सामग्री

ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द





حوار هادئ بين هندوسي ومسلم





Page 5


प्रलत वन


स री प्रशिंस परमेश्वर के स्िए ै, आक श और पृथ्वी के स्नम ित , अिंिक र और प्रक श बन ने व ि , मैं गव ी देत हूूँ कक अल्ि के अि व कोई परमेश्वर न ीं, व अकेि ै उसक कोई स थी न ीं, मैं गव ी देत हूूँ कक मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम उसके बन्दे और रसूि ैं, े अल्ि , स रे नबीयों और रूसूि के अिंस्तम ़िरत मु म्मद सल्िल्ि हु अिैस् वसल्िम पर बरकत न स़्िि फरम और बरकत न स़्िि फरम उनकी पस्ियों पर, उनके प क घर व िों पर उनके स स्थयों पर और बरकत न स़्िि फरम उनिोगों पर स्जन् ोंने उनकी म गिदशिन से स् द यत प ई और कय मत के कदन तक उनकी सुन्नतों पर क यम र ें !


शुद्ध वृस्त्त, शुद्ध आत्म और स म न्य कदम ग से इलि म की स्शक्ष और सिंदेश पर स्वच र करनेव ि इलि म के सिंदेश को लवीक र करने में पूरी तर अनुकूस्ित ो ज त ै ! य एक स् न्दू द्व र ककये गए प्रश्नों और मुस्लिम द्व र कदए गए इलि म क त र्किक उत्तर से लपि ो ज त ै प्रलतुत ै स्नम्नस्िस्खत ह िंदू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द:


*******


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page 6


(प्रश्न1): स् न्दू : पस्िमी मीस्िय स्जस तर इलि म और मुसिम नो को अस्तव द और आतिंकव द से जोड र ै उस पर आपकी क्य रिप्पणी ै?


(उत्तर1): मुस्लिम: इलि म ककसी भी रूप के अस्तव द और आतिंकव द से बहुत दूर ै यकद कोई व्यस्ि इलि म की स नशीि स्शक्ष ओं के स्वपरीत कोई क म करत ै यद्यस्प व अपन सिंबिंिन इलि म से ी क्यों न जोडत ो इलि म इस से बरी ै और आप को ज नने के स्िए इतन ी क फी ै कक शब्द "इलि म" क अथि ी श िंस्त सुरक्ष और सुकून ैं!


ज्ञ त ो कक शब्द (इलि म) क स्रोत(सस्िम) ै और शब्द (सि म)क स्रोत भी(सस्िम) ै स्जसक अथि ै: श िंस्त सुरक्ष और सुकून!इलि म श िंस्त क िमि ै जो सभी के स्िए प्रकि हुआ ै और सभी को सम योस्जत ै इलि म की छ य में सभी सुख, श िंस्त,सुरक्ष अन्य य और अत्य च र के अभ व क आनिंद िे र े ैं!


अल्ि सविशस्िम न फरम त ै:





" स्जसने कोई ज न क़त्ि की बग़ैर ज न के बदिे य ़िमीन में फ़स द ककये तो जैसे उसने सब िोगों को क़त्ि ककय "! [सूरत -अिम इद :32]


इलि म में मनुष्य मनोवैज्ञ स्नक श िंस्त अनुभव करत ै जो कक असिी और व लतस्वक श िंस्त ै इस में मनुष्य अल्ि सविशस्िम न पर हुस्न ऐतक़ द और ईम न से सुरस्क्षत ो ज त ै अल्ि पर ईम न से मनुष्य लवयिं को आश्वलत म सूस करत ै उसक हृदय श िंत ो ज त ै, इलि म क उच्चतम सन्देश, म न अनुदेश और श्रेष्ठ स्शक्षण से उसक तन मन श िंत र त ै!


*******


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page 7


(प्रश्न2): स् न्दू : तो कफर इलि म क मफ़हूम क्य ै


से अल्ि मन और अन्त शरीर कदि अक्ि : मफ़हूम क इलि म :मुस्लिम ):2उत्तर(सविशस्िम न के स मने आत्मसमपिण करन और उसके आदेशों क अनुप िन करन ै!


जब मनुष्य अक्ि और स्वच र क अनुप िन करत ै तो उस ईश्वर के अस्लतत्व पर ईम न िे आत ै स्जस ने उसे बन य ै और व ईश्वर अल्ि सविशस्िम न ै और व उसकी एकत , म न क्षमत और ऊिूस् यत पर ईम न िे आत ै कफर व उसके स थ स्शकि न ीं करत , उसके स थ ककसी को भ गीद र न ीं बन त और उसकी ऊिूस् यत पर उसकी श न के मोत स्बक ईम न िे आत ै उसकी अ़िमत व जि ित पर स्बगैर ककसी अभ व के ईम न िे आत ै !


जब मनुष्य कदि और आत्म क अनुप िन करत ै तो अपने परमेश्वर सविशस्िम न से प्य र करने िगत ै उसकी प्रशिंस ,श्रद्ध और बड ई करने िगत ै !


