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इस्लाम


पवित्र क़ुरआन तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाह़ु अलैहह ि सल्लम की स़ुन्नत के आलोक में इस्लाम का पररचय प्रस्त़ुत करने िाली एक संक्षिप्त पुस्ततका





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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


अल्लाह के नाम से (शुरू किता ह ूँ), जो बडा दयालु एवं दयावान है।


इस्लाम


पवित्र क़ुरआन तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाह़ु अलैहह ि सल्लम की स़ुन्नत के आलोक में इस्लाम का पररचय प्रस्त़ुत करने िाली एक संक्षिप्त प़ुस्स्तका


(तकक िक्षहत संस्किण) 1


1 नीचे दी गई वेबसाइट पि इस क्षकताब की एक ऐसी प्रक्षत उपलब्ध है, क्षजसमें हि मसले पि कुिआन औि सुन्नत से तकक मौजूद हैं :


http://islamhouse.com/ar/books/2830071


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


यह इस्लाम के संक्षिप्त परिचय पि आधारित, एक अक्षत महत्वपूणक पुक्षस्तका है, क्षजसमें इस धमक के अहम उसूलों, क्षशिाओं तथा क्षवशेषताओं का, इस्लाम के दो असली संदर्भों अथाकत कुिआन एवं हदीस की िोशनी में, वणकन क्षकया गया है। यह पुक्षस्तका परिक्षस्थक्षतयों औि हालात से इति, हि समय औि हि स्थान के मुक्षस्लमों तथा गैि-मुक्षस्लमों को उनकी जुबानों में संबोक्षधत किती है।


1. इस्लाम, दुक्षनया के समस्त लोगों की तिफ अल्लाह का अंक्षतम एवं अजि-अमि पैगाम है।


2. इस्लाम, क्षकसी क्षलंग क्षवशेष या जाक्षत क्षवशेष का नहीं, अक्षपतु समस्त लोगों के क्षलए अल्लाह तआला का धमक है।


3. इस्लाम वह ईश्विीय संदेश है, जो पहले के नक्षबयों औि िसूलों के उन संदेशों को पूणकता प्रदान किने आया, जो वे अपनी कौमों की तिफ लेकि प्रेक्षषत हुए थे।


4. समस्त नक्षबयों का धमक एक औि शिीयतें (धमक-क्षवधान) क्षर्भन्न थीं।


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


5. तमाम नक्षबयों औि िसूलों, जैसे नूह, इबिाहीम, मूसा, सुलैमान, दाऊद औि ईसा -अलैक्षहमुस सलाम- आक्षद ने क्षजस बात की ओि बुलाया, उसी की ओि इस्लाम र्भी बुलाता है, औि वह है इस बात पि ईमान क्षक सबका पालनहाि, िचक्षयता, िोजी-दाता, क्षजलाने वाला, मािने वाला औि पूिे ब्रह्ांड का स्वामी केवल अल्लाह है। वही है जो सािे मामलात का व्यस्थापक है औि वह बेहद दयावान औि कृपालु है।


6. अल्लाह तआला ही एक मात्र िचक्षयता है औि बस वही पूजे जाने का हकदाि है। उसके साथ क्षकसी औि की पूजा-वंदना किना पूणकतया अनुक्षचत है।


7. दुक्षनया की हि वस्तु, चाहे हम उसे देख सकें या नहीं देख सकें, का िचक्षयता बस अल्लाह है। उसके अक्षतरिक्त जो कुछ र्भी है, उसी की सृक्षि है। अल्लाह तआला ने आसमानों औि धिती को छः क्षदनों में पैदा क्षकया है।


8. बादशाहत, सृजन, व्यवस्थापन औि इबादत में अल्लाह तआला का कोई साझी एवं शिीक नहीं है।


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9. अल्लाह तआला ने ना क्षकसी को जना औि ना ही वह स्वयं क्षकसी के द्वािा जना गया, ना उसका समतुल्य कोई है औि ना ही कोई समकि।


10. अल्लाह तआला क्षकसी चीज में प्रक्षवि नहीं होता औि ना ही अपनी सृक्षि में से क्षकसी चीज में रूपांक्षत्रत होता है।


