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हमारे जीवन के किसी मोड़ पर, हर कोई बड़े बड़े प्रश्नों को पूछने लगता है: “हमें किसने बनाया?,” और “हम यहां क्यों हैं?”





तो, हमें आखिर किसने बनाया?  हम में से अधिकांश को धर्म से ज्यादा विज्ञान पर पाला गया है, और ईश्वर से अधिक बिग बैंग पर बिश्वास करवाया गया है।  लेकिन किसमे ज़्यादा मतलब बनता है?  और क्या कोई कारण है कि विज्ञान और सृजनवाद के सिद्धांत एक साथ नहीं रह सकते?





बिग बैंग शायद ब्रह्मांड की उत्पत्ति की व्याख्या कर सकता है, लेकिन यह आदिम धूल के बादल की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता।  यह धूल के बादल (जो, सिद्धांत के अनुसार, एक साथ आकर्षित हुए, संकुचित हुए, और फिर विस्फोटित हुए) कहीं से तो आये थे।  आख़िरकार, इसमें सिर्फ हमारी आकाशगंगा ही नहीं, बल्कि ज्ञात ब्रह्मांड में अरबों अन्य आकाशगंगाओं को बनाने के लिए पर्याप्त पदार्थ थि।  तो वह आखिर कहाँ से आया?  किसने, या क्या, आदिम धूल के बादल को बनाया?





इसी तरह, विकास सिद्धांत शायद जीवाश्म रिकॉर्ड की व्याख्या कर सकता है, लेकिन यह मानव जीवन के सर्वोत्कृष्ट सार-आत्मा की व्याख्या करने से चूक जाता है।  हमारे सब के पास एक है।  हम इसकी उपस्थिति महसूस करते हैं, हम इसके अस्तित्व की बात करते हैं और कभी-कभी इसके मुक्ति के लिए प्रार्थना भी करते।  लेकिन केवल धार्मिक लोग ही बता सकते है कि यह कहां से आया है।  प्राकृतिक चयन का सिद्धांत जीवित चीजों के कई भौतिक पहलुओं की व्याख्या कर सकता है, लेकिन यह मानव आत्मा की व्याख्या करने में विफल रहता है।





इसके साथ-साथ, कोई भी जो जीवन की जटिलताओं और ब्रह्मांड का अध्ययन करता है वह निर्माता के निदर्शन को गौर किये बिना नहीं रह सकता।[1]  लोग इन संकेतों को पहचानते हैं या नहीं यह एक अलग बात है—जैसे की वह पुराणी कहावत है, डिनायल बस मिस्र की एक नदी नहीं है  (समझे? डिनायल, सुनने में लगता है “डी नाइल” … वह नदी जैसी … अच्छा छोडो) बात यह है की, अगर हम एक चित्र देखे, हमें पता होगा की एक चित्रकार है।  अगर हम एक मूर्ति देखे, हमें पता होगा की एक मूर्तिकार है; एक पात्र है, तो एक कुम्हार भी है।  तो जब हम सृष्टि को देखते हैं, तो क्या हमें नहीं पता होना चाहिए कि एक सृष्टिकर्ता भी है?





यह अवधारणा कि ब्रह्मांड विस्फोटित हुआ और फिर बेतरतीब घटनाओ से और प्राकृतिक चयन से सबकुछ पूरी तरह से विकसित हो गया इस धरना से अलग नहीं है की, कबाड़खाने में बम गिरनेसे, कभी न कभी  उनमें से सब कुछ एक साथ उड़ाकर एक आदर्श मर्सिडीज में बदल जाएगा। 





अगर एक बात है तो हम निश्चित रूप से जानते हैं, वह यह है कि एक नियंत्रित प्रभाव के बिना, सभी प्रणालियाँ अराजकता में बदल जाती हैं।  बिग बैंग और विकासवाद के सिद्धांत इसके ठीक विपरीत प्रस्ताव रखते हैं, यह की—अराजकता में  ही पूर्णता है।  क्या यह निष्कर्ष निकालना अधिक उचित नहीं होगा कि बिग बैंग और विकासवाद नियंत्रित घटनाएं थीं? जो ईश्वर के द्वारा नियंत्रित थीं?





