सामग्री




36


(प्रश्न 17): स् न्दू: क्य आप ज नते ैं कक स् न्दू िमि के अनुस र सम ज च र अिग अिग परतों में स्वभ स्जत ै? इस सिंबिंि में इलि म क दृस्िकोण क्य ै?


(उत्तर17): मुस्लिम: ूँ: मुझे पत ै, उसकी चच ि स्वलत र से:


ह िंदू िमि में सम ज च र स्वस्भन्न परतों में स्वभ स्जत ै उच्चतम वगि को (ब्र ह्ण) जबके स्नचिे वगि को (शूद्र) क ज त ै, शूद्र अछूत ैं और केवि उच्चतम वगि की सेव के स्िए पैद ककये गए ैं, ह िंदू िमि क द व ै कक {1}ब्र ह्ण परत (पुज री, स्वद्व न और स्शक्षक) भगव न के स्सर से पैद ककये गए ैं,


{2}क्षस्त्रय परत (श सक, योद्ध और प्रश सक) भगव न के थ से पैद ककये गए ैं {3}वैश्य परत (चरव े, ककस न, क रीगर और व्य प री) भगव न के ज िंघ से पैद ककये गए ैं, {4}और शूद्र परत (मजदूर और सेव प्रद त ) भगव न के पैर से पैद ककये गए ैं, इनमें से प्रत्येक क सम ज में अपन वगि और अपनी जग ै िेनदेन और श दी इत्य कद में उन के बीच अिंतर ै!


अनुमस्त की श दी से दूसरे एक में आपस क परतों तीन प्र रिंस्भक :उद रण इसक ै िेककन उन् ें चौथी परत से श दी करने की अनुमस्त न ीं ै, ठीक इसी तर चौथी परत (शूद्र) को उनमें से शीिि तीन वगों से श दी करने की अनुमस्त न ीं ै!


:लपिीकरण प िे से बत ने दृस्िकोण की इलि म


से इस ैं स्नव िस्सत भेदभ व नलिीय बीच के समू ों और व्यस्ियों और वगि :प्रथमसम ज के स्वस्भन्न वगों के बीच नफरत क प्रस र ोत ै स्जससे सम ज क स्वभ जन ोत ै और सम ज में अस्लथरत ोती ै ।


इलि म सम ज और समुद यों में व्यस्ियों और समू ों के बीच वगीय मतभेद दूर करने और अच्छ ई, पुडय, स म स्जक एकत और स्लथरत बन ए रखने के स्िए आय ै!


य लपि ै की इलि म में ककसी भी म नव ज स्त के बीच कोई अिंतर न ीं ै और न ी एक क़ौम क दूसरे क़ौम, र ष्ट्र और अन्य के बीच कोई अिंतर ै!


र कोई सविशस्िम न ईश्वर के स्नकि एक जैस ै क्योंकक सविशस्िम न ने ी सब को पैद ककय ै ईश्वर के स्नकि ककसी व्यस्ि को ककसी स्वयस्ि पर प्र थस्मकत


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


37


न ीं परिंतु ईम न,ईश्वर भस्ि और अच्छे कमों से, स्जस क रण पृथ्वी क अच्छी तर से पुनर्निम िण ोत ै और भूस्म पर भ्रि च र की कमी ोती ै!


पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम, ने फ़रम य :





" ककसी अरबी को ककसी अज मी (ग़ैर अरबी) पर कोई प्र थस्मकत न ीं ै और ककसी अज मी को ककसी अरबी पर कोई प्र थस्मकत न ीं ै और न ककसी गोरे को क िे पर और न ककसी क िे को गोर पर िेककन केवि ईश्वर भस्ि से, िोग आदम से ै और आदम स्मट्टी से "! (अ मद द्व र वर्णित)


इलि म देशों और िोगों को एकजुि करने के स्िए आय ै अल्ि सविशस्िम न क फरम न ै :





"ऐ िोगों मने तुम् ें एक मदि और एक औरत से पैद ककय और तुम् ें श िें और क़बीिे ककय कक आपस में प च न रखो बेशक अल्ि के य ूँ तुम में ज़्य द ईज़़्ित व ि व जो तुम में ज़्य द पर े़िग र ैं बेशक अल्ि ज नने व ि िबरद र ै "[ सूरए हुजुर त 13]


अिंतर बड में व्यवलथ ज ती की िमों अन्य और िमि स् न्दू कक ै लपि य :दूसर ै अन्य िमों की ज ती व्यवलथ में सुि र ककय ज सकत ै जबकक स् न्दू िमि में सुि र न ीं ककय ज सकत क्योंकक स् न्दू िमि में इसे दैवीय और ईश्वरीय ठ र य गय ै ह िंदू िमि से ज ती व्यवलथ ि ने के स्िए लवयिं को स् न्दू िमि से लवतिंत्र करन ोग और इसी से य ब त म िूम ोती ै की ज ती व्यवलथ को भगव न से जोड कर भगव न को भी अन्य य और नलिव द से जोड कदय गय ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


38


और कफर य प्रश्न उठत ै: कक क्य य सिंभव ै कक भगव न अन्य यपूणि और नलिव द ो? क्य य ो सकत ै कक भगव न को अन्य य और नलिव द के चररत्र से जोड ज ए ?


