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मैं मुसलमान हूँ


लेखक:


डॉ. मुहम्मद बिन इिराहीम अल-हमद


मैं मुसलमान ह ूँ


लेखक:


डॉ. मुहम्मद बिन इिराहीम अल-हमद





मैं मुसलमान हूँ


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मैं मुसलमान ह ूँ1


मैं मुसलमान ह ूँ, इसका अर्थ यह है बक मेरा धमथ इस्लाम है। इस्लाम एक महान और पबित्र शब्द है, जो शुरू से अंत तक अंबिया - अलैबहमुस्सलाम - को एक-दूसरे से बिरासत में बमला है। यह शब्द अपने अंदर ऊूँचे अर्ों और महान मूल्यों को रखता है। इसका अर्थ सृबिकताथ के प्रबत समपथण, फ़माांिरदारी और आज्ञाकाररता है। तर्ा इसका मतलि व्यबि और समूह के बलए शांबत, सलामती, खुशहाली, सुरक्षा और आराम है। यही कारण है बक ''सलाम'' और ''इस्लाम'' के शब्द इस्लामी शरीयत में सिसे अबधक इस्तेमाल बकए जाने िाले शब्दों में से हैं। ''सलाम'' अल्लाह के नामों में से एक नाम है। और मुसलमानों का आपस में अबििादन 'सलाम' है, तर्ा जन्नत िालों का अबििादन िी 'सलाम' है। सच्चा मुसलमान िह है बजसकी जुिान और हार् से दूसरे मुसलमान सुरबक्षत रहें। इस्लाम सिी लोगों के बलए िलाई का धमथ है; अतः उसमें सिको समाबहत करने की क्षमता है, तर्ा िह दुबनया और आबखरत में उनकी खुशहाली का मागथ है। इसी कारण यह एक व्यापक, बिस्तृत, स्पि और अंबतम धमथ िनकर आया है, जो हर एक के बलए खुला हुआ है। िह िंश या रंग के आधार पर िेदिाि नहीं करता है, िबल्क लोगों को एक नजर से देखता है। इस्लाम में कोई िी प्रबतबित नहीं है, परंतु केिल उसी मात्रा में बजतना िह उसकी बशक्षाओं का पालन करता है। इसी बलए सिी शुद्ध िुबद्ध िाले लोग इसे स्िीकार करते हैं, क्योंबक यह सहज मानि प्रकृबत के अनुकूल है। हर इनसान अच्छाई, न्याय और स्ितंत्रता के स्ििाि पर पैदा होता है, अपने रि से प्यार करने िाला होता है तर्ा इस िात को स्िीकार करने िाला होता है बक अकेला अल्लाह ही इिादत का हक़दार है, उसके बसिा कोई और नहीं। इस स्ििाि से कोई बिचबलत नहीं होता, बसिाय इसके बक कोई बिचबलत करने िाला कारण हो जो उसे िदल दे। इस धमथ को लोगों के बलए, लोगों के सृबिकताथ, उनके पालनहार और उनके पूज्य ने पसंद बकया है।


मेरा धमथ इस्लाम मुझे बसखाता है बक मैं इस दुबनया में रह ूँगा, और अपनी मृत्यु के िाद मैं एक दूसरे घर में जाऊूँगा, जो सदैि रहने का घर है, बजसमें लोगों का अंजाम या तो जन्नत होगा या जहन्नम।