अरब के बेडौइन एक बंजारे की कहानी बताते हैं जो एक बंजर रेगिस्तान के बीच में एक नखलिस्तान में एक उत्कृष्ट महल ढूंढता है।  जब वह पूछता है कि यह कैसे बनाया गया था, मालिक उसे बताता है कि यह प्रकृति की शक्तियों द्वारा बनाया गया था।  हवा ने चट्टानों को आकार दिया और उन्हें इस नखलिस्तान के किनारे तक उड़ा दिया, और फिर उन्हें महल के आकार में एक साथ मिला दिया।  फिर उसने रेत को और बारिश को दरारों में उड़ा दिया और उन्हें एक साथ जोड़ दिया।  इसके बाद, इसने भेड़ के ऊन के धागों को एकसाथ उड़ाकर कालीनों और टेपेस्ट्री का आकर दिया, लकड़ी को उड़ाकर उसे फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियां और ट्रिम का आकर दिया, और उन्हें महल में सही स्थानों पर स्थापित किया।  बिजली के झटको ने पिघले हुए रेत को कांच की चादरों में बदल दिया और उन्हें खिड़की के फ्रेम में लगा दिया, और काली रेत को गलाकर स्टील बनाया और बाड़ और गेट का आकार दिया सही संरेखण और अमरूपता के साथ।  इस प्रक्रिया में अरबों साल लगे और यह पृथ्वी पर केवल एक ही स्थान पर हुआ - विशुद्ध रूप से संयोग से।





जब हम चिढ़ कर आंखे घुमाना बंद करेंगे, तब हमें बात समझ में आएगी। जाहिर है, महल का निर्माण परिकल्पित रूप से किया गया था, न कि संयोग से।  किस पर (या मुद्दे के थोड़ा और पास, किन पर), फिर, हम अपने ब्रह्मांड और स्वयं जैसे असीम रूप से अधिक जटिलता की वस्तुओं की उत्पत्ति का श्रेय दे?





सृजनवाद की अवधारणा को खारिज करने का एक अन्य तर्क केंद्रित है उसपे, जिसे लोग सृष्टि की अपूर्णता समझते हैं।  यह है "अगर यह सब हो रहा है तो ईश्वर कैसे हो सकते हैं?" वाले तर्क।  चर्चा के तहत मुद्दा प्राकृतिक आपदा से लेकर जन्म दोष तक, नरसंहार से लेकर दादी के कैंसर तक कुछ भी हो सकता है।  वह बात नहीं है।  बात यह है कि जिसे हम जीवन के अन्याय के रूप में देखते हैं, उसके आधार पर ईश्वर को नकारना अनुमान करता है की एक दिव्य आत्मा हमारे जीवन को परिपूर्ण करने के अलावा कुछ भी नहीं बनाया होगा, और पृथ्वी पर न्याय स्थापित किया होगा।





हम्म ... क्या कोई अन्य विकल्प नहीं है?





हम उतनी ही आसानी से यह प्रस्ताव कर सकते हैं कि ईश्वर ने पृथ्वी पर जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए नहीं, बल्कि एक परीक्षा के रूप में डिजाइन किया है, जिसकी सजा या पुरस्कार अगले जन्म में भोगना है, जहां पर ईश्वर अपने अंतिम न्याय की स्थापना करता है। इस अवधारणा के समर्थन में हम अच्छी तरह से पूछ सकते हैं कि किसने अपने सांसारिक जीवन में ईश्वर के पसंदीदा से अधिक अन्याय सहा, जो की ईश्वर के पैगम्बर थे?  और हम किससे स्वर्ग में सबसे ऊंचे स्थानों को अधिकार करने की उम्मीद करते हैं, अगर वो नहीं जो सांसारिक प्रतिकूलताओं का सामना करने में सच्चा विश्वास बनाए रखते हैं?  तो इस जीवन में कष्ट भोग करने का मतलब ईश्वर का अकृपा पाना नहीं होता, और एक आनंदमय सांसारिक जीवन का मतलब अगले जीवन में सुंदरता नहीं होता।  





मैं आशा करता हूँ के कि इस तर्क के द्वारा, हम पहले "बड़े प्रश्न" के उत्तर पर सहमत हो सकते हैं। हमें किसने बनाया? क्या हम इस बात से सहमत हो सकते हैं कि यदि हम सृष्टि हैं, तो ईश्वर सृष्टिकर्ता है?





यदि हम अभी भी सहमत नहीं हो सकते, तो शायद ये जारी रखने का कोई मतलब नहीं है।  हालाँकि, जो सहमत हैं, उनके लिए "बड़ा प्रश्न" नंबर दो पर चलते हैं—हम यहां क्यों हैं? दूसरे शब्दों में, जीवन का उद्देश्य क्या है?





