मैं एक सैन्य क्षेत्र से जुड़ा हूँ, जिसमें मुझे काम करते हुए लगभग तेरह साल होगए। सहसा एक दिन मैं आश्चर्यचकित और हैरान रह जाता हूँ, और मैं कांपने लगता हूँ और जो कुछ मेरे चारों ओर चल रहा था उस पर मुझे विश्वास नहीं होता है। वह यह कि मेरे बारे में यह अफवाह फैलाई गई थी - जिससे मैं महान अल्लाह की पनाह चाहता हूँ, और इस बात से कि मैं उन लोगों में से हूँ - जिसका आशय यह है कि : (मैं हिजड़ा हूँ )!! ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह ! दिन और महीने गुज़रते गए, मैं कुछ भी नहीं कर सका। क़सम है महान अल्लाह की! कि मैं हर पल अपने ऊपर अफसोस करता हूँ, और इस बात पर कि मेरी इमेज (प्रतिष्ठा) कहाँ पहुँच चुकी है जो मेरे जीवन में सबसे बड़ी चीज़ थी। ज्ञात रहे कि दिन प्रति दिन अफवाह फैलती ही जा रही है, और इस स्तर तक बढ़ती जा रही है कि मैं दूसरों के साथ बात नहीं कर सकता, वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह! मुझे इसका समाधान कहाँ मिल सकता है? मैं जब भी किसी से बात करता हूँ वह कहता है कि : तुम सब्र से काम लो, या जवाब न दो। क्या किया जाए? जबकि ज्ञात होना चाहिए कि मेरी उमर 33 वर्ष है, और मैं शादीशुदा हूँ और मेरे बच्चे भी हैं, . . . मैं अल्लाह की क़सम खाता हूँ ऐसी क़सम जिस पर क़ियामत के दिन मेरा हिसाब होगा कि मैं इन सबसे बरी और बेगुनाह हूँ और जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसपर अल्लाह गवाह है। हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।. हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। कुछ सलफ का कहना है कि : ‘‘धरती पर कोई अन्य चीज़ ऐसी नहीं है जो ज़ुबान से अधिक क़ैद (बांधकर रखने) की ज़रूरतमंद हो।’’ जबकि वास्तविकता यह है कि वह मुँह के अंदर, दाँतों के फाटक के अंदर बंद है, और उसके ऊपर दो अन्य फाटक दोनों होंठ भी बंद हैं! इसके बावजूद वह उस कड़ी पहरेदारी के होते हुए आदमी को पाप में गिरा देती है और कभी कभार कुफ्र में ढकेल देती है। तथा उत्कृष्ट बु़द्धि की बातों में से यह है कि : बात तुम्हारा बंदी है, परंतु जब वह तुम्हारी ज़ुबान से निकल जाए तो तुम उसके बंदी बन जाते हो।’’ तथा ज़ुबान को अल्लाह तआला की हराम की हुई चीज़ों - लोगों की मान मर्यादा, सतीत्व के बारे में लिप्त करने, गीबत (पिशुनता), चुगलखोरी, गाली गलूज, अल्लाह पर बिना जानकारी के बात कहने, और ज़ुबान के सामान्य अपराधों और अवज्ञाओं में बेलगाम छो़ड़ देने पर चेतवानी आई है। अल्लाह तआला का फरमान है: مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ [سورة ق : 18] ''कोई बात उसकी ज़बान पर नहीं आती मगर एक निरीक्षक उसके पास तैयार रहता है।'' (सूरत क़ाफ: 18) तथा सहल बिन सअद से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘जो व्यक्ति अपने दोनों जबड़ों के बीच और अपने दोनों पैरों के बीच की चीज़ों (अर्थात ज़ुबान और शरमगाह) की रक्षा की गारन्टी दे दे तो मैं उसके लिए स्वर्ग की गारन्टी देता हूँ।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6109) ने रिवायत किया है। तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमायाः ‘‘आदमी अल्लाह तआला की प्रसन्नता की कोई बात कहता है जिसे वह कोई महत्व नहीं देता है उसके द्वारा अल्लाह तआला उसे कई पद ऊँचा कर देता है, तथा बंदा अल्लाह के क्रोध की बात करता है जिसे वह कोई महत्व नहीं देता है उसके कारण वह नरक में गिरता जाता है।