सबूत
प्रारंभ में मक्का के अविश्वासियों ने कहा कि मुहम्मद ने क़ुरआन लिखा हैं। ईश्वर ने उन्हें उत्तर दिया:
"क्या ये कहते हैं कि इसने क़ुरआन खुद लिखा है? नहीं, ये विश्वास करने को तैयार नहीं हैं! अगर ये सच्चे हैं तो ऐसा ही एक और बना के दिखाएं [क्या वे ईश्वर के अस्तित्व को, उसके रहस्योद्घाटन को नकारते हैं?] क्या ये ईश्वर के बिना स्वयं पैदा हो गए हैं - या इन्होने खुद अपने आप को बना लिया है?" (क़ुरआन 52:33-35)
सबसे पहले ईश्वर ने उन्हें क़ुरआन की तरह दस अध्याय लिखने की चुनौती दी:
"क्या वह कहते हैं कि उसने क़ुरआन स्वयं बना लिया है, आप कह दें कि इसी के समान दस अध्याय बना लाओ और ईश्वर के सिवा जिसे हो सके बुला लो, यदि तुम लोग सच्चे हो। फिर यदि वे उत्तर न दें, तो विश्वास कर लो कि क़ुरआन को ईश्वर ने ही उतारा है और उसके सिवा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है, तो क्या अब तुम इस्लाम कबूल करोगे?" (क़ुरआन 11:13-14)
लेकिन जब वे दस अध्यायों की चुनौती को पूरा करने में असमर्थ हुए, तो ईश्वर ने इसे घटा के एक अध्याय कर दिया:
"और यदि तुम्हें इसमें कुछ संदेह हो जो हमने अपने मानने वाले पर उतारा है, तो उसके समान कोई एक अध्याय बना लो? और ईश्वर के सिवा जिसे हो सके बुला लो, यदि तुम लोग सच्चे हो। और यदि ये न कर सको, जो तुम कभी नहीं कर सकते, तो उस आग से डरो जिसका ईंधन मानव और पत्थर है, जो अविश्वासियों के लिए तैयार की गई है।" (क़ुरआन 2:23-24)
अंत में ईश्वर ने इस दैवीय चुनौती को पूरा करने में उनकी अनन्त विफलता की भविष्यवाणी की:
"आप कह दें: यदि सब मनुष्य और जिन्न[1] इकट्ठे हो जायें कि इस क़ुरआन के जैसा ले आयेंगे, तो इसके जैसा नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे की सहायता करें और अपनी पूरी ताकत लगा लें!" (क़ुरआन 17: 88)
इस्लाम के पैगंबर ने कहा:
"हर पैगंबर को 'निशानी' दी गई थी जिसके कारण लोगों ने उन पर विश्वास किया था। वास्तव में, ईश्वर ने मुझे यह दिव्य रहस्योद्घाटन (क़ुरआन) दिया है। इसलिए क़यामत के दिन मेरे सभी पैगंबरो से अधिक अनुयायी होने की उम्मीद है।" (सहीह अल बुखारी)
पैगंबरो द्वारा किए गए सभी चमत्कार किसी विशेष समय के थे, केवल उन लोगों के लिए मान्य थे जिन्होंने उन्हें देखा था, जबकि हमारे पैगंबर को दिया गया निरंतर चमत्कार, महान क़ुरआन, किसी अन्य पैगंबर को नहीं दिया गया था। इसकी भाषाई श्रेष्ठता, शैली, संदेश की स्पष्टता, तर्क की ताकत, बयानबाजी की गुणवत्ता, और दुनिया के अंत तक इसके सबसे छोटे अध्याय के जैसा बनाने में मानवीय अक्षमता इसे एक उत्कृष्ट विशिष्टता प्रदान करती है। जिन लोगों ने रहस्योद्घाटन देखा और जो बाद में आए, वे सभी इसके ज्ञान को ले सकते हैं। यही कारण है कि दया के पैगंबर ने आशा व्यक्त की, कि उनके पास सभी पैगंबरो से अधिक अनुयायी होंगे, और यह भविष्यवाणी उस समय की जब मुसलमान बहुत कम थे, लेकिन फिर बहुत बड़ी संख्या में लोगो ने इस्लाम को अपनाना शुरू कर दिया। और इस तरह यह भविष्यवाणी सच हुई।