11. अल्लाह तआला अपने बंदों पि बडा ही दयावान औि कृपाशील है। इसी क्षलए उसने बहुत सािे िसूल र्भेजे औि बहुत सािी क्षकताबें उतािीं।


12. अल्लाह तआला ही वह अकेला दयावान िब है, जो कयामत के क्षदन समस्त इनसानों का, उन्हें उनकी कब्रों से दोबािा जीक्षवत किके उठाने के बाद, क्षहसाब-क्षकताब लेगा औि हि व्यक्षक्त को उसके अच्छे-बुिे कमों के अनुसाि प्रक्षतफल देगा। क्षजसने मोक्षमन िहते हुए अचछे कमक क्षकए होंगे, उसे हमेशा िहने वाली नेमतें प्रदान किेगा औि जो दुक्षनया में काक्ष़िि िहा होगा औि बुिे कमक क्षकए होंगे, उसे प्रलय में र्भयंकि यातना से ग्रस्त किेगा।


13. अल्लाह तआला ने आदम को क्षमट्टी से पैदा क्षकया औि उनके बाद उनकी संतान को धीिे-धीिे पूिी धिती पि फैला क्षदया।


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इस तिह तमाम इनसान मूल रूप से पूणकतया एक समान हैं। क्षकसी क्षलंग क्षवशेष को क्षकसी अन्य क्षलंग पि औि क्षकसी कौम को क्षकसी दूसिी कौम पि, तकवा एवं पिहेजगािी के अलावा, कोई विीयता प्राप्त नहीं है।


14. हि बच्चा, प्रकृक्षत पि अथाकत मुसलमान होकि पैदा होता है।


15. कोई र्भी इनसान, जन्म-क्षसद्द पापी नहीं होता औि ना ही क्षकसी औि के गुनाह का उत्तिाक्षधकािी बनकि पैदा होता है।


16. मानव-िचना का मुख्यतम उ􀄥ेश्य, केवल एक अल्लाह की पूजा-उपासना है।


17. इस्लाम ने समस्त इनसानों, नि हों क्षक नािी, को सम्मान प्रदान क्षकया है, उन्हें उनके समस्त अक्षधकािों की जमानत दी है, हि इनसान को उसके समस्त अक्षधकािों औि क्षियाकलापों के परिणाम का क्षजम्मेदाि बनाया है, औि उसके क्षकसी र्भी ऐसे कमक का र्भुक्तर्भोगी र्भी उसे ही ठहिाया है जो स्वयं उसके क्षलए अथवा क्षकसी दूसिे इनसान के क्षलए हाक्षनकािक हो।


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18. नि-नािी दोनों को, दाक्षयत्व, श्रेय औि पुण्य के ऐतबाि से बिाबिी का दजाक क्षदया है।


19. इस्लाम धमक ने नािी को इस प्रकाि र्भी सम्मान क्षदया है क्षक उसे पुरुष का आधा र्भाग माना है। यक्षद पुरुष सिम हो तो उसी को नािी के हि प्रकाि का खचक उठाने का दाक्षयत्व क्षदया है। इसक्षलए, बेटी का खचक बाप पि, यक्षद बेटा जवान औि सिम हो तो उसी पि माूँ का खचक औि पत्नी का खचक पक्षत पि वाक्षजब क्षकया है।


20. मृत्यु का मतलब कतई यह नहीं है क्षक इनसान सदा के क्षलए ़िना हो गया, अक्षपतु वास्तव में इनसान मृत्यु की सवािी पि सवाि होकि, कमकर्भूक्षम से श्रेयालय की ओि प्रस्थान किता है। मृत्यु, शिीि एवं आत्मा दोनों को अपनी जकड में लेकि माि डालती है। आत्मा की मृत्यु का मतलब, उसका शिीि को त्याग देना है, क्षफि वह कयामत के क्षदन दोबािा जीक्षवत क्षकए जाने के बाद, वही शिीि धािण कि लेगी। आत्मा, मृत्यु के बाद ना दूसिे क्षकसी शिीि में स्थानांतरित होती है औि ना ही वह क्षकसी अन्य शिीि में प्रक्षवि होती है।


