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मेरा प्रश्न हदीसों और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत और मत से संबंधित है, मेरे देश के लोग इमाम शाफई के मत का अनुकरण करते हैं। कुछ स्थितियों में मत को हदीस और सुन्नत पर प्राथमिकता दी जाती है, तो इस हालत में, क्या मैं मत का पालन करूँ या सुन्नत की ॽ उदाहरण के तौर पर, शाफई मत में यदि आदमी किसी औरत को छू ले, चाहे वह जानबूझकर हो या गलती से, तथा चाहे वह महिला उसके महारिम में से हो या महारिम में से न हो, तो उसका वुज़ू टूट जायेगा। तथा मुझे यह बात मिली है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पैर को नमाज़ पढ़ते हुए हरकत देते थे। उदाहरण के तौर पर, मेरे देश में मुसलमानों को सिखाया जाता है कि हज्ज के दौरान वुज़ू की नीयत शाफई मत से हंबली मत में परिवर्तित हो जाती है, और वे उसी तरह वुज़ू करते हैं जिस तरह हंबली मत के पैरोकार करते हैं, और उसका कारण वही है जो पूर्व उदाहरण में वर्णित है। तो क्या यह अर्थात हज्ज के दौरान एक मत से दूसरे मत में परिवर्तित होना सही है ॽ उदाहरणार्थ, शाफई मत में, फज्र की नमाज़ में क़ुनूत की दुआ सुन्नत मुअक्कदह है। तो क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फज्र की नमाज़ में ऐसा किया है ॽ और जो क़ुनूत नहीं पढ़ता है उसका क्या हुक्म है ॽ





उत्तर





उत्तर




अनिवार्य यह है कि किताब व सुन्नत का प्रमाण जिस चीज़ का तर्क देता है उसका पालन किया जाए यद्यपि वह उस मत के विपरीत और खिलाफ हो जिसका वह पालन कर रहा है, किंतु क़ुर्आन वा हदीस की समझ उसी तरह हो जिस तरह की सलफ –पूर्वजों - ने उसे समझा है, मात्र हमारी समझ के आधार पर न हो, और सलफ से अभिप्राय सहाबा और ताबईन हैं।





तथा जिस उदाहरण का आपने उल्लेख किया है तो सही कथन यह है कि महिला को छूना निश्चित रूप से वुज़ू को नहीं तोड़ता है, चाहे वह शहवत के साथ हो या उसके बिना हो, क्योंकि इसका प्रमाण यह हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कुछ पत्नियों को चुंबन किया फिर नमाज़ के लिए निकल गए और वुज़ू नहीं किया।” सिवाय इसके कि शहवत के कारण उससे कोई चीज़ निकल आए तो वह वुज़ू करेगा लेकिन छूने के कारण नही बल्कि उस से निकलने वाली चीज़ के कारण।





जहाँ तक आयत का संबंध है और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है : “या तुम ने औरतों को छुआ है।” तो सही कथन के अनुसार इस से अभिप्राय संभोग करना है।





2- आपको एक मत से दूसरे मत में परिवर्तित होने की आवश्यकता नहीं है, और हज्ज के कर्तव्य का पालन उसी तरह किया जायेगा जिस तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: “मुझसे अपने हज्ज के कार्य सीख लो।”





3- फज्र की नमाज़ में क़ुनूत के बारे में सही बात यह है कि वह केवल नवाज़िल – आपदा - के समय सुन्नत है, अर्थात जब मुसलमानों या उनमें से कुछ पर कोई आपदा आ पड़े तो उस समय मुस्तहब – ऐच्छिक - है कि क़ुनूत पढ़ा जाए और अल्लाह तआला से दुआ किया जाये कि वह उसे उनसे टाल दे, किंतु सामान्य परिस्थितियों में सही बात यह है कि क़ुनूत मुस्तहब नहीं है, प्रमाणों से यही पता चलता है। तथा जिस व्यक्ति ने क़ुनूत को छोड़ दिया उसकी नमाज़ शाफईया रहिमहुमुल्लाह के यहाँ भी सही है। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।





इस्लाम प्रश्न और उत्तर





 





शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद





 





इस्लाम के संप्रदायों की संख्या कितनी है ॽ और इस्लाम दूसरे धर्मों को कैसे प्रभावित करता है ॽ





उत्तर





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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





वह धर्म जिसके अलावा कोई अन्य धर्म अल्लाह तआला स्वीकार नहीं करेगा वह इस्लाम है, और वह केवल एक ही रास्ता और एक ही तरीक़ा है, और उसी पर इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उनके साथी क़ायम थे। अल्लाह के घर्म में संप्रदाय और विभिन्न तरीक़े नहीं हैं, किंतु वास्तविकता है कि अनेक लोग इस्लाम धर्म से फिर गए और बहुत से संप्रदाय बना लिए जिनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है, जैस - बातिनी, क़ादियानी, बहाई आदि संप्रदाय जिनसे अल्लाह तआला ने हमें अपने इस कथन द्वारा सावधान किया है:





﴿ وَأَنَّ هَذَا صِرَاطِي مُسْتَقِيمًا فَاتَّبِعُوهُ وَلا تَتَّبِعُوا السُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمْ عَنْ سَبِيلِهِ ذَلِكُمْ وَصَّاكُمْ بِهِ لَعَلَّكمْ تَتَّقُونَ ﴾ [ سورة الأنعام : 153]





“और यही धर्म मेरा मार्ग है जो सीधा है, अतः इसी मार्ग पर चलो, और दूसरी पगडण्डियों पर न चलो कि वे तुम्हें अल्लाह के मार्ग से अलग कर देंगी, इसी का अल्लाह तआला ने तुम को आदेश दिया है ताकि तुम परहेज़गार (संयमी, ईश-भय रखने वाले) बनो।” (सूरतुल अन्आमः 153)





जहाँ तक प्रश्न के दूसरे भाग का संबंध है, तो ऐ प्रश्न करने वाले भाई, इस्लाम एक वह्य (ईश्वाणी व प्रकाशना) है जो आसमान से शुद्ध रूप में अल्लाह तआला की ओर से अवतरित हुई है, जिसे अल्लाह तआला ने अपने बंदों के लिए धर्म स्वरूप् पसंद कर लिया है और उसकी चाहत हुई कि इसी पर धर्मों की समाप्ति कर दे और यह पिछले धर्मों पर निरीक्षक हो जाए। इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि इस्लाम दूसरे धर्मों से प्रभावित हुआ है।





हम आशा करते हैं कि आप इस धर्म के बारे में अधिक अध्ययन करें, तथा हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आप को सत्य और सही रास्ते का मार्गदर्शन करे।





शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद



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