क़ुरआन की अद्वितीयता की व्याख्या
पैगंबर मुहम्मद की अवस्था
वह एक साधारण इंसान थे।
वह अनपढ़ थे। वह न तो पढ़ सकते थे और न ही लिख सकते थे।
जब उन्हें पहला रहस्योद्घाटन मिला तब वह चालीस वर्ष से अधिक के थे। उस समय तक वे एक वक्ता, कवि, या एक विद्वान व्यक्ति के रूप में नहीं जाने जाते थे; वह सिर्फ एक व्यापारी थे। पैगंबर बनने से पहले उन्होंने एक भी कविता की रचना नहीं की थी और न ही कोई उपदेश दिया था।
वह एक किताब लाए जिसे उन्होंने ईश्वर की किताब बताया, और उस समय के अरब के सभी लोग सहमत थे कि यह अव्दितीय है।
क़ुरआन की चुनौती
क़ुरआन पैगंबर का विरोध करने वालों को चुनौती देता है। चुनौती यह है कि इसके जैसा एक अध्याय (सूरह) बना के दिखाए, भले ही सब मिल के यह प्रयास करें। व्यक्ति भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों से हर संभव मदद ले सकता है।
यह चुनौती क्यों?
पहला, अरब के लोग कवि थे। कविता में वे माहिर थे और ये उनके प्रवचन करने का सबसे आसान तरीका था। वर्णमाला आने से पहले अरबी कविता मौखिक होती थी। कवि सहज रूप से जटिल कविताओं की रचना करते थे और हजारों पंक्तियां याद रखते थे। कड़े मानकों को पूरा करने के लिए अरब के लोगो के पास कवि और कविता के मूल्यांकन की एक जटिल प्रणाली थी। वार्षिक प्रतियोगिता कविता के लिए मूर्ति का चयन करती थी, और उन्हें सोने से उकेरा जाता था और उनकी पूजा की मूर्तियों के साथ काबा के अंदर लटका दिया जाता था। सबसे कुशल लोगों को न्यायाधीश बनाया जाता था। कवि युद्ध शुरू करवा सकते थे और युद्धरत जनजातियों के बीच संघर्ष विराम ला सकते थे। उन्होंने जिस तरह महिलाओं, शराब और युद्ध का वर्णन किया है वैसा किसी ने नहीं किया।
दूसरा, पैगंबर मुहम्मद के विरोधी किसी भी तरह से उनके मिशन को रद्द करने के लिए दृढ़ थे। ईश्वर ने उन्हें मुहम्मद को अस्वीकार करने के लिए एक अहिंसक दृष्टिकोण दिया।
चुनौती और उसके परिणामों को पूरा करने में असमर्थता
इतिहास गवाह है कि पूर्व-इस्लामिक अरब क़ुरआन की चुनौती को पूरा करने के लिए एक भी अध्याय नहीं लिख सका।[2] उन्होंने चुनौती को पूरा करने के बजाय हिंसा को चुना और उनके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। दुनिया के सभी लोगों में से उनके पास क़ुरआन की चुनौती को पूरा करने की सबसे अधिक क्षमता और मकसद था, लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके। अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो क़ुरआन झूठा साबित होता और इसे लाने वाला पैगंबर भी झूठा साबित हो जाता। प्राचीन अरब के लोग इस चुनौती को पूरा नहीं कर सके और न ही कर सकते थे, यही क़ुरआन की अद्वितीयता का प्रमाण है। उनका उदाहरण कुएं के पास एक प्यासे आदमी की तरह है, जो प्यास से तभी मर सकता है जब वह पानी तक नहीं पहुंचे!
