क्या खिज़्र स्वर्गदूत थे या रसूल या नबी या वली थे ?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।
क़ुर्आन के सामान्य शब्द से प्रत्यक्ष यही होता है कि वह नबी थे।
शैख शंक़ीती -रहिमहुल्लाह- अल्लाह तआला के फरमान : "फिर (उन दोनों ने) हमारे बन्दों में से एक बन्दा को पाया, जिसे हम ने अपने पास से खास रहमत अता कर रखी थी और उसे अपने पास से खास इल्म सिखा रखा था।" (सूरतुल कह्फ :65) के बारे में कहते हैं :
किन्तु कुछ आयतों से समझ में आता है कि उक्त आयत में वर्णित रहमत से मुराद नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) की रहमत है, और इस इल्मे-लदुन्नी से अभिप्राय वह्य का इल्म है... और यह बात ज्ञात है कि रहमत और इल्मे-लदुन्नी का प्रदान करना इस बात से आम है कि यह नुबुव्वत के माध्यम से है या किसी और तरीक़े से, और उस में आम के द्वारा खास पर दलील पकड़ना है ; क्योंकि किसी सामान्य चीज़ का मौजूद होना किसी विशिष्ट चीज़ के मौजूद होने को आवश्यक नहीं ठहराता है, जैसाकि यह सिद्धांत सुप्रसिद्ध है। और इस बात का सब से स्पष्ट प्रमाण कि रहमत और इल्मे-लदुन्नी जिन के द्वारा अल्लाह तआला ने अपने बन्दे खिज़्र पर एहसान किया है वह नुबुव्वत और वह्य के माध्यम से था, अल्लाह तआला का यह फरमान है : "मैं ने अपने इरादे और ख्वाहिश से कोई काम नहीं किया।" (सूरतुल कह्फ : 82) अर्थात् मैं ने इसे अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के हुक्म से किया है, और अल्लाह का हुक्म वह्य के द्वारा ही संपन्न होता है, क्योंकि अल्लाह तआला के आदेशों और प्रतिषेधों को जानने का एक मात्र साधन अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की ओर से वह्य है, विशेश रूप से ज़ाहिर में निर्दोष जान को क़त्ल करना, लोगों की कश्तियों को उनमें छेद कर के ऐबदार बनाना, क्योंकि लोगों की जानों और उनके मालों पर आक्रमण करना अल्लाह तआला की तरफ से वह्य के माध्यम ही से उचित हो सकता है, और अल्लाह तआला ने अपने कथन : "मैं तो तुम्हें मात्र अल्लाह की वह्य के द्वारा डराता है।" (सूरतुल अंबिया :45) में डराने और आगाह करने के रास्ते को वह्य के साथ विशिष्ट कर दिया है। और आयत में "इन्नमा" का शब्द निर्भरता और विशिष्टता को दर्शाने के लिए आता है।" (अज़्वाउल बयान 4/172-173)
तथा एक दूसरे स्थान पर फरमाते हैं :
"... इन सभी चीज़ों से ज्ञात होता है कि : खिज़्र का बच्चे को क़त्ल करना, और कश्ती में छेद कर देना, और उनका यह कथन कि : "मैं ने इसे अपने इरादे से नहीं किया है।" आप के नबी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, फख्र राज़ी ने अपनी तफ़सीर में उन के नबी होने का कथन अधिकांश लोगों की ओर मन्सूब किया है, तथा उन के नबी होने के कथन का संकेत इस से भी मिलता है कि मूसा अलैहिस्सलाम ने उन के लिए नम्रता का प्रदर्शन किया, जैसा कि मूसा अलैहिस्सलाम के इस कथन में है : "मैं आप का हुक्म मानूँ कि आप मुझे उस सच्चे इल्म को सिखा दें जो आप को सिखाया गया है?" (सूरतुल कह्फ :66) और इस कथन में है : "अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वाला पायेंगे।" (सूरतुल कह्फ :69) जबकि खिज़्र ने उनसे कहा : "और जिस चीज़ को आप ने अपने ज्ञान में न लिया हो उस पर सब्र कर भी कैसे सकते हैं?" (सूरतुल कह्फ : 68)
(अज़्वाउल बयान 3/326)
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद
पैगंबरों पर विश्वास रखने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
अल्लाह की प्रशंसा के बाद : पैग़ंबरों पर ईमान लाने में चार चीजें सम्मिलित हैं :
पहला : सुदृढ़ रूप से इस बात की पुष्टि करना कि अल्लाह तआला ने हर उम्मत (समुदाय) में उन्हीं में से एक रसूल भेजा है जो उन्हें केवल एक अल्लाह की इबादत करने और उसके अतिरिक्त जिसकी भी पूजा की जाती है उसका इंकार करने की दावत देते थे, और यह कि वे सब के सब सच्चे, पुष्टि किये हुये, नेक, पारसा, संयमी और विश्वस्त हैं, और इस बात की पुष्टि करना कि अल्लाह तआला ने उन्हें जिस चीज़ के साथ भेजा था उन सब को उन्हों ने पहुँचा दिया, न तो उसे छुपाया और न उस में परिवर्तन किया, और न तो उन्हों ने अपनी तरफ से उस में एक अक्षर की वृद्धि की और न ही उस में कुछ कमी किया : "रसूलों पर तो केवल पहुँचा देना है।" (सूरतुन्नह्ल :35)