21. इस्लाम, ईमान के सर्भी बडे औि बुक्षनयादी उसूलों पि अटूट क्षवश्वास िखने की माूँग किता है जो इस प्रकाि हैं : अल्लाह


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औि उसके ़िरिश्तों पि ईमान लाना, ईश्विीय ग्रंथों जैसे परिवतकन से पहले की तौिात, इंजील औि जबूि पि औि कुिआन पि ईमान लाना, समस्त नक्षबयों औि िसूलों -अलैक्षहमुस्सलाम- पि औि उन सबकी अंक्षतम कडी मुह़म्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- पि ईमान लाना तथा आक्ष़िित के क्षदन पि ईमान लाना। यहाूँ पि हमें यह बात अच्छी तिह जान लेना चाक्षहए क्षक यक्षद दुक्षनया का यही जीवन, अंक्षतम जीवन होता तो क्षजंदगी औि अक्षस्तत्व क्षबल्कुल बेकाि औि बेमायने होते। ईमान के उसूलों की अंक्षतम कडी, क्षलक्षखत एवं सुक्षनक्षित र्भाग्य पि ईमान िखना है।


22. नबी एवं िसूल-गण, अल्लाह का संदेश पहुूँचाने औि हि उस वस्तु क्षवशेष के मामले में, क्षजसे क्षववेक तथा सद्बुक्षद्द नकािती है, सवकथा मासूम एवं क्षनष्पाप हैं। उनका दाक्षयत्व केवल इतना है क्षक वे अल्लाह तआला के आदेशों एवं क्षनषेधों को पूिी ईमानदािी के साथ बंदों तक पहुूँचा दें। याद िहे क्षक नबी औि िसूल-गण में ईश्विीय गुण, कण-मात्र र्भी नहीं था। वे दूसिे मनुष्यों की तिह ही मानव मात्र थे। उनके अंदि, केवल इतनी क्षवशेषता होती थी क्षक वे अल्लाह की वह़्य (प्रकाशना) के वाहक हुआ किते थे।


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23. इस्लाम, बडी औि महत्वपूणक इबादतों के क्षनयम-कानून की पूणकतया पाबंदी किते हुए, केवल एक अल्लाह की इबादत किने का आदेश देता है, क्षजनमें से एक नमाज है। नमाज क्षकयाम (खडा होना), रुकू (झुकना), सजदा, अल्लाह को याद किने, उसकी स्तुक्षत एवं गुणगान किने औि उससे दुआ एवं प्राथकना किने का संग्रह है। हि व्यक्षक्त पि क्षदन- िात में पाूँच वक़्त की नमाजें अक्षनवायक हैं। नमाज में जब सर्भी लोग एक ही पंक्षक्त में खडे होते हैं तो अमीि-गिीब औि आका व गुलाम का सािा अंति क्षमट जाता है। दूसिी इबादत जकात है। जकात माल के उस छोटे से र्भाग को कहते हैं जो अल्लाह तआला के क्षनधाकरित क्षकए हुए क्षनयम-कानून के अनुसाि साल में एक बाि, मालदािों से लेकि गिीबों आक्षद में बाूँट क्षदया जाता है। तीसिी इबादत िोजा है जो िमजान महीने के क्षदनों में खान-पान औि दूसिी िोजा तोडने वाली वस्तुओं से रुक जाने का नाम है। िोजा, आत्मा को आत्मक्षवश्वास औि धैयक एवं संयम क्षसखाता है। चौथी इबादत हज है, जो केवल उन मालदािों पि जीवन र्भि में क्षसफक एक बाि ़िजक है, जो पक्षवत्र मक्का में क्षस्थत पक्षवत्र काबे तक पहुूँचने की िमता िखते हों। हज एक ऐसी इबादत है क्षजसमें दुक्षनया र्भि से आए हुए तमाम लोग, अल्लाह तआला पि ध्यान लगाने के मामले


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में बिाबि हो जाते हैं औि सािे र्भेद-र्भाव तथा संबद्दताएूँ धिाशायी हो जाती हैं।


