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सहाबा से द्वेष रखने का हुक्म


प्रश्नः


मैं एक आदमी के साथ सम्माननत सहाबा रज़्ियल्लाहु अन्हुम के बारे में बात चीत कर रहा था, उसने मुझसे कहा : हम में से कोई भी व्यज्क्त ककसी भी सहाबी को नापसंद कर सकता है और यह इस्लाम के ववरूद्द नह ं है, -इस्लाम से नह ं टकराता है, तथा उसने कहा : हो सकता है कक यह --अथारत् सहाबा से घृणा -- उस आदमी को ईमान के दायरे से बाहर कर दे, परंतु वह इस्लाम के दायरे में बाक़ी रहता है। इसललए हम आप से अनुरोध करते हैं कक इस मामले को स्पष्ट करे।


उत्तरः


हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के ललए योग्य है।


ननिःसंदेह यह बहुत बड़ी नाकामी और अल्लाह की तरफ से तौफीक़ की कमी है कक बंदा सवर श्रेष्ठ सृज्ष्ट मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के सहाबा रज़्ियल्लाहु अन्हुम को बुरा भला कहना और उनके बीच िो


मतभेद पैदा हुए थे उनके बारे में बहस करना अपना तर क़ा और व्यवहार बना ले, बिाय इसके कक वह अपनी आयु को ऐसी ची़ि में लगाये िो उसके द न और दुननया के ललए लाभदायक हो। तथा ककसी भी व्यज्क्त के ललए कोई भी कारण नह ं है कक वह नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम को बुरा भला कहे या उनसे द्वेष रखे, क्योंकक उनकी प्रनतष्ठा बहुत महान और अनेक है, वह लोग हैं ज्िन्हों ने द न की मदद की और उसको फैलाया, उन्ह ं लोगों ने मुशररकों (अनेकेश्वरवाहदयों) से लड़ाई की, उन्ह ं लोगों ने क़ुरआन व सुन्नत और द न के अहकाम को स्थानांतररत ककया, उन्हों ने अपनी िान व माल को अल्लाह के रास्ते में खचर ककया, उन्हें अल्लाह तआला ने अपने पैगंबर की संगत के ललए चुना, अतिः कोई मुनाकफक़ (पाखंडी) ह उन्हें बुरा भला कहेगा और उनसे द्वेष रखेगा िो न द न को पसंद करता है और न उस पर ईमान रखता है।


बरा बबन आज़्िब रज़्ियल्लाहु अन्हु से वर्णरत है कक उन्हों ने कहा : मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम को फरमाते हुए सुना : अनसार से कोई मोलमन ह महब्बत करेगा, और कोई मुनाकफक़ ह उनसे द्वेष रखेगा, अतिः िो उनसे महब्बत करे अल्लाह उस से महब्बत करे, और िो उनसे द्वेष रखे, अल्लाह उस से द्वेष रखे।” इसे बुखार (हद स संख्या : 3572) और मुज्स्लम (हद स संख्या : 75) ने ररवायत ककया है।


िब उस आदमी से ईमान समाप्त हो िाता है िो अनसार से द्वेष रखता है और उसके ललए ननफाक़ साबबत हो िाता है : तो कफर उस आदमी का क्या हुक्म होगा िो अनसार व मुहाज्िर न और भलाई के साथ उनकी पैरवी करने वालों से द्वेष रखता है, उन्हें गाल देता है, उन पर लानत करता है, उन्हें काकफर कहता है, तथा िो लोग उनसे दोस्ती रखते हैं और उनपर रज़्ियल्लाहु अन्हुम पढ़ते हैं उन्हें भी काकफर कहता है?!, िैसाकक राकफ़िा लोग करते हैं। इसमें कोई शक नह ं कक वे लोग कुफ्र, ननफाक़ और ईमान की अनुपज्स्थनत के अधधक योग्य हैं।


तहावी ने -- अह्ले सुन्नत वल िमाअत के एनतक़ाद के वणरन में --फरमाया :


''और हम रसूल सल्लल्लाहु अलैहह व--अला आललह व सल्लम के असहाब से महब्बत करते हैं, और उनमें से ककसी की महब्बत में अनत नह ं करते हैं, और न उनमें से ककसी से उपेक्षा करते हैं, और िो उनसे द्वेष रखता है और बबना भलाई के उनका चचार करता है, हम उस से द्वेष रखते हैं, तथा हम उनकी चचार भलाई के साथ ह करते हैं, तथा उनसे महब्बत करना द न, ईमान और एहसान है, और उनसे द्वेष रखना कुफ्र, ननफाक़ और अत्याचार है।


शैख सालेह अल--फौ़िान ने फरमाया :


अह्ले सुन्नत वल िमाअत का मत : नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के अह्ले--बैत से दोस्ती और वफादार है।


और नवालसब : सहाबा से दोस्ती और वफादार रखते और नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के घराने वालों से द्वेष रखते हैं। इसी कारण उन्हें नवालसब कहा िाता है, क्योंकक वे नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के घराने वालों से दुश्मनी रखते हैं।


तथा रवाकफ़ि : इसके ववपर त हैं, उन्हों ने अपने भ्रमानुसार अह्ले बैत से दोस्ती और वफादार की, और सहाबा से द्वेष रखा, तथा उन पर लानत (धधक्कार) करते हैं, उन्हें काकफर ठहराते हैं और उनकी बुराई करते हैं . . .


