इस्लाम के इतिहास में इस समय जब पूरे धर्म को कुछ लोगो के कार्यों से आंका जा रहा है, तब मीडिया की चकाचौंध से पीछे हटके इस्लाम की उन सुंदरताओं को देखें जो जीवन जीने की शैली को प्रभावित करती हैं। इस्लाम में महानता और वैभव है जो अक्सर उन कार्यों से ढक जाता है जिनका इस्लाम में कोई स्थान नहीं है या ऐसे लोग जो उन विषयों पर बाते करते हैं जिन्हें वे पूरी तरह नहीं समझते। इस्लाम एक धर्म है, जीवन जीने का एक तरीका है जो मुसलमानों को और अधिक मेहनत करने, आगे बढ़ने और ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है जो उनके आसपास के लोगों को प्रसन्न करे और सबसे महत्वपूर्ण उनके निर्माता को प्रसन्न करे।
इस्लाम की सुंदरता वो चीजें हैं जो धर्म का हिस्सा हैं और इस्लाम को सबसे अलग बनाती है। इस्लाम मानवजाति के सभी शाश्वत प्रश्नों का उत्तर देता है। मैं कहां से आया हूं? मैं यहां क्यों हूं? क्या वास्तव में यही सब है? इस्लाम सवालों के जवाब स्पष्टता और सुंदर तरीके से देता है। तो आइए इस्लाम की सुंदरता को देखें और उस पर विचार करें।
1. जीवन के बारे में आपके सभी सवालों के जवाब क़ुरआन मे हैं
क़ुरआन ईश्वर की महिमा और उनकी रचना के आश्चर्य का विवरण देने वाली किताब है; इसमे उनकी दया और न्याय का भी विवरण है। यह कोई इतिहास की किताब, कहानी की किताब या वैज्ञानिक पाठ्यपुस्तक नहीं है, हालांकि इसमें ये सभी शामिल है और इसके अलावा भी बहुत कुछ है। क़ुरआन मानवता के लिए ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है - इसके जैसी कोई किताब नही है क्योंकि इसमें जीवन के रहस्यों के उत्तर हैं। यह सवालों के जवाब देती है और हमें भौतिकवाद से ऊपर देखने को कहती है और बताती है कि यह जीवन इसके बाद के कभी न खत्म होने वाले जीवन के रास्ते का एक छोटा पड़ाव है। इस्लाम जीवन को एक स्पष्ट लक्ष्य और उद्देश्य देता है।
"मैंने जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी आराधना करें।" (क़ुरआन 51:56)
इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण किताब है और मुसलमानों को इसमें जरा भी संदेह नहीं कि यह आज भी ठीक वैसी ही है जैसा पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) के समय थी। जब हम उन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों को पूछते हैं तो हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उत्तर सत्य हो। यह जानकर तसल्ली होती है और सांत्वना मिलती है कि उत्तर एक ऐसी किताब में है जो ईश्वर का अपरिवर्तित वचन है। जब ईश्वर ने क़ुरआन उतारा, तो उन्होंने इसे संरक्षित करने का वादा किया। जो क़ुरआन हम आज पढ़ते हैं, वो वही हैं जो पैगंबर मुहम्मद के साथियों द्वारा कंठस्थ किये गए थे और लिखे गए थे।
"बेशक हम ही ने क़ुरआन उतारा है और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं।" (क़ुरआन 15:9)
2. सच्ची खुशी इस्लाम में मिल सकती है