जब मनुष्य तन क अनुप िन करत ै तो अपने परमेश्वर क आज्ञ क री ो ज त ै और स्नस्िद्ध छोड देत ै !


द स प्र णी क य अनुप िन अपने परमेश्वर अपने स्नम ित सविशस्िम न से प्य र के क रण ै उसकी सिंतुस्ि प्र प्त करने तथ उस लवगि की आश के क रण ै ज ूँ सदैव सुख और अनुग्र ै द स क य अनुप िन अपने परमेश्वर के न र ज ोने के भय तथ नरक की उस आग से बचने की आश में ै ज ूँ सख्त ददिन क अ़ि ब ै!


*******


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page 8


(प्रश्न3): स् न्दू : इलि म ककस ची़ि की स्नमिंत्रण देत ै ?


(उत्तर3): मुस्लिम : इलि म लपि स्सद्ध िंत के स थ आय ै स्जस से मन प्रबुद्ध ो उठ ै स्जस के म गिदशिन और कदश स्नदेश से अपने स्नम ित क लपि ज्ञ न प्र प्त हुआ, इलि म क सन्देश र उस व्यस्ि के स्िये ै जो उसे अपन न च त ै और स्जस से शुद्ध प्रकृस्त,बुस्द्धम न आत्म और स ि रण मन भी स मत ै,जैस की इलि म के सन्देश से लपि ै:


इलि म क सन्देश स्बन ककसी उिझन के शुद्ध स्वश्व स क ै स्जसे समझने और लवीकृस्त में मन को ़िर भी करठन ई न ीं ोती इसे र तकिसिंगत व्यस्ि लवीक र करने में ़िर भी स्झझक म सूस न ीं करत !


इलि म क सन्देश:


-इलि म क सन्देश परमेश्वर के अस्लतत्व (अल्ि सविशस्िम न) और उसकी एकत पर ईम न ि न ै उसे तम म बुर ई ,िर ब स्ववरण,कस्मयों दोिों और व सब कुछ जो की उसक योग्य न ीं ै से प क म नन ै इलि म क सन्देश परमेश्वर के म न गुणों, म न योग्यत और क्षमत पर ईम न ि न ै!


- एस्न्जल्स(फ़ररश्ते)को अल्ि क म न जीव म नते हुए उस पर ईम न ि न अल्ि ने एस्न्जल्स को पैद ककय और उसे आज्ञ क ररत इब दत और अपन आदेश ि गु करने के स्िए मोकरिर ककय ै व कोई गुन न ीं करते,अल्ि ने उन् ें आज्ञ क ररत अथव गुन की लवतिंत्रत न ीं कदय ै इन् ी एस्न्जल्स में से कोई ररस्विेशन(revelation) के स्िए मुकरिर ै अथ ित उन में से स्जसे अल्ि ने आदेशों,प्रस्तबिंिों म गिदशिन और स्शक्ष के क यि मनुष्यों में से अनपे चुने हुए बन्दे(नबी और रसूि)तक पहुच ने के स्िए प्रभ ररत ककय ै वे उसे उन तक पहुिंच ते ैं!


अल्ि तआि अपन सन्देश फररश्तों के ़िररये अिंस्बय और रसूि पर ररस्विेशन (revelation) द्व र न स़्िि फरम त ै त कक नबी और रसूि अल्ि तआि क सन्देश िोगों तक पहुच एिं और उन् ें अल्ि के सन्देश से स्शस्क्षत करें!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page 9


- आसम नी ककत बों पर ईम न ि न , य ककत बें अल्ि ने ़िरत स्जब्र ईि अिैस् लसि म (जो ररस्विेशन के स्िए ख स ैं) के ़िररये अपने रसूिों पे न स़्िि फ़रम य ै य ककत बें मनुष्य के स्िए आदेशों, प्रस्तबिंिों म गिदशिन और स्शक्ष पर स्नि िररत ैं!


-परमेश्वर के नस्बयों और दूतों पे ईम न ि न और इनकी इज़़्ित करन , नस्ब और दूत वे ोते ैं स्जसे सृस्ि (मनुष्यों) में से ी ईश्वर सविशस्िम न चुन िेत ै त कक वे परमेश्वर क सन्देश मनुष्य तक पहुच एिं, िोगों को उनके स्नम ित उनके परमेश्वर से पररचय कर एिं उसके एक ईश्वर ोने पे ईम न ि ने की द वत दें परमेश्वर के स्नदेशन अनुस र इब दत क तरीक़ बत एिं (जो कक उसकी स् कमत और मस्शय्यत से खिी न ीं ै)त कक मनुष्य अपने क य िन्वयन के म ध्यम से उनउपदेशों और आदेशों क प िन करें !