जव ब: रस्ग़ि न ीं सविशस्िम न ईश्वर सत्य न्य य और अच्छे गुणों व ि ै स्जसे कोई नुकस न उत्पन्न न ीं ोत !


- इसस्िए, इलि म अन्य य और नलिव द से स्नम ित भगव न को प क ोने की द वत देत ै सविशस्िम न केवि ककसी ख स व्यस्ियों, समू ों, जनत , र ष्ट्र क ईश्वर न ीं व सविशस्िम न स रे सिंस रों क ईश्वर ै व स रे िोगों को लवीक र करत ैं (यकद इस पर ईम न ि ए और उसक अनुप िन करे) और तौब करे तो व म फ़ कर देत ै और उनके स्िए लवगि क द्व र खोि देत ै!


बस्ल्क उन् ें लवगि में प्रवेश देत ै और उन से र ़िी ो ज त ै व सविशस्िम न सच्च परमेश्वर ै व अपने बन्दों पे कुछ जुल्म न ीं करत सविशस्िम न अल्ि के स्नकि सब बर बर ै और ककसी को ककसी पे प्र थस्मकत न ीं िेककन अल्ि और स्नम ित पे ईम न, ईश्वर भस्ि और अच्छे क म द्व र सविशस्िम न अल्ि के स्नकि सविशस्िम न प्र प्त ककय ज सकत ै!


और जो कुछ भी मैंने स़्िक्र ककय इससे इलि म में नलिव द को स्निेि करने एविं स्वस्भन्न व्यस्ियों समू ों और समुद यों में वगि के मतभेद दूर करने की स् कमत क पत चित ै!


-------


मुस्लिम: अब स्वलतृत उत्तर देने के ब द स्नम्नस्िस्खत कुछ म त्वपूणि सव ि और अिंतर्निस् त उत्तर आपके समक्ष रखन च त हूूँ:


(1) क्य सविशस्िम न भगव न इनस न आदमी और अन्य प्र स्णयों क सृस्िकत ि न ीं ै, क्य व उनक मु कफ़ि न ीं और क्य व अकेि ी इस ब्रह् िंि क म स्िक न ीं ै ?! उत्तर: क्यों न ीं।


(2) क्य सविशस्िम न ईश्वर अकेि ी मनुष्य को बेशुम र नेमत से न ीं नव ़ि उत्तर: क्यों न ीं ?!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


39


(3) क्य सविशस्िम न ईश्वर के कुदरत में इन म और सज न ीं ै ?!


उत्तर: क्यों न ीं।


(4) तो क्य इसके ब द अल्ि के स थ ककसी को उसकी इब दत य उिूस् यत में शरीक ठ र ने की अनुमस्त ै?


उत्तर: स्बिकुि न ीं, सविशस्िम न ईश्वर एक ी परमेश्वर ै स्जस ने मनुष्य को स री नेमतों से नव ़ि , उसी के दलते क़ुदरत में इन म और सज ै, स्सफि सविशस्िम न ईश्वर ी इब दत के ि यक ै!


(5) इन दोनों में से व्य पक कदम ग के करीब कौन स ै: कई देवत ओं के अस्लतत्व में स्वश्व स स्वस्भन्न स्चत्रों में भगव न क स्चत्रण और स्वस्भन्न देवत ओं क स्वस्भन्न तरीके से पूज (स्वस्भन्न देवत ओं के पत्थरों की स्वस्भन्न मूर्तिय िं) अन्यथ छस्वय ूँ सूयि की श्रद्ध और पूज और ग्र ों, स्वस्भन्न ज नवरों ग यों और पेडों ... की श्रद्ध और पूज अवम नन को कम करत ै? य सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और कफर िोगों क एकजुि ोकर एक भगव न की पूज और प्र थिन कस्मयों और ख स्मयों एविं कुरूप कृत्यों से सविशस्िम न को प क म नन और उसकी श्रद्ध और पूज ?


उत्तर: इसमें कोई शक न ीं ै कक सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक भगव न की पूज और प्र थिन करन कस्मयों और ख स्मयों एविं कुरूप कृत्यों से सविशस्िम न को प क म नन और उसकी श्रद्ध और पूज करन थोडी सी भी स्वपक्षी के स्बन व्य पक कदम ग के करीब ै!


(6) इन दोनों में से शुद्ध वृस्त्त और शुद्ध आत्म की तरफ ककस क झुक व ै: बहुदेवव दी स्वश्व स और पूज की स्वस्शि तरीक में अिंतर और अभ व स्वपरीत? य सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक ी रूप त्मकत में एक ी ईश्वर की पूज ?


उत्तर: स्नलसिंदे शुद्ध वृस्त्त और शुद्ध आत्म क झुक व सविशस्िम न अल्ि की एकत में स्वश्व स और िोगों क एकजुि ोकर एक ी रूप त्मकत में एक ी ईश्वर की पूज की तरफ ै !