खुश रहें, सकारात्मक रहें और शांति से रहें।[1] इस्लाम हमें यही सिखाता है, क्योंकि ईश्वर की सभी आज्ञाओं का उद्देश्य व्यक्ति की खुशी है। खुशी की कुंजी ईश्वर को समझने और उनकी आराधना करने में है। यह आराधना हमें उनकी याद दिलाती है और इसलिए हम अन्याय, अत्याचार और बुराई से दूर रहते हैं। यह हमें धार्मिक और अच्छे चरित्र वाला बनाती है। उसकी आज्ञाओं का पालन करके हम एक ऐसा जीवन जीते हैं जो सभी मामलों में हमारा सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन करती है। जब हम इतना सार्थक जीवन जीते हैं तब और केवल तभी हम चारो ओर हर समय और यहां तक कि सबसे बुरे समय में भी ख़ुशी देख पाते हैं। यह ख़ुशी हाथ के स्पर्श में होती है, बारिश या नई कटी घास की गंध में होती है, ठंडी रात की गर्म आग में होती है, या गर्म दिन की ठंडी हवा में होती है। साधारण सुख भी हमें प्रसन्न कर सकते हैं क्योंकि वे ईश्वर की दया और प्रेम की निशानी होते हैं।
मनुष्य की स्थिति का स्वभाव ये है कि वह बड़े दुख में भी खुशी के क्षण ढूंढ सकता है और कभी-कभी निराशा के समय में हम उन चीजों को ढूंढ सकते हैं जो हमें खुशी देती हैं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वास्तव में एक विश्वास करने वाले की बातें आश्चर्यजनक हैं! वे सभी उसके फायदे के लिए हैं। अगर उसे जीवन में आसानी दी जाती है तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है। और यदि उसे कष्ट दिया जाता है, तो वह दृढ़ रहता है, और यह उसके लिए अच्छा है।"[2]
3. इस्लाम में हम दिन या रात किसी भी समय आसानी से ईश्वर से संवाद कर सकते हैं
हर मनुष्य पैदा होने के समय यह जानता है कि ईश्वर एक है। हालांकि जो लोग यह नहीं जानते कि ईश्वर से संवाद कैसे करना है या उनके साथ संबंध कैसे स्थापित करना है, वे अपने अस्तित्व को भ्रमित करने वाला और कभी-कभी परेशान करने वाला भी पाते हैं। ईश्वर से संवाद करना और उसकी आराधना करना सीखने से जीवन को एक नया अर्थ मिलता है।
इस्लाम के अनुसार, ईश्वर कभी भी और कहीं भी उपलब्ध है। हमें केवल उसे पुकारने की आवश्यकता है और वह उस पुकार का उत्तर देगा। पैगंबर मुहम्मद ने हमें ईश्वर को अक्सर पुकारने की सलाह दी। उन्होंने हमें बताया कि ईश्वर कहता है,
"मैं वैसा ही हूं जैसा मेरा बंदा सोचता है कि मैं हूं, (अर्थात मैं उसके लिए वह कर सकता हूं जो वह सोचता है कि मैं उसके लिए कर सकता हूं) और मैं उसके साथ हूं यदि वह मुझे याद करे। अगर वह मुझे अकेले में याद करता है, तो मैं भी उसे अकेले में याद करता हूं; और यदि वह मुझे लोगों के समूह में याद करता है, तो मैं भी उसे एक समूह में याद करता हूं जो उसके समूह से बेहतर है; और यदि वह मेरी तरफ एक कदम बढ़ाता है, तो मैं उसकी तरफ एक हाथ और नजदीक जाता हूं; और यदि वह मेरी तरफ एक हाथ नजदीक आता है, तो मैं उसकी तरफ दो हांथ नजदीक जाता हूं; और यदि वह चलते-चलते मेरे पास आए, तो मैं दौड़ते हुए उसके पास जाता हूं।"[3]
क़ुरआन में ईश्वर कहता है, "तुम मुझे याद करो और मैं तुम्हें याद करूंगा ..." (क़ुरआन 2:152)
विश्वास करने वाले ईश्वर को किसी भी भाषा में, कभी भी और कहीं भी पुकारते हैं। वे उनसे प्रार्थना करते हैं, और धन्यवाद देते हैं। मुसलमान भी हर दिन पांच बार प्रार्थना करते हैं और दिलचस्प बात यह है कि अरबी में प्रार्थना का शब्द 'सलाह' है, जिसका अर्थ है एक संबंध। मुसलमान ईश्वर से जुड़े हुए हैं और उनसे आसानी से संवाद कर सकते हैं। हम ईश्वर की दया, क्षमा और प्रेम से कभी अलग या दूर नहीं हैं।
4. इस्लाम हमें वास्तविक शांति देता है
