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ईश्वर कहता है:





"हे इन्सान! तुझे किस वस्तु ने तेरे उदार पालनहार से बहका दिया? जिसने तेरी रचना की, फिर तुझे संतुलित बनाया। जिस रूप में चाहा बना दिया।" (क़ुरआन 82:6-8)





इस छंद मे जो प्रश्न है वो अलंकारिक है। इसका अर्थ है: "क्या आपको ईश्वर का धन्यवाद नहीं करना चाहिए और इन आशीर्वादों के लिए उनकी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए?"





पैगंबर सुलैमान (उन पर शांति हो) ने उन पर ईश्वर के महान उपकार के बारे में कहा: "ये मेरे पालनहार की कृपा है कि वो मेरी परीक्षा ले कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूं या कृतघ्नता, और जो कृतज्ञ होता है, वह अपने लाभ के लिए होता है तथा जो कृतघ्न होता है, तो निश्चय ही मेरा पालनहार आत्मनिर्भर है, उदार है।" (क़ुरआन 27:40)





ईश्वर के नाम अल-करीम के कई अर्थ हैं, जिनमें से निम्नलिखित हैं:





1.  जो देने वाला है और उदार दानवीर है





जिस प्रकार स्वतंत्र रूप और हर्षित हृदय से देने वाले इंसान को उदार कहा जाता है, पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) और सभी पैगंबर मानव उदारता के एक उदाहरण थे। 





पैगंबर मुहम्मद से एक बार पूछा गया: "सभी लोगों मे सबसे उदार कौन था?"





उन्होंने उत्तर दिया: "एक उदार व्यक्ति जो एक उदार व्यक्ति का पुत्र था, जो खुद एक उदार व्यक्ति का पुत्र था, जो फिर से एक उदार व्यक्ति का पुत्र था: याकूब के पुत्र यूसुफ, इसहाक के पुत्र याकूब, इब्राहीम के पुत्र इसहाक।"[1]





ईश्वर उदार है, और वह अपने सेवकों को बिना माप के देता है। उसने हमें जीवन दिया। उसने हमें सुनने और देखने की क्षमता, हमारे दिल और अंग, हमारी ताकत और क्षमताएं दीं। सच में: "यदि आप ईश्वर के एहसानों को गिनना चाहें, तो आप उन्हें गिन नहीं पाएंगे।" (क़ुरआन 16:34)





ईश्वर हमें यह सब बिना मांगे या बिना धन्यवाद के देता है। दरअसल, हमें आमतौर पर यह एहसास भी नहीं होता कि हमें कुछ दिया गया है। ईश्वर की उदारता सब के लिए है, जो उस पर विश्वास करते हैं उनके लिए भी और जो उसके अस्तित्व को नकारते हैं उनके लिए भी। यह संत और पापी, विद्वान और अज्ञानी सबके लिए है। 





2.  जो देता है और प्रशंसा करता है





सिर्फ ईश्वर ही पूर्ण है। वह अपनी आत्मनिर्भरता में भी पूर्ण है, जबकि सारी सृष्टि उसी पर निर्भर है। मानव शरीर के प्रत्येक कण को अपने अस्तित्व के लिए ईश्वर की आवश्यकता है। इन सब के बावजूद, ईश्वर न सिर्फ अपने सेवकों को देता है, बल्कि वह उनकी प्रशंसा भी करता है और उनके बारे में अच्छा बोलता है। 





उदाहरण के लिए, ईश्वर अय्यूब (उन पर शांति हो) के बारे में कहता है : "हमने उसे धैर्यवान पाया, एक सबसे उत्कृष्ट सेवक! निश्चित ही वह बड़ा ध्यानमग्न था।" (क़ुरआन 38:44)





जो कुछ पैगंबर अय्यूब (उन पर शांति हो) को दिया था उसमे से कुछ लेकर उनकी परीक्षा लेने के बाद, ईश्वर ने पैगंबर अय्यूब के धैर्य और भक्ति के लिए उनकी प्रशंसा की, हालांकि ईश्वर जो कुछ भी देता है या नहीं देता है वह उसकी मर्जी है। फिर भी, जब पैगंबर अय्यूब की परीक्षा समाप्त हो गई, तो ईश्वर ने उसे वह लौटा दिया जो पहले उसके पास था, और ईश्वर ने उसकी प्रशंसा की। 





जब पवित्र पूर्वजों में से एक ने इस छंद को पढ़ा, तो उन्होंने कहा: "धन्य है ईश्वर जो देता है और जिसको दिया उसकी प्रशंसा करता है।"





हम क़ुरआन में पढ़ते हैं जहां ईश्वर अपने पैगंबरो और अन्य धर्मी लोगों की प्रशंसा करता है, और उन्हें विश्वासी, ईश्वर से डरने वाला, धैर्यवान, पवित्र, पश्चाताप करने वाला और शुद्ध बताता है। यही सच्ची उदारता है कि न केवल वह जरूरतमंदों को देता है, बल्कि उनकी सराहना और उनकी प्रशंसा भी करता है। 