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


40


इन प्रश्नों और उत्तरों के ब द आप को ज नने के स्िए क फी ै कक यकद आप स् न्दू ग्रन्थों क अध्ययन करेंगे तो आप प एिंगे कक एक ईश्वर (सविशस्िम न ईश्वर) में स्वश्व स करने और उसके के स थ स्शकि न करने क इलि म के मूि सिंदेश में स् न्दू ग्रन्थों क सिंगत ै इसी तर छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न क स्चत्रण अस्नि ै!


और य इलि म के मुत स्बक ै, ईश्वर सविशस्िम न फरम त ै:





" ऐ नबी आप फरम दीस्जये, " व अल्ि ै जो यकत ै, अल्ि स्नरपेक्ष (और सव िि र) ै, उसके औि द न ीं, और न व ककसी क औि द ै, और न कोई उसके बर बर क ै" {अि-इखि स:1-4}


और कफर पत चित ै कक ईश्वर के स थ अन्य देवत ओं के अस्लतत्व में स्वश्व स उसकी मूर्तिय िं इिस्तय र करन और उसकी पूज करन ै स् न्दू ग्रिंथों की स्शक्ष और इलि म के स्वपरीत ै!


इसके अस्तररि अिंस्तम समय में पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क सभी नस्बयों और दूतों क अिंस्तम बनकर आने क उपदेश ह िंदू ि र्मिक ककत बों में मौजूद ै!


*******


(प्रश्न): स् न्दू: आप ने अपनी ब तचीत में क कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क सभी नस्बयों और दूतों क अिंस्तम बनकर आने क उपदेश ह िंदू ि र्मिक ककत बों में मौजूद ै, क्य आपको इस ब रे में पूणि स्वशव स ै? और य क्य ै?


(मुस्लिम): स्नस्ित रूप से ूँ, य कई लथ नों में ै, और मैं प िे इसे लपि करन च त हूूँ:


ईश्वर सविशस्िम न क्रस्मक अवस्ि में समय समय पर अपने नस्बयों और दूतों को स्वस्भन्न देशों और िोगों के स्िए भेजत ै त कक नबी और दूत अपने िोगों की स्वशेि रूप से स् द यत कर सकें, अिंस्तम स्मशन को छोडकर स्जसमें ़िरत मु म्मद


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


41


सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम आए कक व सभी िोगों के स्िए र जग और र समय के स्िए नबी ैं क्योंकक य स्नष्किि सिंदेश ै, इसस्िए, पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम नस्बयों और रसूिों में अिंस्तम पैगिंबर ैं!


इसके अि व यकद स्पछिी ककत बों की बत ई हुई ब तें क़ुर न करीम से मेि ख ती ैं तो म उसक स्वश्व स करते ैं और अगर स्पछिी ककत बों की बत ई हुई ब तें क़ुर न करीम से असिंगत ैं तो म उसक स्वश्व स न ीं करते ैं इसके इि व स्जसक कुर न करीम और दीस शरीफ में उल्िेख न ीं ै म न उसक स्वश्व स करते ै और न ी उसे झुठि ते ैं !


और अिंस्तम समय में ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की बहुत सी लपि भस्वष् यव स्णय िं मौजूद ैं स्जसमें स् न्दू ग्रिंथ भी श स्मि ैं:


1- भस्वष् यव णी (नर शिंस) ह िंदुओं के च र पुलतकों में से प्रत्येक में इस क स़्िक्र मौजूद ै ((ऋग्वेद- यजुवेद- स मवेद- अथविवेद))


नर शिंस दो शब्दों से स्मिकर बन ै: प ि शब्द (नर) ै, स्जसक अथि ै: पुरुि - दूसर शब्द (आशिंस), स्जसक अथि ै: "प्रशिंस्सत"


ज्ञ त य हुआ कक स्जस व्यस्ित्व को प्रशिंस के स्िए चुन गय ै व व्यस्ि प्रशिंस्सत ोग और मनुष्य की ज स्त से ोग , और य स्वकदत ै कक पैगिंबर क न म "मो म्मद" ( मद) से स्िय गय ै, स्जसक अथि ै: “प्रशिंस्सत मनुष्य और य सब अच्छी तर से ज नते ैं कक पैगिंबर क दूसर न म "अ मद" ै और य "मु म्मद" न म क पय िय ै


और मो म्मद न म भी ( मद) से स्िय गय ै स्जसक अथि ै: प्रशिंस्सत मनुष्य! अथ ित नर शिंस क अरबी अनुव द मु म् मद ोत ै!


और अगर इसके अि व क ीं और पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम की भस्वष् यव णी न ीं ोती तो लपित एविं लपिव कदत के स्िए केवि य ी क फी थ परिंतु नर शिंस के स्ववरण अनुस र बहुत स रर जग ों पे पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की भस्वष् यव स्णय िं मौजूद ैं! जैसे कक:


ऋग्वेद: ((मडिि: 1/ सूि 106 सिंख्य : 4))


ऋग्वेद: ((मडिि: 5/ सूि 5 सिंख्य : 2))


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


42


2- स् न्दू ग्रिंथों में (कस्ल्क) न म से उल्िेस्खत अिंस्तम मैसेंजर एविं सभी पूवि पैग़म्बरों के अिंस्तम के गुणों क विव्य:


अिंस्तम मैसेंजर और उसकी स्वशेित ओं की भस्वष्यव णी ग्रिंथों में:


((ककत ब :कस्ल्क पुर ण / खिंि:2 / सिंख्य : 4,5,7,11,15))


-पुलतक में क ै कक उनके म त क न म (सुमस्त) ोग और सिंलकृत में इस शब्द क अथि: श िंस्त और सुरक्ष ै


और य ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम की म ूँ क न म: (अमीन ) ै स्जसक अथि: श िंस्त और सुरक्ष ै !