इस्लाम, मुस्लिम और सलाम (शांति) शब्द अरबी भाषा के मूल शब्द "सा-ला-मा" से आए हैं। यह शांति, रक्षा और सुरक्षा को दर्शाता है। जब कोई व्यक्ति ईश्वर की इच्छा के अधीन होता है, तो वह सुरक्षा और शांति की सहज भावना का अनुभव करता है। सलाम एक वर्णनात्मक शब्द है जो शांति और धैर्य को दर्शाता है; इसमें सुरक्षा, रक्षा और विनम्रता की अवधारणाएं भी शामिल हैं। वास्तव में इस्लाम का पूर्ण अर्थ है एक ईश्वर के प्रति समर्पण जो हमें सुरक्षा, शांति और सद्भाव देता है। यह वास्तविक शांति है। मुसलमान मिलते समय एक दूसरे को 'अस्सलाम अलैकुम' कहते हैं। इन अरबी शब्दों का अर्थ है 'ईश्वर आपको सुरक्षित रखे (वास्तविक और स्थायी शांति)'। ये संक्षिप्त अरबी शब्द मुसलमानों को यह बताते हैं कि वे मित्र हैं, अजनबी नहीं। यह अभिवादन विश्वास करने वालों को एक विश्वव्यापी समुदाय बनने के लिए प्रोत्साहित करता है जो जाति या राष्ट्रवादी वफादारी से मुक्त और शांति और एकता से बंधे हुए हैं। इस्लाम अपने आप में आंतरिक शांति से जुड़ा हुआ है।
"और वो लोग जिन्होंने ईश्वर और उसके पैगंबरो पर विश्वास किया और अच्छे काम किए, उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दिया जायेगा जिनमें नहरें बहती होंगी, वो अपने ईश्वर की अनुमति से उसमें हमेशा रहेंगे और उसमें उनका स्वागत ये होगा, तुमपर शान्ति हो!” (क़ुरआन 14:23)
5. इस्लाम हमें ईश्वर को जानने में सहायता करता है
इस्लाम का पहला सिद्धांत और केंद्र बिंदु है एक ईश्वर में विश्वास करना, और पूरा क़ुरआन यही बताता है। यह ईश्वर और उनके सार, नाम, गुण और कार्यों को बताता है। प्रार्थना हमें ईश्वर से जोड़ती है, हालांकि ईश्वर के नाम और गुणों को जानना और समझना एक महत्वपूर्ण और अनूठा अवसर है, जो केवल इस्लाम में मौजूद है। जो लोग वास्तव में ईश्वर को जानने का प्रयास नहीं करते उनका अस्तित्व उलझा हुआ और कष्टदायक होता है। मुसलमान को ईश्वर को याद करने और उसके प्रति आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और एक व्यक्ति ईश्वर के सुंदर नामों और गुणों पर विचार करके और समझ के ऐसा कर सकता है। इसी तरह ही हम अपने सृष्टिकर्ता को जान सकते हैं।
"वही ईश्वर है, उसके सिवा कोई भी पूजने के लायक नहीं। उसी के सर्वश्रेष्ठ नाम है।" (क़ुरआन 20:8)
"और सभी सुंदर नाम ईश्वर के हैं, उन्हें इन्हीं नामो से पुकारो, और उन लोगों की संगति छोड़ दो जो उनके नामों को झुठलाते हैं या इनकार करते हैं (या उनके खिलाफ अभद्र भाषा बोलते हैं)..." (क़ुरआन 7:180)
6. इस्लाम हमें पर्यावरण की देखभाल करना सिखाता है
इस्लाम मानता है कि मनुष्य पृथ्वी और उस पर जो कुछ भी है उसके संरक्षक हैं , जिसमें शामिल है वनस्पति, जानवर, महासागर, नदियां, रेगिस्तान और उपजाऊ भूमि। ईश्वर हमें वे चीजें देता है जिसकी आवश्यकता हमें जीवित रहने और आगे बढ़ने के लिए होती है, लेकिन हम उनकी देखभाल करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्हें संरक्षित करने के लिए बाध्य हैं।
1986 में विश्व वन्यजीव कोष के तत्कालीन अध्यक्ष प्रिंस फिलिप ने दुनिया के पांच प्रमुख धर्मों के लीडर को इटली के शहर असिसि में मिलने के लिए बुलाया था। वे इस बात पर चर्चा करने के लिए मिले थे कि कैसे धर्मों पर विश्वास प्रकृति और पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकता है। असिसि घोषणाओं में प्रकृति पर मुस्लिमों के कथन निम्नानुसार है:
मुसलमान कहते हैं कि इस्लाम बीच का रास्ता है और हम इस रास्ते पर कैसे चले, हमने अपने आसपास की पूरी सृष्टि में कैसे संतुलन और सामंजस्य बनाए रखा, इसके लिए हम जवाबदेह होंगे।
