जब मैं बच्चा था तो मुझसे बताया गया था कि जब अल्लाह ने इब्लीस को जन्नत से निकाल दिया और जब फरिश्तों ने अल्लाह के सख्त क्रोध को देखा तो वे दुबारा सज्दे में गिर गए, इसी कारण हम नमाज़ में दो बार सज्दा करते हैं, तो क्या इस में कोई सच्चाई है ॽ मैं इसका कोई हवाला (स्रोत) ढूंढ़ने में असमर्थ हूँ, क्या आप कृपया इसका स्पष्टीकरण कर सकते हैं ॽ
उत्तर
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
यह बात अशुद्ध है, और इसका उल्लेख करना और इसे दूसरों से वर्णन करना जाइज़ नहीं है, जिसके कई कारण हैं :
सर्व प्रथम: यह एक ऐसा दावा है जिसका कोई प्रमाण नहीं है, और क़ुरआन की व्याख्या की किताबें पर्याप्त और प्रचलित हैं उनके किसी एक लेखक ने भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है।
दूसरा:
अल्लाह तआला ने अपनी किताब -क़ुरआन- में आदम को सज्दा करने के केवल एक आदेश का उल्लेख किया है, फिर इस बात की सूचना दी है कि इब्लीस के अलावा सभी फरिश्तों ने सज्दा किया, वह जिन्नों में से था उसने अपने पालनहार के आदेश का उल्लंघन किया, इनकार किया और घमण्ड का प्रदर्शन किया, और इसी पर आज़माइश (परीक्षा) संपन्न होगई। अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلائِكَةِ اسْجُدُوا لآدَمَ فَسَجَدُوا إِلا إِبْلِيسَ أَبَى وَاسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ﴾ [البقرة :34]
“और जब हम ने फरिश्तों से कहा कि तुम आदम को सज्दा करो तो इब्लीस के सिवा सब ने सज्दा किया। उस ने इनकार कर दिया और घमण्ड का प्रदर्शन किया और काफिरों (नास्तिकों) में से हो गया।” (सूरतुल बकरा : 34)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلائِكَةِ اسْجُدُوا لآدَمَ فَسَجَدُوا إِلا إِبْلِيسَ كَانَ مِنَ الْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِ ﴾ [الكهف: 50]
“और जब हम ने फरिश्तों से कहा कि तुम आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सब ने सज्दा किया, वह जिन्नों में से था, उस ने अपने पालनहार के आदेश की अवहेलना की।” (सूरतुल कहफ : 50)
तीसरा:
फरिश्तों का सज्दा करना आदम अलैहिस्सलाम के लिए थाः ((आदम को सज्दा करो)) जहाँ तक नमाज़ के अंदर हमारे सज्दा करने का संबंध है तो वह अल्लाह के लिए है, और नमाज़ी के अपनी नमाज़ के अंदर सज्दा करने का, फरिश्तों के आदम के लिए सज्दा करने से कोई संबंध नहीं है।
चौथा:
क़ुरआन और सुन्नत में कहीं यह बात वर्णित नहीं है कि जब इब्लीस ने आदम को सज्दा करने से इनकार कर दिया तो अल्लाह तआला बहुत क्रोधित हुआ जिस से फरिश्ते घबरा गए। अतः इस अवस्था में इस क्रोध को अल्लाह से संबंधित करना जाइज़ नहीं है, तथा बिना किसी शुद्ध प्रमाण के इस का दावा करना भी जाइज़ नहीं है।
यह बात ज्ञात रहनी चाहिए कि अल्लाह तआला ने बिना ज्ञान के अपने ऊपर और अपने धर्म के बारे में कोई बात कहना हराम कर दिया है, अल्लाह ने फरमाया :
﴿إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لا تَعْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 168]
“वह तुम्हें केवल बुराई और बेहयाई (अश्लीलता) और अल्लाह तआला पर उन बातों के कहने का हुक्म देता है जिन का तुम्हें ज्ञान नहीं।” (सूरतुल बक़रा : 168).
तथा फरमाया:
﴿ قُلْ إِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالْإِثْمَ وَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَأَنْ تُشْرِكُوا بِاللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ﴾ [الأعراف: 33]
“आप कह दीजिए कि अलबत्ता मेरे रब ने सिर्फ हराम किया है उन तमाम बुरी बातों को जो स्पष्ट हैं और जो छुपी हैं और हर पाप की बात को और ना-हक़ किसी पर अत्याचार करने को और इस बात को कि तुम अल्लाह के साथ किसी ऐसी चीज़ को शरीक ठहराओ जिस की अल्लाह ने कोई सनद नहीं उतारी और इस बात को कि तुम लोग अल्लाह के ज़िम्मे ऐसी बात लगाओ जिस को तुम नहीं जानते।” (सूरतुल आराफ : 33).
तथा दारमी (हदीस संख्या : 174) ने अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने अपने खुत्बा (भाषण) में फरमाया : “जिस व्यक्ति को कोई ज्ञान प्राप्त हो तो वह दूसरे लोगों को वह ज्ञान सिखाये, और वह ऐसी बात कहने से बचे जिस की उसे जानकारी नहीं है, कि ऐसा न हो कि वह दीन से निकल जाए और तकल्लुफ करने वालों में से हो जाये।”
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।