सद्ध िंतों क प िन और नैस्तकत के स्िए उत्स स् त करत ै और स्वपरीत बुर और अश्लीि क यि से रोकत ै इस कदन (अिंस्तम कदन) के आयोजन ेतु िोगों को जव बदे आयोस्जत ककय ज एग , परमेश्वर की स् कमत य ै कक िोगों को अच्छे कमों उच्च मूल्यों और स्सद्ध िंतों एविं नैस्तकत के स्िए उत्स स् त ककय ज ए अगर पेन ल्िी के स्िए आस्िरत क कदन न ो तो कफर स्सद्ध िंत और नैस्तकत क त र्किक क रण भी न ीं प य ज एग (जैसे सच्च ई और ईम नद री) अगर इसक प िन न ीं ककय ज ए तो स िंस ररक स् तों क स्वरोि ोग अथ ित: मनुष्य अच्छे कमि उच्च मूल्य स्सद्ध िंत और नैस्तकत क प िन ईश्वर से पुरलकृत ोने की इच्छ उसकी सज के िर से और आस्िरत में ईश्वर से ईम न की उम्मीद में करत ै ( ि िंकक कई ब र इसे प िन करने से उसके दुनय वी स् तों क नुकस न ोत ै)!
- यकद कोई मनुष्य ज रों िोगों की मौत क क रण बन ै तो उसे कैसे जव बदे बन य ज एग और इन िोगों क बदि उस से कैसे स्िय ज एग अगर आस्िरत और कक़य मत क कदन न ो?
स िंस ररक जीवन में उसे जव बदे न ीं ठ र य ज सकत इस दुस्नय में उसके स्िए अस्िकतम दिंि (मृत्यु) ै जोकक केवि एक म नव जीवन क दिंि ै स्जसक उसने क़ति ककय थ और ब की उन िोगों के पस्नशमेंि क क्य ोग स्जसे उसने क़त्ि ककय ै और स्जसक उस से पस्नशमेंि न ीं स्िय गय ?!
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एक और उद रण: यकद एक आदमी ककसी दूसरे इिंस न क जीवन बच ने के स्िए (दूसरे के बच व में) खुद को प्रलतुत करत ै तो नैस्तक रूप य व्यव र अच्छ और प्रशिंसनीय ै, य ूँ एक प्रश्न उठत ै:
क्य ककसी इिंस न क सिंलक री ोन ी क फी ै की व म नव स् त में दूसरे की ज न बचने के स्िए खुद को क़त्ि के स्िए पेश कर दे?
अथ ित: क्य य तकिसिंगत ै कक मनुष्य दूसरे की ज न बच ने के स्िए अपनी जीवन द व पे िग दे त कक व केवि सिंलक री ो सके अच्छ य म न क म जो उसने ककय ै इस स्शि च र क कोई बदि उसे न ीं कदय ज एग , य आदमी खुद अपनी जीवन इस आश में स्नछ वर कर दे की ईश्वर की तरफ से इसक स् स ब ोग और ईश्वर से इसक इन म स्मिेग ? क्य य स री ब तें इसस्िए ै कक ईश्वर ने िोगों को अच्छे क म के स्िए उभ र ै और ककय मत के कदन ईश्वर इसक उसे (स्जस कदन िोग स् स ब के स्िए उठ ए ज एिंगें) पुरलक र और लवगि क इन म देग अगर उस ने य क म सविशस्िम न के स्िए और उसकी त ़िीम के स्िए ककय ै ?
स्नलसिंदे त र्किक जव ब य ोग कक: ईश्वर ने स्जन ब तों के स्िए मनुष्य को उभ र ै मनुष्य आश जनक उसके प िन क चेलि करत ै त कक ककय मत के कदन ईश्वर की तरफ से इन म प सके!
और जो कुछ भी मैंने लपिीकरण ककय ै उस से य समझ में आत ै कक एक कदन र इिंस न को अपने ककये क प्रस्तफि स्मिेग अगर ककसी ने ककसी को क़त्ि ककय ै य तकिीफ पहुिंच य ै तो व अपने ककये क सज प एग और अगर ककसी ने अच्छ क म ककय ै तो उसके स्िए उसे प ररतोस्िक ककय ज एग !
और य ीं से म िूम ोत ै कक इस कदन (ककय मत) को जी उठने स् स ब और बदिे क कदन बन ने में परमेश्वर की क्य स् कमत ै और ककय मत के कदन पर ईम न ि ने क जो इलि मी सन्देश ै उसकी स्वश्वसनीयत भी बढ़ ज ती ै!
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