और यह की वे सभी, प्रथम रसूल से लेकर अंतमि पैग़ंबर तक, असल इबादत और उसके मूल की दावत देने पर एक मत हैं, और वह तौहीद है इस प्रकार की आस्था, कथन और कर्म के द्वारा सभी प्रकार की इबादतें केवल अल्लाह के लिए की जायें और उसके सिवा जिन चीज़ों की भी पूजा की जाती है उन का इंकार किया जाये, इस का प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है : "हम ने आप से पहले जो भी पैग़म्बर भेजे हैं उनकी तरफ यही वह्य भेजी है कि मेरे (अल्लाह के) अलावा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं, तो तुम मेरी ही इबादत करो।" (सूरतुल अम्बिया :25)
तथा अल्लाह तआला का यह फरमान : "और हमारे उन नबियों से मालूम करो जिन्हें हम ने आप से पहले भेजा था कि क्या हम ने रहमान के सिवाय दूसरे पूज्य निर्धारित किये थे जिन की इबादत की जाये?" (ज़ुख़रुफ :45)
और इनके अलावा अन्य बहुत सी आयतें भी हैं।
जहाँ तक फर्ज़ इबादतों और शरीअत के फुरूअ (अर्थात् शाखाएँ, जो अनिवार्य नहीं हैं) का संबंध है तो इन (पैग़ंबरों) पर नमाज़ और रोज़ा इत्यादि में से जो चीज़ें फर्ज़ होती है वह दूसरों पर फर्ज़ नहीं होती हैं, और इन पर अल्लाह की तरफ से परीक्षा के तौर पर ऐसी चीज़ें हराम होती हैं जो दूसरों के लिए हलाल होती हैं : "ताकि तुम्हें आज़माये कि तुम में सब से अच्छा अमल करने वाला कौन है।" इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है : "तुम में से प्रत्येक के लिए हम ने एक धर्म-शास्त्र और मार्ग निर्धारित कर दिया है।" (सूरतुल-माईदा:48) इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा इस आयत की तफ्सीर में कहते हैं : एक रास्ता और एक तरीक़ा। और इसी के समान मुजाहिद, इक्रमा और मुफस्सेरीन के कुछ गिरोहों का भी कथन है।
सहीह बुखारी (हदीस संख्या :3443) और सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या :2365) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अंबिया किराम अल्लाती भाई हैं उनकी माँयें विभिन्न हैं और उनका धर्म एक है।" अर्थात् अंबिया मूल सिद्धांत में एक हैं और वह तौहीद है जिसके साथ अल्लाह तआला ने प्रत्येक पैग़ंबर को भेजा, और जिस पर प्रत्येक उतरने वाली किताब आधारित है, और उनकी शरीअतें, आदेश और प्रतिषेद्ध, हलाह और हराम में विभिन्न हैं, क्योंकि अल्लाती भाई के बाप एक होते हैं और उनकी मायें विभिन्न होती हैं।
जिस ने उनमें से किसी एक की रिसालत (पैग़म्बरी) को अस्वीकार किया उस ने समस्त रसूलों के साथ कुफ्र किया, जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है: "नूह के सम्प्रदाय ने भी रसूलों को झुठलाया।" (सूरतुश्-शोअरा: 105) इस आयत में अल्लाह तआला ने नूह के सम्प्रदाय को समस्त रसूलों को झुठलाने वाला ठहराया है, हालाँकि उनके झुठलाने के समय नूह के अतिरिक्त कोई अन्य रसूल था ही नहीं।
दूसरा : जिन रसूलों का नाम हमें ज्ञात है उन पर उनके नामों के साथ ईमान लाना, जैसे मुहम्मद, इब्राहीम, मूसा, ईसा और नूह अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम, और जिन रसूलों का उल्लेख सार (इज्माली) रूप से किया गया है और उनका नाम हमें मालूम नहीं है उन पर सार (इज्माली) रूप से हमारे ऊपर ईमान लाना अनिवार्य है, जैसाकि अल्लाह तआला ने फरमाया : "रसूल उस चीज़ पर ईमान लाये जो उनकी तरफ अल्लाह की ओर से उतारी गयी और मुसलमान भी ईमान लाये। यह सब अल्लाह तआला और उसके फरिश्तों पर, और उसकी किताबों पर, और उसके रसूलों पर ईमान लाये, हम उसके रसूलों में से किसी के बीच अन्तर नहीं करते।" (सूरतुल बक़रा : 285)
तथा फरमाया : "नि:सन्देह हम आप से पूर्व भी बहुत से रसूल भेज चुके हैं, जिन में से कुछ की घटनाओं का वर्णन हम आप से कर चुके हैं तथा उन में से कुछ की कथाओं का वर्णन तो हम ने आप से किया ही नहीं।" (सूरत ग़ाफिर: 78)