- आस्िरत के कदन पर ईम न ि न , य व कदन ै स्जस कदन सविशस्िम न ईश्वर द्व र िोगों को उनकी मृत्यु के ब द कफर से दोब र ह़ििंद ककय ज एग और उनसे दुस्नय में उनक ईम न उनके क म-क ज क स् स ब स्िय ज एग तो स्जस ने अस्त म त्र में भी अच्छ क म ककय ोग व उसक बदि और सव ब प एग और स्जस ने अस्त म त्र में भी बुर ई ककय ोग तो व उसके स्िए आयोस्जत जव बदे ोग और उसक आत्मस्नरीक्षण ककय ज एग ।


- अच्छी बुरी तक़दीर पे ईम न, इसक मतिब य ै की : इस दुस्नय िं में जो कुछ भी ोत ै य ो र ै और म नव के स थ जो भी अच्छ य बुर ोत ै (आस नी य तिंगी, अमीरी ग़रीबी से त और बीम री) य सब प िे से अल्ि की ओर जे स्िख ज चूक ै (सविशस्िम न के स् कमत और उसकी इच्छ अनुस र) और उसके ब रे में सविशस्िम न को पूरी ज नक री ै और व अस्िक ज नने व ि और अस्िक स्वशेिज्ञ ै!


-म गिदशिक पूज जीस से म नव म नस पस्वत्र ो ज त ै, दोि बुर इयों और खर ब नैस्तकत से प क स फ ो ज त ै नैस्तकत और ए स न के आि मतिबे पे फ़ इ़ि ो ज त ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


10


- अच्छे मुआमि त प्रशिंसनीय क नून और उच्च स्शक्ष , त कक सिंपूणि म नव जीवन न्य य ईम नद री और सीिे तरीके से चिे!


- स्शक्ष स्वज्ञ न और जीवन के सभी क्षेत्रों में म नव ज स्त की प्रगस्त एविं उन्नस्त!


- अच्छ ई और नेकी करन एविं बुर ई से बचन !


- न्य य इ स न रररश्तेद रों के स थ अच्छ बत िव करन और अन्य य अनैस्तकत अभद्रत और बुर ई से बचन !


- मनुष्य क सम्म न और उसकी जीवन क सिंरक्षण करन


- जीवन के सभी चरणों में न री क सम्म न करन , जन्म और बचपन से िेकर(छोिी बच्ची से िेकर बडी ोकर दुल् न बन ज ने तक) (श दी की अवलथ से गु़िरते हुए एक पिी के रूप में) और म िं बनने की अवलथ से गु़िरते हुए (म िं और द दी के रूप में) द दी के अवलथ तक!


- बच्चों के प्रजनन क ए तम म और उनके स थ करुण और दय करन


- युव व्यवलथ पे ध्य न


- दूसरे प्र स्णयों के स थ दय करन (पशु,पक्षी,पेड, पौि इत्य कद,,,)


- दूसरे िमों के म नने व िों के स थ बुस्द्ध और अच्छी सि क उपयोग करते हुए म नस्सक और त र्किक सिंव द करन त कक वे एक सविशस्िम न परमेश्वर पे ईम न ि एूँ जो सब क स्नम ित ै और उसके स थ स्शकि न करें!


- गैर- मुस्लिम के स थ अच्छ व्यव र


- एकरूपत , एकजुित , समरसत , आपसी स्ने और आपसी करुण अपन न


- युद्ध में क्षम , मुसिम नों क अपने दुश्मनों के स्खि फ युद्ध य तो दुश्मनों पर आक्र मकत के क रण य अपने िमि (इलि म) की रक्ष की वज से थी और इलि म की तबिीग की रक्ष के क रण इलि म की छस्व को स्वकृत और उसकी व लतस्वकत को स्बग डने व िो के स्वरुद्ध थी और उसके स्वरुद्ध थी जो इलि म की स्नमिंत्रण और सविशस्िम न परमेश्वर के सिंदेश उसकी स्शक्ष एविं पररचय को जनत तक पहुच ने से


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


11


रोकत ै परन्तु इलि म ने मुसिम नों को युद्धों में र जद्रो और स्वश्व सघ त से मन ककय ै बच्चों, मस् ि ओं, स्वकि िंग और बुजुगि (गैर-योद्ध ओं) की त्य से मन ककय ै और आत्मसमपिण करने व िों, स्न थ्थों (जो मुसिम नों से न ीं िडते) की त्य से मन ककय ै! घरों को तोडफोड करने, पेड क िने, श री स्वध्विंस और िरती पे ककसी भी रूप के भ्रि च र से मन ककय ै ! इलि म दय और क्षम पर आि ररत िमि ै िड ई में म नवीय व्यव र और िेनदेन में न्य य पर आि ररत ै!


- युद्ध के कैकदयों के स थ अच्छे म मि करन !


- श िंस्त के स्सद्ध न्त और श िंस्त के स िन को अपन न और उग्रव द एविं आतिंकव द से दूर र न ै प्रस्तबद्धत ओं और प्रसिंस्वद एिं को स्नभ न ै!


*******


(प्रश्न4): स् न्दू : इलि म एक ईश्वर में स्वश्व स की द वत क्यों देत ै?