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या: 6113) ने रिवायत किया है। जहाँ तक ऐ प्रश्न करनेवाले भाई! आपके सतीत्व पर लांछन लगाने की बात है : तो इस बात को जान लीजिए कि अल्लाह तआला अत्याचारी को ढील देता है, यहाँ तक कि जब उसे पकड़ता है तो उसे छोड़ता नहीं है, तथा आपको आपके सब्र करने और कष्ट को सहन करने पर पुरस्कृत किया जायेगा और स्वयं वही लोग पापी होंगे और आपके ऊपर झूठा आरोप लगाने पर दुनिया में शरई हद (दण्ड) के पात्र होंगे, तथा आखिरत में यातना के पात्र बनेंगे। तथा वे लोग उन मुफलिसों (दरिद्रों) में से हैं जिनकी नेकियाँ लेकर मज़लूम को दे दी जायेंगीं और उसके गुनाहों को लेकर उनके ऊपर डाल दिया जायेगा, सिवाय इसके कि अल्लाह तआला उन्हें क्षमा प्रदान कर दे। अतः उन लोगों ने जो आप को अनैतिकता से आरोपित किया है वह एक घृणित बात और झूठ है, और उन्हों ने कई बड़े-बड़े गुनाह किए हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख लांछना, मिथ्या दोषारोपण, कुकर्म का आरोप लगाना और गीबत है, और ये सब के सब जघन्य अपराधों में से हैं: 1- बोहतान : इस पर चेतावनी देते हुए अल्लाह तआला ने फरमाया : وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ بِغَيْرِ مَا اكْتَسَبُوا فَقَدِ احْتَمَلُوا بُهْتَاناً وَإِثْماً مُبِيناً [الأحزاب : 58] ‘‘जो लोग ईमान वाले पुरूषों और ईमान वाली महिलाओं को कष्ट पहुँचाते हैं बिना उनके किसी किए हुए अपराध के, तो उन्हों ने बोहतान (मिथ्यारोपण) और खुले हुए गुनाह का बोझ उठाया है।’’ (सूरतुल अहज़ाब : 58). तथा अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘क्या तुम जानते हो कि गीबत क्या है? लोगों ने कहा : अल्लाह और उसके पैगंबर इस बात को सबसे अधिक जानते हैं। आप ने फरमाया : तुम्हारा अपने भाई का चर्चा ऐसी चीज़ के द्वारा करना जिसे वह नापसंद करता है। कहा गया : आपका क्या विचार है यदि मेरे भाई के अंदर वह चीज़ पाई जाती है जिसका मैं चर्चा कह रहा हूँ? आप ने फरमाया : यदि उसके अंदर वह चीज़ पाई जाती है जिसका तुम चर्चा कर रहे हो तो तू ने उसकी गीबत की है , और यदि उसके अंदर वह चीज़ नहीं है तो तू ने उसपर झूठा आरोप लगाया है।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2598) रिवायत किया है। तथा ‘‘अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या’’ (21/279) में है : अल-बोहतान : अरबी भाषा में : झूठा आरोप लगाने और झूठ गढ़ने को कहते हैं, और वह इस्मे मस्दर (क्रियार्थक संज्ञा) है, उसकी क्रिया : 'ब-ह-त' है, और उसका बाब (मापन) 'न-फ-अ' है। तथा शरीअत की इस्तिलाह (शब्दावली) में : यह है कि किसी मसतूर हाल (छिपी हुई अंत हुआ। तथा (31/330, 331) में है कि : बोहतान अरबी भाषा में : झूठा आरोप लगाने और झूठ गढ़ने को कहते हैं ..., और इस्तिलाह में : तुम्हारा अपने भाई के बारे में ऐसी बत कहना जो उसमें नहीं है। तथा गीबत और बोहतान में अंतर यह है कि : गीबत कहते है इन्सान का उसकी अनुपस्थिति में ऐसी चीज़ के साथ चर्चा करना जिसे वह नापसंद करता है, और बोहतान : कहते हैं उसका वर्णन ऐसी चीज़ के साथ करना जो उसमें नहीं है, चाहे वह उसकी अनुपस्थिति में हो या उसकी उपस्थिति में। अंत हुआ। 