-(ककत ब में) य उल्िेस्खत ै कक उनके स्पत क न म (स्वष्णुयश) ोग और शब्द (स्वष्णु) क अथि ै: भगव न और शब्द (यश) क अथि ै: गुि म, अरबी भ ि में इस क अथि ै: (अब्दुल्ि ) और य पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के स्पत क न म ै !


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व श िंस्त और सुरक्ष के देश में पैद ोग और य ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम क जन्मलथ न: (मक्क ) ै, और (मक्क ) को सिंरक्षक देश क ज त ै, क्योंकक य श िंस्त और सुरक्ष क एक देश ै।


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व स विभौस्मक उपदेशक ोग , और य ी वणिन कुर न में भी पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के ब रे में आय ै, ईश्वर सविशस्िम न फरम त ै:





" ऐ ग़ैब की िबरें बत ने व िे (नबी) बेशक मने तुम् ें भेज स़्िर न स़्िर और िुशिबरी देत और िर सुन त " [सूरए अ ़ि ब:45]


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक उसे पवित पर र लयोद्घ िन (इि म) प्र प्त ोग और पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम को नूर पवित पर (इि म) र लयोद्घ िन प्र प्त हुआ


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


43


-(ककत ब में) उल्िेस्खत ै कक व उत्तर की ओर पि यन करेग और कफर व पस आ ज एग और य सब को ज्ञ त ै कक पैगिंबर मु म्मद (मक्क ) से (मदीन ) उत्तर की ओर स् जरत ककये थे और कफर स्वजय के कदन मक्क िौि आए।


और कफर य लपि ो ज त ै कक य बश रतें मैसेंजर ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के स थ स्वशेि ै!


3- और कई लथ नों में ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम को उनके दूसरे न म "अ मद" के स थ उल्िेख ककय गय ै "अ मद" क अथि ै: ईश्वर क प्रशिंसक, उल्िेस्खत सथ नो में से कुछ क स्जक्र !


- ऋग्वेद: ((मडिि: 8/ सूि 6 सिंख्य :10))


और इसके इि व भी बहुत सी बश रतें ैं स्जस क म प िे भी स़्िक्र कर चुके ैं जो अिंस्तम समय में नस्बयों के अिंस्तम ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम के आगमन की भस्वष्व णी करती ैं!


*******


(प्रश्न): स् न्दू: इलि म में भगव न की स्वशेित एिं क्य ैं


(उत्तर): मुस्लिम: इलि म िमि क सन्देश भगव न के अच्छे गुणों उसकी म नत एविं सुिंदरत पे ईम न ि न ै और य स रे गुण अच्छे ,पूणित और सम्म नत के गुण ैं इसमें कोई कमी न ीं आती और य स्सफि एक ी ईश्वर के योग्य ै (स्जसक कोई स थी न ीं ै) स्जसके दलते कुदरत में सृजन,रचन और सिंरक्षण ै। और स्जसके दलते कुदरत में अकेिे स री चीजों क इस्ततय र ै और य भगव न सविशस्िम न ै !


-सविशस्िम न ईश्वर की स्वशेित ओं में से कुछ क स्ववरण:


सन तन: इसक मतिब य ै कक सविशस्िम न ईश्वर प ि ै उस से प िे कोई न ीं और अिंस्तम ै उसके ब द कोई न ीं व न सोत ै और न ी अनदेखी करत ै व हजिंद ै उसे मौत न ीं आती जग तथ ़िम ने के अिंत ोने से उसक अिंत न ीं ोत व ी जग और समय क स्नम ित ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


44


- योग्यत : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न पूणि शस्ि क म स्िक ै, सविशस्िम न सब कुछ करने में सक्षम ै, व अगर कुछ करने क इच्छ करत ै तो उस से क त ै कक ो ज और व ची़ि ो ज ती ै, और सविशस्िम न ईश्वर की छमत पर दि ित करने व िी आस र बेशुम र ै (रचन में व ब्रह् िंि क स्नम ित ै स्जसमें म नव सस् त मौजूद त और जीव सभी श स्मि ैं और रचन त्मकत में आत्म , मन, कदि और जरिि आिंतररक व्यवलथ सस् त... अन्यथ सब श स्मि ै)!


- स्वद्य : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न सब कुछ ज नने व ि ै उसक ज्ञ न जग और समय र ची़ि को इ त ककये हुए ै(अतीत- वतिम न- भस्वष्य) व सविशस्िम न ईश्वर एक अकेि , स्नम ित और अनस्लतत् व से स री चीजों को अस्लतत्व में िेन व ि ै!


