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हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशींसा और गुणगान) केवल अल्लाह के नलए योग्य है, हम उसी की प्रशींसा करते हैं, उसी से मदद माींगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की िुराई और अपने िुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जजसे अल्लाह तआला कहदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीीं, और जजसे गुमराह कर दे उसे कोई कहदायत देने वाला नहीीं। हम्द व सना के िाद :


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उस आदमी की ओर से हज्ज करने का हुक्म जजसने लापरवाही की वजह से हज्ज नहीीं ककया और उसकी मृत्यु होगई


प्रश्नः


आदरणीय शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रकहमहुल्लाह से प्रश्न ककया गया कक एक आदमी की मृत्यु हो गयी और उसने हज्ज नहीीं ककया, जिकक वह चालीस साल का था और हज्ज करने पर सक्षम था। हालाींकक वह पाूँच समय की नमा़िों की पािींदी करनेवाला थ। वह हर साल कहता था कक : इस साल मैं हज्ज करूँगा। उसकी


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मृत्यु हो गयी और उसके वाररस हैं, तो क्या उसकी तरफ से हज्ज ककया जायेगा? और क्या उसके ऊपर कोई ची़ि अननवायर है?


उत्तरः


तो शैख रकहमहुल्लाह ने इस तरह उत्तर कदयाः ''बवद्वानों ने इसके िारे में मतभेद ककया है। चुनाूँचे उनमें से कुछ का कहना है : उसकी ओर से हज्ज ककया जाएगा, और उसे इसका लाभ पहुूँचेगा, और यह ऐसे ही होगा जैसे कक ककसी ने अपनी ओर से हज्ज ककया हो।


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जिकक कुछ लोगों ने कहा है : उसकी ओर से हज्ज नहीीं ककया जायेगा, और यह कक यकद उसकी ओर से ह़िार िार भी हज्ज ककया जाए, वह क़ि ल नहीीं होगा।


अथारत उसकी ज़िम्मेदारी समाप्त नहीीं होगी। और यही कथन सत्य है। क्योंकक इस आदमी ने बिना ककसी उज़्र के एक ऐसी इिादत को छोड़ कदया जो उसके ऊपर अननवायर और तुरींत फ़िर थी। तो यह कैसे हो सकता है कक वह (मवयीं) तो इस कतरव्य को छोड़ देता है, कफर मृत्यु के िाद हम उसे इसका प्रनतिद्ध िनाते हैं। रही िात बवरासत की


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तो अि उससे वाररसों का अनिकार सींिींनित हो गया है, सो हम उन्हें इस हज्ज की क़ीमत से कैसे वींनचत कर सकते हैं जिकक वह उसके मानलक की ओर से पयारप्त भी नहीीं होगा। इसी ची़ि को इब्नुल क़ैनयम रकहमहुल्लाह ने ''तह़्िीिुमसुनन'' में उल्लेख ककया है, और मैं भी यही कहता ह ूँ कक : जजस व्यबि ने हज्ज को लापरवाही करते हुए उस पर सक्षम होने के िावज द छोड़ कदया, तो उसकी ओर से हज्ज कभी भी पयारप्त नहीीं होगा, भले ही लोग उसकी ओर से ह़िार िार हज्ज करें। रही िात ़िकात की, तो


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कुछ बवद्वानों ने कहा है कक : यकद वह मर गया और उसकी तरफ से ़िकात अदा कर दी गई तो उसकी ज़िम्मेदारी समाप्त हो जायेगी। लेककन मैंने जो ननयम वणरन ककया है उसकी अपेक्षा यह है कक ़िकात से भी उसकी ज़िम्मेदारी समाप्त नहीीं होगी। लेककन मेरा बवचार है कक मैनयत की छोड़ी हुई सींपबत्त से ़िकात को ननकालना चाकहए, क्योंकक उसके साथ गरीिों और ़िकात के अनिकारी लोगों का हक़ सींिींनित है। जिकक हज्ज का मामला इसके बवपरीत है। अतः उसे उसके तकार (मृत की छोड़ी हुई सींपबत्त) से नहीीं ननकाला जायेगा क्योंकक


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उससे ककसी मनुष्य का हक़ सींिींनित नहीीं होता है। जिकक ़िकात के साथ इन्सान का हक़ सींिींनित होता है, इसनलए ़िकात को उसके अनिकारी लोगों के नलए ननकाला जायेगा, लेककन उसके मानलक की ओर से काफी नहीीं होगा, और उसे उस व्यबि के समान स़िा दी जायेगी जजसने ़िकात अदा नहीीं ककया, अल्लाह तआला से दुआ है कक वह हमें इससे सुरजक्षत रखे। इसी तरह रो़िे का भी मामला है, यकद पता चल जाए कक इस आदमी ने रो़िा छोड़ कदया है और उसकी क़़िा करने में लापरवाही की है, तो उसकी तरफ


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से क़़िा नहीीं ककया जायेगा क्योंकक उसने लापरवाही से काम नलया है और इस इिादत को जो कक इमलाम के मतींभों में से एक मतींभ है बिना ककसी उज़्र (शरई कारण) के छोड़ कदया है, इसनलए यकद उसकी ओर से क़िा ककया जाए तो उसे लाभ नहीीं पहुूँचेगा। जहाूँ तक आप सल्लल्लाहु अलैकह व सल्लम का यह फरमान है कक : ''जो व्यबि मर गया और उसके ऊपर रो़िे हैं तो उसका वली (अनभभावक) उसकी ओर से रो़िा रखे।''1 तो यह उस आदमी के िारे में हैं


1 सहीह िुखारी, हदीस सींखयाः (1952), सहीह मुजमलम, हदीस सींखयाः


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जजसने कोताही व लापरवाही से काम नहीीं नलया है, लेककन जजस आदमी ने खुल्लम खुल्ला बिना ककसी शरई उज़्र के क़़िा को छोड़ कदया तो उसकी तरफ से क़़िा करने का क्या फायदा है।'' अींत


''फतावा इब्ने उसैमीन'' (21/226).


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