1 ये शब्द इस्लाम का पररचय देने के बलए बलखे गए हैं।





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मेरा धमथ इस्लाम मुझे कुछ चीजों के करने का आदेश देता है और कुछ चीजों को करने से मना करता है। यबद मैं उन आदेशों का पालन करूूँ और उन बनषेधों से दूर रह ूँ, तो मुझे दुबनया और आबखरत में सौिाग्य प्राप्त होगा। और यबद मैं उनमें कमी करता ह ूँ, तो अपनी कमी और लापरिाही के समान मुझे दुबनया और आबखरत में दुिाथग्य का सामना होगा। इस्लाम ने मुझे जो सिसे िडा आदेश बदया है, िह अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरिाद) है। अतः मैं गिाही देता ह ूँ और दृढ़ बिश्वास रखता ह ूँ बक अल्लाह मेरा सृबिकताथ और मेरा पूज्य है। मैं केिल अल्लाह की उपासना करता ह ूँ; उसके प्रबत प्रेम के कारण, उसके दंड के िय से, उसके प्रबतफल की आशा में और उसपर िरोसा करते हुए। इस तौहीद (एकेश्वरिाद) का प्रदशथन अल्लाह के बलए अकेला होने की गिाही देने और उसके निी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबह ि सल्लम के बलए संदेशिाहक होने की गिाही देने के द्वारा होता है। मुहम्मद - सल्लल्लाहु अलैबह ि सल्लम - अंबतम निी हैं; अल्लाह ने उन्हें सारे संसारों के बलए दया िनाकर िेजा है, और उनपर ईशदूतत्ि तर्ा संदेशों का बसलबसला समाप्त कर बदया है। अतः उनके िाद कोई निी नहीं है। िह एक सिथव्यापक धमथ लेकर आए जो हर समय, स्र्ान और समुदाय के बलए उपयुि है।


मेरा धमथ मुझे दृढ़ता से फ़ररश्तों और सिी रसूलों पर ईमान रखने का आदेश देता है, बजनमें से प्रमुख नूह, इिराहीम, मूसा, ईसा और मुहम्मद - अलैबहमुस्सलाम - हैं।


िह मुझे रसूलों पर उतारी गई आकाशीय पुस्तकों पर ईमान रखने, तर्ा उनमें से अंबतम, उनकी समापक और उनमें सिसे महान पुस्तक (क़ुरआन करीम) का पालन करने का आदेश देता है।


मेरा धमथ मुझे आबखरत के बदन पर ईमान रखने का आदेश देता है; बजस बदन लोगों को उनके कायों का प्रबतफल बदया जाएगा। इसी प्रकार िह मुझे तक़दीर (िाग्य) पर ईमान रखने, तर्ा जो कुछ इस जीिन में मेरे बलए अच्छा या िुरा घबित हो, उसपर संतुि रहने, और उद्धार के साधनों को अपनाने के बलए प्रयास करने का आदेश देता है। िाग्य पर ईमान मुझे आराम, संतोष और धैयथ प्रदान करता है, तर्ा जो िीत गया उसपर पछतािा छोड देने को कहता है। क्योंबक मैं बनबित रूप से जानता ह ूँ बक मुझे जो कुछ पहुूँचा है, िह मुझसे चूकने िाला नहीं र्ा, और जो मुझसे चूक गया, िह मुझे पहुूँचने िाला नहीं र्ा। सि कुछ अल्लाह की ओर से पूिथबनधाथररत और बलखा हुआ है, मुझे केिल कारण अपनाना है और उसके िाद जो होता है, उससे संतुि होना है।





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इस्लाम मुझे मेरी आत्मा को शुद्ध करने िाले अच्छे कमों और महान नैबतकताओं का आदेश देता है, जो मेरे पालनहार को प्रसन्न करते हैं, मेरी आत्मा को शुद्ध करते हैं, मेरे बदल को खुश करते हैं, मेरा सीना खोल देते हैं, मेरा मागथ रोशन करते हैं, और मुझे समाज का एक उपयोगी अंग िनाते हैं।


उन कमों में सिसे महान हैं : अल्लाह का एकेश्वरिाद, बदन और रात में पाूँच नमाजें स्र्ाबपत करना, माल की जकात अदा करना, साल में एक महीने का रोजा रखना, जो बक रमजान का महीना है, और मक्का में अल्लाह के पबित्र घर का हज्ज करना, जो हज्ज करने में सक्षम है।


