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इस्लाम का धर्म एक मूल आस्था पर आधारित है, कि ईश्वर के सिवा कोई देवता पूजा के योग्य नही है। जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है या कोई मुसलमान अपनी आस्था को दृढ़ करना चाहता है, तो वे अपनी आस्था का दावा करते हैं और कहते हैं कि ईश्वर के सिवा कोई देवता पूजा के योग्य नही है और मुहम्मद उनके अंतिम दूत हैं। "अश-हदु अन ला इलाहा इल्ल-अल्लाह व अशदुहु अन्न मुहम्मदन रसूलुल्लाह", इन शब्दों को कहते हुए आस्था की गवाही देना, ये इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों या नींवों में से पहला है। ईश्वर मे विश्वास आस्था के छह स्तंभों में से पहला है।[1]





मुसलमान मानते हैं कि ईश्वर एक है। वह अकेले ही ब्रह्मांड का पालनकर्ता और निर्माता हैं। ईश्वर का कोई भागीदार, बच्चे या सहयोगी नही है। वह सबसे दयालु, सबसे बुद्धिमान और सबसे न्यायी है। वही सब सुनने वाला, सब देखने वाला और सब जानने वाला है। वह प्रथम है, वही अंतिम है। 





"(ऐ मुहम्मद) कह दोः अल्लाह एक है। अल्लाह निरपेक्ष है (जिसकी आवश्यकता सभी प्राणियों को है, वह न तो खाता है और न ही पीता है)। न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है। और न कोई उसके बराबर है।" (क़ुरआन 112)





"वह आकाशों तथा धरती का अविष्कारक है। उसकी संतान कहां से हो सकती है, जबकि उसकी पत्नी नही है? तथा उसीने प्रत्येक वस्तु को पैदा किया है और वह प्रत्येक वस्तु को भली-भांति जानता है। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, उसके अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नही है। वह प्रत्येक वस्तु को बनाने वाला है। अतः उसकी पूजा करो तथा वही प्रत्येक चीज़ का अभिरक्षक है। कोई आंख उसे देख नही सकती, जबकी वह सब कुछ देख रहा है। वह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी और सब चीज़ों से अवगत है।" (क़ुरआन 6:101-103)





इस विश्वास को कभी-कभी एकेश्वरवाद कहा जाता है जो ग्रीक शब्द 'मोनोस' से बना है जिसका अर्थ है सिर्फ एक और 'थियोस' जिसका अर्थ है ईश्वर। यह अंग्रेजी भाषा में एक अपेक्षाकृत नया शब्द है और इसका उपयोग सर्वोच्च को निरूपित करने के लिए किया जाता है जो सर्वशक्तिमान है, जो जीवन देने वाला है, जो पुरस्कार या दंड देता है। एकेश्वरवाद सीधे तौर पर विरोध करता है बहुदेववाद का, जो एक से अधिक ईश्वर में विश्वास करना है और नास्तिकता का, जो सभी देवताओं में अविश्वास करना है।





यदि हम एकेश्वरवाद शब्द के सामान्य अर्थ को ध्यान में रखें तो यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम और पारसी धर्म, और कुछ हिंदू तत्त्वज्ञान सभी को शामिल किया जा सकता है। हालांकि, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम को तीन एकेश्वरवादी धर्मों के रूप में संदर्भित करना और उन्हें एक साथ समूहित करना अधिक सामान्य है; फिर भी, ईसाई धर्म और इस्लाम के बीच स्पष्ट अंतर हैं।





अधिकांश ईसाई संप्रदायों में निहित ट्रिनिटी की अवधारणा में बहुलता के पहलू शामिल हैं। यह आस्था रखना कि एक ईश्वर किसी प्रकार से तीन देवत्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) है, इस्लाम में निहित एकेश्वरवाद की अवधारणा का खंडन करता है, इस्लाम में ईश्वर का एक होना निर्विवाद है। कुछ ईसाई समूहों जैसे यूनिटेरियन का मानना है कि ईश्वर एक है और एक ही समय में वो ईश्वर और मानव नहीं हो सकता। वे यूहन्ना 17:3 में यीशु के शब्द "एक सच्चा ईश्वर" को मानते हैं। हालांकि, अधिकांश ईसाई इस आस्था को नही मानते हैं।