कॉपीराइट © 2007 डॉ लॉरेंस बी. ब्राउन; अनुमति से उपयोग। 





जीवन के दो बड़े प्रश्नों में से पहला प्रश्न है, "हमें किसने बनाया?" हमने पिछले लेख में उस प्रश्न को संबोधित किया था और (उम्मीद है) उत्तर के रूप में "ईश्वर" पर समझौता किया था। जैसे हम सृष्टि हैं, ईश्वर सृष्टिकर्ता है।





अब, हम दूसरे "बड़े प्रश्न" की ओर मुड़ते हैं, जो है, "हम यहाँ क्यों हैं?





अच्छा, हम आखिर यहाँ क्यों हैं? प्रसिद्धि और भाग्य बटोरने के लिए? संगीत और बच्चे बनाने के लिए? कब्रिस्तान में सबसे धनी पुरुष या महिला बनने के लिए, क्योंकि, जैसा कि हमें मजाक में कहा जाता है, "सबसे ज़्यादा खिलौने के साथ मरने वाला जीतता है?"





नहीं, जीवन में इससे बढ़कर और भी बहुत कुछ अवश्य होगा, तो आइए इस बारे में सोचें। आरंभ करने के लिए, अपने चारों ओर देखें। अगर आप एक गुफा में नहीं रहते, तब तक आप उन चीजों से घिरे रहते हैं जिन्हें हम इंसानों ने अपने हाथों से बनाया है। अब, हमने वो चीजें क्यों बनाईं?  इसका उत्तर, निश्चित रूप से, यह है कि हम अपने लिए कुछ विशिष्ट कार्य करने के लिए चीजें बनाते हैं। संक्षेप में, हम अपनी सेवा के लिए चीजें बनाते हैं।  तो विस्तार से, ईश्वर ने हमें क्यों बनाया, अगर उसकी सेवा करने के लिए नहीं?





यदि हम अपने सृष्टिकर्ता को स्वीकार करते हैं, और यह कि उन्होंने मानवजाति को उनकी सेवा करने के लिए बनाया है, तो अगला प्रश्न है, "कैसे? हम उनकी सेवा कैसे करते हैं?” निःसंदेह, इस प्रश्न का उत्तर वही सबसे अच्छी तरीके से दे सकते है जिन्होंने उन्हें बनाया।  यदि उन्होंने हमें उनकी सेवा करने के लिए बनाया है, तो वह हमसे एक विशेष तरीके से कार्य करने की अपेक्षा करता है, यदि हमें अपने उद्देश्य को प्राप्त करना है।  लेकिन हम कैसे जान सकते हैं कि वह तरीका क्या है? हम कैसे जान सकते हैं कि ईश्वर हमसे क्या अपेक्षा करते है?





खैर, इस पर विचार करें: ईश्वर ने हमें प्रकाश दिया है, जिससे हम अपना रास्ता खोज सकते हैं।  रात में भी, हमारे पास प्रकाश के लिए चंद्रमा और पथ प्रदर्शन के लिए तारे हैं।  ईश्वर ने अन्य जानवरों को उनकी परिस्थितियों और जरूरतों के लिए सबसे उपयुक्त मार्गदर्शन प्रणाली दी।  प्रवासी पक्षी, बादल के दिनों में भी संचालन कर सकते हैं, बादलों से गुजरते समय प्रकाश का ध्रुवीकरण को देखके।  व्हले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों को "पढ़"कर प्रवास करती हैं।  सैल्मन खुले समुद्र से गंध के द्वारा अपने जन्म के सही स्थान पर अंडे देने के लिए लौटते हैं, यदि इसकी कल्पना की जा सकती है।  मछली अपने शरीर में उपस्थित दबाव रिसेप्टर्स के माध्यम से दूर की गतिविधियों को महसूस करती हैं।  चमगादड़ और अंधी नदी डॉल्फ़िन सोनार द्वारा "देखते" है।  कुछ समुद्री जीव (इलेक्ट्रिक ईल एक हाई वोल्टेज उदाहरण है) चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते है और "पढ़ते" है, जो की उन्हें गंदे पानी में, या समुद्र की गहराई के कालेपन में "देखने" की क्षमता देती है।  कीड़े फेरोमोन द्वारा संचार करते हैं।  पौधे सूर्य के प्रकाश को महसूस करते हैं और उसकी ओर बढ़ते हैं (फोटोट्रोपिज्म); उनकी जड़ें गुरुत्वाकर्षण को महसूस करती हैं और पृथ्वी में विकसित होती हैं (जियोट्रोपिज्म)।  संक्षेप में, ईश्वर ने अपनी रचना के प्रत्येक तत्व को मार्गदर्शन उपहार में दिया है।  क्या हम गंभीरता से विश्वास कर सकते हैं कि वह हमें हमारे अस्तित्व के सबसे महत्वपूर्ण पहलू पर मार्गदर्शन नहीं देंगे, अर्थात् हमारा raison d’etre—हमारे होने का कारण? कि वह हमें मोक्ष प्राप्त करने के लिए साधन नहीं देंगे? और क्या यह मार्गदर्शन नहीं होगा . . . रहस्योद्घाटन?





