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क़ुरआन में कई भविष्यवाणियां हैं जो पूरी हो चुकी हैं, लेकिन इस चर्चा में हम केवल पांच ही बताएंगे।[1]  पहली दो भविष्यवाणियाँ उल्लेखनीय हैं: विश्व के किसी भी अन्य धर्म-पुस्तक के विपरीत, क़ुरआन ईश्वरीय शक्ति द्वारा अपने स्वयं के संरक्षण की भविष्यवाणी करता है, और हम यह बताएँगे कि यह वास्तव में कैसे हुआ।





क़ुरआन में परिवर्तन से इसकी सुरक्षा


क़ुरआन वो दावा करती है जो कोई अन्य धार्मिक किताब नहीं करती, कि ईश्वर स्वयं अपने किताब को परिवर्तन से सुरक्षित रखेगा। ईश्वर कहता है:





"देखो, हम ही हैं जिसने इसे धीरे-धीरे उतारा है, और हम ही हैं जो वास्तव में सभी परिवर्तन से इसकी रक्षा करेंगे।" (क़ुरआन 15:9)





क़ुरआन को कंठस्थ (याद) करने में आसानी


ईश्वर ने क़ुरआन को कंठस्थ करना आसान बना दिया है:





"और वास्तव में हमने क़ुरआन को कंठस्थ करना आसान बना दिया है, फिर कौन इसे दिल में रखने को तैयार है?" (क़ुरआन 54:17)





जिस सहजता से क़ुरआन को कंठस्थ किया जाता है वह अतुलनीय है। दुनिया में एक भी धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जिसे कंठस्थ करना इतना आसान हो; यहां तक कि गैर-अरबी लोग और बच्चे भी इसे आसानी से कंठस्थ कर लेते हैं। पुरे क़ुरआन को लगभग हर इस्लामी विद्वान और सैकड़ों हजारों आम मुसलमान पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ करते हैं। लगभग हर मुसलमान क़ुरआन का कुछ हिस्सा अपनी प्रार्थनाओं में पढ़ने के लिए कंठस्थ करता है।





दोहरी भविष्यवाणी


इस्लाम के आने से पहले, रोमन और फारसी दो प्रतिस्पर्धी महाशक्ति थे। रोमनों का नेतृत्व एक ईसाई सम्राट हेराक्लियस (610–641सीई) ने किया था, जबकि फारस के लोग खोस्रो परविज़ (590–628 सीई तक शासन किया) के नेतृत्व में पारसी थे, जिसके तहत साम्राज्य ने अपना सबसे बड़ा विस्तार किया।





614 में फारसियों ने सीरिया और फिलिस्तीन पर विजय प्राप्त की, जेरूसलम को भी ले लिया, पवित्र सेपुलकर (मज़ार) को नष्ट कर दिया और 'ट्रू क्रॉस' को सीटीसिफॉन ले जाया गया। फिर, 619 में, उन्होंने मिस्र और लीबिया पर कब्जा कर लिया। हेराक्लियस ने उनसे थ्रेसियन हेराक्लीया (617 या 619) में मुलाकात की, लेकिन उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की और वह वापस कॉन्स्टेंटिनोपल चला गया, और उन्होंने उसका पीछा किया।[2]





रोमनों की हार से मुसलमान दुखी थे क्योंकि वे पारसी फारस की तुलना में आध्यात्मिक रूप से ईसाई रोम के ज्यादा करीब महसूस करते थे, लेकिन मक्का के लोग मूर्तिपूजक फारस की जीत से स्वाभाविक रूप से प्रसन्न थे। मक्का के लिए रोमनों की हार मूर्तिपूजक के हांथो मुसलमानों की हार की एक भयावह शुरुआत थी। उस समय ईश्वर की भविष्यवाणी ने विश्वास करने वालों को सांत्वना दी:





"रोमनों को पराजित किया गया है - पास की भूमि में; लेकिन वे उनकी इस हार के बाद जल्द ही विजयी होंगे- दस वर्षों के भीतर। ईश्वर का ही नियंत्रण है पहले भी और बाद में भी: उस दिन विश्वाश करने वाले ईश्वर द्वारा दी गई जीत पर खुश होंगे। वह जिसे चाहता है उसकी सहायता करता है, और वह सबसे बड़ा, और रहम करने वाला है।" (क़ुरआन 30:2-5)





क़ुरआन ने दो जीत की भविष्यवाणी की:





(i)   भविष्य में दस वर्षों के भीतर फारसियों पर रोमनों की जीत, जिसकी उस समय कल्पना भी नहीं की जा सकती थी





(ii)  मूर्तिपूजकों पर विजय के बाद विश्वास करने वालो की ख़ुशी





वास्तव में ये दोनों भविष्यवाणियां सही साबित हुईं।





622 में हेराक्लियस ने कांस्टेंटिनोपल छोड़ दिया क्योंकि फारसियों पर जीत और यरूशलेम के पुनर्निर्माण के लिए कई पूजा स्थलों से प्रार्थनाएं हो रही थीं। उन्होंने अगले दो साल आर्मेनिया में अभियानों के लिए समर्पित किए। 627 में उन्होंने नीनवे के पास फारसियों से युद्ध किया और तीन फ़ारसी सेनापतियों को मार डाला, फ़ारसी कमांडर को मार डाला और फ़ारसी सेना को तितर-बितर कर दिया। एक महीने बाद हेराक्लियस ने अपनी बड़ी सेना के साथ दस्तागिर्ड में प्रवेश किया। खोसरो को उसके बेटे ने परास्त कर दिया, जिसने हेराक्लियस के साथ शांति स्थापित की। कॉन्स्टेंटिनोपल में विजयी होकर लौटने पर हेराक्लियस को एक नायक के रूप में सराहा गया।[3]