तथा हम इस बात पर ईमान रखते हैं कि समस्त नबियों के समाप्तिकर्ता (मुद्रिका) हमारे पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, अत: आप के बाद कोई नबी नहीं है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "(लोगो!) मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं, किन्तु आप अल्लाह के पैग़म्बर और तमाम नबियों के खातम (मुद्रिका) हैं।" (सूरतुल अहज़ाब:40)
तथा बुखारी (हदीस संख्या :4416) और मुस्लिम (हदीस संख्या :2404) में सअद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तबूक की तरफ निकले और अली रज़ियल्लाहु अन्हु को (मदीना का) प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया, तो उन्हों ने कहा कि क्या आप मुझे बच्चों और औरतों में प्रतिनिधि बना रहे हैं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क्या तुम्हें यह बात पसंद नहीं है कि तुम मेरे निकट ऐसी ही हो जाओ जिस तरह कि हारून मूसा अलैहिस्सलाम के लिए थे, किन्तु मेरे बाद कोई नबी नहीं है।"
और यह कि अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्रतिष्ठा प्रदान किया है और आप को अन्य नबियों के बीच महान विशेषताओं से विशिष्ट किया है, जिन में से कुछ यह हैं :
1- अल्लाह तआला ने आप को सभी इंसानों और जिन्नों की ओर पैग़ंबर बनाकर भेजा है, जबकि इस से पहले नबी विशिष्ट रूप से अपनी क़ौम की ओर भेजे जाते थे।
2- अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आप के दुश्मनों पर एक महीना की दूरी पर रुअब (दबदबा) के द्वारा मदद की है।
3- आप के लिए धरती को मिस्जद (नमाज़ पढ़ने का स्थान) और पवित्रता का साधन बना दिया है।
5- आप के लिए गनीमत का धन हलाल कर दिया गया है जबकि आप से पूर्व किसी के लिए हलाल नहीं किया गया था।
5- महान शफाअत से आप को सम्मानित किया गया है। इनके अतिरिक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अन्य बहुत सी विशेषतायें भी हैं।
तीसरा : रसूलों की जो सूचनायें विशुद्ध रूप से प्रमाणित हैं उनकी पुष्टि करना।
चौथा : जो रसूल हमारी ओर भेजे गए हैं उनकी शरीअत पर अमल करना, और वह समस्त नबियों के समाप्तिकर्ता (मुद्रिका) मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं जो समस्त मानव जाति की ओर संदेशवाहक बनाकर भेजे गए हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : "(हे मुहम्मद,) सौगन्ध है आपके रब (पालनहार) की ! यह मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि आपस के समस्त विवादों (मतभेदों) में आप को न्याय कर्ता न मान लें, फिर जो फैसला आप उन में कर दें उस के प्रति अपने हृदय में किसी प्रकार की तंगी और अप्रसन्नता न अनुभव करें, बल्कि सम्पूर्ण रूप से उसको स्वीकार कर लें।" (सूरतुन-निसा: 65)
ज्ञात होना चाहिए कि रसूलों पर ईमान लाने के बहुत बड़े परिणाम और लाभ हैं, जिन में से कुछ यह हैं :
1- बन्दों पर अल्लाह तआला की कृपा और अनुकम्पा का ज्ञान प्राप्त होता है कि उस ने उनकी ओर रसूल भेजे ताकि वह उनके लिए अल्लाह तआला के मार्ग को दर्शायें और अल्लाह तआला की इबादत (उपासना और आराधना) की विधि बतलायें, क्योंकि मानव बुद्धि स्वयं उसका ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकती।
2- इस महान उपकार पर अल्लाह तआला का आभारी (शुक्रगुज़ार) होना।
3- अम्बिया और रसूलों (अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम) से प्रेम और उनका आदर और सम्मान करने तथा उनकी प्रतिष्ठा योग्य उनकी प्रशंसा और सराहना करने का उत्साह उत्पन्न होता है, क्योंकि वे अल्लाह के रसूल हैं, और इस लिए भी कि उन्हों ने अल्लाह की इबादत व उपासना, उसकी रिसालत (संदेश) के प्रसार और बन्दों की शुभचिन्ता (ख़ैरख्वाही) का कर्तव्य पूरा कर दिया।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
देखिये : (आ´लामुस्सुन्नह अल-मन्शूरह पृ0 97-102) तथा (शैख इब्ने उसैमीन की शर्हुल उसूल अस्सलासह पृ0 95, 96)
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद