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मैं ने यह हदीस पढ़ी है : ''फासिक़ (यानी दुराचारी, पापी) लोग ही नरकवासी हैं।'' कहा गया : ऐ अल्लाह के पैगंबर, फासिक़ कौन लोग हैं ? आप ने फरमाया : ''महिलाएं।'' एक आदमी ने कहा : क्या वे हमारी माताएं, हमारी बहनें और हमारी बीवियाँ नहीं हैं ? आप ने फरमाया : ''क्यों नहीं, लेकिन अगर उन्हें दिया जाता है तो शुक्र नहीं करती हैं और जब उनकी परीक्षा होती है तो वे सब्र नहीं करती हैं।'' मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि : फासिक़ होना औरतों के लिए ही विशिष्ट क्यों किया गया है और शुक्र न करने और नेकी न करने का गुणता उन्हीं के लिए क्यों खास किया गया है जबकि ये चीज़ें मर्दों में भी पाई जाती हैं?





उत्तर





उत्तर




एक दूसरी हदीस में है कि औरतें नरकवासियों में सबसे अधिक होंगी, क्योंकि वे नाशुक्री करती हैं। जबकि ज्ञात रहे कि यह मात्र औरतों के साथ खास नहीं है। क्या वह उससे बड़ा गुनाह है जिसे पुरूष करते हैं जैसे लड़ाईयाँ, हत्या और अत्याचार ?





उत्तर :





हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।





सर्व प्रथम :





इमाम अहमद (हदीस संख्याः 15531), हाकिम (हदीस संख्याः 2773), बैहक़ी ने शोअबुल ईमान (हदीस संख्याः 9346) में अब्दुर्रहमान बिन शिब्ल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘फासिक़ लोग ही नरकवासी हैं’’ कहा गया: ऐ अल्लाह के पैगंबर! फासिक़ लोग कौन हैं ? आप ने फरमाया: ‘‘औरतें।’’ एक आदमी ने कहा: ऐ अल्लाह के पैगंबर! क्या वे हमारी माताएं, हमारी बहनें और हमारी बीवियां नहीं हैं ? आप ने फरमाया : ''क्यों नहीं, लेकिन अगर उन्हें दिया जाता है तो शुक्र नहीं करती हैं और जब उनकी परीक्षा होती है तो वे सब्र नहीं करती हैं।’’ इसे अल्बानी ने सिलसिलतुल अहादीस अस्सहीहा (हदीस संख्याः 3058) में सहीह करार दिया है।





इस हदीस का मतलब सामान्य रूप से सभी औरतों की निंदा करना नहीं है; यह कैसे हो सकता है जबकि अल्लाह तआला का फरमान है :





﴿إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ وَالْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَالْقَانِتِينَ وَالْقَانِتَاتِ وَالصَّادِقِينَ وَالصَّادِقَاتِ وَالصَّابِرِينَ وَالصَّابِرَاتِ وَالْخَاشِعِينَ وَالْخَاشِعَاتِ وَالْمُتَصَدِّقِينَ وَالْمُتَصَدِّقَاتِ وَالصَّائِمِينَ وَالصَّائِمَاتِ وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَالْحَافِظَاتِ وَالذَّاكِرِينَ اللَّهَ كَثِيرًا وَالذَّاكِرَاتِ أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ مَغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا ﴾ [الأحزاب : 35]





''निःसन्देह मुसलमान मर्द और मुसलमान महिलाएं, मोमिन मर्द और मोमिन औरतें, आज्ञाकारी मर्द और आज्ञाकारी औरतें, सत्यवादी मर्द और सत्यवादी औरतें, धैर्य करने वाले मर्द और धैर्य करने वाली औरतें, विनम्र मर्द और विनम्र औरतें, दान करने वाले मर्द और दान करने वाली औरतें, रोज़े रखने वाले मर्द और रोज़े रखने वाली औरतें, अपनी शरमगाह की सुरक्षा करने वाले मर्द और सुरक्षा करने वाली औरतें, अधिक से अधिक अल्लाह का ज़िक्र करने वाले मर्द और ज़िक्र करने वाली औरतें - इन सब - के लिए अल्लाह तआला ने क्षमा -बख्शिश- और बड़ा पुण्य तैयार कर रखा है।'' (सूरतुल अहज़ाब: 35)