इन्हीं मूल्यों ने इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद को यह कहने के लिए प्रेरित किया: 'जो कोई पेड़ लगाएगा और उसकी देखभाल तब तक करेगा जब तक कि वह बड़ा न हो जाए और फल न देने लगे, उसे इसका इनाम दिया जायेगा।'
इन सभी कारणों से मुसलमान खुद को दुनिया और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार मानते हैं, जो सभी अल्लाह की रचनाएं हैं।
कई अन्य धर्मों के विपरीत, मुसलमानों में कोई ऐसा विशिष्ट त्योहार नहीं है जिसमें वे फसल या दुनिया को धन्यवाद देते हैं। इसके बजाय वे अल्लाह को उसकी रचनाओं के लिए नियमित रूप से धन्यवाद देते हैं।[1]
7. इस्लाम सम्मान है
इस्लाम का एक और खूबसूरत पहलू मानवता और उस ब्रह्मांड के लिए सम्मान है जिसमें हम रहते हैं। इस्लाम स्पष्ट रूप से कहता है कि ये सभी मनुष्यो की जिम्मेदारी है कि वह सृष्टि के सभी जीवों के साथ सम्मान, आदर और गरिमा से पेश आये। सबसे ज्यादा सम्मान के योग्य स्वयं निर्माता है और निश्चित रूप से उसकी आज्ञाओं का पालन करके हम उसका सम्मान कर सकते हैं। ईश्वर का पूर्ण सम्मान करके हम इस्लाम के सभी शिष्टाचार और नैतिकता के उच्च मानकों को अपने जीवन और हमारे आसपास के लोगों के जीवन में प्रवाहित कर सकते हैं। क्योंकि इस्लाम शांति, प्रेम और दया का सम्मान करता है, इसमें दूसरों के सम्मान, प्रतिष्ठा और गोपनीयता का सम्मान करना शामिल है। सम्मान करने का मतलब है बड़े पापों से बचना जैसे चुगली न करना, झूठ न बोलना, बदनाम न करना और अफ़वाह न उड़ाना। इसका अर्थ है उन पापों से बचना जो लोगों के बीच फूट डाल सकते है या विनाश की ओर ले जा सकते हैं।
सम्मान करने में शामिल है अपने भाइयों और बहनों को वैसे प्यार करना जैसे हम खुद को प्यार करते हैं। इसमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना शामिल है जैसा व्यवहार हम अपने लिए चाहते हैं और आशा करते हैं कि ईश्वर भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करें - कृपा, प्रेम और दया के साथ। बड़े पाप मानवता और ईश्वर की दया के बीच एक बाधा हैं और इस दुनिया में और उसके बाद सभी पीड़ा, दुख और बुराई का कारण बनते हैं। ईश्वर हमें पाप से दूर रहने और अपने चरित्र के विनाशकारी दोषों के विरुद्ध काम करने का आदेश देते हैं। हम एक ऐसे युग में रहते हैं जहां हम अक्सर दूसरों से सम्मान की उम्मीद करते हैं लेकिन अपने आसपास के लोगों का सम्मान नहीं करते। इस्लाम की एक खूबी यह है कि यह हमें पूरे दिल से ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करके खोया हुआ सम्मान वापस पाने में मदद करता है। हालांकि अगर हम यह नहीं समझेंगे कि हम कैसे और क्यों ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करें तो हमें वो सम्मान नहीं मिल सकता जो हम चाहते हैं और जिसकी हमें आवश्यकता है। इस्लाम हमें सिखाता है और ईश्वर हमें क़ुरआन में याद दिलाता है कि जीवन में हमारा एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की पूजा करना है।
"और मैंने (ईश्वर) जिन्नों और मनुष्यों को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए बनाया है।" (क़ुरआन 51:56)
8. पुरुषों और महिलाओं की समानता