24. इस्लामी इबादतों की शीषक क्षवशेषता जो उन्हें अन्य धमों की इबादतों के मुकाबले में क्षवक्षशिता प्रदान किती है, यह है क्षक उनको अदा किने का तिीका, उनका समय औि उनकी शतें, सब कुछ अल्लाह तआला ने क्षनधाकरित क्षकया है औि उसके िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- ने उन्हें अपनी उम्मत तक पहुूँचा क्षदया है। आज तक उनके अंदि कमी-बेशी किने के मकसद से कोई र्भी इनसान दक्षबश नहीं दे सका है, औि सबसे बडी बात यह है क्षक यही वह इबादतें हैं क्षजनके क्षियान्वयन की ओि समस्त नक्षबयों औि िसूलों ने अपनी-अपनी उम्मत को बुलाया था।


25. इस्लाम के िसूल (संदेिा), इसमाईल क्षबन इबिाहीम -अलैक्षहमुस्सलाम- के वंशज से ताल्लुक िखने वाले मुहम्मद क्षबन अब्दुल्लाह -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- हैं, क्षजनका जन्म मक्का में 571 ईसवी में हुआ औि वहीं उनको ईश्दौत्य (नबूवत) की प्राक्षप्त हुई। क्षफि वे क्षहजित किके मदीना चले गए। उन्होंने मूक्षतक पूजा के मामले में तो अपनी कौम का साथ नहीं क्षदया, क्षकन्तु अच्छे कामों में उसका र्भिपूि साथ क्षदया। संदेिा बनाए जाने से पहले से ही


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वे सद्गुण-सम्पन्न थे औि उनकी कौम उन्हें अमीन (क्षवश्वसनीय) कहकि पुकािा किती थी। जब चालीस साल के हुए तो अल्लाह तआला ने उनको अपने संदेशवाहक के रूप में चुन क्षलया औि बडे-बडे चमत्कािों से आपका समथकन क्षकया, क्षजनमें सबसे बडा चमत्काि पक्षवत्र कुिआन है। यह कुिआन सािे नक्षबयों का सबसे बडा चमत्काि है औि नक्षबयों के चमत्कािों में से यही एक चमत्काि है, जो आज तक बाकी है। क्षफि जब अल्लाह तआला ने अपने धमक को पूणक औि स्थाक्षपत कि क्षदया औि उसके िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- ने उसे पूिी तिह से दुक्षनया वालों तक पहुूँचा क्षदया, तो 63 वषक की आयु में उनका देहांत हो गया औि मदीने में द़िनाए गए। पैग़म्बि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- अल्लाह के अंक्षतम संदेिा थे। अल्लाह तआला ने उनको क्षहदायत औि सच्चा धमक देकि इसक्षलए र्भेजा था क्षक वे लोगों को मूक्षतक पूजा, कुफ्र औि मूखकता के अंधकाि से क्षनकाल कि एकेश्विवाद औि ईमान के प्रकाश में ले आएूँ। अल्लाह ने गवाही दी है क्षक उसने उनको अपने आदेश से एक आह्वानकताक बनाकि र्भेजा था।


26. वह शिीयत (धमक-क्षवधान) क्षजसे अल्लाह के िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- लेकि आए थे, तमाम


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ईश्विीय शिीयतों के क्षसलक्षसले की अंक्षतम कडी है। यह एक सम्पूणक शिीयत है, औि इसी में लोगों के धमक औि दुक्षनया, दोनों की र्भलाई क्षनक्षहत है। यह इनसानों के धमक, खून, माल, क्षववेक औि वंश की सुििा को सबसे अक्षधक प्राथक्षमकता देती है। इसके आने के बाद, पहले की सािी शिीयतें क्षनिस्त हो गई हैं, जैसा क्षक पहले आने वाले धमों में र्भी ऐसा ही हुआ क्षक हि नई शिीयत अपने पहले आने वाली शिीयत को क्षनिस्त कि देती थी।


