मेरे पति मुझसे बहुत बड़े हैं जिसका मतलब यह होता है कि हो सकता है वह मुझसे पहले मर जाएं। यह मात्र मेरी धारणा है इस एतिबार से कि मैं ऐसे परिवार से हूँ जिनकी आयू लंबी होती है, अर्थात मेरे परिवार के लोग आमतौर पर लंबे समय तक जीते हैं। यही चीज़ है जो मुझे, अपने और उसके बीच उम्र के अंतर को देखते हुए, इस धारणा पर उभारती है। हालांकि पति की मौत अपने आप में एक आपदा है, परंतु मैं एक दूसरी चीज़ के बारे में सोच रही हूँ और वह यह कि यदि उसकी मृत्यु हो गई तो मेरा क्या होगा और मैं कहाँ रहूँगी . . ! इस समय जिस घर में हम रह रहे हैं वह एक छोटा सा घर है, इसके बावजूद वह उसके सभी रिश्तेदारों के बीच विभाजित हो सकता है। यह बात सही है कि वह इस समय मेरा बहुत ही ध्यान रखता है, लेकिन उसके मरने पर जो हिस्सा पत्नी का उसके पति की मृत्यु के बाद होता है वह घर खरीदने के लिए काफी नहीं होगा, यहाँ तक कि वह माल जो उसने मुझे शादी के समय महर के तौर पर दिया था वह केवल चंद गिने चुने दिनों के लिए काफी होगा। तथा मैं अपने परिवार वालों की वारिस नहीं हो सकती हूँ क्योंकि वे सभी ग़ैर-मुस्लिम हैं। मैं ने गंभीरता के साथ अगले दस या पंद्रह साल तक के लिए बच्चे पैदा करने से रूक जाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है (अभी तक उससे मेरे कोई बच्चा नहीं है), मैं इन सालों में काम करने के लिए जाऊँगी और धन एकत्र करूँगी ताकि अपना अलग घर खरीद सकूँ, फिर यदि मेरे बच्चे पैदा होते हैं और मेरे पति की मृत्यु हो जाती है तो वह एक शरणस्थल (आश्रय) हो जो मेरी और मेरे बच्चों की परागंदगी को एकत्र कर दे, इस बात से बेहतर है कि हम सड़क पर या दूसरों पर बोझ बनकर ज़िंदगी बितायें। लेकिन यहाँ पर एक दूसरी समस्या भी है और वह यह कि यदि मैं ऐसा करती हूँ तो इसका मतलब यह होगा कि हो सकता है कि मेरे पति उर्वरता और प्रजनन के चरण को पार कर जायें। तो इस बारे में आपका विचार क्या है ॽ हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।. ऐ अल्लाह की बंदी आप इस बात को जान लें कि लोगों की मौतें और उनकी रोज़ियाँ (जीविकायें) लिखी हुई हैं, और कोई भी प्राणी कदापि नहीं मरेगा यहाँ तक कि अपनी रोज़ी और समय सीमा को पूरा कर ले, और अल्लाह तआला अपने बंदे पर उसकी माँ से भी अधिक मेहरबान और दयालू है, बल्कि वह स्वयं उसके अपने नफ्स से भी अधिक दयालू है, अगर बंदे को उसके नफ्स पर छोड़ दिया जाये और वह उस चीज़ को करे जो उसके मन में आता है और जो चीज़ कभी उसके अपने हिसाब से, और कभी उसके भ्रम और गुमान के मुताबिक उसके निकट ठीक मालूम पड़ती है, तो हम में से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में खुश नहीं रह पाता है और न ही वह अपने मामले को उस तरह व्यवस्थित कर सकता जिसकी आशा की जाती है और उसके साकार करने के लिए चेष्टा की जाती है। ऐ अल्लाह की बंदी, क्या आप ने अल्लाह के इस फरमान को नहीं सुना : وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ [الذاريات :22]. ‘‘और तुम्हारी जीविका और जिसका तुम से वादा किया जाता है सब आसमान में है।” (सूरतुज़ ज़ारियात : 22). ऐ अल्लाह की बंदी, क्या आप को नहीं पता कि आपकी जीविका सर्व संसार के पालनहार अल्लाह पर है, आपके पति पर नहीं है, अल्लाह तआला ने फरमाया : وَمَا مِنْ دَابَّةٍ فِي الْأَرْضِ إِلَّا عَلَى اللَّهِ رِزْقُهَا وَيَعْلَمُ مُسْتَقَرَّهَا وَمُسْتَوْدَعَهَا كُلٌّ فِي كِتَابٍ مُبِينٍ [هود : 