(उत्तर4): मुस्लिम: सबसे प िी ब त य ै कक इलि म िमि मनुष्य को जगत के स्नम ित पर ईम न ि ने के स्िए आमिंस्त्रत करत ै और व स्नम ित (सविशस्िम न ईश्वर) अल्ि ै! स्जस तर प्रत्येक मौजूद वलतु के स्िए उसक बन ने व ि च स् ए प्रत्येक स्नम िण क स्नम ित च स् ए ठीक उसी तर प्रत्येक प्र णी क स्नम ित ोन च स् ए और इसी ब त को स मने रखते हुए अपने ईश्वर एविं स्नम ित के अस्लतत्व में स्वश्व स ोन च स् ए यद्यस्प उसे देख न ीं सकते िेककन अनस्गनत प्रभ व और सबूत उसकी अस्लतत्व के स क्ष्य ै!


उसक उद रण: इिंस न अपनी आत्म को न ीं देखत परिंतु जीवन के अस्लतत्व के क रन उसकी अस्लतत्व में स्वश्व स रखत ै, व अपनी अक़्ि को न ीं देखत िेककन व प्रस्तहबिंब और हचिंतन की क्षमत के क रन उसके अस्लतत्व में स्वश्व स रखत ै, इसी तर आकििण-शस्ि को देख न ीं ज सकत िेककन आकििण की शस्ि के क रन उसकी वजूद पे यकीन रखत ै... आकद!


ठीक इसी तर परमेश्वर सविशस्िम न स्नम ित के अस्लतत्व पर अगणनीय स्नश स्नय िं प्रभ व और सबूत व चक ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


12


- इलि म सविशस्िम न स्नम ित ईश्वर की त ़िीम, उसके म न गुणों ,कम िे स् कमत पूणित इल्म और बहुमुखी प्रस्तभ एविं क्षमत पर ईम न ि ने के स्िए आमिंस्त्रत करत ै!


य स री चीजें बेशक सविशस्िम न अल्ि के एक ोने,ओस्िस् यत में मुनफ़ररद ोने की सन्देश देती ैं !


-बेशक सविशस्िम न अल्ि केवि एक ी ईश्वर ै बेशक सविशस्िम न अल्ि तन् इस दुस्नय के तसरुिफ़ क म स्िक ै और उसके इि व ककसी और को य छमत न ीं ईश्वर केवि एक ै और व केवि सविशस्िम न अल्ि ै!


*******


(प्रश्न5): स् न्दू: क्य प्रम ण ै कक भगव न एक ी परमेश्वर ै (स्नम ित , रक्षक दुस्नय के तसरुिफ़ क म स्िक) दो य तीन य अस्िक परमेश्व क्यों न ीं ?


(उत्तर5): मुस्लिम: इससे प िे कक मैं जव ब दूूँ मैं आप से पूछन च त हूूँ क्य आप ज नते ैं कक ह िंदू श स्त्र केवि एक परमेश्व ोने पर इलि म से स मत ै?


ह िंदु: य कैसे?


मुस्लिम: ह िंदू ग्रिंथों में कई लथ नों पर केवि एक ी ईश्वर क उल्िेख ै उसक कोई दूसर न ीं, ग्रिंथों में उल्िेख ककये गए लथ नों में से कुछ की रेफ्रेंस नीचे ैं,


-(ककत ब :उपस्निद- चिंिोज्ञ/भ ग6 स्िवीज न: 2/ सिंख्य : 1) में सिंलकृत भ ि में क गय ै स्जसक अथि ै कक: बेशक भगवन एक ै उसक कोई दूसर न ीं -( ककत ब :उपस्निद- भ ग 6: सिंख्य : 9) में सिंलकृत भ ि में क गय ै स्जसक अथि ै कक: भगव न के स थ कोई अन्य भगव न न ीं, य नी: उसके कोई म त स्पत न ीं, व सवोच्च ईश्वर ै कोई भी उससे ऊपर न ीं ै!


इस के इि व और भी बहुत स री जग ों पर स् न्दू श स्त्रों में इस ब त क स़्िक्र ै की भगव न ककवि एक ै और अल्ि सविशस्िम न की व द स्नयत पर बेशुम र दिीिें मौजूद ै स्जसमें से कुछ नीचे दजि ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


13


1- प्र कृस्तक प्रम ण: र पैद ोने व ि बच्च कफ़त्रतन अपने पैद करने और बन ने व िे पर ईम न के स थ पैद ोत ै एक अल्ि पर ईम न के स थ पैद ोत ै इसक प्रम ण य ै की आप जब नवज त स्शशु को सचेत और ज गरूक बनने के स्िए उसके आलथ में बगैर ककसी ब री प्रभ व के उसे एकेि छोड दें तो जल्द ी आप इस ब त को म सूस करेंगे कक उसक आलथ व ी ै स्जस पर अल्ि ने उसे पैद ककय ै उसक झुक व अपने पैद करने और बन ने व िे की तरफ ै और कफर य क रक उसे केवि एक ईश्वर पर ईम न ि ने के स्िए उभ रत ै व ईश्वर जो म न बिव न और सभी प्र स्णयों की रचन पर सक्षम ै!