2- रही बात मिथ्यारोप की : तो वह बड़े गुनाहों में से है, और उसके बारे में अस्सी कोड़ों का दण्ड है। अल्लाह तआला ने फरमाया: وَالَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا وَأُولَئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَإِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ [النور :4-5] ''और जो लोग पाक दामन औरतों पर (व्यभिचार का) आरोप लगाएँ फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेश न करें तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और फिर कभी उनकी गवाही क़बूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग स्वयं बदकार (अवज्ञाकारी) हैं। सिवाय उन लोगों के जो इसके पश्चात तौबा कर लें और सुधार कर लें, तो निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।'' (सूरतुन्नूर : 4-5) इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने फरमाया: अल्लाह तआला ने आरोप लगाने वाले पर यदि वह अपनी बात के सही होने पर सबूत न स्थापित कर सके तीन अहकाम (प्रावधान) अनिवार्य किए हैं : उनमें से एक यह है कि : उसे अस्सी कोड़े लगाए जाएं। दूसरा : हमेशा के लिए उसकी गवाही को रद्द कर दिया जाए। और तीसरा यह कि : वह फासिक़ हो जायेगा, न्याय प्रिय नहीं रह जायेगा, न तो अल्लाह के निकट और न ही लोगों के निकट। तफ्सीर इब्ने कसीर (3/292). तथा इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फरमाया : इस बात पर सर्वसम्मत सिद्ध हो चुका है कि पवित्र चरित्र वाले पुरूषों पर मिथ्यारोप का हुक्म वही है जो पवित्राचारिणी महिलाओं पर मिथ्यारोप का हुक्म है। ‘‘फत्हुल बारी’’ (12/188) तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘क्या तुम जानते हो मुफलिस (दरिद्र) कौन है? लोगों ने कहा : हमारे बीच मुफलि वह व्यक्ति है जिसके पास दिर्हम हो न दीनार और न कोई सामान हो। तो आप ने फरमाया : मेरी उम्मत का मुफलिस वह है जो क़ियामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात लेकर आयेगा, तथा वह इस हाल में आयेगा कि उसने इसे गाली दी होगी, इस पर आरोप लगाया होग, इसका माल खाया होगा, इसका खून बहाया होगा और इसे मारा होगा। तो उसे इसकी नेकियाँ दे दी जायेंगी और इसे उसकी नेकियाँ दे दी जायेंगी। यदि उसके ऊपर जो कुछ अनिवार्य है उसका फैसला करने से पहले उसकी नेकियाँ समाप्त हो गईं, तो उन लोगों की गलतियों को लेकिर उसके ऊपर डाल दिया जायेगा, फिर उसे जहन्न में डाल दिया जायेगा।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2581) ने रिवायत किया है। 3- जहाँ तक गीबत की बात है : तो उसका निषिद्ध होना अल्लाह तआला की किताब और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में स्पष्ट रूप से वर्णित है। शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया : मेरा एक दोस्त है जो अक्सर लोगों की मान-मर्यादा (सतीत्व) के बारे में बात करता रहता है, मैं ने उसे नसीहत की लेकिन कोई फायदा नहीं, ऐसा लगता है कि यह उसकी आदत बन गई, और कभी कभी उसका लोगों के बारे में बात करना अच्छी नीयत से होती है, तो क्या उसे छोड़ना (अर्थात उसका बहिष्कार करना) जायज़ है? तो उन्हों ने उत्तर दिया : मुसलमानों के सतीत्व के बारे में ऐसी बात करना जिसे वे नापसंद करते हैं : एक महान बुराई है, और निषिद्ध गीबत (चुगली) में से है, बल्कि बड़े गुनाहों में से है। क्योंकि अल्लाह तआला का