BeautiesOfIslam3.jpgक़ुरआन कहता है कि सभी विश्वास करने वाले एक समान हैं और केवल अच्छे काम ही एक व्यक्ति को दूसरे से अलग बनाते हैं। इसलिए विश्वास करने वाले पवित्र पुरुषों और महिलाओं का बहुत सम्मान करते हैं और इस्लामी इतिहास हमें यह भी बताता है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों ने सभी क्षेत्रों में सेवा की और अच्छा काम किया। पुरुष की तरह ही एक महिला भी ईश्वर की पूजा करने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बाध्य है। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक महिला गवाही दे कि ईश्वर के अलावा कोई और पूजा के योग्य नहीं है, और मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) उनके पैगंबर हैं; प्रार्थना करे; दान दे; उपवास करे; और अगर उसके पास साधन और क्षमता है तो ईश्वर के घर की तीर्थ यात्रा करे। प्रत्येक महिला के लिए यह भी आवश्यक है कि ईश्वर और उसके दूतों, उसकी किताबों, उसके पैग़ंबरों, क़यामत के दिन पर विश्वास करे और ईश्वर के आदेश पर विश्वास करे। यह भी आवश्यक है कि हर महिला ईश्वर की पूजा ऐसे करें जैसे कि वह उन्हें देख रही है।
"और जो लोग अच्छा काम करेंगे, चाहे वो पुरुष हो या महिला, और ईश्वर के एक होने में विश्वास करेंगे, तो ऐसे लोग ही स्वर्ग में जायेंगे और उनके साथ जरा सी भी बेईमानी और जुल्म न होगा।" (क़ुरआन 4:124)
इस्लाम हालांकि मानता है कि समानता का मतलब यह नहीं है कि पुरुष और महिला समान हैं। इनके शरीर क्रिया विज्ञान, प्रकृति और स्वभाव में अंतर है। इसमें श्रेष्ठता या हीनता की बात नहीं है, बल्कि प्राकृतिक क्षमताओं और जीवन में अलग-अलग भूमिका निभाने की बात है। इस्लाम के कानून न्यायसंगत और निष्पक्ष हैं और इन पहलुओं को ध्यान में रखते हैं। पुरुषों को काम करने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने का काम सौंपा गया है और महिलाओं को मातृत्व और घर संभालने का काम सौंपा गया है। इस्लाम हालांकि कहता है कि काम करने के ये नियम विशेष नहीं हैं और न ही कड़े हैं। महिलाएं काम कर सकती हैं या समाज की सेवा कर सकती हैं और पुरुष अपने बच्चों या अपने घर की जिम्मेदारी ले सकते हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि यदि महिलाएं काम कर के पैसा कमाती हैं तो वह उनका अपना होता है, हालांकि एक पुरुष पूरे परिवार के लिए आर्थिक रूप से जिम्मेदार होता है।
9. मनुष्य पिछले कार्यों का पछतावा कर सकता है और सुधर सकता है
मुसलमानों का मानना है कि मनुष्य सुधर सकता है; और वे यह भी मानते हैं कि ऐसा करने में सफलता की संभावना विफलता की संभावना से अधिक है। और वे ऐसा इसलिए मानते हैं क्योंकि ईश्वर ने मानवजाति को सुधरने का मौका दिया है, एक बार नहीं बल्कि बार-बार क़यामत के दिन तक। ईश्वर ने प्रत्येक राष्ट्र में दूत और पैगंबर भेजे। कुछ हम क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद के जरिये जानते हैं, अन्य केवल ईश्वर को पता है।
"और प्रत्येक समुदाय या राष्ट्र के लिए एक दूत है; जब उनका दूत आएगा तो उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला किया जाएगा, और उन पर कोई ज़ुल्म न होगा।” (क़ुरआन 10:47)
ईश्वर किसी व्यक्ति को तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराता जब तक कि उसे स्पष्ट रूप से सही मार्ग न दिखाया गया हो।
"...और हम तब तक सज़ा नहीं देते जब तक कि हम एक दूत न भेज दें।”(क़ुरआन 17:15)
इसके साथ ही हम सत्य को खोजने के लिए जिम्मेदार हैं और सत्य मिल जाने पर हमें इसे स्वीकार करना चाहिए और इसके अनुसार अपने जीवन को सुधारना चाहिए। पिछले बुरे कार्यों को भूल जाना चाहिए। ऐसा कोई पाप नहीं जिसे क्षमा नही किया जा सकता!
