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ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द





حوار هادئ بين هندوسي ومسلم





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प्रलत वन


स री प्रशिंस परमेश्वर के स्िए ै, आक श और पृथ्वी के स्नम ित , अिंिक र और प्रक श बन ने व ि , मैं गव ी देत हूूँ कक अल्ि के अि व कोई परमेश्वर न ीं, व अकेि ै उसक कोई स थी न ीं, मैं गव ी देत हूूँ कक मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम उसके बन्दे और रसूि ैं, े अल्ि , स रे नबीयों और रूसूि के अिंस्तम ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम पर बरकत न स़्िि फरम और बरकत न स़्िि फरम उनकी पस्ियों पर, उनके प क घर व िों पर उनके स स्थयों पर और बरकत न स़्िि फरम उनिोगों पर स्जन् ोंने उनकी म गिदशिन से स् द यत प ई और कय मत के कदन तक उनकी सुन्नतों पर क यम र ें !


शुद्ध वृस्त्त, शुद्ध आत्म और स म न्य कदम ग से इलि म की स्शक्ष और सिंदेश पर स्वच र करनेव ि इलि म के सिंदेश को लवीक र करने में पूरी तर अनुकूस्ित ो ज त ै ! य एक स् न्दू द्व र ककये गए प्रश्नों और मुस्लिम द्व र कदए गए इलि म क त र्किक उत्तर से लपि ो ज त ै प्रलतुत ै स्नम्नस्िस्खत ह िंदू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द:


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(प्रश्न1): स् न्दू : पस्िमी मीस्िय स्जस तर इलि म और मुसिम नो को अस्तव द और आतिंकव द से जोड र ै उस पर आपकी क्य रिप्पणी ै?


(उत्तर1): मुस्लिम: इलि म ककसी भी रूप के अस्तव द और आतिंकव द से बहुत दूर ै यकद कोई व्यस्ि इलि म की स नशीि स्शक्ष ओं के स्वपरीत कोई क म करत ै यद्यस्प व अपन सिंबिंिन इलि म से ी क्यों न जोडत ो इलि म इस से बरी ै और आप को ज नने के स्िए इतन ी क फी ै कक शब्द "इलि म" क अथि ी श िंस्त सुरक्ष और सुकून ैं!


ज्ञ त ो कक शब्द (इलि म) क स्रोत(सस्िम) ै और शब्द (सि म)क स्रोत भी(सस्िम) ै स्जसक अथि ै: श िंस्त सुरक्ष और सुकून!इलि म श िंस्त क िमि ै जो सभी के स्िए प्रकि हुआ ै और सभी को सम योस्जत ै इलि म की छ य में सभी सुख, श िंस्त,सुरक्ष अन्य य और अत्य च र के अभ व क आनिंद िे र े ैं!


अल्ि सविशस्िम न फरम त ै:





" स्जसने कोई ज न क़त्ि की बग़ैर ज न के बदिे य ़िमीन में फ़स द ककये तो जैसे उसने सब िोगों को क़त्ि ककय "! [सूरत -अिम इद :32]


इलि म में मनुष्य मनोवैज्ञ स्नक श िंस्त अनुभव करत ै जो कक असिी और व लतस्वक श िंस्त ै इस में मनुष्य अल्ि सविशस्िम न पर हुस्न ऐतक़ द और ईम न से सुरस्क्षत ो ज त ै अल्ि पर ईम न से मनुष्य लवयिं को आश्वलत म सूस करत ै उसक हृदय श िंत ो ज त ै, इलि म क उच्चतम सन्देश, म न अनुदेश और श्रेष्ठ स्शक्षण से उसक तन मन श िंत र त ै!


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(प्रश्न2): स् न्दू : तो कफर इलि म क मफ़हूम क्य ै


से अल्ि मन और अन्त शरीर कदि अक्ि : मफ़हूम क इलि म :मुस्लिम ):2उत्तर(सविशस्िम न के स मने आत्मसमपिण करन और उसके आदेशों क अनुप िन करन ै!


जब मनुष्य अक्ि और स्वच र क अनुप िन करत ै तो उस ईश्वर के अस्लतत्व पर ईम न िे आत ै स्जस ने उसे बन य ै और व ईश्वर अल्ि सविशस्िम न ै और व उसकी एकत , म न क्षमत और ऊिूस् यत पर ईम न िे आत ै कफर व उसके स थ स्शकि न ीं करत , उसके स थ ककसी को भ गीद र न ीं बन त और उसकी ऊिूस् यत पर उसकी श न के मोत स्बक ईम न िे आत ै उसकी अ़िमत व जि ित पर स्बगैर ककसी अभ व के ईम न िे आत ै !


जब मनुष्य कदि और आत्म क अनुप िन करत ै तो अपने परमेश्वर सविशस्िम न से प्य र करने िगत ै उसकी प्रशिंस ,श्रद्ध और बड ई करने िगत ै !