अक्सर म य देखते ैं कक इिंस न (ज गरूक और सचेत) अपनी ़िरुरत और आवश्यकत के समय ईश्वर को य क ते हुए पुक रत ै:


े भगव न, े प्रभु, े सृस्िकत ि (एक भगवन मुर द िेते हुए दो य ज्य द य अन्य न ीं) मुझे म गिदशिन दे - मेर म मि आस न कर - मेरी ़िरुरत पूरी कर- मुझे अकेि मत छोड..., य क ते न ीं स्मिेग ओ मेरे भगव नो, े सृस्िकत िओ, े वे स्जन् ों ने मेरी सृस्लि की (बहुवचन के सिंदभि मे), जो दश ित ै की स्नम ित और स्वि त केवि एक ी परमेश्वर ै और व अल्ि , सविशस्िम न ै ।


2- यकद ककसी व्यस्ि से पूछ ज ए कक: उसको ककसने पैद ककय ककस ने बन य और ककस ने सम्पूणि जीव को पैद ककय और बन य ?


त र्किक उत्तर य ोग कक स्जस ने उसे पैद ककय बन य और स्जस ने सम्पूणि जीव को पैद ककय और बन य अवश्य एक म न शस्िश िी परमेश्वर ै जो अपनी क्षमत क वणिन रचन और स्नम िण द्व र करत ै और अगर इसी प्रश्न को ब र ब र अिग अिग ढिंग से इस प्रक र ककय ज ए: ककसने इस भगव न की रचन की और ककस ने उसे वजूद बख्श और अगर म न स्िय ज ए कक उसक उत्तर इस तर ै: ़िरूर एक और भगव न ै जो अपनी क़ुव्वत और अ़िमत ़ि स् र करत ै तो व इस एक ी तर के अनिंत सव ि के तकर र से परेश न ो ज एग की ककसने इस भगव न की रचन की और ककस ने उसे वजूद बख्श इस प्रक र उत्तर ब र ब र दो र य ज त र ेग और स ी उत्तर तक पहुचन मुस्श्कि ो ज एग इसक क रण य ै जव ब शुरू से ी तकिस्वरय्द्ध और गित थ !


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


14


इस सव ि क स ी जव ब ोग : कक व सविशस्िम न परमेश्वर स्जस ने इस दुस्नय और म नव ज ती को बन य और उसे वजूद में ि य उसे कोई बन ने व ि न ीं ै य िं से य म िूम ोत ै कक केवि एक ईश्वर के इि व कोई और भगव न न ीं से चीजों को अस्लतत्व त् वअनस्लतऔर बहुमुखी प्रस्तभ क वणिन जो अपनी म नत देकर करत ै य ी त र्किक और प्र रूस्पक उत्तर ै और स म न्य ज्ञ न रखने व ि कोई भी व्यस्ि इसक इिंक र न ीं कर सकत !


- और जैस की इससे प िे मैं ने वर्णित ककय की सविशस्िम न ईश्वर केवि एक ै उसके इि व कोई और भगव न न ीं व ी अकेिे इस दुस्नय िं को चित ै उसके इि व कोई इस दुस्नय िं क म स्िक न ीं एक ईश्वर के इि व कोई पूज के ि यक़ न ीं (और व सविशस्िम न ईश्वर अल्ि प क ै)!


3-अगर म न स्िय ज ए की एक से ज्य द ईश्वर ै और प्रत्येक ईश्वर के स्िए लवतिंत्र इच्छ ै, अब उनमें से एक ईश्वर कुछ करन च त ै जबकक दूसर उस क म क स्बिकुि स्वपरीत क म करन च त ै (उद रण के स्िए उन में से एक ककसी वलतु को रकत देन च त ै जबकक दूसर रकत देन न ीं च त ) तो उस वि क्य ोग ?


इस प्रश्न क उत्तर (जो एक कस्ल्पत ि रण क पररण म थ ) तीन सिंभ वन ओं से ब र न ीं ोग जो इस प्रक र ै:


क - य तो दोनों क इर द पूर ोग , जो एक झूठ द व ै क्योंकक य अक़्ि के खेि फ ै जैसे के एक ी समय में स्जलम को स् ि न और न स् ि न सम्भव न ीं


ख - य दोनों अपने इर दे को पूर न ीं कर सकते और य भी एक झूठ द व ै क्योंकक सब कुछ करने की छमत रखने व िे भगव न में अस य ोन प य ज एग जो की असम्भव ै


ग - य तो केवि एक की मुर द पूरी ोगी और दूसरे की न ीं, तो उस समय सच्च परमेश्वर व ोग जो सब कुछ करने की छमत रखत ै


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


15


इस ि रण के पुनर वृस्त्त से य ब त स फ ो ज ती ै कक एक सच्च ईश्वर के इि व कोई और ईश्वर न ीं और व ईश्वर र ची़ि पैद करने व ि और बन ने व ि ै जो इस दुस्नय िं क म स्िक ै और अपन इर द पुरे करने में सक्षम ै


