सामग्री

मछली का जिगर स्वर्गवासियों का पहला भोजन क्यों है ॽ मैं ने सुना है कि वह पेट को पवित्र और साफ करता है, क्या यह सही है या नहीं ॽ हमें अवगत करायें अल्लाह तआला आपको ज्ञान से सम्मानित करे और सर्वश्रेष्ठ बदला प्रदान करे।





उत्तर


सर्व प्रथम :





सही हदीस में प्रमाणित है कि जन्नत के लोगों का आतिथ्य उनके प्रथम प्रवेश के समय मछली के जिगर का अतिरिक्त भाग होगा, और यह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मौला सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि यहूदियों का एक विद्वान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और आप की जाँच करने के लिए कुछ चीज़ों के बारे में प्रश्न करने लगा, चुनाँचे उसकी हदीस में वर्णित हुआ है :





“यहूदी ने कहा: जब वे स्वर्ग में प्रवेश करेंगे तो उनका तोहफा क्या होगा ॽ





आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मछली के जिगर का बढ़ा हुआ हिस्सा।”





उसने कहा : इसके बाद उनका भोजन क्या होगा ॽ





आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “उनके लिए स्वर्ग का वह बैल क़ुर्बान किया जायेगा जो जन्नत के किनारों से खाता था।”





उसने कहा : तो उसपर उनका पीना क्या होगा ॽ





आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : एक ऐसे चश्में से जिसका नाम सलसबील है . . . हदीस के अंत तक।) इसे मुस्लिम (हदीस संख्या :315) ने रिवायत किया है।





इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :





“हदीस का शब्द : (फमा तोहफतोहुम) तोहफा उस चीज़ को कहते हैं जो आदमी को उपहार में भेंट किया जाता है, उसके लिए विशिष्ट कर दिया जाता है और उस पर लुत्फ व करम के तौर पर उसे पेश किया जाता है, तथा इब्राहीम अल-हलबी ने कहा : यह अप्राप्य फल को कहते हैं। “शरह मुस्लिम” (3/227) से समाप्त हुआ।





तथा उन्हों ने यह भी कहा:





“रही बात “नून” की तो वह विद्वानों की सर्वसहमति के साथ मछली है . . . जहाँ तकह जिगर की वृद्धि का संबंध है तो वह जिगर में एक टुकड़ा है जो उसमें सबसे अच्छा होता है।” “शर्ह मुस्लिम” (17/135-136) से अंत हुआ।





इस बात का सबूत सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम और सुनन की किताबों में अन्य हदीसों के अंदर भी वर्णित हुआ है। हम ने इस हदीस का चयन इसलिए किया है कि इसके अंदर स्वर्गवासियों की पहली आतिथ्य जो कि मछली के जिगर की वृद्धि है और उनके उस आहार के बीच अंतर किया गया है जो वे उसके बाद भोजन करेंगे, जो कि “स्वर्ग के बैल” का मांस है।





दूसरा :





हमें किसी ऐसे प्रमाण की जानकारी नहीं है जो “मछली के जिगर की वृद्धि” को जन्नत वालों के पहले भोजन के तौर पर विशिष्ट करने की हिक्मत (तत्वदर्शिता) को दर्शाता हो, किंतु हम इस बात पर विश्वास रखते हैं कि अल्लाह के लिए महान हिक्मत है, और अल्लाह सर्वशक्तिमान ज्ञान और हिक्मत वाला है, और उसने अपने बारे में फरमाया है :





﴿ وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ وَيَخْتَارُ مَا كَانَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ سُبْحَانَ اللَّهِ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ ﴾ [القصص : 68].





“और आपका पालनहार जो चाहता है पैदा करता है और जिसे चाहता है चुन लेता है, उनके लिए चयन करने का कोई अधिकार नहीं है, अल्लाह ही के लिए पाकी है और वह सर्वोच्च है हर उस चीज़ से जिसे लोग साझा करते हैं।” (सूरतुल क़सस : 68)





किंतु हम कुछ विद्वानों के विशिष्ट रूप से मछली के जिगर की वृद्धि को चयन करने की हिक्मत के बारे में मननचिंतन करने के प्रयास का इनकार नहीं करता हैं, चुनाँचे कुछ विद्वानों ने कहा है कि इसमें दुनिया के अंत की ओर संकेत है जो नश्वर घर है, और जन्नत की ओर स्थानांतरित होने की ओर संकेत है जो कि ठहरने का घर है, क्योंकि मछली जलीय जानवरों में से है जो धरती पर जीवन के तत्व को दर्शाता है, और बैल जंगली जानवरों में से है जो धरती में खेती और कमाई को इंगित करता है, अतः जन्नत वालों को उन दोनों चीज़ों से खिलाना दुनिया के अंत और आखिरत के आरंभ को इंगित करता है।





आलूसी की किताब “रूहुल मआनी” (7/94) देखें।





तीसरा :