कथन है : وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَنْ يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَحِيمٌ [سورة الحجرات : 12] ''और तुममें से कोई किसी दूसरे की ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) न करे, क्या तुम में से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह अपने मरे हुए भाई का मांस खाए? तुम तो उससे अवश्य घृणा करोगे। और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।'' (सूरतुल हुजुरात : 12). तथा इस लिए भी कि मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''क्या तुम जानते हो कि गीबत क्या है? लोगों ने कहा : अल्लाह और उसके पैगंबर इस बात को सबसे अधिक जानते हैं। आप ने फरमाया : तुम्हारा अपने भाई का चर्चा ऐसी चीज़ के द्वारा करना जिसे वह नापसंद करता है। कहा गया : आपका क्या विचार है यदि मेरे भाई के अंदर वह चीज़ पाई जाती है जिसका मैं चर्चा कह रहा हूँ? आप ने फरमाया : यदि उसके अंदर वह चीज़ पाई जाती है जिसका तुम चर्चा कर रहे हो तो तुम ने उसकी गीबत की है, और यदि उसके अंदर वह चीज़ नहीं है तो तुम ने उसपर झूठा आरोप लगाया है।'' तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि ‘‘जब आप को मेराज में आसमान पर ले जाया गया तो आप का गुज़र ऐसे लोगो पर हुआ जिनके तांबे के नाखून थे जिनके द्वारा वे अपने चेहरों और सीनों को खरोंच रहे थे। तो आप ने फरमाया : ऐ जिब्रील! ये कौन लोग हैं? तो उन्हों ने कहा : ये वो लोग हैं जो लोगों के गोश्त खाया करते थे और उनके सतीत्व व सम्मान की चीज़ों में बात करते थे।'' इसे अहमद और अबू दाऊद ने जैयिद सनद के साथ अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है। अल्लामा इब्ने मुफलेह कहते हैं : उसकी इसनाद सही है, और फरमाया : तथा अबू दाऊद ने हसन इसनाद के साथ अबू हुरैरा से मरफूअन रिवायत किया है कि ''मनुष्य का किसी मुसलमान भाई की इज़्ज़त के बारे में बिना अधिकार के जुबान चलाना बड़े गुनाहों में से है।'' आपके ऊपर और आपके अलावा अन्य मुसलमानों पर अनिवार्य यह है कि मुसलमानों की गीबत-चुगली करने वालों के साथ न बैठें, साथ ही साथ उसे नसीहत करें और उसकी निंदा करें। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''तुम में से जो आदमी किसी बुराई को देखे तो उसे अपने हाथ से बदल डाले, यदि वह ऐसा नहीं कर सकता तो अपनी ज़ुबान से, यदि ऐसा करने पर भी सक्षम नहीं है तो अपने दिल से, और यह सबसे कमज़ोर ईमान है।'' इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में रिवायत किया है। यदि वह बात नहीं मानता है : तो आप उसके साथ उठना-बैठना त्याग दें, क्योंकि यह उसका खण्डन करने की पूर्ति में से है।'' फतावा इब्ने बाज़ (5/401, 402). हम आप को जो नसीहत करते हैं और जिस चीज़ की सलाह देते हैं वह यह है कि : आप अल्लाह के पास इस आपदा से अज्र व सवाब की आशा रखें, तथा जिन लोगों ने यह बात सुनी है उनके सामने अपने आप के इससे बरी होने का प्रकटीकरण करके और उन झूठ गढ़नेवालों की झूठ और मिथ्यारोप का पर्दाफाश करके अपने आप की रक्षा और बचाव करें। हम समझते हैं कि आपका अपने कार्य के स्थान से दूर रहना और उनके झूठ के स्पष्टीकरण से चुप रहना, आपके बहुत से साथियों के निकट उनके बात की प्रामाणिकता को सुनिश्चित कर देगा। यदि आप अपनी बेगुनाही को बयान कर और उनके झूठ व मिथ्यारोप को स्पष्ट कर अपने काम के स्थान से स्थानांतरित होना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने से पहले वहाँ से स्थानांतरति न हों। तथा हम आपको यह भी सलाह देते हैं कि आप शरई न्यायपालिका के सामने उनके आप के ऊपर झूठा आरोप लगाने को सिद्ध करें और उनके ऊपर शरई दण्ड लागू करने की मांग करें। शैख अब्दुल्लाह बिन जिब्रीन से प्रश्न किया गया : दो व्यक्तियों ने एक दूसरे की गीबत की, ताकि दोष उसके ऊपर आए और अपने आपको दूसरों के सामने बरी कर सके, लेकिन दूसरा व्यक्ति गीबत के पापों का अल्लाह से डर रखता है, उदाहरण के तौर पर पति और पत्नी ने झगड़ा किया, और आपस में मतभेद पैदा हो गया, चुनाँचे पत्नी अपने घर वालों के यहाँ चली गई और उसके पति से जो कुछ हुआ था और उसने जो कुछ किया था उसके बार में अपने घर वालों के सामने उसकी गीबत की। फिर उसके घर वाले उठकर अपनी बारी पर उस आदमी - अपनी बेटी के पति - की दूसरों के सामने गीबत करते हैं, इसी तरह वे करते हैं यहाँ तक कि उस आदमी को बदनाम व रूसवा कर देते हैं, चाहे उसके अंदर वह चीज़ पाई जाती हो या न पाई जाती हो। परंतु जब उस आदमी-महिला के पति ने अपनी पत्नी और उसके घर वालों की ओर से लोगों के सामने होने वाली गीबत और अन्याय के बारे में सुना : तो उसने उसी के समान चीज़ के द्वारा अपना बचाव करना चाहा, और यह इरादा किया कि उस (महिला-पत्नी) से होने वाली चीज़ों को लोगों से बता दे, लेकिन उसे गीबत और ज़ुल्म के गुनाहों से अल्लाह का डर लगता है, तो क्या वह चुप रहे और अपने मामले को अल्लाह के हवाले सौंप दे, और जो कुछ हुआ है उसकी परवाह न करे? तो उन्हों ने उत्तर दिया: इसमें कोई शक नहीं कि गीबत हराम है, और वह आपका अपने भाई का चर्चा ऐसी चीज़ के द्वारा करना है जिसे वह नापसंद करता है, भले ही आप जो कुछ कह रहे हैं उसमें आप सच्चे हों। लेकिन यदि आप ने उसके ऊपर झूठ बात लगाई है जो उसके अंदर पाई नहीं जाती है : तो यह बहुत बड़ा बोहतान और महा अन्याय है, और उसका पाप गीबत के पाप से भी बढ़कर है। इस आधार पर पति के लिए जायज़ है कि वह अपने आपको उस चीज़ से बरी ठहराए जो उन्होंने उसके ऊपर लोगों के सामने झूठ बाँधा है, ताकि आम लोगों को पता चल जाए कि उसके बारे में जो कुछ कहा गया है वह सही नहीं है, और वह बरी हो जाए औ झूठ से उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके। क्योंकि यदि वह चुप रहता है : तो लोग उस चीज़ को सही मान लेंगे जिससे उसे आरोपित किया गया है, और उसको सच समझेंगे, और उसकी बदनामी फैल जायेगी। इसी तरह जो व्यक्ति इससे अवज्ञत है उसे चाहिए कि वह पत्नी और उसके घर वालों को मात्र गीबत-चुगलखोरी, झूठ और मिथ्यारोप से तथा पति पत्नी के बीच रहस्यों का पर्दाफाश करने से बचने की नसीहत करे, और उन्हें यह बतलाए कि यह गुमान (भ्रांति) में से है, और भ्रांति सबसे झूठी बात है। इसी तरह उन दोनों के बीच सुधार करने, एकजुट करने और दिलों के अंदर जो द्वेष, घृणा और दुश्मनी है उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए, आशा है कि स्थिति सुधर जाए और संगत बहाल हो जाए जिस तरह कि पहले थी। ‘‘अल्लू-लुउल मकीन मिन फतावा अश्शैख इब्न जिब्रीन’’ (अन्निकाह/प्रश्न 359) और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।प्रश्न
उत्तर का पाठ
स्थिति वाले) आदमी के पीछे ऐसी बात बोले जो उसके अंदर नहीं है।