4- अगर एक से अस्िक भगव न ोते तो कभी एक भगव न की दूसरे पे और कभी दूसरे भगव न की प िे पे म नत प्र प्त ोती और इस तर आक श और पृथ्वी नि ो ज ते सिंस र, सिंपूणि म नवत जीवन, जीव एविं पररसिंपस्त्तयों क स्वन श ो ज त


िेककन व लतव में ऐस न ीं ै बस्ल्क इस सिंस र में सिंतुिन और सम नत ै ज्ञ त हुआ की केवि एक ी भगव न ै और व भगव न म न मजबूत सक्षम और सब कुछ क म स्िक ै और व सविशस्िम न अल्ि ै


य उद रण स्जस की मैं ने उल्िेख ककय ै: अगर प्रश सन य र ज्य लथ स्पत करने के स्िए र जीत की िड ई ोती तो प्रत्येक पक्ष प्रश सन और र ज्य स्सि करने के प्रय स में सिंघिि और युद्ध करत (जो त्य , स्वन श और तब ी क सबब ै) और ककसी एक पक्ष क अकेिे श शन में आए स्बन और अपने देश में स्लथरत लथ स्पत ककय स्बन स्लथरत क यम न ीं ो सकती


अच्छ यकद ककसी देश में एक से अस्िक र ष्ट्रपस्त ो तो क्य उस देश में स्लथरत


लथ स्पत ोग ?


स्नस्ित रूप से: न ीं, स्नसिंदे उन के बीच स्वव द उत्पन्न ो ज एग और इसके अस्तररि य की स्वव द के फिलवरूप र ज्य की प्रगस्त रुक ज एगी और र ज्य क


स्न और नुकस न ोग ,


य लपि ै कक दुस्नय के स रे देश इसब त पर स मत ैं की र देश क केवि एक व्यस्ि ी र ष््पस्त ो,ठीक इसी तर जीव और पररसिंपस्त्तयों के इस ब्रह् िंि के स्िए भी य ी ब त ै, बेशक उनक स्नम ित और उन् ें बन ने व ि केवि एक ईश्वर ै और व ईश्वर म न मजबूत सक्षम और सब कुछ क म स्िक ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


16


5-अगर म न स्िय ज ए कक एक गुि म क केवि एक ी व्यस्ि म स्िक ै और व गुि म अपने म स्िक के आज्ञ क प िन करत ै और स्बन ककसी स्वििंब के उसके स्वशेि आदेश और स्नदेशों क क य िन्वयन करत ै, अगर य ग़ुि म एक से अस्िक व्यस्ि के प स बेच कदय ज ए (दो, तीन, य ...) अब व अपने सभी म स्िकों के आदेशों और आज्ञ क प िन करने की कोस्शश करत ै तो क्य उसकी ि त और उसक म मि ठीक ठ क र ेग ?


स्नस्ित रूप से: न ीं। क्योंकक प िी ित में (जब व एक ी व्यस्ि क गुि म थ ) उसक मन स फ़ थ , आर म और सुकून से थ , और अपने म स्िक की सिंतुस्ि से उसकी कृप से आत्म स्वजेत थ िेककन दूसरी ित में(एक से अस्िक व्यस्ि के लव स्मत्व में) खुद को स्चत्तभ्र िंत ,स्वचस्ित और हचिंत शीि म सूस करेग लवयिं को अपने म स्िकों की स मस्त स्सि न कर प ने व ि और उनके प्रस्तक र क दस्डित प एग ककयोंकक अपने म स्िकों के हुक्म में अिंतर और असिंगस्त की वज से ककसी एक के हुक्म म नने और दूसरों के आदेश को नजरअिंद ज करने पर मजबूर ोग और एक क हुक्म म न कर दूसरे क गुन ग र ोग , कफर ककसी और मस्िक के आज्ञ क ररत और आदेश को ि गू करने में दूसरे म स्िकों क उपेक्ष करके गुन ग र ोग और इस तर अिंत में सभों के आज्ञ क उल्ििंघन करने की वज से गुन ग र ोग सभों के गुलसे एविं दिंि क योग्य ोग !


जब बहुत स रे भगव न ोंगें और उनके आदेश परलपर स्वरोिी ोंगें उनके म गिदशिन स्भन्न ोग तो य कमजोर प्र णी सेवक क ूँ ज एग ककस के आदेश क प िन करेग ?


यकद उन में से ककसी एक (देवत ओं में से एक) के आदेश क प िन करेग एक की सिंतुस्ि प्र प्त करेग तो दूसरे य अन्य दूसरे क गुन ग र ोग उनके गुलसे एविं दिंि क योग्य ोग !


य भी इस ब त की पुस्ि करत ै कक स्नसिंदे स्नम ित , वजूद देने व ि शस्िश िी म न कुदरत व ि र ची़ि क म स्िक तन इब दत के ि इक ़िरूरी ै की केवि एक ईश्वर ो और व सविशस्िम न अल्ि ै!


*******


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


17


(प्रश्न6): स् न्दू: इलि म में क्यों बहुदेवव द (एक से अस्िक भगव न क अस्लतत्व) सबसे बड प प ै ?