जब मनुष्य तन क अनुप िन करत ै तो अपने परमेश्वर क आज्ञ क री ो ज त ै और स्नस्िद्ध छोड देत ै !


द स प्र णी क य अनुप िन अपने परमेश्वर अपने स्नम ित सविशस्िम न से प्य र के क रण ै उसकी सिंतुस्ि प्र प्त करने तथ उस लवगि की आश के क रण ै ज ूँ सदैव सुख और अनुग्र ै द स क य अनुप िन अपने परमेश्वर के न र ज ोने के भय तथ नरक की उस आग से बचने की आश में ै ज ूँ सख्त ददिन क अ़ि ब ै!


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(प्रश्न3): स् न्दू : इलि म ककस ची़ि की स्नमिंत्रण देत ै ?


(उत्तर3): मुस्लिम : इलि म लपि स्सद्ध िंत के स थ आय ै स्जस से मन प्रबुद्ध ो उठ ै स्जस के म गिदशिन और कदश स्नदेश से अपने स्नम ित क लपि ज्ञ न प्र प्त हुआ, इलि म क सन्देश र उस व्यस्ि के स्िये ै जो उसे अपन न च त ै और स्जस से शुद्ध प्रकृस्त,बुस्द्धम न आत्म और स ि रण मन भी स मत ै,जैस की इलि म के सन्देश से लपि ै:


इलि म क सन्देश स्बन ककसी उिझन के शुद्ध स्वश्व स क ै स्जसे समझने और लवीकृस्त में मन को ़िर भी करठन ई न ीं ोती इसे र तकिसिंगत व्यस्ि लवीक र करने में ़िर भी स्झझक म सूस न ीं करत !


इलि म क सन्देश:


-इलि म क सन्देश परमेश्वर के अस्लतत्व (अल्ि सविशस्िम न) और उसकी एकत पर ईम न ि न ै उसे तम म बुर ई ,िर ब स्ववरण,कस्मयों दोिों और व सब कुछ जो की उसक योग्य न ीं ै से प क म नन ै इलि म क सन्देश परमेश्वर के म न गुणों, म न योग्यत और क्षमत पर ईम न ि न ै!


- एस्न्जल्स(फ़ररश्ते)को अल्ि क म न जीव म नते हुए उस पर ईम न ि न अल्ि ने एस्न्जल्स को पैद ककय और उसे आज्ञ क ररत इब दत और अपन आदेश ि गु करने के स्िए मोकरिर ककय ै व कोई गुन न ीं करते,अल्ि ने उन् ें आज्ञ क ररत अथव गुन की लवतिंत्रत न ीं कदय ै इन् ी एस्न्जल्स में से कोई ररस्विेशन(revelation) के स्िए मुकरिर ै अथ ित उन में से स्जसे अल्ि ने आदेशों,प्रस्तबिंिों म गिदशिन और स्शक्ष के क यि मनुष्यों में से अनपे चुने हुए बन्दे(नबी और रसूि)तक पहुच ने के स्िए प्रभ ररत ककय ै वे उसे उन तक पहुिंच ते ैं!


अल्ि तआि अपन सन्देश फररश्तों के ़िररये अिंस्बय और रसूि पर ररस्विेशन (revelation) द्व र न स़्िि फरम त ै त कक नबी और रसूि अल्ि तआि क सन्देश िोगों तक पहुच एिं और उन् ें अल्ि के सन्देश से स्शस्क्षत करें!


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- आसम नी ककत बों पर ईम न ि न , य ककत बें अल्ि ने ़िरत स्जब्र ईि अिैस् लसि म (जो ररस्विेशन के स्िए ख स ैं) के ़िररये अपने रसूिों पे न स़्िि फ़रम य ै य ककत बें मनुष्य के स्िए आदेशों, प्रस्तबिंिों म गिदशिन और स्शक्ष पर स्नि िररत ैं!


-परमेश्वर के नस्बयों और दूतों पे ईम न ि न और इनकी इज़़्ित करन , नस्ब और दूत वे ोते ैं स्जसे सृस्ि (मनुष्यों) में से ी ईश्वर सविशस्िम न चुन िेत ै त कक वे परमेश्वर क सन्देश मनुष्य तक पहुच एिं, िोगों को उनके स्नम ित उनके परमेश्वर से पररचय कर एिं उसके एक ईश्वर ोने पे ईम न ि ने की द वत दें परमेश्वर के स्नदेशन अनुस र इब दत क तरीक़ बत एिं (जो कक उसकी स् कमत और मस्शय्यत से खिी न ीं ै)त कक मनुष्य अपने क य िन्वयन के म ध्यम से उनउपदेशों और आदेशों क प िन करें !


- आस्िरत के कदन पर ईम न ि न , य व कदन ै स्जस कदन सविशस्िम न ईश्वर द्व र िोगों को उनकी मृत्यु के ब द कफर से दोब र ह़ििंद ककय ज एग और उनसे दुस्नय में उनक ईम न उनके क म-क ज क स् स ब स्िय ज एग तो स्जस ने अस्त म त्र में भी अच्छ क म ककय ोग व उसक बदि और सव ब प एग और स्जस ने अस्त म त्र में भी बुर ई ककय ोग तो व उसके स्िए आयोस्जत जव बदे ोग और उसक आत्मस्नरीक्षण ककय ज एग ।


- अच्छी बुरी तक़दीर पे ईम न, इसक मतिब य ै की : इस दुस्नय िं में जो कुछ भी ोत ै य ो र ै और म नव के स थ जो भी अच्छ य बुर ोत ै (आस नी य तिंगी, अमीरी ग़रीबी से त और बीम री) य सब प िे से अल्ि की ओर जे स्िख ज चूक ै (सविशस्िम न के स् कमत और उसकी इच्छ अनुस र) और उसके ब रे में सविशस्िम न को पूरी ज नक री ै और व अस्िक ज नने व ि और अस्िक स्वशेिज्ञ ै!


-म गिदशिक पूज जीस से म नव म नस पस्वत्र ो ज त ै, दोि बुर इयों और खर ब नैस्तकत से प क स फ ो ज त ै नैस्तकत और ए स न के आि मतिबे पे फ़ इ़ि ो ज त ै!


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- अच्छे मुआमि त प्रशिंसनीय क नून और उच्च स्शक्ष , त कक सिंपूणि म नव जीवन न्य य ईम नद री और सीिे तरीके से चिे!


- स्शक्ष स्वज्ञ न और जीवन के सभी क्षेत्रों में म नव ज स्त की प्रगस्त एविं उन्नस्त!


- अच्छ ई और नेकी करन एविं बुर ई से बचन !


- न्य य इ स न रररश्तेद रों के स थ अच्छ बत िव करन और अन्य य अनैस्तकत अभद्रत और बुर ई से बचन !


- मनुष्य क सम्म न और उसकी जीवन क सिंरक्षण करन


- जीवन के सभी चरणों में न री क सम्म न करन , जन्म और बचपन से िेकर(छोिी बच्ची से िेकर बडी ोकर दुल् न बन ज ने तक) (श दी की अवलथ से गु़िरते हुए एक पिी के रूप में) और म िं बनने की अवलथ से गु़िरते हुए (म िं और द दी के रूप में) द दी के अवलथ तक!


- बच्चों के प्रजनन क ए तम म और उनके स थ करुण और दय करन


- युव व्यवलथ पे ध्य न


- दूसरे प्र स्णयों के स थ दय करन (पशु,पक्षी,पेड, पौि इत्य कद,,,)


- दूसरे िमों के म नने व िों के स थ बुस्द्ध और अच्छी सि क उपयोग करते हुए म नस्सक और त र्किक सिंव द करन त कक वे एक सविशस्िम न परमेश्वर पे ईम न ि एूँ जो सब क स्नम ित ै और उसके स थ स्शकि न करें!


- गैर- मुस्लिम के स थ अच्छ व्यव र


- एकरूपत , एकजुित , समरसत , आपसी स्ने और आपसी करुण अपन न


- युद्ध में क्षम , मुसिम नों क अपने दुश्मनों के स्खि फ युद्ध य तो दुश्मनों पर आक्र मकत के क रण य अपने िमि (इलि म) की रक्ष की वज से थी और इलि म की तबिीग की रक्ष के क रण इलि म की छस्व को स्वकृत और उसकी व लतस्वकत को स्बग डने व िो के स्वरुद्ध थी और उसके स्वरुद्ध थी जो इलि म की स्नमिंत्रण और सविशस्िम न परमेश्वर के सिंदेश उसकी स्शक्ष एविं पररचय को जनत तक पहुच ने से


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रोकत ै परन्तु इलि म ने मुसिम नों को युद्धों में र जद्रो और स्वश्व सघ त से मन ककय ै बच्चों, मस् ि ओं, स्वकि िंग और बुजुगि (गैर-योद्ध ओं) की त्य से मन ककय ै और आत्मसमपिण करने व िों, स्न थ्थों (जो मुसिम नों से न ीं िडते) की त्य से मन ककय ै! घरों को तोडफोड करने, पेड क िने, श री स्वध्विंस और िरती पे ककसी भी रूप के भ्रि च र से मन ककय ै ! इलि म दय और क्षम पर आि ररत िमि ै िड ई में म नवीय व्यव र और िेनदेन में न्य य पर आि ररत ै!


- युद्ध के कैकदयों के स थ अच्छे म मि करन !


- श िंस्त के स्सद्ध न्त और श िंस्त के स िन को अपन न और उग्रव द एविं आतिंकव द से दूर र न ै प्रस्तबद्धत ओं और प्रसिंस्वद एिं को स्नभ न ै!


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(प्रश्न4): स् न्दू : इलि म एक ईश्वर में स्वश्व स की द वत क्यों देत ै?


