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हर कोई मृत्यु से डरता है और यह सही भी है। जो कुछ परे है उसकी अनिश्चितता भयप्रद है। सभी धर्मों में बताया गया है, किंतु इस्लाम में मृत्यु के बाद क्या होने वाला है और वहाँ क्या है, इसका सबसे चित्रात्मक विवरण मिलता है। इस्लाम मृत्यु को अस्तित्व के अगले चरण की ओर एक स्वाभाविक प्रवेशद्वार मानता है।





इस्लामी सिद्धांत यह मानता है कि आध्यात्मिक और शारीरिक पुनरुत्थान के रूप में मानव शरीर की मृत्यु के बाद भी मानव अस्तित्व जारी रहता है। पृथ्वी पर व्यक्ति के आचरण और उसके मृत्यु बाद के जीवन के बीच सीधा संबंध है। बाद के जीवन में सांसारिक आचरण के अनुरूप पुरस्कारों और दंडों में से कुछ मिलेगा। एक दिन आएगा जब ईश्वर मरे हुए को जीवित करेगा और अपनी सृष्टि की प्रथम से लेकर अंतिम रचना को इकट्ठा करेगा और सभी का निष्पक्ष न्याय करेगा।  लोग अपने अंतिम निवास, नर्क या स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास हमें सही करने और पाप से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है। इस जीवन में हम कभी-कभी पवित्र लोगों को पीड़ा और अपवित्रों को आनंद लेते देखते हैं। एक दिन सभी का निणर्य किया जाएगा और न्याय किया जाएगा।





मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास एक मुसलमान के लिए अपनी आस्था के प्रति पूर्ण निष्ठावान होने के लिए आवश्यक छह मूलभूत मान्यताओं में से एक है। इसे अस्वीकार करना अन्य सभी विश्वासों को निरर्थक बना देता है। किसी बच्चे के बारे में सोचिए, वो आग में हाथ नहीं डालेगा। वह ऐसा नहीं करता क्योंकि उसे पूरा विश्वास है कि वह जल जाएगा। परन्तु जब स्कूल का काम करने की बात आती है, तो वही बच्चा आलसी अनुभव कर सकता है क्योंकि उसे समझ नहीं आता कि अच्छी शिक्षा उसके भविष्य के लिए क्या कर सकती है। अब उस आदमी के बारे में सोचिए जो प्रलय और न्याय के दिन पर विश्वास नहीं रखता। क्या वह ईश्वर में विश्वास और ईश्वर में अपने विश्वास से प्रेरित जीवन को महत्वपूर्ण मानता है? उसके लिए, न तो ईश्वर की आज्ञाकारिता किसी काम की है, और न ही अवज्ञा से कोई हानि है। तो फिर, वह ईश्वर के प्रति आस्थावान जीवन कैसे जी सकता है? उसे जीवन की परीक्षाओं को धैर्य के साथ सहने और सांसारिक सुखों में अतिभोग से बचने के बदले क्या मिलेगा? और यदि कोई मनुष्य ईश्वर के बताये मार्ग पर नहीं चलता है, तो ईश्वर में उसके विश्वास का क्या अर्थ है? मृत्यु के बाद जीवन की स्वीकृति या अस्वीकृति शायद किसी व्यक्ति के जीवन के मार्ग को निर्धारित करने का सबसे बड़ा कारक है।





कब्र में मृतकों का अस्तित्व एक प्रकार का निरंतर और सचेतन अस्तित्व होता है। मुसलमानों का मानना है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति मृत्यु और पुनरुत्थान के बीच जीवन के मध्यवर्ती चरण में प्रवेश करता है। इस नए "विश्व" में कई घटनाएँ होती हैं, जैसे कि कब्र के भीतर "परीक्षण", जहाँ फरिश्ते मृतकों से उनके धर्म, पैगम्बर और ईश्वर के बारे में प्रश्न पूछेंगे। कब्र स्वर्ग का उपवन या नरक का गड्ढा है; आस्तिकों की आत्माओं से मिलने दया के दूत (फ़रिश्ते) आते हैं और नास्तिकों से मिलने दंड देने वाले दूत (फ़रिश्ते) आते हैं।





पुनरुत्थान की घटना संसार के अंत से पहले होगी। ईश्वर एक तेजस्वी फ़रिश्ते को तुरही बजाने की आज्ञा देगा। इसके पहले नाद पर, स्वर्ग और पृथ्वी के सभी निवासी अचेत हो जाएंगे, सिवाय उन लोगों के जिन्हें ईश्वर अचेत नहीं करना चाहता। पृथ्वी सपाट हो जाएगी, पहाड़ धूल में परिवर्तित हो जाएंगे, आकाश फट जाएगा, ग्रह तितर-बितर हो जाएंगे, और कब्रें उलट दी जाएंगी।





लोगों को उनकी कब्रों से उनके मूल भौतिक शरीर में पुनर्जीवित किया जाएगा, जिससे वे जीवन के तीसरे और अंतिम चरण में प्रवेश करेंगे। तुरही फिर से बजेगा जिस के बाद लोग अपनी कब्रों से उठ खड़े होंगे, जी उठेंगे!