और िो व्यज्क्त सहाबा से द्वेष रखता है, तो वह वास्तव में द न से द्वेष रखता है, क्योंकक वह लोग इस्लाम के धारक और मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के अनुयायी हैं, अतिः ज्िसने उनसे द्वेष रखा उसने इस्लाम से द्वेष रखा। तो यह इस बात का प्रमाण है कक इन लोगों के हदलों में कुछ भी ईमान नह ं है, तथा इसमें यह प्रमाण है कक वे इसलाम को पसंद नह ं करते हैं . . .


यह एक महान लसद्दांत है ज्िसकी िानकार रखना मुसलमान पर अननवायर है, और वह सहाबा से महब्बत रखना और उनका सम्मान करना है ; क्योंकक यह ईमान का हहस्सा है, और उनसे द्वेष रखना या उनमें से ककसी से द्वेष रखना कुफ्र और ननफाक़ में दार्खल है, और इसललए कक उन से महब्बत करना नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम से महब्बत रखन में शालमल है और उनसे द्वेष रखना नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम से द्वेष रखने में शालमल है।


“शहुरल अक़ीदा अत्तहाववय्यह”


कुछ ववद्वानों ने “सहाबा से द्वेष रखने” के मु􀆧े के बारे में वववरण करते हुए कहा है : यहद वह उनमें से कुछ से द्वेष रखने में ककसी भौनतक चीि के ललए पड़ा है, तो वह कुफ्र और ननफाक़ में नह ं पड़ेगा, और यहद वह ककसी धालमरक कारण से इस हैलसयत से कक वे नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के सहाबा थे उनसे द्वेष रखता है, तो उनके कुफ्र में कोई संदेह नह ं है।


यह एक अच्छा वववरण है िो उस बात के ववरूद्द नह ं है िो हम ने पहले वणरन ककया है, बज्ल्क यह उसे स्पष्ट करता और उसकी पुज्ष्ट करता है।


अबू ़िुआर अराऱिी ने फरमाया : िब तुम आदमी को देखो कक वह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के साधथयों में से ककसी की आलोचना करता है, तो िान लो कक वह ववधमी है।


तथा इमाम अहमद ने फरमाया : िब तुम ककसी आदमी को देखो कक वह पैंगबर सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के साधथयों में से ककसी का बुराई के साथ चचार करता है तो उसके इस्लाम पर उसे आरोवपत करो।


शैखुल इस्लाम इब्ने तैलमय्या रहहमहुल्लाह ने फरमाया :


िहााँ तक उस आदमी का संबंध है िो उन्हें इस तरह बुरा भला कहता है िो उनकी न्यायवप्रयता और उनकी धमरननष्ठता को दोवषत नह ं करता है, उदाहरण के तौर पर उनमें से कुछ को कंिूसी या बु़िहदल , या ज्ञान की कमी, या ़िुह्द की कमी इत्याहद से ववलशष्ट करना, तो ऐसा ह व्यज्क्त अनुशासन और स़िा का अधधकार है, और मात्र इसके कारण हम उसके ऊपर कुफ्र का हुक्म नह ं लगायेंगे, और इसी अथर में उन ववद्वानों की बात को भी ललया िायेगा ज्िन्हों ने सहाबा को बुरा भला कहने वालों को काकफर नह ं ठहराया है।


ककंतु ज्िस ने सामान्य रूप से लानत ककया और बुरा भला कहा, तो यह उनके बारे में मतभेद का स्थान है, क्योंकक मामला गुस्से के शाप और ववश्वास व आस्था के शाप के बीच घूमता है।


परंतु िो व्यज्क्त इस से भी आगे बढ़ गया यहााँ तक कक यह गुमान कर ललया कक वे अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम के बाद मुतर􀆧 – ववधमी -- हो गए, लसवाय कुछ लोगों के ज्िनकी संख्या एक दिरन से अधधक नह ं पहुाँचती है, या उनमें से आम लोग फालसक़ (पापी) हो गए, तो ऐसे व्यज्क्त के कुफ्र के बारे में भी कोई संदेह नह ं है, क्योंकक उसने उस ची़ि को झुठला हदया ज्िसे क़ुरआन ने कई स्थानों पर उनसे प्रसन्न होने और उनकी प्रशंसा करने को स्पष्ट रूप से बयान ककया है, बज्ल्क िो व्यज्क्त उनके कुफ्र में शक करता है तो उसका कुफ्र सुननज्श्चत है, क्योंकक इस कथन का आशय यह है कक ककताब और सुन्नत को स्थानांतररत करने वाले काकफर या फालसक़ हैं, और यह आयत कक “तुम सवरश्रेष्ठ समुदाय हो ज्िसे लोगों के ललए ननकाला गया है” और उनमें सबसे श्रेष्ठ प्रथम शताब्द के लोग थे, वे आम तौर पर काकफर या फालसक़ थे, और इसका मतलब यह हुआ कक यह समुदाय सबसे बुरा समुदाय है, और इस समुदाय के वपछले लोग सबसे बुरे लोग हैं, और इनका कुफ्र इस्लाम धमर की आवश्यक रूप से सवरज्ञात बातों में से है।