(उत्तर6):मुस्लिम: इसक क रण स्बल्कुि लपि ै सच्च परमेश्वर अल्ि सविशस्िम न ी ै और उसके इि व स रे झूठे और अशि म बूद परमेश्वर न ीं ैं अन्त थ ककसी ची़ि के ोने और न ोने में स्नम ित और प्र णी में वजूद देने व ि और मौजूद वलतु में क्य अिंतर र ज एग ..., दो असिंगत के बीच पूणि सम नत कभी न ीं ककय ज सकत इसस्िए, एक से अस्िक परमेश्वर क द व , सबसे बड अन्य य और भगव न के अस्िक र क सबसे बड उल्ििंघन ै, परमेश्वर एक ै और व सविशस्िम न अल्ि ै जो न पैद हुआ और न उसकी कोई सिंत न ै व सच्च ईश्वर ै और ईश् वरत् व में अस्द्वतीय ै!


स्नम्न में कदये उद रणों से इसे अस्िक लपि ककय ज सकत ै: में स्वव द सत्त उसकी कोई की करेग लवीक र य र ज य सुल्त न कोई क्य - न ीं।: से रूप स्नस्ित? ै भवसिं य क्य करे


भ गीद री की आदमी और एक में पिी अपनी व्यस्ि) लवलथ सम्म न( कोई क्य - न ीं।: से रूप स्नस्ित? ै सिंभव य क्य करेग लवीक र


- यकद कोई इिंस न अपने अकेि सेव के स्िए कोई नौकर रखत ै अपने नौकर को व उसके समय और मे नत क पेमेंि करत ै क्य व व्यस्ि इस ब त को पसिंद स्नस्ित? ै सिंभव य क्य करे नौकरी की दूसरे ककसी नौकर व उसक कक करेग रूप से: न ीं।


यकद य ि म मि एक म नव प्र णी क ै स्जसे अपने क़में स्वव द लवीक र न ीं तो सविशस्िम न परमेश्वर केब रे में आप क क्य ख्य ि ै जो इस दुस्नय क स्नम ित ै स्जसकी कुदरत में सबकुछ ै जो तन् इस दुस्नय िं को चि त ै! रूप अनुस्चत( कोई की करेग लवीक र य ईश्वर सविशस्िम न ै वसिंभ य क्य से) उसकी हुकूमत में स्वव द करे और उसक प ििनर बने?


स्नस्ित रूप से : न ीं सविशस्िम न परमेश्वर अपने क़ में दूसरों की तुिन में अस्िक सम्म न लवलथ ै!


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


18


जीव पर सब से प ि क़ सविशस्िम न परमेश्वर क ै इसस्िए ़िरूरी ै की स री जीव उसके म बूद और एक ईश्वर ोने क इक़र र करें और ईश्वर की नेमतों क इक़र र करें !


*******


(प्रश्न7): स् न्दू: इलि म में क्यों भगव न क छस्वयों और मूर्तियों के रूप में स्चत्रण स्नस्िद्ध ै?


(उत्तर7): मुस्लिम: उत्तर देने से प िे इस हबिंदु पर भी मैं आप से पूछन च त हूूँ कक क्य आप ज नते ैं कक स् न्दू श स्त्र इस ब त पर इलि म िमि से स मत ै की छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न क स्चत्रण स्नस्िद्ध ै?


स् न्दू: य कैसे ?


मुस्लिम: स् न्दू श स्त्रों में कई लथ नों पर छस्वयों और मूर्तियों के रूप में भगव न के स्चत्रण से रोक गय ै जो स्नम्नस्िस्खत ैं:


ककत ब :उपस्निद- श्वेत श्वत र / भ ग 4/ सिंख्य : 19) में क गय ै स्जसक मतिब ै की: (भगव न क कोई प्रस्तम न ीं ै)


शब्द " प्रस्तम " एक सिंलकृत शब्द ै स्जसक अथि ै : प्रतीक, छस्व, आरेस्खत करन , वणिन, मूर्ति, बुत, नक्क शी, कक्षस्क्िक चे र , और इसक मतिब य ै कक भगव न क कोई प्रतीक, छस्व, लकेच, वणिन, मूर्ति, बुत, नक्क शी य स्चत्र न ीं ै!


- इस अथि की पुस्ि कई अन्य लथ नों पर भी ोती ै स्जनमें से यजुवेद भी एक ै! (यजुवेद खिंि: 32 / कुि: 3)


उल्िेस्खत ब तों से लपि ो ज त ै कक: इलि म क सन्देश स्नम ित परमेश्वर की स्सफ़तों की प्रशिंस करन ै न की पत्थर य स्मट्टी क प्रस्तम बन कर उसकी स्सफ़तों को कम करन !


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


19


य अक्ि के स्खि फ ै की स्जस परमेश्वर ने म नव प्र णी को अनस्लतत् व से अस्लतत्व में ि य व ी म नव प्र णी परमेश्वर की अिग अिग रूपों में स्वस्भन्न प्रस्तम एिं बन ए


(इसके ब वजूद की म नव प्र णी ने अपने स्नम ित को कभी देख ी न ीं) तथ कफर कोई दूसर आदमी आए और अन्य रूपों और छस्वयों में अपने भगव न की प्रस्तम एिं बन ए इत्य कद इसी तर और भी?