"कह दो, 'ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपने आप पर ज्यादती की है, ईश्वर की दयालुता से निराश न हो। निस्संदेह ईश्वर सभी पापों को क्षमा कर देता है। निस्सन्देह वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है'" (क़ुरआन 39:53)
एक व्यक्ति को अतीत के लिए ईमानदारी से पश्चाताप करके और यदि वह मुसलमान नहीं है तो उसे इस्लाम धर्म अपना के ईश्वर की दया का लाभ उठाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को आस्था, विश्वास और कर्म को मिलाकर अपने उद्धार के लिए कार्य करना चाहिए।
10. ईश्वर सुंदरता को उसके सभी रूपों में पसंद करता है
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "कोई भी स्वर्ग में नहीं जायेगा जिसके दिल में चींटी के वजन के बराबर घमंड होगा।" एक आदमी ने कहा, "क्या होगा अगर एक आदमी अच्छा दिखने के लिए अच्छे कपड़े और अच्छे जूते पहने?" उन्होंने कहा, "ईश्वर सुंदर हैं और सुंदरता को पसंद करता है। घमंड का मतलब है सच्चाई को नकारना और लोगों को नीचा दिखाना।" [1]
सुंदरता कुरूपता के विपरीत है। सृष्टि में मौजूद सुंदरता ईश्वर की सुंदरता के साथ-साथ उनकी शक्ति का भी प्रमाण है। जिसने सुंदरता बनाई वह सुंदरता का सबसे अधिक हकदार है। और वास्तव में स्वर्ग इतना सुंदर है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। ईश्वर सुंदर है और इसलिए स्वर्ग के सभी सुखों में सबसे बड़ा सुख ईश्वर के चेहरे को देखना है। ईश्वर कहता है,
"कितने ही चेहरे उस दिन प्रफुल्लित होंगे, अपने प्रभु की ओर देख रहे होंगे।" (क़ुरान 75:22-23)
वह अपने नामों को सबसे सुंदर बताता है:
“और सभी सुंदर नाम ईश्वर के हैं, उन्हें इन्हीं नामो से पुकारो…” (क़ुरआन 7:180)
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान इब्न अल-क़य्यम, अल्लाह उन पर रहम करे, ने इस्लाम की सुंदरता के बारे में निम्नलिखित कहा था:
"ईश्वर की पहचान उसकी सुंदरता से होनी चाहिए जिसका किसी और से कोई मेल नहीं है, और उसकी पूजा उस सुंदरता से करनी चाहिए जैसे वह शब्दों, कर्मों और व्यवहार से प्यार करता है। वह अपने दासों से प्रेम करता है कि वे अपनी जीभ को सच्चाई से सुशोभित करें, अपने दिलों को सच्ची भक्ति, प्रेम, पश्चाताप और उस पर विश्वास से सुशोभित करें, अपने मन को उसकी आज्ञा से शांत करें; वह उनके कपड़ों में अपना आशीर्वाद दिखाकर उनके शरीर को सुशोभित करने के लिए प्यार करता है और किसी भी गंदगी या अशुद्धता से मुक्त रखकर, जिन बालों को हटाना है उन्हें हटाकर, खतना करके और नाखूनों को काटकर उनके शरीर को सुशोभित करने के लिए प्यार करता है। इस प्रकार वे सुंदरता के इन गुणों से ईश्वर को पहचानते हैं और सुंदर शब्दों, कर्मों और व्यवहार से उनके करीब जाने का प्रयास करते हैं। वे उन्हें उस सुंदरता के लिए स्वीकार करते हैं जो उनकी विशेषता है और वे उनकी पूजा उस सुंदरता के माध्यम से करते हैं जिसे उसने निर्धारित किया है और उनके धर्म के लिए।"[2]