इस पर इस तरीके से सोचिये: प्रत्येक उत्पाद के विनिर्देश और नियम होते हैं।  अधिक जटिल उत्पादों के लिए, जिनके विनिर्देश और नियम सहज नहीं हैं, हम मालिक के नियमावली पर भरोसा करते हैं।  ये नियमावली उस व्यक्ति द्वारा लिखे गए हैं जो उत्पाद को सबसे अच्छी तरह से जानता है, जो की निर्माता है।  एक विशिष्ट मालिक की नियमावली अनुचित उपयोग और उसके खतरनाक परिणामों के बारे में चेतावनियों के साथ शुरू होती है, और उसके बाद बताते है उत्पाद का सही तरीके से उपयोग कैसे करें और इससे प्राप्त होने वाले  सुबिधाओ का लाभ कैसे उठाये, और उत्पाद विनिर्देश और एक समस्या निवारण मार्गदर्शिका प्रदान करता है जिससे हम उत्पाद की खराबी को ठीक कर सकते हैं।





अब, यह रहस्योद्घाटन से अलग कैसे है?





रहस्योद्घाटन हमें बताता है कि क्या करना है, क्या नहीं करना है, और क्यों, हमें बताता है कि ईश्वर हमसे क्या उम्मीद करते हैं, और हमें दिखाता है कि अपनी कमियों को कैसे दूर किया जाए।  रहस्योद्घाटन अंतिम उपयोगकर्ता मैनुअल है, मार्गदर्शन के रूप में प्रदान किया जाता है उसे जो हम इस्तेमाल करेंगे—हम स्वयम। 





दुनिया में हम जानते हैं, जो उत्पाद विनिर्देशों को पूरा करते हैं या उससे अधिक होते हैं उन्हें सफल माना जाता है, जबकि जो नहीं होते … हम्म … चलिए इस बारे में सोचते हैं।  कोई भी उत्पाद जो कारखाने के विनिर्देशों को पूरा करने में विफल रहता है, या तो मरम्मत की जाती है या, यदि निराशाजनक है, तो पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।  दूसरे शब्दों में, नष्ट कर दिया जाता है।  उफ़।  अचानक यह चर्चा डरावनी-गंभीर हो जाती है।  क्योंकि इस चर्चा में, हम उत्पाद हैं—सृष्टि का उत्पाद।





लेकिन आइए एक पल के लिए रुकें और विचार करें कि हम अपने जीवन को भरने वाली विभिन्न वस्तुओं के साथ कैसे संपर्क रखते हैं। जब तक वे वही करते हैं जो हम चाहते हैं, हम उनसे खुश हैं। लेकिन जब वे हमें विफल करते हैं, तो हम उनसे छुटकारा पा लेते हैं। कुछ को दुकान में वापस कर दिया जाता है, कुछ को दान में दे दिया जाता है, लेकिन अंततः वे सभी कचरे में समाप्त हो जाते हैं, जो ... दफन या जला दिया जाता है। इसी तरह, एक खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारी को ... निकाल दिया जाता है। अब, एक मिनट के लिए रुकें और उस शब्द के बारे में सोचें। एक ख़राब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारी की सजा के लिए वह प्रेयोक्ति कहां से आई? हम्म ... जो व्यक्ति इस जीवन के पाठों को धर्म के पाठों में परिणत करने में विश्वास करता है, उसके लिए यह एक आनंदमयी दिवस जैसा है।





लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ये उपमाएँ अमान्य हैं।  इसके ठीक विपरीत, हमें याद रखना चाहिए कि दोनों पुराने और नए टेस्टामेंट उपमाओं से भरे हुए हैं, और यीशु मसीह ने दृष्टान्तों का उपयोग करके सिखाया।