इसीललए आप पायेंगे कक ज्िस पर भी इन बातों में से कोई ची़ि प्रकट हुई है, आम तौर पर यह स्पष्ट होता है कक वह ज़्िंद क़ (ववधमी) है, और आम तौर पर ज़्िंद क़ लोग अपने मत का आड़ प्राप्त करते हैं, अल्लाह तआला ने उनके बारे में प्रमाण प्रकट ककए हैं, और यह उद्दरण तवातुर के साथ साबबत है कक उनके चेहरे िीवन और मृत्यु में सूअरों में ववकृत कर हदये िाते हैं, तथा ववद्वानों को इसके बारे में िो बातें पहुाँची हैं उसे उन्हों ने एकत्र ककया है, और इस अध्याय में ज्िन्हों ने ककताबें ललखी हैं उनमें से एक हाकफ़ि सालेह अबू अब्दुल्लाह बबन अब्दुल वाहहद मक़दसी हैं ज्िन्हों ने अपनी ककताब में सहाबा को गाल देने के ननषेध और उस बारे में वर्णरत पाप और स़िा का उल्लेख ककया है।


सारांश यह कक सहाबा को बुरा भला कहने वालों के वगों में से कुछ ऐसे है ज्िनके कुफ्र के बारे में कोई संदेह नह ं है, और उनमें से कुछ पर कुफ्र का हुक्म नह ं लगाया िायेगा, और उनमें से एक वगर ऐसा है ज्िसके बारे में तर􀆧ुद से काम ललया गया है।


“अस्साररमुल मसलूल अला शानतलमररसूल” (पृष्ठ 590 - 591).


तथा तक़ीयु􀆧ीन अस्सुबकी ने फरमाया :


इस शोध पर कुछ सहाबा को बुरा भला कहना आधाररत होता है, क्योंकक सभी सहाबा को बुरा भला कहना ननिःसंदेह कुफ्र है, और इसी तरह यहद वह ककसी एक सहाबी को बुरा भला कहे उसके सहाबी होने की हैलसयत से ; क्योंकक यह सहाबबयत के हक़ का अपमान है, इसके अंदर स्वयं नबी सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम को ननशाना बनाने का ववषय है, अतिः बुरा भला कहने वाले के कुफ्र में कोई संदेह नह ं है, और इसी पर तहावी के कथन “और उनसे बुग़़ि रखना कुफ्र है” को लागू ककया िायेगा, क्योंकक सभी सहाबा से द्वेष रखना ननिःसंदेह कुफ्र है, लेककन यहद वह ककसी सहाबी को इस हैलसयत से गाल नह ं देता है कक वह एक सहाबी है बज्ल्क ककसी ननिी मामले की विह से है, और वह सहाबी उदाहरण के तौर पर उन लोगों में से है िो मक्का पर वविय से पहले इस्लाम लाए, और हम उसकी फ़िीलत और प्रनतष्ठा को सत्यावपत मानते हैं, िैसे रवाकफ़ि िो अबू बक्र व उमर रज़्ियल्लाहु अन्हुमा को बुरा भला कहते हैं, तो क़ा़िी हुसैन ने अबू बक्र व उमर रज़्ियल्लाहु अन्हुमा को बुरा भला कहने वाले के कुफ्र के बारे में दो रूप वणरन ककए हैं।


और तर􀆧ुद (संकोच) का कारण यह है िो हम पहले वणरन कर चुके हैं कक ककसी ननधाररतर व्यज्क्त को बुरा भला कहना ककसी ववशेष और ननिी मामले की विह से हो सकता है, और कभी एक व्यज्क्त ककसी आदमी से


ककसी दुननयावी -सांसाररक-- ची़ि की विह से द्वेष रखता है, तो यह उसके तक्फीर की अपेक्षा नह ं करता है, और इसमें कोई शक नह ं कक यहद वह उन दोनों में से ककसी एक से उसके सहाबी होने की विह से द्वेष रखा तो यह कुफ्र है, बज्ल्क िो उन दोनों से सहाबबयत में कमतर दिे में है यहद उससे भी कोई आदमी उसके सहाबी होने की विह से द्वेष रखा है तो वह ननज्श्चत रूप से काकफर है।


“फतावा अस्सुबकी” (2/575).


और अल्लाह तआला ह सवरश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।


इस्लाम प्रश्न और उत्तर



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