27. अल्लाह के िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- के लाए हुए धमक, इस्लाम के क्षसवा कोई अन्य धमक अल्लाह की नजि में स्वीकायक नहीं है। इसक्षलए, जो र्भी इस्लाम के अलावा कोई अन्य धमक अपनाएगा, तो वह अल्लाह के यहाूँ अस्वीकायक हो जाएगा।


28. पक्षवत्र कुिआन वह क्षकताब है, क्षजसे अल्लाह तआला ने पैग़म्बि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- पि वह्य के द्वािा उतािा है। वह क्षनस्संदेह, अल्लाह की अमि वाणी है। अल्लाह तआला ने तमाम इनसानों औि क्षजन्नात को चुनौती दी थी क्षक वे उस जैसी एक क्षकताब या उसकी क्षकसी सूिा जैसी एक ही सूिा लाकि क्षदखाएूँ। यह चुनौती आज र्भी अपनी जगह कायम है। पक्षवत्र


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कुिआन, ऐसे बहुत सािे महत्वपूणक प्रश्नों का उत्ति देता है, जो लाखों लोगों को आियकचक्षकत कि देते हैं। महान कुिआन आज र्भी उसी अिबी र्भाषा में सुिक्षित है, क्षजसमें वह अवतरित हुआ था। उसमें आज तक एक अिि की र्भी कमी-बेशी नहीं हुई है औि ना कयामत तक होगी। वह प्रकाक्षशत होकि पूिी दुक्षनया में फैला हुआ है। वह एक महान क्षकताब है, जो इस योग्य है क्षक उसे पढा जाए या उसके अथों के अनुवाद को पढा जाए। उसी तिह, अल्लाह के िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- की सुन्नत, क्षशिाएूँ औि जीवन-वृतांत र्भी क्षवश्वसनीय वणकनकताकओं के द्वािा नकल होकि सुिक्षित औि उसी अिबी र्भाषा में प्रकाक्षशत हैं, जो अल्लाह के िसूल -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- बोलते थे औि दुक्षनया की बहुत सािी र्भाषाओं में अनुवाक्षदत र्भी हैं। यही कुिआन एवं सुन्नत, इस्लाम धमक के आदेश-क्षनदेशों औि क्षवधानों का एक मात्र संदर्भक हैं। इसक्षलए, इस्लाम धमक को मुसलमान कहलाने वालों के कमों के आलोक में नहीं, अक्षपतु ईश्विीय प्रकाशना अथाकत कुिआन एवं सुन्नत के आधाि पि पिखकि क्षलया जाना चाक्षहए।


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29. इस्लाम धमक, माता-क्षपता के साथ क्षशिाचाि के साथ पेश आने का आदेश देता है, चाहे वे ग़ैि-मुक्षस्लम ही क्यों ना हों औि संतानों के साथ सदवव्यवहाि किने की प्रेिणा देता है।


30. इस्लाम धमक, दुश्मनों के साथ र्भी कथनी औि किनी दोनों में, न्याय किने का आदेश देता है।


31. इस्लाम धमक, सािी सृक्षियों का र्भला चाहने का आदेश देता औि सदाचिण एवं सदवकमों को अपनाने का आह्वान किता है।


32. इस्लाम धमक, उत्तम आचिणों औि सद्गुणों जैसे सच्चाई, अमानत की अदायगी, पाकबाजी, लज्जा एवं शमक, वीिता, र्भले कामों में खचक किना, जरूितमंदों की मदद किना, पीक्षडतों की सहायता किना, र्भूखों को खाना क्षखलाना, पडोसी के साथ अच्छा व्यवहाि किना, रिश्तों को जोडना औि जानविों पि दया किना आक्षद, को अपनाने का आदेश देता है।


33. इस्लाम धमक ने खान-पान की पक्षवत्र वस्तुओं को हलाल ठहिाया औि क्षदल, शिीि तथा घि-बाि को पक्षवत्र िखने का हुक्म क्षदया है। यही कािण है क्षक शादी को हलाल किाि क्षदया है, जैसा क्षक


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िसूलों -अलैक्षहमुस्सलाम- ने इन चीजों के किने का आदेश क्षदया है, क्योंक्षक वे हि पाक औि अच्छी चीज का हुक्म क्षदया किते थे।