- बुस्द्धमत्त : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न बुस्द्धम न ै और उसकी बुस्द्ध म न एविं पूणि ै !


- इर द : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न जो कुछ भी च त ै करत ै और य उसके इन म और न्य य के रूप में ै क्योंकक व र ची़ि क ज नने व ि कम ि और स् कमत व ि ै!


- क्षम , करुण और उद रत : इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न क्षम , करुण और उद रत पसिंद करत ै यकद कोई बन्द अपने प प और चूक की पि त प करत ै ईश्वर पर ईम न ि त ै उसकी आज्ञ क प िन करत ै तो व अपने बन्दों की प प और चूक म फ कर देत ै उसे अपनी ऱि मिंदी से नव ़ित ै और उसके स्िए जन्नत के दरव ़िे खोि देत ै जन्नत ज ूँ ढेर स रे नेमत ैं और ज ूँ मेश मेश के स्िए र न ै!


- सत्य और न्य य: इसक मतिब य ै कक ईश्वर सविशस्िम न सत्य और न्य य पसिंद करत ै और अपने बन्दों पे ़िर ि बर बर भी अत्य च र न ीं करत और न ी उनके बीच अिंतर करत ै, म नव ज स्त में ककसी के बीच कोई फकि न ीं ै और इश्वर के स्नकि ककसी को भी ककसी दूसरे पे प्र थिस्मकत न ीं ै परिंतु ईश्वर भस्ि, ईम न एविं अच्छे कमों से!


और एक की ग़िती दूसरे पे ग्र ण न ीं ककय ज सकत यद्यस्प वे म त स्पत ी क्यों न ों , र आदमी खुद के स्िए स्जम्मेद र ै, अगर कोई ़िर ि बर बर भी


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


45


अच्छ क म करत ै तो उसक इन म कय मत के कदन प एग (उस कदन िोगों को मौत के ब द दुस्नय में उनके क यों के जव ब दे ी के स्िए और क यि अनुस र भुगत न के स्िए दोब र ह़ििंद ककय ज एग ) और जो ़िर ि बर बर भी बुर क म करेग उसे उसक जव बदे आयोस्जत ककय ज एग !


- श िंस्त: सविशस्िम न ईश्वर श िंस्त पसिंद करत ै और अपने बन्दों को जमीन पर श िंस्त लथ स्पत करने क आदेश देत ै, श िंस्त लथ स्पत करने के क रण को इस्ततय र करने क आदेश देत ै और उन् ें अन्य य और अत्य च र से मन फरम त ै इसी तर श िंस्त और सुरक्ष लथ स्पत ो सकती ै, और स विजस्नक रूप से इलि म में ग्रीटििंग के ज्ञ न को प च नने की आवश्यकत ै, इलि म में ग्रीटििंग श िंस्त ै इस अथि में कक ग्रीटििंग करने व ि क त ै (तुम पर श िंस्त ो) और उत्तर देन व ि क त ै (तुम पर श िंस्त ो) इस से सुरक्ष और स्वश्व स क भ व पैद ोत ै!


और इलि म में य लपि आय ै कक पूणित में, सुिंदरत में, प्रस्तष्ठ में,म नत में, त कत में, प्रव की क्षमत में,ज्ञ न की क्षमत में, और कम िे स् कमत में.. और अन्य ईश्वर की अच्छी स्सफ़तों में सविशस्िम न अल्ि के तर कोई भी न ीं!


*******


(प्रश्न): स् न्दू: कुर न प क पर ईम न ि न क्यों जरूरी ै (अिंस्तम आसम नी ककत ब के रूप में)?


(उत्तर): मुस्लिम: इसक क रण य ै कक कुर न सचची और पस्वत्र ककत ब ै उसकी सच्च ई और पस्वत्रत क सबूत स्नम्न ै:


- पस्वत्र कुर न की स्शक्ष सविशस्िम न ईश्वर में शुद्ध स्वश्व स पे श स्मि ै(जो सिंस्क्षप्तत में आस नी के स्िए सूचीबद्ध ै) और ख स्िस द वत एविं म गिदशिक पूज पे श स्मि ै (जो आत्म को अनैस्तकत की चररत्र से बिन्दी, नवीनीकरण, सिंलतुस्त एविं पस्वत्रत की अनुदेश देत ै) जो स ी स्वि न, उच्च स्शक्ष , अच्छ म गिदशिन क अनुदेश देत ै स्जस से म नव जीवन ईश्वर के बत ए हुए तरीके पर लथ स्पत ोत ै (सविशस्िम न ईश्वर) स्जसके द्व र सम्पूणि समलय ओं क सम ि न ोत ै और य सब पस्वत्र क़ुर न की शैिी की सुिंदरत , सिंगरठत ढिंग से स्परोय हुआ, म न व स्ग्मत , शब्दों की सिीकत , सिंपूणि कवरेज एविं भव्यत के क रण ै ,


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


46


और य सब इस तरीके से ै कक मनुष्य उस जैस एक सूरत भी ि ने में असमथि ैं (पस्वत्र कुर न की सूरत जैस )।


-2 पस्वत्र कुर न और दीस शरीफ ने प्रभ वश िी वैज्ञ स्नक तथ्यों की खबर 1400 से भी अस्िक विों प िे दी ै (आक श ,पृथ्वी, प ड, समुद्र, म नव, पशु, पक्षी और पौि में) स्वशेि रूप से सृजन के म मिे में, और ऐसे समय में जब ककसी को इसके ब रे में थोडी भी ज नक री न ीं थी , कफर उसकी प्र म स्णकत और स्वश्वसनीयत की खोज के स्िए एिव िंलि तकनीक के स थ आिुस्नक स्वज्ञ न आय स्जस से इस ब त की गव ी स्मि गई कक य ककत ब (पस्वत्र कुर न) सविशस्िम न ईश्वर क शब्द ै और स्जसमे कोई कमी न ीं आती !