इस अर्थ की और आयतें भी हैं। तथा शरीअत के निर्धारित महान नियम भी हैं।





बल्कि इससे और इसके समान अन्य वईद की हदीसों का मतलब : उस काम से सावधान करना और ऐसा करने वाले का क़ियामत के दिन अल्लाह के पास बदले का वर्णन है, ताकि बुद्धिमान आदमी इस तरह के पाप में पड़ने से सावधान रहे।





रही बात औरतों को इस गुण के साथ विशिष्ट करने की, तो इसकी वजह यह है कि यह गुण – स्वभाव - उनके अंदर अक्सर पाया जाता है और लिंग के एतिबार से उनके अंदर बाहुल्य होता है। यदि पुरूषों में से कोई इन गुणों के अंदर औरतों के साथ साझा करता है और इन कामों को करता है: तो वह भी इस निंदा में शामिल है ; लेकिन इस तरह का व्यवहार औरतों की तुलना में मर्दों के वर्ग में कम है।





इसी तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान भी है कि ‘‘ताजिर लोग ही फाजिर (यानी दुराचार) हैं।’’ एक आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! क्या अल्लाह ने बिक्री को हलाल नहीं किया है ? आप ने फरमाया : ‘‘ये लोग बात कहते हैं तो झूठ बोलते हैं, क़सम खाते हैं और पाप करते हैं।’’ इसे अहमद (हदीस संख्याः 25530) ने अब्दुर्रहमान बिन शिब्ल अल अनसारी से रिवायत किया है और अल्बानी ने सिलसिलतुल अहादीस अस्सहीहा (हदीस संख्याः 366) में इसे सहीह करार दिया है।





यह – भी - सामान्य व्यापारियों की निंदा नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है जबकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सर्वश्रेष्ठ सहाबा -  साथियों - में भी कुछ लोग व्यापारी थे। बल्कि यह तो उस काम से सावधान करना, ऐसा करनेवाले के लिए धमकी और इस बात का वर्णन है कि : इस तरह का पाप और झूठ व्यापारियों के वर्ग में अधिक पाया जाता है। अतः प्रत्येक बुद्धिमान व्यापारी के लिए शोभित यह है कि वह इस तरह की चीज़ों से सावधान रहे, और अपने व्यापार और अपनी खरीदारी और बिक्री में नेकी का इच्छुक बने।





किंतु जो औरत इस तरह की नहीं है, बल्कि अल्लाह तआला का और अपने पति का शुक्र करने वाली है, अल्लाह तआला के फैसले पर सब्र करने वाली है: तो उसे यह निंदा निश्चित रूप से नहीं पहुंचेगी, बल्कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन के अंतर्गत आयेगी : ‘‘यदि औरत अपनी पांच दैनिक नमाज़ें पढ़े, अपने महीने - रमज़ान - का रोज़ा रखे, अपने शरमगाह – सतीत्व - की रक्षा करे, अपने पति की आज्ञापालन करे, तो उससे कहा जायेगा कि किसी भी द्वार से स्वर्ग में दाखिल हो जा।’’ इसे अहमद (हदीस संख्याः 1664) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 660) में सही कहा है।





दूसरा :





जहां तक दूसरी हदीस का संबंध है तो उसे बुखारी (हदीस संख्याः 304) ने अबू सईद की हदीस से, तथा मुस्लिम (हदीस संख्याः 79) ने इब्ने उमर की हदीस से अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया : ‘‘ऐ औरतों की जमाअत! तुम सद्क़ा व खैरात करो और अधिक से अधिक इस्तिग़फार -क्षमा याचना - करो। क्योंकि मैं ने नरक वालों में तुम्हारी अधिकता देखी है।’’ इस पर उनमें से एक महिला ने कहा : ऐ अल्लाह के सन्देष्टा! न्रकवालों में हमारे अधिकता का क्या कारण है ? आप ने फरमाया: ‘‘तुम लोग अधिक लानत – शाप - करती हो और पति की ना शुक्री करती हो।’’ हदीस के शब्द मुस्लिम के हैं।