तो शायद  इसे गंभीरता से लेना बेहतर होगा। 





नहीं, मैं सही हूं।  निश्चित रूप से हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए। किसी ने कभी स्वर्ग के सुखों और नरकंकाल की यातनाओं के बीच के अंतर को हंसी की बात नहीं माना।





 इस श्रृंखला के पिछले दो भागों में, हमने दो "बड़े प्रश्नों" के उत्तर दिए। हमें किसने बनाया? ईश्वर। हम यहां क्यों आए हैं? उनकी सेवा और उपासना करने के लिए. एक तीसरा प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठा: "यदि हमारे सृष्टिकर्ता ने हमें उनकी सेवा करने और उनकी आराधना करने के लिए बनाया है, तो हम यह कैसे करे?" पिछले लेख में मैंने सुझाव दिया था कि हम अपने सृष्टिकर्ता की सेवा केवल उसके आदेशों का पालन करने के माध्यम से कर सकते हैं, जैसा कि रहस्योद्घाटन के माध्यम से व्यक्त किया गया है।





लेकिन बहुत से लोग मेरे इस दावे पर प्रश्न उठाएंगे: मानव जाति को रहस्योद्घाटन की आवश्यकता क्यों है? क्या सिर्फ अच्छा होना ही काफी नहीं है? क्या हम में सब के लिए अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करना पर्याप्त नहीं है?





रहस्योद्घाटन की आवश्यकता के संबंध में, मैं निम्नलिखित बातें कहना चाहूंगा: इस श्रृंखला के पहले लेख में मैंने बताया कि जीवन अन्याय से भरा है, लेकिन हमारा सृष्टिकर्ता सही और न्यायी है और वह न्याय को इस जीवन में नहीं परन्तु परलोक में स्थापित करते है।  हालांकि, चार चीजों के बिना न्याय स्थापित नहीं किया जा सकता है—एक अदालत (जो है, आखरी विचार का दिन); एक विचारपति (जो हैं, निर्माता); साक्षियाँ (जो है, पुरुष और महिलाएं, देवदूत, सृष्टि के तत्व); और कानूनों की एक किताब जिस पर न्याय करना है (जो है, रहस्योद्घाटन)। अब, हमारे सृष्टिकर्ता न्याय कैसे स्थापित कर सकते है यदी उन्होंने मानवजाति को उनके जीवन काल के दौरान कुछ नियमों से नहीं बांधा है?  यह संभव नहीं है।  उस परिदृश्य में, न्याय के बजाय, ईश्वर अन्याय से निपटेंगे, क्योंकि वह लोगों को उन अपराधों के लिए दंडित कर रहे होंगे जिनके बारे में उनके पास जानने का कोई तरीका नहीं था कि वे अपराध हैं।





हमें और रहस्योद्घाटन की आवश्यकता क्यों है?  आरंभ में, मार्गदर्शन के बिना मानव जाति सामाजिक और आर्थिक मुद्दों, राजनीति, कानूनों आदि पर सहमत भी नहीं हो सकती है।  तो हम कभी भी ईश्वर पर कैसे सहमत हो सकते हैं?  दूसरी बात, कोई भी उपयोगकर्ता मैनुअल को उत्पाद बनाने वाले से बेहतर नहीं लिखता है। ईश्वर सृष्टिकर्ता है, हम सृष्टि हैं, और सृष्टि की समग्र योजना को सृष्टिकर्ता से बेहतर कोई नहीं जानता।  क्या कर्मचारियों को अपने स्वयं के नौकरी विवरण, कर्तव्यों और मुआवजे के पैकेजों को अपने सुबिधा अनुसार परिकल्पना करने की अनुमति है?  क्या हम नागरिकों को अपने स्वयं के कानून लिखने की अनुमति है? नहीं?  तो फिर, हमें अपने धर्म लिखने की अनुमति क्यों दी जाए?  अगर इतिहास ने हमें कुछ भी सिखाया है,वो है दुःखद घटनाये जो मनुष्य की अपनी सनक को पूरी करने के कारण होता है। कितने लोगों ने स्वतंत्र विचार का दावा किया है, उन्होंने ऐसे धर्मों का उद्घाटन किया है जिन्होंने खुद को और अपने अनुयायियों को पृथ्वी पर बुरे सपने और उसके बाद के विनाश के लिए प्रतिबद्ध किया है?