(उत्तर4): मुस्लिम: सबसे प िी ब त य ै कक इलि म िमि मनुष्य को जगत के स्नम ित पर ईम न ि ने के स्िए आमिंस्त्रत करत ै और व स्नम ित (सविशस्िम न ईश्वर) अल्ि ै! स्जस तर प्रत्येक मौजूद वलतु के स्िए उसक बन ने व ि च स् ए प्रत्येक स्नम िण क स्नम ित च स् ए ठीक उसी तर प्रत्येक प्र णी क स्नम ित ोन च स् ए और इसी ब त को स मने रखते हुए अपने ईश्वर एविं स्नम ित के अस्लतत्व में स्वश्व स ोन च स् ए यद्यस्प उसे देख न ीं सकते िेककन अनस्गनत प्रभ व और सबूत उसकी अस्लतत्व के स क्ष्य ै!


उसक उद रण: इिंस न अपनी आत्म को न ीं देखत परिंतु जीवन के अस्लतत्व के क रन उसकी अस्लतत्व में स्वश्व स रखत ै, व अपनी अक़्ि को न ीं देखत िेककन व प्रस्तहबिंब और हचिंतन की क्षमत के क रन उसके अस्लतत्व में स्वश्व स रखत ै, इसी तर आकििण-शस्ि को देख न ीं ज सकत िेककन आकििण की शस्ि के क रन उसकी वजूद पे यकीन रखत ै... आकद!


ठीक इसी तर परमेश्वर सविशस्िम न स्नम ित के अस्लतत्व पर अगणनीय स्नश स्नय िं प्रभ व और सबूत व चक ै!


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- इलि म सविशस्िम न स्नम ित ईश्वर की त ़िीम, उसके म न गुणों ,कम िे स् कमत पूणित इल्म और बहुमुखी प्रस्तभ एविं क्षमत पर ईम न ि ने के स्िए आमिंस्त्रत करत ै!


य स री चीजें बेशक सविशस्िम न अल्ि के एक ोने,ओस्िस् यत में मुनफ़ररद ोने की सन्देश देती ैं !


-बेशक सविशस्िम न अल्ि केवि एक ी ईश्वर ै बेशक सविशस्िम न अल्ि तन् इस दुस्नय के तसरुिफ़ क म स्िक ै और उसके इि व ककसी और को य छमत न ीं ईश्वर केवि एक ै और व केवि सविशस्िम न अल्ि ै!


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(प्रश्न5): स् न्दू: क्य प्रम ण ै कक भगव न एक ी परमेश्वर ै (स्नम ित , रक्षक दुस्नय के तसरुिफ़ क म स्िक) दो य तीन य अस्िक परमेश्व क्यों न ीं ?


(उत्तर5): मुस्लिम: इससे प िे कक मैं जव ब दूूँ मैं आप से पूछन च त हूूँ क्य आप ज नते ैं कक ह िंदू श स्त्र केवि एक परमेश्व ोने पर इलि म से स मत ै?


ह िंदु: य कैसे?


मुस्लिम: ह िंदू ग्रिंथों में कई लथ नों पर केवि एक ी ईश्वर क उल्िेख ै उसक कोई दूसर न ीं, ग्रिंथों में उल्िेख ककये गए लथ नों में से कुछ की रेफ्रेंस नीचे ैं,


-(ककत ब :उपस्निद- चिंिोज्ञ/भ ग6 स्िवीज न: 2/ सिंख्य : 1) में सिंलकृत भ ि में क गय ै स्जसक अथि ै कक: बेशक भगवन एक ै उसक कोई दूसर न ीं -( ककत ब :उपस्निद- भ ग 6: सिंख्य : 9) में सिंलकृत भ ि में क गय ै स्जसक अथि ै कक: भगव न के स थ कोई अन्य भगव न न ीं, य नी: उसके कोई म त स्पत न ीं, व सवोच्च ईश्वर ै कोई भी उससे ऊपर न ीं ै!


इस के इि व और भी बहुत स री जग ों पर स् न्दू श स्त्रों में इस ब त क स़्िक्र ै की भगव न ककवि एक ै और अल्ि सविशस्िम न की व द स्नयत पर बेशुम र दिीिें मौजूद ै स्जसमें से कुछ नीचे दजि ै!


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1- प्र कृस्तक प्रम ण: र पैद ोने व ि बच्च कफ़त्रतन अपने पैद करने और बन ने व िे पर ईम न के स थ पैद ोत ै एक अल्ि पर ईम न के स थ पैद ोत ै इसक प्रम ण य ै की आप जब नवज त स्शशु को सचेत और ज गरूक बनने के स्िए उसके आलथ में बगैर ककसी ब री प्रभ व के उसे एकेि छोड दें तो जल्द ी आप इस ब त को म सूस करेंगे कक उसक आलथ व ी ै स्जस पर अल्ि ने उसे पैद ककय ै उसक झुक व अपने पैद करने और बन ने व िे की तरफ ै और कफर य क रक उसे केवि एक ईश्वर पर ईम न ि ने के स्िए उभ रत ै व ईश्वर जो म न बिव न और सभी प्र स्णयों की रचन पर सक्षम ै!


अक्सर म य देखते ैं कक इिंस न (ज गरूक और सचेत) अपनी ़िरुरत और आवश्यकत के समय ईश्वर को य क ते हुए पुक रत ै:


े भगव न, े प्रभु, े सृस्िकत ि (एक भगवन मुर द िेते हुए दो य ज्य द य अन्य न ीं) मुझे म गिदशिन दे - मेर म मि आस न कर - मेरी ़िरुरत पूरी कर- मुझे अकेि मत छोड..., य क ते न ीं स्मिेग ओ मेरे भगव नो, े सृस्िकत िओ, े वे स्जन् ों ने मेरी सृस्लि की (बहुवचन के सिंदभि मे), जो दश ित ै की स्नम ित और स्वि त केवि एक ी परमेश्वर ै और व अल्ि , सविशस्िम न ै ।


2- यकद ककसी व्यस्ि से पूछ ज ए कक: उसको ककसने पैद ककय ककस ने बन य और ककस ने सम्पूणि जीव को पैद ककय और बन य ?


त र्किक उत्तर य ोग कक स्जस ने उसे पैद ककय बन य और स्जस ने सम्पूणि जीव को पैद ककय और बन य अवश्य एक म न शस्िश िी परमेश्वर ै जो अपनी क्षमत क वणिन रचन और स्नम िण द्व र करत ै और अगर इसी प्रश्न को ब र ब र अिग अिग ढिंग से इस प्रक र ककय ज ए: ककसने इस भगव न की रचन की और ककस ने उसे वजूद बख्श और अगर म न स्िय ज ए कक उसक उत्तर इस तर ै: ़िरूर एक और भगव न ै जो अपनी क़ुव्वत और अ़िमत ़ि स् र करत ै तो व इस एक ी तर के अनिंत सव ि के तकर र से परेश न ो ज एग की ककसने इस भगव न की रचन की और ककस ने उसे वजूद बख्श इस प्रक र उत्तर ब र ब र दो र य ज त र ेग और स ी उत्तर तक पहुचन मुस्श्कि ो ज एग इसक क रण य ै जव ब शुरू से ी तकिस्वरय्द्ध और गित थ !


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इस सव ि क स ी जव ब ोग : कक व सविशस्िम न परमेश्वर स्जस ने इस दुस्नय और म नव ज ती को बन य और उसे वजूद में ि य उसे कोई बन ने व ि न ीं ै य िं से य म िूम ोत ै कक केवि एक ईश्वर के इि व कोई और भगव न न ीं से चीजों को अस्लतत्व त् वअनस्लतऔर बहुमुखी प्रस्तभ क वणिन जो अपनी म नत देकर करत ै य ी त र्किक और प्र रूस्पक उत्तर ै और स म न्य ज्ञ न रखने व ि कोई भी व्यस्ि इसक इिंक र न ीं कर सकत !


- और जैस की इससे प िे मैं ने वर्णित ककय की सविशस्िम न ईश्वर केवि एक ै उसके इि व कोई और भगव न न ीं व ी अकेिे इस दुस्नय िं को चित ै उसके इि व कोई इस दुस्नय िं क म स्िक न ीं एक ईश्वर के इि व कोई पूज के ि यक़ न ीं (और व सविशस्िम न ईश्वर अल्ि प क ै)!


3-अगर म न स्िय ज ए की एक से ज्य द ईश्वर ै और प्रत्येक ईश्वर के स्िए लवतिंत्र इच्छ ै, अब उनमें से एक ईश्वर कुछ करन च त ै जबकक दूसर उस क म क स्बिकुि स्वपरीत क म करन च त ै (उद रण के स्िए उन में से एक ककसी वलतु को रकत देन च त ै जबकक दूसर रकत देन न ीं च त ) तो उस वि क्य ोग ?


इस प्रश्न क उत्तर (जो एक कस्ल्पत ि रण क पररण म थ ) तीन सिंभ वन ओं से ब र न ीं ोग जो इस प्रक र ै:


क - य तो दोनों क इर द पूर ोग , जो एक झूठ द व ै क्योंकक य अक़्ि के खेि फ ै जैसे के एक ी समय में स्जलम को स् ि न और न स् ि न सम्भव न ीं


ख - य दोनों अपने इर दे को पूर न ीं कर सकते और य भी एक झूठ द व ै क्योंकक सब कुछ करने की छमत रखने व िे भगव न में अस य ोन प य ज एग जो की असम्भव ै


ग - य तो केवि एक की मुर द पूरी ोगी और दूसरे की न ीं, तो उस समय सच्च परमेश्वर व ोग जो सब कुछ करने की छमत रखत ै


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इस ि रण के पुनर वृस्त्त से य ब त स फ ो ज ती ै कक एक सच्च ईश्वर के इि व कोई और ईश्वर न ीं और व ईश्वर र ची़ि पैद करने व ि और बन ने व ि ै जो इस दुस्नय िं क म स्िक ै और अपन इर द पुरे करने में सक्षम ै


4- अगर एक से अस्िक भगव न ोते तो कभी एक भगव न की दूसरे पे और कभी दूसरे भगव न की प िे पे म नत प्र प्त ोती और इस तर आक श और पृथ्वी नि ो ज ते सिंस र, सिंपूणि म नवत जीवन, जीव एविं पररसिंपस्त्तयों क स्वन श ो ज त


िेककन व लतव में ऐस न ीं ै बस्ल्क इस सिंस र में सिंतुिन और सम नत ै ज्ञ त हुआ की केवि एक ी भगव न ै और व भगव न म न मजबूत सक्षम और सब कुछ क म स्िक ै और व सविशस्िम न अल्ि ै


य उद रण स्जस की मैं ने उल्िेख ककय ै: अगर प्रश सन य र ज्य लथ स्पत करने के स्िए र जीत की िड ई ोती तो प्रत्येक पक्ष प्रश सन और र ज्य स्सि करने के प्रय स में सिंघिि और युद्ध करत (जो त्य , स्वन श और तब ी क सबब ै) और ककसी एक पक्ष क अकेिे श शन में आए स्बन और अपने देश में स्लथरत लथ स्पत ककय स्बन स्लथरत क यम न ीं ो सकती


अच्छ यकद ककसी देश में एक से अस्िक र ष्ट्रपस्त ो तो क्य उस देश में स्लथरत


लथ स्पत ोग ?


स्नस्ित रूप से: न ीं, स्नसिंदे उन के बीच स्वव द उत्पन्न ो ज एग और इसके अस्तररि य की स्वव द के फिलवरूप र ज्य की प्रगस्त रुक ज एगी और र ज्य क


स्न और नुकस न ोग ,


य लपि ै कक दुस्नय के स रे देश इसब त पर स मत ैं की र देश क केवि एक व्यस्ि ी र ष््पस्त ो,ठीक इसी तर जीव और पररसिंपस्त्तयों के इस ब्रह् िंि के स्िए भी य ी ब त ै, बेशक उनक स्नम ित और उन् ें बन ने व ि केवि एक ईश्वर ै और व ईश्वर म न मजबूत सक्षम और सब कुछ क म स्िक ै!


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5-अगर म न स्िय ज ए कक एक गुि म क केवि एक ी व्यस्ि म स्िक ै और व गुि म अपने म स्िक के आज्ञ क प िन करत ै और स्बन ककसी स्वििंब के उसके स्वशेि आदेश और स्नदेशों क क य िन्वयन करत ै, अगर य ग़ुि म एक से अस्िक व्यस्ि के प स बेच कदय ज ए (दो, तीन, य ...) अब व अपने सभी म स्िकों के आदेशों और आज्ञ क प िन करने की कोस्शश करत ै तो क्य उसकी ि त और उसक म मि ठीक ठ क र ेग ?


स्नस्ित रूप से: न ीं। क्योंकक प िी ित में (जब व एक ी व्यस्ि क गुि म थ ) उसक मन स फ़ थ , आर म और सुकून से थ , और अपने म स्िक की सिंतुस्ि से उसकी कृप से आत्म स्वजेत थ िेककन दूसरी ित में(एक से अस्िक व्यस्ि के लव स्मत्व में) खुद को स्चत्तभ्र िंत ,स्वचस्ित और हचिंत शीि म सूस करेग लवयिं को अपने म स्िकों की स मस्त स्सि न कर प ने व ि और उनके प्रस्तक र क दस्डित प एग ककयोंकक अपने म स्िकों के हुक्म में अिंतर और असिंगस्त की वज से ककसी एक के हुक्म म नने और दूसरों के आदेश को नजरअिंद ज करने पर मजबूर ोग और एक क हुक्म म न कर दूसरे क गुन ग र ोग , कफर ककसी और मस्िक के आज्ञ क ररत और आदेश को ि गू करने में दूसरे म स्िकों क उपेक्ष करके गुन ग र ोग और इस तर अिंत में सभों के आज्ञ क उल्ििंघन करने की वज से गुन ग र ोग सभों के गुलसे एविं दिंि क योग्य ोग !


जब बहुत स रे भगव न ोंगें और उनके आदेश परलपर स्वरोिी ोंगें उनके म गिदशिन स्भन्न ोग तो य कमजोर प्र णी सेवक क ूँ ज एग ककस के आदेश क प िन करेग ?


यकद उन में से ककसी एक (देवत ओं में से एक) के आदेश क प िन करेग एक की सिंतुस्ि प्र प्त करेग तो दूसरे य अन्य दूसरे क गुन ग र ोग उनके गुलसे एविं दिंि क योग्य ोग !