ईश्वर सभी मनुष्यों, विश्वासियों और अपवित्रों, जिन्नों, राक्षसों, यहाँ तक कि जंगली जानवरों को भी इकट्ठा करेगा। यह एक सार्वभौमिक जमावड़ा होगा। फ़रिश्ते सभी मनुष्यों को नग्न, खतनारहित, और नंगे पांव एक विशाल मैदान में ले जाएंगे। लोग न्याय के इंतजार में खड़े होंगे और मानवता पीड़ा में पसीना बहा रही होगी। न्याय परायण (धार्मिक) लोगों को ईश्वर के भव्य और विशाल सिंहासन की छाया में आश्रय प्राप्त होगा।





जब स्थिति असहनीय हो जाएगी, तब लोग नबियों और पैगम्बरों से अनुरोध करेंगे कि वे उन्हें संकट से बचाने के लिए उनकी ओर से ईश्वर को विनय करें।





तराजू स्थापित किया जाएगा और मनुष्यों के कर्मों को तौला जाएगा। इस जीवन में किए गए कर्मों के अभिलेख का खुलासा होगा। जिसे अपने दाहिने हाथ में उसका अभिलेख मिलेगा, उसके लिए यह प्रक्रिया आसान होगी। वह खुशी-खुशी अपने परिवार के पास लौट आएगा। परन्तु जो व्यक्ति अपने बाएं हाथ में अपना अभिलेख प्राप्त करेगा, वह चाहेगा कि उसे मौत आ जाये क्योंकि उसे आग में फेंक दिया जाएगा। वह पछतावे से भर जायेगा और चाहेगा कि उसे उसका अभिलेख सौंपा न गया होता या उसे इसका पता ही नहीं चलता।





तब ईश्वर अपनी रचना का न्याय करेगा। उन्हें उनके अच्छे कामों और पापों के बारे में बताया जाएगा। निष्ठावान अपनी दुर्बलताओं को स्वीकार करेंगे और उन्हें माफ कर दिया जाएगा। अविश्वासियों के पास घोषित करने के लिए कोई अच्छे काम नहीं होंगे क्योंकि अविश्वासी को उसके अच्छे कर्मों के लिए जीवनकाल में ही पुरस्कृत कर दिया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि अविश्वासी के महान पाप की सजा को छोड़कर, अविश्वासी का दंड उसके अच्छे कर्मों के बदले कम किया जा सकता है।





सिरात एक पुल है जो नर्क के ऊपर स्थापित किया जाएगा और स्वर्ग तक जायेगा। जो कोई भी इस जीवन में ईश्वर के धर्म पर अडिग होगा, उसके लिए इसे पार करना सरल होगा।





स्वर्ग और नरक अंतिम न्याय के बाद वफादार और अभिशप्त लोगों के लिए अंतिम निवास स्थान होंगे। वे वास्तविक और शाश्वत हैं। स्वर्ग के लोगों का आनंद कभी समाप्त नहीं होगा और नर्क को भोगने को शापित अविश्वासियों की सजा कभी समाप्त नहीं होगी। कुछ अन्य विश्वास-प्रणालियों में उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण प्रणाली के विपरीत, इस्लामी दृष्टिकोण अधिक परिष्कृत है और अधिक उच्च स्तर के दैवीय न्याय को व्यक्त करता है। इसे दो तरह से देखा जा सकता है। प्रथम, कुछ विश्वासी पश्‍चाताप न किए गए, मूल पापों के लिए नरक में पीड़ा भोग सकते हैं। द्वितीय, स्वर्ग और नर्क दोनों के कई स्तर होते हैं।





स्वर्ग भौतिक आनंद और आध्यात्मिक सुखों का शाश्वत उद्यान है। कष्ट अनुपस्थित होंगे और शारीरिक इच्छाएं तृप्त होंगी। सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। महलों, नौकरों, धन, शराब, दूध और शहद की नदियाँ, सुखकर सुगंध, कर्णप्रिय आवाजें, अंतरंगता के लिए शुद्ध साथी; व्यक्ति कभी ऊबेगा नहीं और न ही उसका मन भरेगा!





हालांकि, सबसे बड़ा आनंद उनके स्वामी का दर्शन होगा जिससे अविश्वासी वंचित रह जाएंगे।





नरक अविश्वासियों के लिए भयावह दंड और पापी विश्वासियों के लिए शुद्धिकरण का स्थान है। शरीर और आत्मा के लिए यातना और दंड, आग से जलाना, पीने के लिए उबलता पानी, खाने के लिए जला हुआ खाना, जंजीरें और दम घोंटने वाले स्तंभ। अविश्वासियों को सदैव इसमें रहना होगा, जबकि पापी विश्वासियों को अंततः नर्क से बाहर निकाल लिया जाएगा और उन्हें स्वर्ग में प्रवेश दिया जाएगा।





स्वर्ग उनके लिए है जिन्होंने केवल और केवल ईश्वर की पूजा की थी, अपने पैगंबर का विश्वास और उनका अनुगमन किया था, और धर्मशास्त्र की शिक्षाओं के अनुसार नैतिक जीवन जिया था।





नरक उन लोगों का अंतिम निवास होगा जिन्होंने ईश्वर को नकारा, ईश्वर के अतिरिक्त अन्य प्राणियों की पूजा की, नबियों की पुकार को अस्वीकार किया, और पापी, अपश्चातापी जीवन व्यतीत किया।



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