तो सिर्फ अच्छा होना ही काफी क्यों नहीं है? और हम में से प्रत्येक के लिए अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करना पर्याप्त क्यों नहीं है?  आरंभ करने के लिए, लोगों की "अच्छे" की परिभाषाएँ भिन्न होती हैं।  कुछ के लिए यह उच्च नैतिकता और स्वच्छ जीवन है, दूसरों के लिए यह पागलपन और तबाही है।  इसी तरह, हमारे सृष्टिकर्ता की सेवा और उसकी आराधना करने की अवधारणाएँ भी भिन्न हैं।  इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी दुकान या भोजनालय में व्यापारी द्वारा स्वीकार की गई मुद्रा से भिन्न मुद्रा के साथ नहीं जा सकता।  धर्म के साथ भी ऐसा ही है। अगर लोग चाहते हैं कि ईश्वर उनकी सेबा और उपासना को स्वीकार करें, तो उन्हें ईश्वर की मांग के अनुसार मुद्रा में भुगतान करना होगा।  और वह मुद्रा उसके रहस्योद्घाटन की आज्ञाकारिता है।





एक ऐसे घर में बच्चों की परवरिश करने की कल्पना करें जिसमें आपने "घर के नियम" स्थापित किए हैं। फिर, एक दिन, आपका एक बच्चा आपको बताता है कि उसने नियम बदल दिए हैं, और वह चीजों को अलग तरह से करने जा रहा है।  आप कैसे प्रतिक्रिया देंगे? संभावना है, इन शब्दों के साथ, "तुम अपने नए नियम ले सकते हो और नरक में जा सकते हो!" अच्छा, इसके बारे में सोचिये।  हम ईश्वर की रचना हैं, उसके नियमों के तहत उसके ब्रह्मांड में रह रहे हैं, और संभावना है की "नरक में जाओ" ही ईश्वर बोलेंगे उन लोगो को जो ईश्वर के नियमों को अपने नियमों से अवहेलना करने की कोशिस करेंगे।  





यहां पर ईमानदारी एक मुद्दा बन जाती है।  हमें यह पहचानना चाहिए कि सभी सुख हमारे निर्माता की ओर से एक उपहार है, और धन्यवाद के योग्य हैं। यदि कोई उपहार दिया जाता है, तो धन्यवाद देने से पहले उपहार को उपभोग कौन करता है?  और फिर भी, हम में से बहुत से लोग जीवन भर ईश्वर के उपहारों का आनंद लेते हैं और कभी भी धन्यवाद नहीं देते हैं।  या देर से देते हैं।  अंग्रेजी कवि, एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग ने व्यथित मानव मिनती की विडंबना की बात की द क्राई ऑफ़ द हुमन किताब में :





और होंठ कहते हैं "ईश्वर दयनीय हो,"





किसने कभी नहीं कहा, "ईश्वर की स्तुति हो।"





क्या हमें अच्छे आचरण नहीं दिखाना चाहिए और अपने सृष्टिकर्ता को उसके उपहारों के लिए धन्यवाद नहीं देना चाहिए, हमारे जीवन अन्त तक? क्या हम उनके ऋणी नहीं हैं?





आपने उत्तर दिया "हाँ।" ज़रूर दिए होंगे।  सहमति के बिना किसी ने इसे अब तक नहीं पढ़ा होगा, लेकिन समस्या यह है: आप में से बहुतों ने उत्तर दिया "हाँ,” यह अच्छे से जानकर की आपका दिल और दिमाग आपके प्रदर्शन के धर्मों से पूरी तरह सहमत नहीं है।  आप सहमत हैं कि हम एक निर्माता द्वारा बनाए गए थे। आप उसे समझने के लिए संघर्ष करते हैं।  और आप तरसते हैं उसके द्वारा निर्धारित तरीके से उनकी सेवा और उनकी आराधना करने के लिए ।  लेकिन आप नहीं जानते कि कैसे, और आप नहीं जानते कि उत्तर कहां देखना है।  और वह, दुर्भाग्य से, एक ऐसा विषय नहीं है जिसका उत्तर किसी लेख में दिया जा सकता है।  दुर्भाग्य से, इसे एक किताब में संबोधित करना होगा, या शायद किताबों की एक श्रृंखला में भी।





अच्छी खबर यह है कि मैंने ये किताबें लिखी हैं।  मैं आपको द ऐटथ स्क्रॉल के साथ शुरुआत करने के लिए आमंत्रित करता हूं।   मैंने जो यहां लिखा है अगर आपको वह पसंद आया है, तो मैंने वहां जो लिखा है वह आपको बहुत पसंद आएगा।



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