6]. “और धरती पर चलते-फिरते जितने भी जानदार हैं सभी की रोज़ी अल्लाह पर है, वही उन के रहने की जगह भी जानता है और उन के सौंपे जाने की जगह भी, सभी कुछ स्पष्ट किताब में उल्लिखित है।” (सूरत हूद : 6) तथा अल्लाह तआला का फरमान है : وَكَأَيِّنْ مِنْ دَابَّةٍ لَا تَحْمِلُ رِزْقَهَا اللَّهُ يَرْزُقُهَا وَإِيَّاكُمْ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ [العنكبوت :60] “और बहुत से जानवर हैं जो अपना रिज़्क लादे नहीं फिरते, उन सबको और तुम्हें भी अल्लाह तआला ही रोज़ी देता है। वह बड़ा सुनने जानने वाला है।” (सूरतुल अंकबूत : 60). क्या आप ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस नहीं सुनी, वह कहते हैं : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हम से बयान किया जबकि आप सादिक़ (सच्चे) व मसदूक़ (प्रमाणित) हैं, “तुम में से किसी भी व्यक्ति की संरचना को उसकी माँ के पेट में चालीस दिन तक इकट्ठा किया जाता है, फिर वह उसमें उसी मात्रा में (चालीस दिन) गोश्त को लोथड़ा रहता है, फिर वह उसके अंदर उसी मात्रा में (चालीस दिन) गोश्त की बोटी रहता है, फिर फरिश्ता भेजा जाता है तो उसमें रूह फूँकता है, और उसे चार बातों का आदेश दिया जाता है : उसकी जीविका,उसकी समय सीमा, उसके कार्य, और उसके सौभाग्य या दुर्भाग्य वाला होने के लिखने का आदेश दिया जाता है ... ’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या: 7454) और मुस्लिम ( हदीस संख्या:2643) ने रिवायत किया है। आपको केवल एक चीज़ की ज़रूरत है, आपको अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ अच्छा गुमान, उस पर भरोसा करने, अपनी ज़रूरत को उसके सामने रखने, अल्लाह सुब्हानहु व तआला के पास जो कुछ है उसपर विश्वास रखने, और उसने आपके लिए जो पसंद किया है उस पर सहमत और खुश होने की आवश्यकता है। अल्लाह तआला ने फरमाया : وَمَنْ يَتَّقِ اللَّهَ يَجْعَلْ لَهُ مَخْرَجًاوَيَرْزُقْهُ مِنْ حَيْثُ لَا يَحْتَسِبُ وَمَنْ يَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ فَهُوَ حَسْبُهُ إِنَّ اللَّهَ بَالِغُ أَمْرِهِ قَدْ جَعَلَ اللَّهُ لِكُلِّ شَيْءٍ قَدْرًا [الطلاق : 2-3]. ‘‘और जो इंसान अल्लाह से डरता है अल्लाह उसके लिए छुटकारे का रास्ता निकाल देता है। और उसे ऐसी जगह से रोज़ी देता है जिसका उसे अंदाज़ा भी न हो, और जो इंसान अल्लाह पर भरोसा करेगा, अल्लाह उसके लिए काफी होगा। अल्लाह तआला अपना काम पूरा करके ही रहेगा, अल्लाह तआला ने हर चीज़ का एक अंदाज़ा निर्धारित कर रखा है।” (सूरतुत तलाक़ : 2 – 3). जहाँ तक आपके अपने पति के घर से हिस्से का संबंध है तो मामला उसके विपरीत है जो आप समझ रही हैं। हाँ, यदि पति मर जाए और उसके पास कोई औलाद न हो तो आपको चौथाई भाग मिलेगा - लेकिन क्या आप को नहीं मालूम कि यदि आपके पास कोई पुरूष बच्चा है तो आपको आठवाँ भाग मिलेगा और बेटे को बचा हुआ हिस्सा मिलेगा !! क्योंकि बेटा मृतक के भाईयों, बहनों चचाओं और बाक़ी सभी असबह को दादा को छोड़कर हज्ब कर देगा (वारिस होने से रोक देगा)। और यदि औलाद लड़की है, तो आप को आठवाँ भाग मिलेगा और लड़की को आधा मीरास मिलेगा, इसका मतलब यह हुआ कि औलाद कुछ भी हो उसे घर से एक बड़ा हिस्सा मिलेगास, और आपके हिस्से के साथ मिलकर बहुत बड़ा हो जायेगा। तो ऐ अल्लाह की बंदी, आप किस चीज़ से डर रही हैंॽ और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।प्रश्न
उत्तर का पाठ