सृजन ,ब्रह् िंि के उद्गम एविं ईश्वर द्व र आक श और पृथ्वी बन ने से सम्बिंस्ित वैज्ञ स्नक तथ्यों क उद रण इसी प्रक र भ्रूण की रचन और इसके स्वक स के चरणों क उद रण:


प ि उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(क्य क कफ़रों ने य िय ि न ककय कक आसम न और ़िमीन बन्द थे तो मने उन् ें खोि और मने र ज नद र ची़ि प नी से बन ई तो क्य वो ईम न ि एिंगे) [सूरए अिंस्बय :30]!


: अथि क " थे बन्द " "كانتا رتقا"


" बन्द थे " क अथि: सिंयुि आपस में जुडे, य स्न आसम न और ़िमीन दोनों आपस में जुडे थे, अिग न ीं थे!


:अथि क " खोि " " ففتقناهُا "


" खोि " क अथि: उन् ें अिग ककय , य स्न आसम न और ़िमीन को सिंयुि के ब द अिग कर कदय !


पस्वत्र कुर न की आयतें बत ती ैं कक सविशस्िम न ईश्वर ने आक श और पृथ्वी की रचन कैसे की और (सविशस्िम न ने) उनके स्नम िण क प्र रिंभ कैसे ककय , और


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


47


पस्वत्र कुर न की आयतें सविशस्िम न ईश्वर की बडी सृस्ि और इस बहुप्रशिंस्सत ब्रह् िंि के स्नम िण की प्र रिंस्भक कैकफयत में स्वच र एविं हचिंतन की द वत देती ै , त कक अपने स्नम ित को प च न सकें और उस पे उसके म न गुणों पे उसकी बहुमुखी प्रस्तभ और क्षमत पे ईम न ि सकें !


पस्वत्र कुर न की आयत ने में बत य ै कक आक श और पृथ्वी प िे आपस में एक ची़ि की तर स्मिे हुए थे क़ुर न की आय त ै " आसम न और ़िमीन बन्द थे " कफर उन दोनों को अिग ककय गय क़ुर न की आय त ै " मने उन् ें खोि " !


सच्च ई की आयतों की कुर न से पस्वत्र तथ्य वैज्ञ स्नक ने खोज की स्वज्ञ न आिुस्नक पे वैज्ञ स्नकों के युग आिुस्नक इस सच्च ई की कुर न पस्वत्र और िग य पत क स स्बत ो गय और कफर य ीं से (म न स्वलफोि) के स्सद्ध िंत की बुस्नय द पडी य इस आिुस्नक युग में प्रचस्ित स्सद्ध िंत ै और य सब ब्रह् िंि के स्वलत र और फैि व की खोज के ब द हुआ ै।


स्सद्ध िंत (म न स्वलफोि) क त ै: आज जब ब्रह् िंि एक दूसरे से दूर ो र ै तो अवश्य ककसी कदन सिंस्मस्ित थ और अगर म इन आक शगिंग ओं के स्वपरीत कदश से आज दूर ो र े कदश में प ठ्यक्रम की कल्पन करते ैं


तो ज्ञ त ोत ै कक य एक-दूसरे के करीब से गश्त कर र े ैं और कुि आक शगिंग ओं के घिक आक र के बर बर एक िुकड म िूम ोते ैं (एक दूसरे से !)"थे बन्द ़िमीन और आसम न " मुत स्बक के शब्द के भगव न हुआ जुड


और भौस्तक स्वज्ञ स्नयों क क न ै कक: जब य आक शगिंग एक दूसरे के करीब ोते ैं और एक दूसरे में स्मि ज ते ैं तो उसके खिंि में बडे पैम ने पर वृस्द्ध ो ज ती ै और उसके आकििण की तीित अस्िक ो ज ती ै और चोिी द मन क स थ ो ज त ै (भगव न के शब्द के मुत स्बक" आसम न और ़िमीन बन्द थे"), और स्सत रों से स्मि गरठत आक शगिंग ओं के बीच क ररि लथ न ग यब ो ज त ै, कफर खुद स्सत रों पर गुरुत्व कििण दब व बढ़ ज त ै और इसी तर दब व ज री र त ै य िं तक कक ब्रह् िंि के घिक स मग्री परम णु आक र में पररवर्तित ो ज त ै कफर दब व ज री र त ै य िं तक कक स्जतन सिंभव ो य एिम छोि से छोि ोत ज त ै कफर स्वलफोि ो ज त ै (भगव न के शब्द के मुत स्बक " तो मने उन् ें खोि " ) और इस अत्यस्िक एिम के प ्सि अत्यस्िक


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


48


दब व और स्वश ि ऊज ि के स थ रेस्िएशन के रूप में फैि ज त ै और ठिंि ोन शुरू ो ज त ै और उससे िीरे-िीरे आक श और पृथ्वी क प्रशिंस्सत ब्रह् िंि क स्नम िण ोत ै!