इसके अलावा, क़ुरआन की चुनौती को पूरा करने में प्राचीन अरब के लोगों की असमर्थता का अर्थ है कि बाद के अरब के लोग चुनौती को पूरा करने के लिए कम सक्षम हैं, क्योंकि अरबी में उनकी महारत प्राचीन अरब के लोगों की तुलना में कम है। अरबी भाषा के भाषाविदों के अनुसार, पैगंबर के समय से पहले और उनके समय के अरबी लोगों को छोड़कर किसी के पास भी अरबी भाषा, उसके नियम और तुकबंदी की महारत हासिल नहीं थी। बाद के अरबी लोगों में प्राचीन अरबी लोगों के जैसी महारत नहीं थी।[3]
और आखिरी, चुनौती अरब के लोगों और गैर-अरबी के लोगों के लिए समान है। यदि अरब के लोग चुनौती को पूरा नहीं कर सकते, तो गैर-अरबी भी चुनौती को पूरा करने का दावा नहीं कर सकते। इसलिए गैर-अरबी लोगों के लिए भी क़ुरआन की अद्वितीयता साबित होती है।
अगर कोई कहे: 'शायद क़ुरआन की चुनौती पैगंबर के समय में किसी ने पूरी करी हो, लेकिन इतिहास के पन्नों ने इसे संरक्षित नहीं किया हो।'?
शुरुआत से ही लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों को महत्वपूर्ण घटनाओं की सूचना दी है, विशेष रूप से उसकी जो ध्यान आकर्षित करती है या जिसे लोग ढूंढते हैं। क़ुरआन की चुनौती को सब लोग जानते थे, और अगर कोई इसे पूरा करता तो यह असंभव है कि हमें उसका न पता चलता। यदि यह इतिहास के पन्नो में खो गया है, तो तर्क के लिए यह भी संभव है कि एक से अधिक मूसा, एक से अधिक यीशु और एक से अधिक मुहम्मद थे; शायद इन काल्पनिक पैगंबरो को कई और ग्रन्थ भी बताए गए थे, और हो सकता है कि दुनिया इसके बारे में कुछ न जानती हो! जैसे ये अनुमान ऐतिहासिक रूप से निराधार हैं, वैसे ही यह कल्पना करना भी अनुचित है कि क़ुरआन की चुनौती पूरी हुई और हमें इसका पता नहीं चला।[4]
दूसरा, अगर उन्होंने चुनौती को पूरा किया होता तो अरब के लोगों ने पैगंबर को बदनाम कर दिया होता। यह उनके खिलाफ प्रचार करने का सबसे बड़ा मुद्दा होता। ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने इसके बदले युद्ध को चुना।
तथ्य यह है कि गैर-मुसलमानों का कोई भी प्रयास क़ुरआन के एक छंद की तरह "छंद बनाने' में सफल नहीं हुआ है, इसका मतलब है कि या तो किसी ने भी क़ुरआन को इतनी गंभीरता से नहीं लिया कि वह प्रयास करें, या कि उन्होंने प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हुए। यह क़ुरआन की अद्वितीयता को दर्शाता है, एक अनूठा और हमेशा रहने वाला संदेश। मानव जाति के लिए लाए गए दिव्य संदेश के साथ क़ुरआन की विशिष्टता इस्लाम की सच्चाई का एक निश्चित संकेत है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को दो विकल्पों में से एक का सामना करना पड़ता है। वह या तो खुले तौर पर स्वीकार करता है कि क़ुरआन ईश्वर की किताब है। ऐसा करने पर उसे यह भी स्वीकार करना होगा कि मुहम्मद को ईश्वर ने भेजा था और वह उसका दूत था। या फिर वह भीतर से जानता है कि क़ुरआन सच है, लेकिन वो इसे मानने से इनकार करता है। यदि जानने वाला अपनी खोज में ईमानदार है, तो उसे आंतरिक निश्चितता को पूरा करने के लिए इस प्रश्न का पता लगाने की आवश्यकता है कि उसने वास्तव में इस धर्म में अंतिम सत्य पा लिया है जैसा इसमें बताया गया है।