जहाँ तक दुनिया वालों के खाने में मछली के जिगर की वृद्धि के औषधीय लाभ का प्रश्न है तो वे बहुत अधिक हैं, जिनका उल्लेख डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ करते हैं, उन्हीं में से कुछ : रक्त में कोलेस्ट्राल के अनुपात को कम करना, शरीर में वसा को कम करना, जोड़ों के दर्द को कम करना, तथा विटामिन डी से युक्त होना है जिसके बहुत अधिक लाभ हैं।





और जो व्यक्ति इस बारे में विस्तार के साथ जानकारी चाहता है वह इस विषय में विशिष्ट हवालों (संदर्भों) को देखे।





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





क्या हमारे लिए यह दुआ करना जाइज़ है कि अल्लाह तआला हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एकत्र करे ॽ


मेरा प्रश्न दुआ से संबंधित है, चुनाँचे पिछले एक प्रश्न में इस बात की दुआ कि मनुष्य पैगंबर के हाथ से ऐसा खुशगवार घूँट पिए कि उसके बाद कभी प्यासा न हो के बारे में आप ने हमें अवगत कराया कि इस को प्रचलित करना उचित नहीं है, और इस की दुआ के बारे में कोई चीज़ वर्णित नहीं है। हमारा प्रश्न यह है कि : क्या यह दुआ करना जाइज़ है कि अल्लाह तआला हमें रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हौज़ कौसर के पास और स्वर्ग में एकत्रित करे ॽ





उत्तर


हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





यह दुआ करना कि अल्लाह तआला हमें रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हौज़ कौसर के पास और स्वर्ग में एकत्रित करे : एक शुद्ध और सराहनीय दुआ है ; हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें सूचना दी है कि वह सबसे पहले हौज़ कौसर पर आयेंगे, और यह कि आपके हौज़ से कुछ ऐसे लोगों को हटाया जायेगा जो आपके हौज़ से पीने के अधिकृत न होंगे, वे ऐसे लोग होंगे जिनका निफाक़ (पाखंड) सर्वज्ञात होगा, या जिसके अंदर अनुसरण (पैरवी) का लक्षण नहीं होगा, और वह (सज्दे के असर से) चेहरे और (वुज़ू के असर से) वुज़ू के अंगों – हाथ पैर का चमकदार और सफेद होना है, इसी प्रकार उस आदमी को भी हौज़ कौसर से दूर भगाया जायेगा जो आपका अनुयायी नहीं होगा। इस उम्मत (समुदाय) के सम्मान के तौर पर ऐसा होगा, और इसलिए कि प्रति उम्मत अपने ईश्दूत के साथ जा मिले ताकि आपके हौज़ से पानी पिए।





तथा प्रश्न संख्या (125919) का उत्तर देखें। उसके अंदर उन लोगों का विस्तार के साथ उल्लेख है जिन्हें हौज़ से हटाया जायेगा।





अतः यह दुआ कि अल्लाह तआला दुआ करने वाले को हौज़ के पास एकत्र करे एक अच्छी दुआ है, इसी तरह उस दुआ के बारे में भी कहा जायेगा कि उसका पालनहार उसे उसके नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ स्वर्ग में एकत्र करे, बल्कि यह दुआ करने वाले के सर्वोच्च संकल्प को दर्शाता है, लेकिन इस संकल्प के साथ महान कार्यों की आवश्यकता होती है।





रबीआ बिन कअब अल-असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ रात बिताता था तो मैं आपके वुज़ू का पानी लाया और आपकी आवश्यकता पूरी की तो आप ने मुझ से फरमाया : (तुम माँगो)। तो मैं ने कहा : मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ। आप ने फरमाया : (क्या इसके अलावा कोई और माँग हैॽ) मैं ने कहा : बस वही है। आप ने फरमाया : (तो तुम अपने नफ्स पर अधिक से अधिक सज्दे के द्वारा मेरा सहयोग करो). इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 489) ने रिवायत किया है।





इब्ने अल्लान शाफई रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया :





“तो मैं ने कहा: मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” अर्थात : मैं उसके अंदर आपके साथ रहूँ आपसे निकट रहूँ ; आपकी दृष्टि और निकटता से लाभान्वित हूँ ताकि आप से अलग न रहूँ। अतः ऐसी स्थिति में कोई आपत्ति पैदा नहीं होती है कि “वसीला” का पद समस्त पैगंबरों के बीच आपके लिए विशिष्ट है, चुनाँचे आपके उस पद के अंदर कोई भेजा हुआ पैगंबर भी आप से बराबरी नहीं रखता है, दूसरों की बात तो बहुत दूर है ; इसलिए कि इस हदीस का मतलब यह है कि उन्हें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से संपूर्ण निकटता का स्थान और पद प्राप्त हो, तो उसे संगत के द्वारा इंगित किया गया है।”





“दलीलुल फालेहीन लि-तुरुक़ि रियाज़िस्सालेहीन” (1/392) से समाप्त हुआ।





तथा “मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” का अर्थ यह है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अनुरोध है कि आप उनके लिए इसकी दुआ करें, क्योंकि यह बात निश्चित रूप से ज्ञात है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी को स्वर्ग में प्रवेश दिलाने के मालिक नहीं हैं।





तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :





“अल्लाह की क़सम इस संकल्प की सराहना कीजिए, उसका मामला कितनवा आश्चर्यपूर्ण है और वह कितना भिन्न और विचित्र है, एक संकल्प वह है जो सिंहासन के ऊपर की अस्तित्व के साथ संबंधित है, और एक संकल्प वह है जो गंदगियों और मल के आस पास घूमती है, और सामान्य लोग कहते हैं कि : “हर मनुष्य का मूल्य वही है जिसे वह अच्छी तरह कर सकता है”, तथा विशेष लोग कहते हैं कि : “मनुष्य का मूल वही है जिसे वह माँगता है।” और सबसे विशिष्ट लोग कहते हैं कि: “आदमी का संकल्प उसकी माँग से पता चलता है।”





और यदि आप संकल्पों की श्रेणियों को जानना चाहते हैं तो रबीआ बिन कअब अल-असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु के संकल्प को देखिए जबकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा कि (तुम मुझसे माँगो), तो उन्हों ने कहा : “मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” जबकि कोई दूसरा होता तो अपने पेट को भरने, या अपने शरीर को छुपाने की चीज़ की माँग करता।”





“मदारिजुस्सालेकीन” (3 / 147) से समाप्त हुआ।





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





स्वर्ग में जाने वाली महिला को क्या मिलेगा यदि उस का पती नरकवासियों में से होगा ?


क़ुरआन करीम और अहादीस शरीफ में अनेक अज़कार का उल्लेख हुआ है जो उन सवाब और उपहारों का वर्णन करते हैं जिन्हें अल्लाह के हुक्म से स्वर्ग में जाने वाला मुसलमान पायेगा, विशिष्ट रूप से मैं यहाँ हूर-ईन (स्वर्गांगना) का उल्लेख करता हूँ, साथ ही साथ अल्लाह तआला उसे उसकी दुनिया की बीवी से भी मिला देगा यदि वह नेक और ईमान वाली औरतों में से होगी। मेरा प्रश्न यह है कि : स्वर्ग में जाने वाली नेक मोमिन औरत किस चीज़ की प्रतीक्षा करेगी विशेषकर अगर उसका पति नेक न होगा और अल्लाह की पनाह वह नरकवासियों में से होगा ?





उत्तर


हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।





हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और आप को सभी परिवार और प्रियजनों के साथ स्वर्गवासियों में से बनाये।





अगर औरत का पति उस के साथ स्वर्ग में प्रवेष करेगा, तो वहाँ भी वह उस का पति होगा, किन्तु अगर वह नरकवासियों में से है, या दुनिया में युवती की शादी ही नहीं हुई थी, तो स्वर्गवासियों में से किसी आदमी से उस का विवाह कर दिया जायेगा।





शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया जिस के शब्द यह हैं :





"अगर औरत जन्नती है और दुनिया में उस की शादी नहीं हुई थी, या शादी हुई पर उस का पति जन्नत में नहीं गया, तो उस के लिये कौन होगा ?





तो उन्हों ने उत्तर दिया :





"इस का उत्तर अल्लाह तआला के इस कथन के सामान्य अर्थ से निकाला जायेगा :





"जिस चीज़ को तुम्हारा मन चाहे और जो कुछ तुम मांगो, सब तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में उपस्थित है।" (सूरत फुस्सिलत : 31)





तथा अल्लाह तआला के इस कथन से :





"उन के मन जिस चीज़ को चाहें और जिस से उन की आँखें लज़्ज़त हासिल करें, सब वहाँ होगा और तुम उस में हमेशा रहोगे।" (सूरतुज़ ज़ुख़रूफ : 71)





अत: औरत अगर स्वर्गवासियों में से है और उसकी शादी नहीं हुई थी, या उस का पति स्वर्गवासियों में से नहीं है, तो जब वह स्वर्ग में जायेगी तो वहाँ स्वर्गवासियों में ऐसे मर्द भी होंगे जिन की शादी नहीं हुई थी, और आदमियों के लिए -जिन की शादी नहीं हुई थी- हूर ईन में से बीवियाँ होंगीं, और उन के लिए दुनिया वालों में से भी बीवियाँ होंगी अगर वे चाहेंगे और उन का मन उसकी इच्छा करेगा।





इसी प्रकार हम उस महिला के बारे में भी कहेंगे जिस की शादी नहीं हुई थी या शादी हुई थी किन्तु उस का पति उस के साथ स्वर्ग में प्रवेष नहीं किया, कि यदि वह शादी की इच्छा करेगी तो जो कुछ उस का मन चाहेगा, उस के लिए उस का वहाँ उपलब्ध होना ज़रूरी है ; क्योंकि आयत के सामान्य अर्थ का यही तर्क है।" (मजमूअ़ फतावा शैख इब्ने उसैमीन 2/52)





और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर


 



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