य भी इस ब त की पुस्ि करत ै कक स्नसिंदे स्नम ित , वजूद देने व ि शस्िश िी म न कुदरत व ि र ची़ि क म स्िक तन इब दत के ि इक ़िरूरी ै की केवि एक ईश्वर ो और व सविशस्िम न अल्ि ै!


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(प्रश्न6): स् न्दू: इलि म में क्यों बहुदेवव द (एक से अस्िक भगव न क अस्लतत्व) सबसे बड प प ै ?


(उत्तर6):मुस्लिम: इसक क रण स्बल्कुि लपि ै सच्च परमेश्वर अल्ि सविशस्िम न ी ै और उसके इि व स रे झूठे और अशि म बूद परमेश्वर न ीं ैं अन्त थ ककसी ची़ि के ोने और न ोने में स्नम ित और प्र णी में वजूद देने व ि और मौजूद वलतु में क्य अिंतर र ज एग ..., दो असिंगत के बीच पूणि सम नत कभी न ीं ककय ज सकत इसस्िए, एक से अस्िक परमेश्वर क द व , सबसे बड अन्य य और भगव न के अस्िक र क सबसे बड उल्ििंघन ै, परमेश्वर एक ै और व सविशस्िम न अल्ि ै जो न पैद हुआ और न उसकी कोई सिंत न ै व सच्च ईश्वर ै और ईश् वरत् व में अस्द्वतीय ै!


स्नम्न में कदये उद रणों से इसे अस्िक लपि ककय ज सकत ै: में स्वव द सत्त उसकी कोई की करेग लवीक र य र ज य सुल्त न कोई क्य - न ीं।: से रूप स्नस्ित? ै भवसिं य क्य करे


भ गीद री की आदमी और एक में पिी अपनी व्यस्ि) लवलथ सम्म न( कोई क्य - न ीं।: से रूप स्नस्ित? ै सिंभव य क्य करेग लवीक र


- यकद कोई इिंस न अपने अकेि सेव के स्िए कोई नौकर रखत ै अपने नौकर को व उसके समय और मे नत क पेमेंि करत ै क्य व व्यस्ि इस ब त को पसिंद स्नस्ित? ै सिंभव य क्य करे नौकरी की दूसरे ककसी नौकर व उसक कक करेग रूप से: न ीं।


यकद य ि म मि एक म नव प्र णी क ै स्जसे अपने क़में स्वव द लवीक र न ीं तो सविशस्िम न परमेश्वर केब रे में आप क क्य ख्य ि ै जो इस दुस्नय क स्नम ित ै स्जसकी कुदरत में सबकुछ ै जो तन् इस दुस्नय िं को चि त ै! रूप अनुस्चत( कोई की करेग लवीक र य ईश्वर सविशस्िम न ै वसिंभ य क्य से) उसकी हुकूमत में स्वव द करे और उसक प ििनर बने?


स्नस्ित रूप से : न ीं सविशस्िम न परमेश्वर अपने क़ में दूसरों की तुिन में अस्िक सम्म न लवलथ ै!


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जीव पर सब से प ि क़ सविशस्िम न परमेश्वर क ै इसस्िए ़िरूरी ै की स री जीव उसके म बूद और एक ईश्वर ोने क इक़र र करें और ईश्वर की नेमतों क इक़र र करें !


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(प्रश्न7): स् न्दू: इलि म में क्यों भगव न क छस्वयों और मूर्तियों के रूप में स्चत्रण स्नस्िद्ध ै?


(उत्तर7): मुस्लिम: उत्तर देने से प िे इस हबिंदु पर भी मैं आप से पूछन च त हूूँ कक क्य आप ज नते ैं कक स् न्दू श स्त्र इस ब त पर इलि म िमि से स मत ै की छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न क स्चत्रण स्नस्िद्ध ै?


स् न्दू: य कैसे ?


मुस्लिम: स् न्दू श स्त्रों में कई लथ नों पर छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न के स्चत्रण से रोक गय ै जो स्नम्नस्िस्खत ैं:


ककत ब :उपस्निद- श्वेत श्वत र / भ ग 4/ सिंख्य : 19) में क गय ै स्जसक मतिब ै की: (भगव न क कोई प्रस्तम न ीं ै)


शब्द " प्रस्तम " एक सिंलकृत शब्द ै स्जसक अथि ै : प्रतीक, छस्व, आरेस्खत करन , वणिन, मूर्ति, बुत, नक्क शी, कक्षस्क्िक चे र , और इसक मतिब य ै कक भगव न क कोई प्रतीक, छस्व, लकेच, वणिन, मूर्ति, बुत, नक्क शी य स्चत्र न ीं ै!


- इस अथि की पुस्ि कई अन्य लथ नों पर भी ोती ै स्जनमें से यजुवेद भी एक ै! (यजुवेद खिंि: 32 / कुि: 3)


उल्िेस्खत ब तों से लपि ो ज त ै कक: इलि म क सन्देश स्नम ित परमेश्वर की स्सफ़तों की प्रशिंस करन ै न की पत्थर य स्मट्टी क प्रस्तम बन कर उसकी स्सफ़तों को कम करन !


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य अक्ि के स्खि फ ै की स्जस परमेश्वर ने म नव प्र णी को अनस्लतत् व से अस्लतत्व में ि य व ी म नव प्र णी परमेश्वर की अिग अिग रूपों में स्वस्भन्न प्रस्तम एिं बन ए


(इसके ब वजूद की म नव प्र णी ने अपने स्नम ित को कभी देख ी न ीं) तथ कफर कोई दूसर आदमी आए और अन्य रूपों और छस्वयों में अपने भगव न की प्रस्तम एिं बन ए इत्य कद इसी तर और भी?


प्र णी द्व र स्नम ित के प्र स्णयों में से ककसी प्र णी की शक्ि में उसकी प्रस्तम बन न परमेश्वर क अपम न ै तथ स्नम ित परमेश्वर र उस प्रस्तम से म न ै स्जसे म नुि द्व र कल्पन ककय ज सकत ै और इस तर के स्चत्र , स्वस्भन्न आक र और रूप की मूर्तिय िं समय बीतने के स थ म नव म नस के स्िए मस् म ग न क क रण बन ज ती ैं और सच्च परमेश्वर को छोड कर जो की तन मस् म ग न और पूज के योग्य ै प्रस्तम की पूज और प्र थिन करने िगत ै (स्वशेिकर यकद वे बडे और अजीब दृश्य के ों) और इस ब त क सबूत कई देशों में स्मित ै!


सविशस्िम न परमेश्वर सब को पैद करने व ि और सब को बन ने व ि ै उसके इस्ख्तय र में र ची़ि की ब दश त ै व र ची़ि को अकेिे स्नपि त ै च े व प्र णी ो य स्नर्मित !


और य ी स् कमत ै की इलि म ने ईश्वर क प्रस्तम बन ने से मन ककय ै च े व स्मट्टी क प्रस्तम ो य पत्थर क और सविशस्िम न परमेश्वर की श न के मोत स्बक उसकी पूज और त ़िीम करने क आदेश कदय ै!


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(प्रश्न8): स् न्दू: ह िंदू क ते ैं की प्रस्तम ओं की पूज क उद्देश्य केंकद्रत ध्य न के स थ भगव न की पूज करन और मन में व्य कुित क अभ व कम करन ै,इस ब रे में आप क क्य क न ै?


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(उत्तर8): मुस्लिम: य ब त स्नर ि र ै मैं उद रण के म ध्यम से इसे लपि करन च त हूूँ:


क्य य कल्पन ककय ज सकत ै की कोई मस् ि अपने पस्त को छोड ककसी ग़ैर मदि की छस्व इस्ततय र करे इस गुम न में की इस से उसक मन अपने पस्त की य द में ़िय द केस्न्द्रत और अज्ञ नक री ोग और उसे भूिन न मुमककन ोग ? जबकक इस की आज्ञ उसके पस्त ने उसे न ीं कदय ै क्य पस्त के स्िए य मुमककन ोग की इस तर के ग़ित और स्नर ि र द वे को कोबुि करे?! स्नस्ित रूप से: न ी इसके और उसके बीच कोई सिंबिंि न ीं ै और पस्त अपने अस्िक र में इसे गिंभीर गिती म नेग !


- ठीक इसी तर अल्प, न ़िुक और दुघििन ग्रलत ोने व िे प्रस्तम (एक कम़िोर जीव द्व र बन य गय ) सविशस्िम न स्वश्व के स्नम ित ईश्वर से क्य ररश्त और क्य सिंबिंि ै?! स्नसिंदे ़िर भी सिंबिंि क कोई गुिंज इश न ीं और ऐसे स्नि िररत द वे को म नन ईश्वर क अपम न ै!


बस्ल्क य अपम नजनक तलवीरें ऐसे ईश्वर की कल्पन की ि रण देती ै जो उसकी मस् म और गौरव के योग्य न ीं र कोई अपने अपने ढिंग से अिग अिग शक्िो सूरत में अपने भगवन की मूर्ति बन त ै और स्जस स्जस भवग न की पूज करत ै उस पे गवि के क रन र व्यस्ि अपने भगव न को दूसरे के भगव न से शस्िश िी बत त ै एक भगव न की मूर्ति दूसरे भगव न की मूर्तियों से अिग ोती ैं कोई मूर्ति उच्च दज ि की ोती ै तो कोई कम द़ि ि की और कोई उस से भी कम द़िे की... और इसी तर , ग य को अन्य पूजनीय ज नवरों से अस्िक पस्वत्र म न ज त ै और प्रत्येक क अिग अिग ढिंग से अपनी इक्छ अनुस र पूज ककय ज त ै!


य ीं से य ब त लपि ो ज ती ै की इस तर के गैर प्रम स्णत और स्बन सबूत के ब तों की कोई वजूद न ीं ै!


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