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7वीं शताब्दी की शुरुआत में उस समय के दो सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बाइज़ेंटाइन[1] और फारसी साम्राज्य थे। साल 613 - 614 सीई में इन दो साम्राज्यों में युद्ध हुआ, जिसमे बाइज़ेंटाइन को फारसियों के हाथों एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा। दमिश्क और यरुशलम दोनों फारसी साम्राज्य के अधीन हो गए। पवित्र क़ुरआन के अध्याय अल-रूम  में यह कहा गया है कि “बाइज़ेंटाइन बुरी तरह हारे हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें जीत हासिल होगी:”





"रोमन क़रीब की जमीन पर हार गए, लेकिन हारने के तीन से नौ साल के अंदर फिर से जीतेंगे। इन सब पर ईश्वर का ही नियंत्रण है, पहले भी और बाद में भी।" (क़ुरआन 30:2-4)





ऊपर के ये छंद 620 सी.ई. के आसपास आये, 613 - 614 सी.ई. में मूर्तिपूजक फारसियों के हाथों ईसाई बाइज़ेंटाइन की हार के लगभग 7 साल बाद। फिर भी छंद मे यह बताया गया है कि बाइज़ेंटाइन जल्द ही जीतेंगे। वास्तव में बाइज़ेंटाइन इतनी बुरी तरह हारा था कि इसके साम्राज्य के बचने की उम्मीद भी मुश्किल लग रही थी, इसके फिर से जीतने की बात तो छोड़ ही दें।





सिर्फ फ़ारसी ही नही बल्कि बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के उत्तर और पश्चिम में स्थित अवार्स, स्लाव और लोम्बार्ड्स भी बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा बन गए थे। अवार्स कॉन्स्टेंटिनोपल की दीवारों तक आ गए थे और लगभग सम्राट को पकड़ ही लिया था। कई गवर्नरों ने सम्राट हेराक्लियस के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, और साम्राज्य पतन के कगार पर था। मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र और आर्मेनिया जो पहले बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के थे, उन पर भी फारसियों ने आक्रमण कर दिया था। संक्षेप में, हर कोई बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के खत्म होने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन ठीक उसी समय अध्याय अल-रूम का छंद आया जिसमे बताया गया कि बाइज़ेंटाइन कुछ वर्षों में फिर से जीतेगा। ये छंद आने के कुछ समय बाद ही बाइज़ेंटाइन सम्राट ने चर्च के सोने और चांदी को पिघलाने का आदेश दिया ताकि सेना के खर्चे और हारे हुए क्षेत्रों को वापस पाने के लिए अपने अभियान के खर्चे पुरे कर सकें। 





अध्याय अल-रूम का छंद आने के लगभग 7 साल बाद दिसंबर 627 सीई में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य और फारसी साम्राज्य के बीच मृत सागर के आसपास के क्षेत्र में एक निर्णायक युद्ध हुआ,[2] और इस बार बाइज़ेंटाइन सेना ने आश्चर्यजनक रूप से फारसियों को हरा दिया। इसके कुछ महीने बाद फारसियों को बाइज़ेंटाइन के साथ एक समझौता करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें उन क्षेत्रों को वापस करना पड़ा जो उन्होंने उनसे लिया था। तो ईश्वर ने क़ुरआन में जैसा बताया था आखिर में वही हुआ और रोमनों की चमत्कारिक रूप से जीत हुई।





ऊपर दिए गए छंदो में एक और भौगोलिक तथ्य बताया गया है जिसका उस समय कोई भी पता नहीं लगा सका होगा। अध्याय अल-रूम के तीसरे छंद में यह बताया गया है कि रोम वाले "निचले भूमि बिंदु" (क़ुरआन 30:3) पर हारे थे। ध्यान देने वाली बात है कि दमिश्क और यरुशलम में जिन स्थानों पर मुख्य युद्ध हुए थे वो ग्रेट रिफ्ट वैली नामक निचले इलाके के विशाल क्षेत्र में स्थित हैं। ग्रेट रिफ्ट वैली जमीन पर एक विशाल 5,000 किलोमीटर की भ्रंश रेखा है जो एशिया के मध्य-पूर्व में उत्तरी सीरिया से पूर्वी अफ्रीका में मध्य मोज़ाम्बिक तक जाती है। सबसे उत्तरी विस्तार सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन और जॉर्डन तक है। दरार फिर दक्षिण में अदन की खाड़ी तक फैली हुई है, पूर्वी अफ्रीका से होते हुए अंत में मोज़ाम्बिक में निचली ज़ांबेज़ी नदी घाटी तक है।





एक दिलचस्प तथ्य जो हाल ही में उपग्रह चित्रों की मदद से खोजा गया है वह यह है कि ग्रेट रिफ्ट वैली में स्थित मृत सागर के आसपास का क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे कम ऊंचाई वाला है। बल्कि पृथ्वी पर सबसे निचला बिंदु मृत सागर की तटरेखा है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 400 मीटर[3] है। इसका मतलब यह है कि ये सबसे निचले बिंदु पर स्थित है और समुद्र से पानी नहीं बह सकता। पृथ्वी पर कोई भी स्थलीय बिंदु मृत सागर की तटरेखा से नीचा नही है।[4] 





 





 Dead Sea Rift Valley





मृत सागर रिफ्ट वैली, इज़राइल और जॉर्डन अक्टूबर 1984, 190 समुद्री मील (350 किलोमीटर) की ऊंचाई से देखा गया। इस लगभग वर्टीकल तस्वीर में, मृत सागर रिफ्ट वैली मध्य पूर्व से होते हुए दक्षिण-उत्तर को काटती है। मृत सागर का सतह, समुद्र तल से 1292 फीट (394 मीटर) नीचे, पृथ्वी का सबसे निचला बिंदु है। (सौजन्य: छवि विज्ञान और विश्लेषण प्रयोगशाला, नासा जॉनसन स्पेस सेंटर, फोटो #: STS41G-120-56, http://eol.jsc.nasa.gov)


 





इससे यह स्पष्ट होता है कि देश या प्रान्त जो मृत सागर के आसपास के क्षेत्र में रिफ्ट वैली पर रहता है उसे ही क़ुरआन में "सबसे निचली भूमि" बताया गया है। यह क़ुरआन का एक चमत्कार ही है क्योंकि 7वीं शताब्दी में इस तरह के तथ्य को कोई भी व्यक्ति उपग्रह और आधुनिक तकनीक के बिना न तो जान सकता था और न ही इसकी भविष्यवाणी कर सकता था। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब ब्रह्मांड को बनाने वाले और पैदा करने वाले ईश्वर ने पैगंबर मुहम्मद को इसके बारे में बताया हो।



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