पस्वत्र कुर न के शब्द सिीकत और सुवि से ककतन भरपूर ै?!! और य ककस ची़ि पे इिंस्गत करत ै?!!


स्नस्ित रूप से, य पस्वत्र कुर न की स्वश्वसनीयत पर इिंस्गत करत ै, और य परमेश्वर की ओर से अपने सच्चे नबी नस्बयों और रसूिों के अिंस्तम ़िरत मो म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम पे प्रगि इि म ै!


*******


दूसर उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





परमेश्वर फरम त ै:(कफर आसम न की तरफ़ क़लद फ़रम य और व िुिंआ थ ) [सूरए फुलसीित:11]


इस आय त में क गय ै कक प्र रिंभ में आक श एक िुआिं थ कफर ईश्वर िुआिं ब्रह् िंिीय प िी स्वज्ञ न और आिुस्नक ! बन य आक श उसे ने सविशस्िम न ब्रह् िंि द्व र ईश्वर सविशस्िम न य कक गय ो सक्षम कक्रय में की खींचने स्चत्र केके उद्भव की शुरुआत में म न स्वलफोि के पररण मलवरूप ै जैस कक कस्थत ब्रह् िंि के ब री स् लसे में उसकी पुर त स्त्वक अवशेि प ए गए जो इस ब त की पुस्ि करत ै कक प्र रिंभ में आक श एक िुआिं थ कफर ईश्वर सविशस्िम न ने उसे आक श बन य जैस कक भगव न के शब्द से म िूम ोत ै "कफर आसम न की तरफ़ क़लद फ़रम य और व िुिंआ थ " !


पस्वत्र कुर न के शब्द सिीकत और सुवि से ककतन भरपूर ै?!! और य ककस ची़ि पे इिंस्गत करत ै??


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


49


तीसर उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(जब तुम् रे रब ने आदम की औि द की पीठ से उनकी नलि स्नक िी और उन् ें िुद उनपर गव ककय )[ सूरए अअर फ़:172]


पैगिंबर मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम फरम ते ैं:





" परमेश्वर ने आदम {अिैस् वसल्िम } की पीठ से अनुबिंि स्िय ै.. कफर उनके सुल्ब से प्रत्येक विंश को ब र खींच स्िय .." [वणिनकत ि अननेस ई]


उल्िेस्खत सूर और दीस शरीफ इस ब त को लपि करती ैं कक ़िरत आदम के सभी विंश (स्जन् ें अल्ि ने सभी मनुष्यों के प िे स्पत और प्रथम इिंस न बन य ) उनकी सृस्ि के समय उनके सुल्ब में मौजूद थे!


गुणसूत्र आनुविंस्शक भ्रूण एविं क्रोमोसोमि स्वज्ञ न ने आिुस्नक ै ककय स स्बत ने के वैज्ञ स्नकों भ्रूणस्वज्ञ न कफर और , ै की खोज की भूस्मक कीकक अस्ग्रम से ी मनुष्य की रचन अपने म त स्पत के शुक्र णु से पूविस्नि िररत ोती ै (स्नर्दिि और लपि ोती ै) और य स्वलत र करत हुआ म त -स्पत और द द -द दी के जेनेरिक कोि द्व र स्पछिे सकदयों तक ़िरत आदम अिैस् लसि म तक पहुूँच ज त ै (मनुष्य के प िे स्पत ), और य आनुविंस्शक कोि को उच्च सिीकत से क्रम देस्शत ककय ै और य गुणन कोस्शक ओं से जीस्वत न स्भक कोस्शक के अिंदर मुड हुआ ै, इसक मतिब य ै कक: ़िरत आदम के बेिों के र सदलय उनकी रचन के समय अपने स्पत आदम के जेनेरिक्स कोि में उपस्लथत थे! और य ीं से उल्िेस्खत पस्वत्र क़ुर न की आय त और दीस शरीफ से सिंगतत क प्रदशिन ोत ै (इस हबिंदु पर म पूवि ब त कर चुके ैं) स थ स थ आिुस्नक स्वज्ञ न की खोज भी इस तक पहुिंच चुकी ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


50


चौथ उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(क्य आदमी इस घमिंि में ै की आ़ि द छोड कदय ज एग [36] ककय व एक बूिंद न थ उस मस्ण क कक स्गर ई ज ए [37]) {सूरए ककय म ३६- ३७}


अथि "क्य आदमी इस घमिंि में ै की उसे आ़ि द छोड कदय ज एग ": क्य इिंस न य सोचत ै की उसे बग़ैर ककसी स् स ब ककत ब के भगव न के आदेश क प िन ककये बगैर सविशस्िम न ईश्वर के आदेश की आज्ञ क ररत और अवज्ञ के स् स ब ककत ब के बग़ैर आ़ि द छोड कदय ज एग (इन म य सज ) की अद यगी के बग़ैर आ़ि द छोड कदय ज एग !