सिसे िडी चीजों में से एक बजसके बलए मेरे धमथ ने मेरा मागथदशथन बकया है, जो सीना खोल देता है, िह क़ुरआन का अबधक से अबधक पढ़ना है, जो बक अल्लाह की िाणी है, जो सिसे सच्चा िचन और सिसे सुंदर, सिसे महान और सिसे शानदार िात है। बजसमें अगलों एिं बपछलों के ज्ञान शाबमल हैं। चुनाूँचे उसे पढ़ने या सुनने से बदल को शांबत, सुकून और खुशी बमलती है, िले ही पाठक या सुनने िाला अरिी िाषा न जानता हो या मुसलमान न हो। सीने को खोलने िाली सिसे िडी चीजों में से एक अल्लाह से अबधक से अबधक दुआ करना, उसका सहारा लेना तर्ा हर छोिी-िडी चीज का उससे सिाल करना है। अल्लाह उसे उत्तर देता है जो उसे पुकारता है और इिादत को उसी के बलए बिबशि करता है।


तर्ा सीने को खोलने िाली सिसे िडी चीजों में से एक अल्लाह का िहुत ज़्यादा बजक्र करना है।


मेरे पैगंिर - सल्लल्लाहु अलैबह ि सल्लम - ने मुझे अल्लाह का बजक्र करने का तरीक़ा िताया है और मुझे अल्लाह को याद करने का सिसे अच्छा बजक्र (जाप) बसखाया है। उन्हीं में से : िे चार कबलमे (िाक्य) हैं जो क़ुरआन के िाद सिसे िेहतर कलाम हैं, िे यह हैं : ''सुब्हानल्लाह, िल-हम्दु बलल्लाह, ि ला इलाहा इल्लल्लाह, िल्लाहु अक्िर''।


इसी तरह ''अस्तग़बफ़रुल्लाह, ि-ला हौला ि-ला क़ुव्िता इल्ला बिल्लाह''।


इन शब्दों का सीने को खोलने और बदल में शांबत उतरने पर अजीि प्रिाि है।





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इस्लाम मुझे उच्च पद पर आसीन होने तर्ा उससे दूर रहने का आदेश देता है, जो मेरी मानिता और मेरी गररमा को प्रिाबित करता है। और यह बक मैं अपनी िुबद्ध और शारीररक अंगों का उपयोग अपने धमथ और सांसाररक जीिन में लािकारी काम में करूूँ, बजसके बलए मुझे पैदा बकया गया है।


इस्लाम मुझे दया, अच्छे बशिाचार, सदवव्यिहार और लोगों के सार् अच्छाई करने का आदेश देता है बजतना मैं अपने िचन और कमथ से कर सकता ह ूँ।


सृबि के अबधकारों में से सिसे िडा अबधकार बजसका मुझे आदेश बदया गया है, िह माता-बपता का अबधकार है; मेरा धमथ मुझे आदेश देता है बक मैं उन दोनों के सार् िलाई से पेश आऊूँ, उनके बलए िलाई को पसंद करूूँ, उन्हें खुश रखने के बलए प्रयास करूूँ और उन्हें लाि पहुूँचाऊूँ; बिशेष रूप से िुढ़ापे की अिस्र्ा में। इसी कारण, आप इस्लामी समाजों में माता और बपता को उनके िच्चों द्वारा समादर, सम्मान और सेिा की उच्च बस्र्बत पर देखते हैं। माूँ-िाप बजतने िूढ़े होते जाते हैं, या उनको कोई िीमारी या अक्षमता आ घेरती है, उतना ही उनके सार् िच्चों का सम्मान िढ़ जाता है। मेरे धमथ ने मुझे बसखाया है बक मबहलाओं को उच्च सम्मान और महान अबधकार प्राप्त हैं। इस्लाम में मबहलाएूँ पुरुषों के समान हैं, तर्ा लोगों में सिसे अच्छा िह है जो अपने पररिार के बलए सिसे अच्छा है। मुसलमान मबहला को उसके िचपन में स्तनपान, देखिाल और अच्छे पालन-पोषण का अबधकार है। जिबक उस समय िह अपने माता-बपता और िाइयों के बलए आूँखों की ठंडक और बदलों का प्यार होती है। और जि िह िडी हो जाती है, तो िह आदरणीय ि सम्माबनत होती है, उसका अबििािक उसके गौरि ि सम्मान की रक्षा करता है और उसे अपनी देखिाल के घेरे में रखता है। िह (अबििािक) इस िात को स्िीकार नहीं करता बक उसकी ओर दुि हार् िढ़ें, कोई जुिान से उसे कि पहुूँचाए या उसकी ओर छल-कपि की आूँखें उठें। जि उसकी शादी होती है तो यह अल्लाह के कबलमा और उसके दृढ़ िचन के सार् होती है। चुनाूँचे िह पबत के घर में सिसे सम्माननीय स्र्ान में होती है। उसके पबत का यह कतथव्य है बक उसका सम्मान करे, उसके सार् अच्छा व्यिहार करे और उसे कि पहुूँचाने से िचे।