प्र णी द्व र स्नम ित के प्र स्णयों में से ककसी प्र णी की शक्ि में उसकी प्रस्तम बन न परमेश्वर क अपम न ै तथ स्नम ित परमेश्वर र उस प्रस्तम से म न ै स्जसे म नुि द्व र कल्पन ककय ज सकत ै और इस तर के स्चत्र , स्वस्भन्न आक र और रूप की मूर्तिय िं समय बीतने के स थ म नव म नस के स्िए मस् म ग न क क रण बन ज ती ैं और सच्च परमेश्वर को छोड कर जो की तन मस् म ग न और पूज के योग्य ै प्रस्तम की पूज और प्र थिन करने िगत ै (स्वशेिकर यकद वे बडे और अजीब दृश्य के ों) और इस ब त क सबूत कई देशों में स्मित ै!


सविशस्िम न परमेश्वर सब को पैद करने व ि और सब को बन ने व ि ै उसके इस्ख्तय र में र ची़ि की ब दश त ै व र ची़ि को अकेिे स्नपि त ै च े व प्र णी ो य स्नर्मित !


और य ी स् कमत ै की इलि म ने ईश्वर क प्रस्तम बन ने से मन ककय ै च े व स्मट्टी क प्रस्तम ो य पत्थर क और सविशस्िम न परमेश्वर की श न के मोत स्बक उसकी पूज और त ़िीम करने क आदेश कदय ै!


*******


(प्रश्न8): स् न्दू: ह िंदू क ते ैं की प्रस्तम ओं की पूज क उद्देश्य केंकद्रत ध्य न के स थ भगव न की पूज करन और मन में व्य कुित क अभ व कम करन ै,इस ब रे में आप क क्य क न ै?


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page


20


(उत्तर8): मुस्लिम: य ब त स्नर ि र ै मैं उद रण के म ध्यम से इसे लपि करन च त हूूँ:


क्य य कल्पन ककय ज सकत ै की कोई मस् ि अपने पस्त को छोड ककसी ग़ैर मदि की छस्व इस्ततय र करे इस गुम न में की इस से उसक मन अपने पस्त की य द में ़िय द केस्न्द्रत और अज्ञ नक री ोग और उसे भूिन न मुमककन ोग ? जबकक इस की आज्ञ उसके पस्त ने उसे न ीं कदय ै क्य पस्त के स्िए य मुमककन ोग की इस तर के ग़ित और स्नर ि र द वे को कोबुि करे?! स्नस्ित रूप से: न ी इसके और उसके बीच कोई सिंबिंि न ीं ै और पस्त अपने अस्िक र में इसे गिंभीर गिती म नेग !


- ठीक इसी तर अल्प, न ़िुक और दुघििन ग्रलत ोने व िे प्रस्तम (एक कम़िोर जीव द्व र बन य गय ) सविशस्िम न स्वश्व के स्नम ित ईश्वर से क्य ररश्त और क्य सिंबिंि ै?! स्नसिंदे ़िर भी सिंबिंि क कोई गुिंज इश न ीं और ऐसे स्नि िररत द वे को म नन ईश्वर क अपम न ै!


बस्ल्क य अपम नजनक तलवीरें ऐसे ईश्वर की कल्पन की ि रण देती ै जो उसकी मस् म और गौरव के योग्य न ीं र कोई अपने अपने ढिंग से अिग अिग शक्िो सूरत में अपने भगवन की मूर्ति बन त ै और स्जस स्जस भवग न की पूज करत ै उस पे गवि के क रन र व्यस्ि अपने भगव न को दूसरे के भगव न से शस्िश िी बत त ै एक भगव न की मूर्ति दूसरे भगव न की मूर्तियों से अिग ोती ैं कोई मूर्ति उच्च दज ि की ोती ै तो कोई कम द़ि ि की और कोई उस से भी कम द़िे की... और इसी तर , ग य को अन्य पूजनीय ज नवरों से अस्िक पस्वत्र म न ज त ै और प्रत्येक क अिग अिग ढिंग से अपनी इक्छ अनुस र पूज ककय ज त ै!


य ीं से य ब त लपि ो ज ती ै की इस तर के गैर प्रम स्णत और स्बन सबूत के ब तों की कोई वजूद न ीं ै!


*******


ह दिं ू और मुस्लिम के बीच एक श िंत सिंव द


Page



हाल के पोस्ट

जैविक विकास - एक इस्ल ...

जैविक विकास - एक इस्लामी परिप्रेक्ष्य

सृजनवाद, विकासवाद, बु ...

सृजनवाद, विकासवाद, बुद्धिमान डिज़ाइन या इस्लाम?

एक मुस्लिम उपदेशक का ...

एक मुस्लिम उपदेशक का एक ईसाई व्यक्ति के लिए एक संदेश

शवल के छह दिन के उपवा ...

शवल के छह दिन के उपवास का पुण्य