उत्तर,य ै कक: इिंस न को सविशस्िम न ईश्वर के आदेश की आज्ञ क ररत के स्बन रस्ग़ि आ़ि द न ीं छोड ज सकत और रस्ग़ि स्बन स् स ब ककत ब के उसे आ़ि द न ीं छोड ज एग आज्ञ क ररत और अवज्ञ पर (इन म य सज ) के बग़ैर आ़ि द न ीं छोड ज एग और परन्तु उस से प्रश्न ककय ज एग और जव बदे आयोस्जत ककय ज एग और जो कुछ उसने ककय उसक बदि प एग तो स्जस ने थोड भी नेकी ककय ोग उसे उसक इन म और सव ब स्मिेग और स्जस ने थोड भी बुर क म बुर क म ककय ोग तो उसे उसक जव बदे आयोस्जत ककय ज एग ।


""शुक्र णु" क अथि: نُطْفَةً"


जि जो पुरुिों और मस् ि ओं के जन्म क क रण ै !


"गभि में शुक्र णु क बूिंद" क अथि: "ن َُٰ "


जि जो भ्रूण बन ने और जन्म क क रण ो!


य नी: म नव रचन क प्र रम्भ एक वीयि से हुआ (आक र में बहुत छोि ) स्जस में व जि भी श स्मि ै जो जन्म क क रण ै और इस प नी में बहुत स रे शुक्र णु ोत ै (शुक्र णु आदमी के प नी सस् त)।


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


51


आिुस्नक स्वज्ञ न द्व र स्सद्ध ब तें पस्वत्र कुरआन की आयत के अनुरूप ै, पस्वत्र कुरआन की आयत सिंदर्भित करत ै कक भ्रूण की रचन वीयि के (अस्िकतर- एक शुक्र णु )एक शुक्र णु से ोत ै, भगव न के शब्द के अनुस र "शुक्र णु" व्यस्ियों को सिंदर्भित करत ै सिंग्र को न ीं य स्न भ्रूण की रचन वीयि में से एक शुक्र णु से ोत ै सब से न ीं (वीयि ि खों शुक्र णु को श स्मि ोत ै) पस्वत्र क़ुर न ने बहुवचन (शुक्र णुओं) क उपयोग न ीं ककय परिंतु एकवचन क उपयोग ककय ै "शुक्र णु" अस्िकतर गभ िवलथ एक शुक्र णु क मस् ि के जनन िंग कोस्शक में एक अिंि से स्मिकर ोत ै और इस अिंिे क चयन अिंि शय के ज रों अडिों के बीच ोत ै और य शुक्र णु क अिंिे से स्मिकर ोत ै!


और य ीं से आिुस्नक स्वज्ञ न की खोज एविं पस्वत्र कुरआन की आयत में स मस्त ऩिर आती ै स्जस से पस्वत्र क़ुर न के शब्द की सिीकत ,सुवि और आिुस्नक स्वज्ञ न के स्सद्ध ककये गए खोज से स मस्त क पत चित ै!


प िंचव िं उद रण: सविशस्िम न अल्ि फरम त ै:





(कफर उसकी नलि रखी एक बे क़द्र प नी के िुि से से)[सूरए सज्द :8]


""शुक्र णु" क अथि: سُ ا لَ ا لة "


वीयि क स र िंश, स्नकिे हुए (चयस्नत) प नी क खुि स जो प्रसव क क रन ोत ै, य व ी शुक्र णु ै स्जसे स्पछिी आय त ने लपि ककय ै (स्जसक उल्िेख म ने ऊपर दूसरे उद रण में ककय ै) ।


आयते करीम क अथि: म नव की पैद इश की शुरुआत भ्रूण के रूप में शुक्र णु से (प नी के िुि से से) ोती ै (चयस्नत) स्नकिे हुए प नी क खुि स जो प्रसव क क रण बनत ै!


आिुस्नक स्वज्ञ न ने य स स्बत ककय ै कक शुक्र णु (आदमी के वीयि क शुक्र णु) से भ्रूण की तििीक़ ोती ै और इसी से म नव विंशज फैित ै और य पूरी तर कुर न के मुत स्बक ै, पस्वत्र क़ुर न ने इस ब त की तरफ इश र शब्द "विंश" क प्रयोग करके ककय ै भगव न क शब्द "विंश" क स्नम्न में स्ववरण:


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द



हाल के पोस्ट

जैविक विकास - एक इस्ल ...

जैविक विकास - एक इस्लामी परिप्रेक्ष्य

सृजनवाद, विकासवाद, बु ...

सृजनवाद, विकासवाद, बुद्धिमान डिज़ाइन या इस्लाम?

एक मुस्लिम उपदेशक का ...

एक मुस्लिम उपदेशक का एक ईसाई व्यक्ति के लिए एक संदेश

शवल के छह दिन के उपवा ...

शवल के छह दिन के उपवास का पुण्य