अगर िह एक माूँ है, तो उसके सार् सदवव्यिहार करना अल्लाह तआला के अबधकार के सार् जुडा हुआ है, तर्ा उसकी अिज्ञा करना और उसके सार् दुव्यथिहार करना अल्लाह के सार् बशकथ और धरती पर बिगाड के सार् जुडा हुआ है।





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यबद िह एक िहन है, तो मुसलमान को उसके सार् संिंध िनाए रखने, उसका सम्मान करने तर्ा उसके गौरि एिं सम्मान की रक्षा करने का आदेश बदया गया है। यबद िह मौसी (खाला) है, तो िह सदवव्यिहार करने एिं संिंध िनाए रखने में माूँ के समान बस्र्बत में होती है।


यबद िह दादी है, या एक िुजुगथ मबहला है, तो उसके िच्चों, पोते-पोबतयों और उसके सिी ररश्तेदारों के बनकि उसका मूल्य (महत्ि) िढ़ जाता है; उसके अनुरोध को शायद ही अस्िीकार बकया जाता है, और उसकी राय को तुच्छ नहीं माना जाता है।


अगर िह इनसान से दूर है, उसके सार् बकसी ररश्तेदारी या पडोस का संिंध नहीं है, तो उसे इस्लाम का सामान्य अबधकार प्राप्त है बक उसे कि पहुूँचाने से िचा जाए और उससे अपनी बनगाहें नीची रखी जाएूँ, इत्याबद।


मुबस्लम समाज बनरंतर इन अबधकारों का पूरी तरह ख़्याल रखता है, बजससे मबहलाओं को एक मूल्यिान एिं महत्िपूणथ स्र्ान प्राप्त हुआ है, जो उन्हें गैर-मुबस्लम समाजों में प्राप्त नहीं है।


इसके अलािा, इस्लाम में मबहलाओं को संपबत्त रखने, बकराए पर देने, िेचने, खरीदने और अन्य सिी अनुिंधों का अबधकार है, तर्ा उन्हें सीखने, बसखाने और ऐसा काम करने का अबधकार है, जो उनके धमथ के बिरुद्ध न हो। िबल्क कुछ ज्ञान ऐसा है बजसे प्राप्त करना प्रत्येक व्यबि पर फ़जथ है, बजसको छोडने िाला गुनहगार होता है, चाहे िह पुरुष हो या मबहला।


िबल्क मबहलाओं के बलए िही अबधकार और प्रािधान हैं जो पुरूषों के बलए हैं, बसिाय उसके जो पुरूषों के िजाय मबहलाओं के बलए बिबशि है, अर्िा मबहलाओं के िजाय पुरुषों के बलए बिबशि है, जो उनमें से प्रत्येक के बलए उपयुि हैं, जैसा बक उनके स्र्ानों में बिस्तार के सार् िबणथत है।


मेरा धमथ मुझे अपने िाइयों, िहनों, चाचाओं, फूबफयों, मामाओं, मौबसयों और अपने सिी ररश्तेदारों से प्यार करने का आदेश देता है, सार् ही िह मुझे अपनी पत्नी, िच्चों और पडोबसयों के अबधकारों को पूरा करने का आदेश देता है।