इस्लाम धर्म में बिना किसी साथी या सहयोगी के एक ईश्वर में विश्वास करना आवश्यक है। यह धर्म का केंद्र बिंदु है और यह क़ुरआन का सार है। क़ुरआन मानवजाति को केवल एक ईश्वर की पूजा करने और झूठे देवताओं या सहयोगियों की पूजा न करने का आह्वान करता है। क़ुरआन हमें सृष्टि के चमत्कारों को देखने और ईश्वर की महानता और शक्ति को समझने का आग्रह करता है, और यह सीधे उनके नामों, विशेषताओं और कार्यों के बारे में बताता है। क़ुरआन हमें ईश्वर के सिवा किसी और की पूजा करने और उसको किसी के साथ शामिल करके पूजा करने से मना करता है।





"और मैंने (ईश्वर) जिन्नों और मनुष्यों को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।" (क़ुरआन 51:56)





इस्लाम को अक्सर शुद्ध एकेश्वरवाद के रूप में जाना जाता है। इसमें अजीब अवधारणाओं या अंधविश्वासों की मिलावट नही है। एक ईश्वर में आस्था रखने में निश्चितता होनी चाहिए। मुसलमान सिर्फ एक ईश्वर की पूजा करते हैं, जिसका कोई साथी, सहयोगी या सहायक नही है। वो अपनी पूजा सिर्फ एक ईश्वर को समर्पति करते हैं, क्योंकि वही एकमात्र पूजा के योग्य है। ईश्वर से बड़ा कोई नहीं है।





"सब प्रशंसा ईश्वर के लिए है और शांति है उसके उन भक्तों पर जिन्हें उसने चुना है। क्या ईश्वर उत्तम है या वह जिसे तुम उसका साझी बनाते हो? (बेशक ईश्वर उत्तम है)





ये वो है (तुम्हारे देवताओं से बेहतर) जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से जल उतारा, फिर हमने उससे उगा दिया सुंदरता और आनंद से भरे अद्भुत बाग़, तुम्हारे बस में न था कि उगा देते उसके वृक्ष, तो क्या कोई पूज्य है ईश्वर के सिवा? नहीं, लेकिन वे ऐसे लोग हैं जो ईश्वर के बराबर बताते हैं!





ये वो है (तुम्हारे देवताओं से बेहतर) जिसने धरती को रहने योग्य बनाया तथा उसके बीच नहरें बनायीं और वहां पर्वत बनाये और बना दी दो सागरों के बीच एक रोक। क्या कोई पूज्य है ईश्वर के साथ? बल्कि उनमें से अधिकतर ज्ञान नहीं रखते हैं।





ये वो है (तुम्हारे देवताओं से बेहतर) जो पुकारने पर व्याकुल की प्रार्थना सुनता है और दूर करता है दुख तथा तुम्हें बनाता है धरती का अधिकारी, क्या कोई पूज्य है ईश्वर के साथ? तुम बहुत कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो!





ये वो है (तुम्हारे देवताओं से बेहतर) जो तुम्हें राह दिखाता है जमीन और सागर के अंधेरों में तथा भेजता है हवाओं को शुभ सूचना देने के लिए अपनी दया (वर्षा) से पहले, क्या कोई और पूज्य है ईश्वर के साथ? ईश्वर उन सब से ऊपर है जिन्हें वे उसका साझीदार बनाते हैं!





 ये वो है (तुम्हारे देवताओं से बेहतर) जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर उसे दोहराएगा और जो तुम्हें जीविका देता है आकाश तथा धरती से, क्या कोई पूज्य है ईश्वर के साथ? आप कह दें कि यदि तुम सच्चे हो तो अपना प्रमाण लाओ।" (क़ुरआन 27:59-64)



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