34. इस्लाम धमक ने उन तमाम चीजों को हिाम किाि क्षदया है जो अपनी बुक्षनयाद से हिाम हैं, जैसे अल्लाह के साथ क्षशकक एवं कुफ्र किना, बुतों की पूजा किना, क्षबना ज्ञान के अल्लाह के बािे में कुछ र्भी बोलना, अपनी संतानों की हत्या किना, क्षकसी क्षनदोष व्यक्षक्त को जान से माि डालना, धिती पि ़िसाद मचाना, जादू किना या किाना, क्षछप-क्षछपाकि या खुले-आम गुनाह किना, क्षजना किना, समलैंक्षगकता आक्षद जैसे जघन्य पाप किना। उसी प्रकाि, इस्लाम धमक ने सूदी लेन-देन, मुदाक खाने, जो जानवि बुतों के नाम पि औि स्थानों पि बक्षल चढाया जाए उसका माूँस खाने, सुअि के माूँस, सािी गंदी चीजों का सेवन किने, अनाथ का माल हिाम तिीके से खाने, नाप-तोल में कमी-बेशी किने औि रिश्तों को तोडने को हिाम ठहिाया है औि तमाम नक्षबयों औि िसूलों का र्भी इन हिाम चीजों के हिाम होने पि मतैक्य है।


35. इस्लाम धमक, बुिे आचिणों में क्षलप्त होने से मना किता है, जैसे झूठ बोलना, दगा औि धोखा देना, बेईमानी, ़ििेब, ईष्याक,


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चालबाजी, चोिी, अत्याचाि औि अन्याय आक्षद, बक्षल्क वह हि बुिे आचिण से मना किता है।


36. इस्लाम धमक, उन सर्भी माली मामलात से मना किता है जो सूद, हाक्षनकारिता, धोखाधडी, अत्याचाि औि गबन पि आधारित हों, या क्षफि समाजों, खानदानों औि क्षवशेष लोगों को तबाही औि हाक्षन की ओि ले जाते हों।


37. इस्लाम धमक, क्षववेक औि सद्बुक्षद्द की सुििा तथा हि उस चीज पि मनाही की मुहि लगाने हेतु आया है जो उसे क्षबगाड सकती है, जैसे शिाब पीना आक्षद। इस्लाम धमक ने क्षववेक की शान को ऊूँचा उठाया है औि उसे ही धाक्षमकक क्षवधानों पि अमल किने की धुिी किाि देते हुए, उसे ़िुिा़िात औि अंधक्षवश्वासों से आजाद क्षकया है। इस्लाम में ऐसे िहस्य औि क्षवक्षध-क्षवधान हैं ही नहीं जो क्षकसी खास तबके के साथ खास हों। उसके सािे क्षवक्षध-क्षवधान औि क्षनयम-कानून इनसानी क्षववेक से मेल खाते तथा न्याय एवं क्षहकमत के अनुसाि हैं।


38. यक्षद असत्य धमों के अनुयायी अपने-अपने धमक औि धािणा में पाए जाने वाले अंतक्षवकिोध औि उन चीजों की पूिी जानकािी प्राप्त नहीं किेंगे क्षजनको इनसानी क्षववेक क्षसिे से नकािता


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


है तो उनके धमक-गुरू उन्हें इस भ्रम में डाल देंगे क्षक धमक, क्षववेक से पिे है औि क्षववेक के अंदि इतनी िमता नहीं है क्षक वह धमक को पूिी तिह से समझ सके। दूसिी ति़ि, इस्लाम धमक अपने क्षवधानों को एक ऐसा प्रकाश मानता है जो क्षववेक को उसका सटीक िास्ता क्षदखाता है। वास्तक्षवकता यह है क्षक असत्य धमों के गुरुजन चाहते हैं क्षक इनसान अपने बुक्षद्द-क्षववेक का प्रयोग किना छोड दे औि उनका अंधा अनुसिण किता िहे, जबक्षक इस्लाम चाहता है क्षक वह इनसानी क्षववेक को जागृत किे ताक्षक इनसान तमाम चीजों की वास्तक्षवकता से उसके असली रूप में अवगत हो सके।


39. इस्लाम सही औि लार्भकािी ज्ञान को सम्मान देता है, औि हवस एवं क्षवलाक्षसता से खाली वैज्ञाक्षनक अनुसंधानों को प्रोत्साक्षहत किता है। वह हमािी अपनी काया औि हमािे इदक-क्षगदक फैली हुई असीम कायनात पि क्षचंतन-मंथन किने का आह्वान किता है। याद िहे क्षक सही वैज्ञाक्षनक शोध औि उनके परिणाम, इस्लामी क्षसद्दान्तों से कदाक्षचत नहीं टकिाते हैं।


40. अल्लाह तआला केवल उसी व्यक्षक्त के कमक को ग्रहण किता औि उसका पुण्य तथा श्रेय प्रदान किता है जो अल्लाह पि ईमान लाता, केवल उसी का अनुसिण किता औि तमाम िसूलों -


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


अलैक्षहमुस्सलाम- की पुक्षि किता है। वह क्षसफक उन्हीं इबादतों को स्वीकािता है क्षजनको स्वयं उसी ने स्वीकृक्षत प्रदान की है। इसक्षलए, ऐसा र्भला कैसे हो सकता है क्षक कोई इनसान अल्लाह से कुफ्र र्भी किे औि क्षफि उसी से अच्छा प्रक्षतफल पाने की आशा र्भी अपने मन में संजोए िखे? अल्लाह तआला उसी शख्स के ईमान को स्वीकाि किता है जो समस्त नक्षबयों -अलैक्षहमुस्सलाम- पि औि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- के अंक्षतम संदेिा होने पि र्भी पूणक ईमान िखे।


41. इन सर्भी ईश्विीय संदेशों का एक मात्र उ􀄥ेश्य यह है क्षक इनसान सत्य धमक का पालनकताक बनकि, सािे जहानों के पालनहाि अल्लाह का शुद्द बंदा बन जाए औि अपने आपको दूसिे इनसान या पदाथक या क्षफि ़िुिा़िात की अंधर्भक्षक्त औि बंदगी से मुक्त कि ले, क्योंक्षक इस्लाम, जैसा क्षक आप पि क्षवक्षदत है, क्षकसी व्यक्षक्त क्षवशेष को जन्मजात पक्षवत्र नहीं मानता, ना उसे उसके अक्षधकाि से ऊपि का दजाक देता है, औि ना ही उसे िब औि र्भगवान के पद पि आसीन किता है।


42. अल्लाह तआला ने इस्लाम धमक में तौबा (प्रायक्षित) का द्वाि खुला िखा है। प्रायक्षित यह है क्षक जब कोई इनसान पाप


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


कि बैठे तो तुिंत अल्लाह से उसके क्षलए िमा माूँगे औि पाप किना छोड दे। क्षजस प्रकाि, इस्लाम कबूल किने से पहले के सािे पाप धुल जाते हैं, उसी तिह तौबा र्भी पहले के तमाम गुनाहों को धो देती है। इसक्षलए, क्षकसी इनसान के सामने अपने पापों को स्वीकाि किना जरूिी नहीं है।


43. इस्लाम धमक के दृक्षिकोण से, इनसान औि अल्लाह के बीच सीधा संबंध होता है। आपके क्षलए यह क्षबल्कुल र्भी जरूिी नहीं है क्षक आप अपने औि अल्लाह के बीच क्षकसी को माध्यम बनाएूँ। इस्लाम इससे मना किता है क्षक हम अपने ही जैसे दूसिे इनसानों को र्भगवान बना लें या िबूक्षबय्यत (पालनहाि होने) या उलूक्षहय्यत (पूज्य होने) में क्षकसी इनसान को अल्लाह का साझी एवं शिीक ठहिा लें।