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मेरा धमथ मुझे ज्ञान प्राप्त करने का आदेश देता है, तर्ा मुझसे िह सि कुछ करने का आग्रह करता है जो मेरी िुबद्ध, नैबतकता और सोच को ऊपर उठाता है।


िह मुझे हया (लज्जा), सबहष्णुता, उदारता, साहस, बहकमत, संयम, धैयथ, ईमानदारी, नम्रता, शुद्धता, पबित्रता, िफादारी, लोगों के बलए अच्छाई चाहने, जीबिका कमाने का प्रयास करने, जरूरतमंदों पर दया करने, िीमारों की देखिाल करने, िादा पूरा करने, अच्छी िात करने, लोगों से खुशी से बमलने और बजतना हो सके उन्हें खुश करने के लालाबयत होने का आदेश देता है।


दूसरी ओर, िह मुझे अज्ञानता से सािधान करता है, तर्ा मुझे कुफ़्र (अबिश्वास), नाबस्तकता, अिज्ञा, अनैबतकता, व्यबिचार, बिकृबत, अहंकार, ईष्याथ, द्वेष, िदगुमानी, बनराशािाद, उदासी, झूठ, बनराशा, कंजूसी, आलस्य, कायरता, िेरोजगारी, क्रोध, तैश (आक्रोश), मूखथता, लोगों का अपमान करने, बिना लाि के िहुत अबधक िोलने, रहस्य प्रकि करने, बिश्वासघात करने, िादा तोडने, माता-बपता की अिज्ञा करने, ररश्तेदारी के संिंध तोडने, िच्चों की उपेक्षा करने, अपने पडोसी तर्ा सामान्य रूप से लोगों को नुकसान पहुूँचाने से रोकता है।


इस्लाम मुझे नशीले पदार्थ पीने, नशीली दिाओं का उपयोग करने, पैसे के सार् जुआ खेलने, चोरी, धोखाधडी, धोखा, लोगों को डराने, उनकी जासूसी करने और उनके दोषों को ढ़ ूँढ़ने से िी मना करता है।


मेरा धमथ इस्लाम धन की रक्षा करता है, और इसमें शांबत और सुरक्षा का प्रचार है; इसीबलए उसने ईमानदारी का आग्रह बकया है, ईमानदारी िाले लोगों की प्रशंसा की है और उनसे अच्छे जीिन और आबखरत में जन्नत प्रदान करने का िादा बकया है। तर्ा चोरी को हराम बकया है और उसके करने िालों को दुबनया ि आबखरत में यातना की धमकी दी है।


मेरा धमथ जानों की रक्षा करता है। इसी कारण, बिना बकसी अबधकार के बकसी की हत्या करना, तर्ा दूसरों पर बकसी िी प्रकार की ज़्यादती करना हराम ठहराया है, चाहे िह मौबखक रूप से ही क्यों न हो।





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िबल्क यह िी हराम बकया है बक इनसान अपने आप पर ज़्यादती करे; उसने बकसी इनसान को अपनी िुबद्ध को भ्रि करने, या अपने स्िास््य को नि करने, या खुद की हत्या करने की अनुमबत नहीं दी है।


मेरा धमथ इस्लाम स्ितंत्रता की गारंिी देता है और उसे बनयंबत्रत करता है। इस्लाम में, इनसान सोचने-बिचारने, खरीदने, िेचने, व्यापार करने और कहीं िी आने-जाने के बलए स्ितंत्र है, तर्ा उसे जीिन की अच्छी चीजों का आनंद लेने की स्ितंत्रता प्राप्त है, चाहे िह खाई जाने िाली चीज हो, या पी जाने िाली, या पहनी जाने िाली या सुनी जाने िाली चीज, जि तक बक िह कोई बनबषद्ध (हराम) कायथ न करे, जो उसे या दूसरे को नुक़सान पहुूँचाता हो।