इसके अलावा वर्ष 624 ए.एच. में, मुसलमानों ने बद्र में पहली और निर्णायक लड़ाई में मक्का को हराया।





एक भारतीय विद्वान के शब्दों में:





"...एक भविष्यवाणी चार राष्ट्रों और दो महान साम्राज्यों के भाग्य से संबंधित थी। यह सब पवित्र क़ुरआन को ईश्वर की पुस्तक साबित करता है।"[4]





मूर्तिपूजकों की हार की भविष्यवाणी


क़ुरआन ने मक्का में अविश्वासियों की हार की भविष्यवाणी की, जबकि पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों को वो अभी भी सता रहे थे:





"या क्या वे (मक्का के अविश्वासियों) कहते हैं: 'हम एक बड़ी सेना हैं, और हम विजयी होंगे?' उनकी सेना पराजित हो जाएगी, और वे पीठ दिखा के भागेंगे!" (क़ुरआन 54:45)





भविष्यवाणी मक्का में हुई थी, लेकिन पैगंबर के मदीना शहर में चले जाने के दो साल बाद बद्र की लड़ाई में पूरी हुई थी।





विशेष व्यक्तियों के तक़दीर


वलीद इब्न मुघीरा एक कट्टर दुश्मन था जिसने खुले तौर पर क़ुरआन का मजाक उड़ाया था:





"फिर उसने कहा: "यह जादू के अलावा और कुछ नहीं है जो पहले से चला आ रहा है; यह एक इंसानी शब्द के अलावा और कुछ नहीं है!" (क़ुरआन 74:24-25)





क़ुरआन ने भविष्यवाणी की कि वह कभी भी इस्लाम स्वीकार नहीं करेगा:





"जल्दी ही मैं उसे नरक-अग्नि में डाल दूंगा! और तुम क्या जानो की नरक-अग्नि क्या है? यह कुछ भी नहीं छोड़ता और न ही बाकी रहने देता है।" (क़ुरआन 74:26-28)





वलीद इस्लाम स्वीकार किये बिना ही मर गया, जैसा क़ुरआन में भविष्यवाणी की गई थी।





इसके अलावा, इस्लाम के एक उग्र विरोधी अबू लहब के बारे में क़ुरआन ने भविष्यवाणी की थी कि वह ईश्वर के धर्म का विरोध करते-करते मर जाएगा:





"अबू लहब के हाथ टूट जाएं, और वास्तव में वह खत्म हो गया। उसका धन और जो कुछ उसने कमाया था वो उसके किसी काम न आया। वह धधकती आग में डाला जाएगा।" (क़ुरआन 111:1-3)





विशेष रूप से अबू लहब के बारे में तीन भविष्यवाणियाँ की गईं:





(i)   पैगंबर के खिलाफ अबू लहब की साजिश सफल नहीं होगी।





(ii)  उसके धन और संतान से उसे कोई लाभ नहीं होगा।





(iii) वह ईश्वर के धर्म का विरोध करते हुए मर जाएगा और अग्नि में प्रवेश करेगा।





अबू लहब भी इस्लाम स्वीकार किये बिना ही मर गया , जैसा क़ुरआन में भविष्यवाणी की गई थी। अगर वलीद या अबू लहब ने इस्लाम को ऊपरी तौर से भी स्वीकार कर लिया होता तो वे इसकी भविष्यवाणियों और इसके आसमानी होने के स्रोत को खारिज कर देते!





इसके अलावा, अबू लहब के चार बेटे थे, जिनमें से दो की मृत्यु उसके जीवनकाल में ही कम उम्र में हो गई थी। बाकी दो बेटों और एक बेटी ने इस्लाम कबूल कर लिया और उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया! अंत में, वह प्लेग से मर गया; लोगों ने बीमारी फैलने के डर से उसके शरीर को नहीं छुआ और उस पर कीचड़ और पत्थर फेंक के जहां वो मरा था वहीं उसकी कब्र बना दी।





किसी ग्रंथ पर विश्वास करने कि यह ईश्वर की तरफ से है महत्वपूर्ण आधार है उसका आंतरिक सत्य, चाहे वह अतीत में हुई घटनाओं, भविष्य की होने वाली घटनाओं या समकालीन युग की घटनाओं के संबंध में हो। जैसा की आप देख सकते हैं, इसमें कई भविष्यवाणियां की गई हैं जो आने वाली हैं, जिनमें से कुछ पैगंबर के जीवनकाल में पूरी हुई थीं या उनकी मृत्यु के बाद पूरी हुई हैं, जबकि अन्य अभी होने वाली हैं।



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