बदरुद्दीन ऐनी रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :





अल-मोहलिब ने कहा : औरतें पति की ना शुक्री करने की वजह से नरक का हक़दार बनी हैं। तथा क़ुर्बतुबी कहते हैं : औरतें र्स्वग के वासियों में सबसे कम होंगी ; क्योंकि उनके ऊपर इच्छा की आधिपत्य होती है और दुनिया के जीवन के श्रृंगार की ओर उनका रूझान काफी होता है, तथा उनकी बुद्धि में कमी होती है। अतः वे दुनिया की और उससे सुसज्जित होने की ओर झुकाव की वजह से, आखिरत के लिए काम करने और उसके लिए तैयारी करने में कमज़ोर पड़ जाती हैं। तथा वे आखिरत से बहुत अधिक उपेक्षा करने वाली होती हैं, तथा दीन से विमुख लोगों में से जो इनका इच्छुक होता है उनके धोखे में जल्दी आ जानेवाली होती हैं, और जो लोग उन्हें आखिरत और उसके कामों की ओर बुलाते हैं उनके आमंत्रण को बहुत मुश्किल से स्वीकार करने वाली होती हैं।’’





‘‘उमदतुलक़ारी‘‘  (15/152) से समाप्त हुआ।





तीसरा :





प्रश्न करने वाली महिला ने जो इस बात की ओर संकेत किया है कि पुरूष लोग जंग की आग भड़काकर, हत्या और अत्याचार के द्वारा इससे अधिकतर चीज़ें करते हैं ?





तो उसके बारे में कहा जायेगा कि :





इसमें कोई सन्देह नहीं कि जो पुरूष ऐसा करते हैं वे सज़ा के अधिकारी हैं, और अत्याचार, हत्या को हराम ठहराने वाली और उस पर सख्त धमकी देने वाली बहुत सारी शरीअत की दलीलें वर्णित हैं।





लेकिन : इसका उस चीज़ से क्या संबंध है जो औरतों के बारे में उललेख किया गया है ?





और यह बात किसने कही है कि जो औरतें ऊपर इंगित चीज़ों में पड़ती हैं उनका अपराध, हत्या और अत्याचार इत्यादि के अपराध से अघिक सख्त है ?





और यह किसने कहा है कि : इस तरह के लोगों का बदला अल्लाह के यहाँ औरतों के बदले से हल्का होगा ?  और यह किसने कहा है कि : इसी हदीस के अंदर पूरा दीन है, और इसी के अंदर शरीअत की मना की हुई सभी चीज़ों से सावधान करने का वर्णन है ?





लेकिन जो बात स्पष्ट और प्रत्यक्ष होती है, हालांकि अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है : वह यह है कि पुरूषों में से जो लोग इन कामों को करते हैं, वे उपर्युक्त महिलाओं के काम में पड़ने वालों से कम हैं हैं। इसीलिए - और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है - इन अपराधों के कारण जो औरतें नरक में जायेंगी उनकी संख्या उन पुरूषों से अधिक होगी जो उल्लिखित अपराधों के कारण नरक में प्रवेश करेंगे। भले ही ये अंतिम अपराध : हत्या, अत्याचार . . . पहले अपराध से अधिक घृणित और सख्त सज़ा वाले हैं। किंतु यहां पर ‘‘अधिकता’’ के बारे में बात हो रही है, ‘‘अधिक सख्त’’ और ‘‘कठोर’’’ होने के बारे में बात नहीं हो रही है।





बहरहाल, वईद की - अर्थात सज़ा की धमकी पर आधारित – हदीसें : ग़ैब – अनदेखी और प्रोक्ष - की बातों में से हैं, जिनमें बुद्धि का कोई हस्तक्षेप नहीं है, बल्कि इनके संबंध में शरीअत के अंदर वर्णित बातों के प्रति समर्पण का रास्ता अपनाया जायेगा।





अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या (21457), (111867) के उत्तर देखें।





और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।





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