मेरा धमथ स्ितंत्रता को बनयंबत्रत करता है; अतः िह बकसी को दूसरे पर अत्याचार करने की अनुमबत नहीं देता है, न ही बकसी व्यबि को अपने बनबषद्ध सुखों को अपनाने की छूि देता है, जो उसके धन, उसकी खुशी और उसकी मानिता को नि कर देते हैं।


यबद आप उन लोगों को देखें बजन्होंने अपने आपको हर चीज में स्ितंत्रता दे रखी है और जो िी उनके मन की इच्छा होती है उसकी पूबतथ में कसर नहीं छोडते, िग़ैर इसके बक उन्हें कोई धमथ या िुबद्ध रोके - तो आप देखेंगे बक िे दुख और संकि के बनम्नतम स्तरों में जी रहे हैं, तर्ा आप देखेंगे बक उनमें से कुछ बचंता से छुिकारा पाने के बलए आत्महत्या करना चाहते हैं।


मेरा धमथ मुझे खाने, पीने, सोने और लोगों से िात करने के िेहतरीन बशिाचार बसखाता है।


मेरा धमथ मुझे खरीदने और िेचने और अबधकारों को माूँगने में सहनशीलता बसखाता है। मेरा धमथ मुझे अन्य धमों के लोगों के सार् सबहष्णुता की बशक्षा देता है; अतः मैं उनके सार् अन्याय नहीं करता, न ही मैं उनके सार् िुरा करता ह ूँ। िबल्क मैं उनका िला करता ह ूँ तर्ा उन तक अच्छाई पहुूँचने की कामना करता ह ूँ। मुसलमानों का इबतहास बिरोबधयों के प्रबत उनकी सबहष्णुता का गिाह है, ऐसी सबहष्णुता बजसे उनसे पहले कोई समुदाय नहीं जानता र्ा। मुसलमान बिबिन्न धमों के समुदायों (देशों) में रहे हैं और िे मुसलमानों के प्रिुत्ि में आए हैं; तो मुसलमानों ने - सिके सार् - मनुष्यों के िीच होने िाला सिसे अच्छा व्यिहार बकया। संक्षेप में, इस्लाम ने मुझे सूक्ष्म बशिाचार, सुंदर





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व्यिहार और उत्तम नैबतकता बसखाया है, जो मेरे जीिन को आनंदमय िनाता है और मेरी खुशी को पूरा करता है। और उसने मुझे हर उस चीज से मना बकया है जो मेरे जीिन को मबलन करती है और जो सामाबजक ढाूँचा, या आत्मा, या िुबद्ध, या धन, या सम्मान, या इज़्जत को हाबन पहुूँचाती है। उन बशक्षाओं को अपनाने के अनुसार मेरी खुशी में िृबद्ध होती है। तर्ा उन (बशक्षाओं) में से कुछ में िी मेरी कमी और लापरिाही के अनुसार, मेरी खुशी उतनी ही कम हो जाती है, बजतनी मैंने उन बशक्षाओं में कमी की है।


उपयुथि िातों का मतलि यह नहीं है बक मैं बनदोष ह ूँ, मैं गलबतयाूँ नहीं करता और न ही मुझसे कोताही होती है; िबल्क मुझसे गलती, कमी और लापरिाही होती है। लेबकन मेरा धमथ मेरे मानि स्ििाि तर्ा किी-किी कमजोरी को ध्यान में रखता है; इसी कारण उसने मेरे बलए तौिा करने, क्षमा माूँगने और अल्लाह की ओर लौिने का दरिाजा खोल रखा है। तौिा मेरी कबमयों के प्रिाि को बमिा देता है, और मेरे पालनहार के बनकि मेरे स्र्ान को ऊूँचा कर देता है।


इस्लामी धमथ की सिी बशक्षाएूँ- आस्र्ा, नैबतकता, बशिाचार और लेन-देन का स्रोत क़ुरआन करीम एिं पबित्र सुन्नत है।


अंत में, मैं दृढ़ता से कहता ह ूँ : यबद कोई व्यबि, दुबनया में कहीं िी, इस्लाम धमथ की सच्चाई को न्याय और बनष्पक्षता की आूँखों से जान ले, तो िह इस्लाम को गले लगाए बिना नहीं रह पाएगा। लेबकन बिपदा यह है बक दुष्प्रचार तर्ा इस्लाम का पालन न करने िाले उसके कुछ अनुयाबययों की हरकतें इस्लाम धमथ को बिकृत और िदनाम करती रहती हैं।


यबद कोई उसकी िास्तबिकता को िैसे ही देखे जैसा बक िास्ति में िह है, या सही रूप में उसका पालन करने िालों की बस्र्बतयों को देखे, तो िह इसे स्िीकार करने और इसमें प्रिेश करने में संकोच नहीं करेगा। तर्ा उसके बलए यह स्पि हो जाएगा बक इस्लाम मानि जाबत के सौिाग्य, शांबत और सुरक्षा की स्र्ापना तर्ा न्याय और परोपकार को िढ़ािा देने का आह्वान करता है। जहाूँ तक इस्लाम के कुछ अनुयाबययों की पर्भ्रिता की िात है - चाहे िे कम हों या अबधक - तो बकसी िी पररबस्र्बत में धमथ पर दोषारोपण करना या इसके बलए दोषी ठहराया जाना जायज नहीं है। िबल्क िह इससे िरी (बनदोष) है। तर्ा पर्भ्रिता का पररणाम स्ियं पर्भ्रिों पर लौिता है; क्योंबक इस्लाम ने





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उन्हें ऐसा करने का आदेश नहीं बदया र्ा; िबल्क उसने उन्हें इससे रोका और मना बकया र्ा। बफर न्याय का तक़ाजा यह है बक उन लोगों की बस्र्बत को देखा जाए, जो िास्तबिक रूप से धमथ का पालन करने िाले हैं और और जो लोग इसके आदेशों और बनयमों को स्ियं पर और दूसरों पर लागू करने िाले हैं; क्योंबक यह इस धमथ और इसके अनुयाबययों के प्रबत बदलों को श्रद्धा और सम्मान से िर देगा। इस्लाम ने मागथदशथन और अनुशासन की बकसी छोिी या िडी िात को उसपर प्रोत्साबहत बकए बिना, तर्ा बकसी िुराई या भ्रिाचार को उससे सािधान बकए बिना और उसके रास्ते से रोके बिना नहीं छोडा है।


इस तरह, उसका मबहमामंडन करने िाले और उसके कमथकांडों का पालन करने िाले, सिसे सौिाग्यशाली लोग होते हैं, तर्ा िे आत्म-अनुशासन, अपने आपको अच्छे चररत्र और महान नैबतकता के गुणों पर प्रबशबक्षत करने के उच्चतम स्तर पर होते हैं, बजसकी उनके बलए बनकि और दूर के लोग तर्ा सहमत और असहमत गिाही देते हैं।


जहाूँ तक केिल उन मुसलमानों की बस्र्बत को देखने की िात है, जो अपने धमथ में लापरिाही करने िाले, उसके सीधे रास्ते से ििकने िाले हैं- तो यह बकसी िी तरह न्यायोबचत नहीं है, िबल्क यह अन्याय मात्र है।


अंत में, यह हर उस व्यबि के बलए एक बनमंत्रण है जो मुसलमान नहीं है बक िह इस्लाम को जानने और उसमें प्रिेश करने का इच्छुक िने।


और जो कोई इस्लाम में प्रिेश करना चाहता है, उसे केिल इस िात की गिाही देनी है बक अल्लाह के अलािा कोई सत्य पूज्य नहीं और मुहम्मद - सल्लल्लाहु अलैबह ि सल्लम - अल्लाह के रसूल हैं। बफर िह धमथ की उन िातों को सीखेगा बजनके द्वारा िह उसे अंजाम दे सके जो अल्लाह ने उसपर अबनिायथ बकया है। बजतना अबधक िह सीखेगा और कायथ करेगा, उसकी खुशी उतनी ही अबधक होगी और अपने पालनहार के पास उसका पद उतना ही ऊूँचा होगा।





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