44. इस पुक्षस्तका के अंत में हम इस बात का उल्लेख कि देना उक्षचत समझते हैं क्षक लोग काल, कौम औि मुल्क के ऐतबाि से क्षर्भन्न हैं, बक्षल्क पूिा इनसानी समाज ही अपने सोच-क्षवचाि, जीवन के उ􀄥ेश्य, वाताविण औि कमक के ऐतबाि से टुकडों में बटा हुआ है। ऐसे में उसे जरूित है एक ऐसे मागकदशकक की जो उसकी िहनुमाई कि सके, एक ऐसे क्षसस्टम की जो उसे एकजुट कि सके औि एक ऐसे शासक की जो उसे पूणक सुििा दे सके। नबी औि


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


िसूलगण -अलैक्षहमुस्सलाम- इस दाक्षयत्व को अल्लाह तआला की वह्य के आलोक में क्षनर्भाते थे। वे, लोगों को र्भलाई औि क्षहदायत का िास्ता क्षदखाते, अल्लाह के धमक-क्षवधान पि सबको एकत्र किते औि उनके बीच हक के साथ फैसला किते थे, क्षजससे उनके िसूलों के मागकदशकन पि चलने औि ईश्विीय संदेशों से उनके युग के किीब होने के मुताक्षबक, उनके मामलात सही डगि पि हुआ किते थे। अब अल्लाह के िसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- की रिसालत (ईश्दौत्य) के द्वािा नक्षबयों औि िसूलों का क्षसलक्षसला समाप्त कि क्षदया गया है औि अल्लाह तआला ने आप -सल्लल्लाहु अलैक्षह व सल्लम- के लाए हुए धमक को ही कयामत तक बाकी िखने की घोषणा कि दी है, उसी को लोगों के क्षलए क्षहदायत, िहमत, िोशनी औि उस संमागक का िहनुमा बना क्षदया है, जो अल्लाह तक पहुूँचा सकता है।


45. इसक्षलए हे मानव! मैं तुमसे क्षवनम्रतापूवकक आह्वान किता ह ूँ क्षक अंधर्भक्षक्त औि अंधक्षवश्वास को त्याग कि, सच्चे मन औि आत्मा के साथ अल्लाह के पथ का पक्षथक बन जाओ। जान लो क्षक तुम मिने के बाद, अपने िब ही के पास लौटकि जाने वाले हो। तुम अपनी आत्मा औि अपने आस-पास फैले हुए असीम क्षिक्षतजों पि सोच-क्षवचाि किने के बाद, इस्लाम कबूल कि लो।


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इस्लाम का परिचय प्रस्तुत किने वाली एक संक्षिप्त पुक्षस्तका


इससे तुम क्षनिय ही दुक्षनया एवं आक्ष़िित दोनों में सफल हो जाओगे। यक्षद तुम इस्लाम में दाक्षखल होना चाहते हो तो तुम्हें बस इस बात की गवाही देनी है क्षक अल्लाह के क्षसवा कोई पूज्य नहीं औि मुहम्मद अल्लाह के अंक्षतम संदेिा हैं, क्षफि अल्लाह के क्षसवा क्षजन चीजों को तुम पूजा किते थे, उन सबका इनकाि कि दो, इस बात पि ईमान लाओ क्षक अल्लाह तआला सबको कब्रों से क्षजंदा किके उठाएगा औि इस बात पि र्भी ईमान ले आओ क्षक कमों का क्षहसाब-क्षकताब औि उनके अनुरूप श्रेय औि बदला क्षदया जाना हक औि सच है। जब तुम इन बातों की गवाही दे दोगे, तो मुसलमान बन जाओगे। उसके बाद तुम्हािे क्षलए जरूिी हो जाएगा क्षक तुम अल्लाह के क्षनधाकरित क्षकए हुए क्षवक्षध-क्षवधान के मुताक्षबक नमाज पढो, जकात दो, िोजा िखो औि यक्षद सफि-खचक जुटा सको तो हज किो।


क्षदनांक 19-11-1441 की प्रक्षत


इसे डॉक्टि मुहम्मद क्षबन अब्दुल्लाह अस-सुह़ैम ने क्षलखा है।


र्भूतपूवक प्रोफेसि इस्लामी अध्ययन अनुर्भाग


प्रक्षशिण महाक्षवद्यालय क्षकंग सऊद क्षवश्वक्षवद्यालय


रियाज, सऊदी अिब



 



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