ईश्वर ने पैगंबर सुलैमान (उन पर शांति हो) को ऐसी बादशाहत दी जो किसी को नहीं दी और उनसे कहा: "ये हमारे उपहार हैं: तो उपकार करो अथवा रोक लो, कोई ह़िसाब नहीं।" (क़ुरआन 38:39)





3.  जो मांगने से पहले देता है





बिना मांगे देना ही सच्ची उदारता है। वास्तव में, हम उस व्यक्ति को उदार मानते हैं जो मांगने वालों को स्वतंत्र रूप से देता है। बिना मांगे देने वाला तो और सबसे अधिक उदार है। 





अधिकांश आशीर्वाद जो ईश्वर अपने सेवकों को देता है, बिना मांगे ही दी जाती हैं, या हमें इस बात की जानकारी भी नहीं होती कि हमें कितना दिया गया है। वास्तव में, ईश्वर ही सबसे उदार दानवीर है। 





4.  जो सभी वादों को पूरा करता है लेकिन दूसरों के वादों को भूल जाता है





ईश्वर ने विश्वासियों को इस दुनिया में भलाई का और परलोक में एक बड़ा इनाम देने का वादा किया है। ईश्वर अपना वादा कभी नहीं तोड़ता है। इसके साथ ही, ईश्वर ने पाप करने वालों को उसकी बड़ी सजा से सावधान किया है, उन लोगों को जो पाप करके इसके हक़दार हो गए हैं। हालांकि, उन्होंने इसे अपने विवेक का मामला बनाया है। वह उन पापियों को दंड देगा जिन्हें वह दंड देना चाहता है और जिन्हें वह क्षमा करना चाहता है उन्हें क्षमा कर देगा। 





एक उदार इंसान वह होता है जो हमेशा अच्छा करने के वादे को पूरा करता है। ईश्वर की उदारता किसी भी मानवीय उदारता जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं, उससे अतुलनीय रूप से कहीं अधिक है, और वह क्षमाशील और दयालु है। 





5.  जो याचना करने वाले को कभी भी नहीं ठुकराता है





पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "तुम्हारा ईश्वर नम्रता का मालिक है और वह उदार हैं। जब उनका दास हाथ बढ़ाकर उनसे मांगता है, और अगर वो न दें तो उन्हें शर्म महसूस होती है।"[2]





ईश्वर अपने सेवकों को विनती करने के लिए पुरुस्कार देता है। क्योंकि ईश्वर से मांगना पूजा का एक रूप है। वास्तव में, पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "मांगना पूजा है।"[3]





इसलिए, ईश्वर हमेशा उन्हें जवाब देता है जो ईमानदारी से उससे प्रार्थना करते हैं। 





6.  जो सिर्फ अच्छे काम के इरादे के लिए पुरुस्कार देता है, लेकिन कभी भी बुरे काम के इरादे के लिए दंड नहीं देता जब तक कि बुरा काम किया न जाये





पैगंबर मुहम्मद ने कहा:





ईश्वर ने लिख दिया वह सब कुछ जो अच्छे कर्म हैं और जो बुरे कर्म हैं, और फिर उन्होंने अपने सेवकों को स्पष्ट कर दिया कि कौन से क्या हैं। इसलिए जो कोई एक अच्छा काम करने का इरादा करता है लेकिन उसे कर नहीं पाता, उसे ईश्वर उसके हिसाब में एक पूर्ण अच्छे काम के रूप में लिख देता है। 





यदि कोई अच्छा काम करने का इरादा करता है और उसे पूरा भी कर लेता है, तो ईश्वर उसके हिसाब में उस कार्य के पुण्य को दस से सात-सौ गुना बढ़ा के लिखता है। 





यदि वह एक बुरा काम करने का इरादा करता है लेकिन उसे करता नहीं है, तो उसे ईश्वर उसके हिसाब में एक पूर्ण अच्छे काम के रूप में लिख लेता है। 





यदि वह एक बुरा काम करने का इरादा करता है और उसे कर भी लेता है, तो उसे ईश्वर उसके हिसाब में एक केवल एक ही बुरे काम के रूप में लिखता है।"[4]





अंत में, यह ईश्वर की उदारता ही है कि वह इस दुनिया और परलोक में लोगों का आदर करता है, और हमारी धर्मनिष्ठा को आदर का कारण बनाता है। ईश्वर कहता है: "वास्तव में, तुममें से ईश्वर के समीप सबसे अधिक आदरणीय वही है, जो तुममें से ईश्वर से सबसे अधिक डरता हो" (क़ुरआन 49:13)





ईश्वर ही है जो हमें ईश्वर के होने की समझ और धर्मनिष्ठा का आशीर्वाद देता है। यह भी उनकी अपार उदारता है।



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