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मरियम का जन्म


“वस्तुतः, ईश्वर ने आदम, नूह़, इब्राहीम की संतान तथा इमरान की संतान को संसार वासियों में चुन लिया था। ये एक-दूसरे की संतान हैं और अल्लाह सब सुनता और जानता है। जब इमरान की पत्नी ने कहाः हे मेरे पालनहार! जो मेरे गर्भ में है, मैंने तेरे लिए उसे मुक्त करने की मनौती मान ली है। तू इसे मुझसे स्वीकार कर ले। वास्तव में, तू ही सब कुछ सुनता और जानता है। फिर जब उसने बालिका जनी, तो (संताप से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे तो बालिका हो गयी, हालाँकि जो उसने जना, उसका अल्लाह को भली-भाँति ज्ञान था -और नर नारी के समान नहीं होता- और मैंने उसका नाम मर्यम रखा है और मैं उसे तथा उसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी शरण में देती हूँ।'' (क़ुरआन 3:33-36)





मरियम का बचपन


"तो तेरे पालनहार ने उसे भली-भाँति स्वीकार कर लिया तथा उसका अच्छा प्रतिपालन किया और ज़करिय्या को उसका संरक्षक बनाया। ज़करिय्या जबभी उसके मेह़राब (उपासना कक्ष) में जाता, तो उसके पास कुछ खाद्य पदार्थ पाता, वह कहता कि हे मरयम! ये कहाँ से (आया) है? वह कहतीः ये ईश्वर के पास से आया है। वास्तव में, ईश्वर जिसे चाहता है, अगणित जीविका प्रदा करता है।" (क़ुरआन 3:37)





भक्त मरियम


"और (याद करो) जब स्वर्गदूतो ने मरयम से कहाः हे मरयम! तुझे ईश्वर ने चुन लिया तथा पवित्रता प्रदान की और संसार की स्त्रियों पर तुझे चुन लिया। हे मरयम! अपने पालनहार की आज्ञाकारी रहो, सज्दा करो तथा रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करती रहो। ये ग़ैब (परोक्ष) की सूचनायें हैं, जिन्हें हम आपकी ओर प्रकाशना कर रहे हैं और आप उनके पास उपस्थित नहीं थे, जब वे अपनी पर्चियां फेंक रहे थे कि कौन मरयम का अभिरक्षण करेगा और न उनके पास उपस्थित थे, जब वे झगड़ रहे थे।” (क़ुरआन  3:42-44)





नवजात बच्चे के लिए खुशखबरी


"जब स्वर्दूतो ने कहाः हे मरयम! ईश्वर तुझे अपने एक शब्द की शुभ सूचना दे रहा है, जिसका नाम मसीह़ ईसा पुत्र मरयम होगा। वह लोक-प्रलोक में प्रमुख तथा मेरे समीपवर्तियों में होगा। वह लोगों से गोद में तथा अधेड़ आयु में बातें करेगा और सदाचारियों में होगा। मरयम ने (आश्चर्य से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे पुत्र कहाँ से होगा, मुझे तो किसी पुरुष ने हाथ भी नहीं लगाया है? उसने कहाः इसी प्रकार ईश्वर जो चाहता है, उत्पन्न कर देता है। जब वह किसी काम के करने का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए कहता है किः "हो जा", तो वह हो जाता है। और ईश्वर उसे पुस्तक तथा प्रबोध और तौरात तथा इंजील की शिक्षा देगा। और फिर वह बनी इस्राईल का एक दूत होगा और कहेगाः कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से निशानी लाया हूं। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के आकार के समान बनाऊंगा, फिर उसमें फूंक दूंगा, तो वह ईश्वर की अनुमति से पक्षी बन जायेगा और ईश्वर की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर दूंगा और मुर्दो को जीवित कर दूंगा तथा जो कुछ तुम खाते तथा अपने घरों में संचित करते हो, उसे तुम्हें बता दूंगा। निःसंदेह, इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानियां हैं, यदि तुम विश्वासी हो। तथा मैं उसकी सिध्दि करने वाला हूं, जो मुझसे पहले की है 'तौरात'। तुम्हारे लिए कुछ चीज़ों को ह़लाला (वैध) करने वाला हूं, जो तुमपर ह़राम (अवैध) की गयी है तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की निशानी लेकर आया हूं। अतः तुम ईश्वर से डरो और मेरे आज्ञाकारी हो जाओ। वास्तव में, ईश्वर मेरा और तुम सबका पालनहार है। अतः उसी की वंदना करो। यही सीधी डगर है।" (क़ुरआन 3:45-51)





"तथा आप, इस पुस्तक (क़ुरआन) मे मरयम की चर्चा करें, जब वह अपने परिजनों से अलग होकर एक पूर्वी स्थान की ओर आयीं। फिर उनकी ओर से पर्दा कर लिया, तो हमने उसकी ओर अपनी रूह़ (आत्मा) को भेजा, तो उसने उसके लिए एक पूरे मनुष्य का रूप धारण कर लिया। उसने कहाः मैं शरण माँगती हूँ अत्यंत कृपाशील की तुझ से, यदि तुझे ईश्वर का कुछ भी भय हो।"[1] स्वर्गदूत ने कहाः मैं तेरे पालनहार का भेजा हुआ हूँ, ताकि तुझे एक पुनीत बालक प्रदान कर दूँ। वह बोलीः ये कैसे हो सकता है कि मेरे बालक हों, जबकि किसी पुरुष ने मुझे स्पर्श भी नहीं किया है और न मैं व्यभिचारिणी हूँ? स्वर्गदूत ने कहाः ऐसा ही होगा, तेरे पालनहार का वचन है कि वह मेरे लिए अति सरल है और ताकि हम उसे लोगों के लिए एक निशानी बनायें तथा अपनी विशेष दया से और ये एक निश्चित बात है।”[2] (क़ुरआन 19:16-21)





बेदाग गर्भाधान


"तथा जिसने रक्षा की अपनी सतीत्व की, तो फूंक दी हमने उसके भीतर अपनी आत्मा से और उसे तथा उसके पुत्र को बना दिया एक निशानी संसार वासियों के लिए।"[3] (क़ुरआन  21:91)





यीशु का जन्म


"फिर वह गर्भवती हो गई तथा उस (गर्भ को लेकर) दूर स्थान पर चली गयी। फिर प्रसव पीड़ा उसे एक खजूर के तने तक लायी, कहने लगीः क्या ही अच्छा होता, मैं इससे पहले ही मर जाती और भूली-बिसरी हो जाती। तो उसके नीचे से पुकारा कि उदासीन न हो, तेरे पालनहार ने तेरे नीचे एक स्रोत बहा दिया है। और हिला दे अपनी ओर खजूर के तने को, तुझपर गिरायेगा वह ताज़ी पकी खजूरें। अतः, खा, पी तथा आँख ठण्डी कर। फिर यदि किसी पुरुष को देखे, तो कह देः वास्तव में, मैंने मनौती मान रखी है, अत्यंत कृपाशील के लिए व्रत की। अतः, मैं आज किसी मनुष्य से बात नहीं करूँगी। फिर उस (शिशु ईसा) को लेकर अपनी जाति में आयी, सबने कहाः हे मरयम! तूने बहुत बुरा किया। हे हारून की बहन! तेरा पिता कोई बुरा व्यक्ति न था और न तेरी माँ व्यभिचारिणी थी। मरयम ने उस (शिशु) की ओर संकेत किया। लोगों ने कहाः हम कैसे उससे बात करें, जो गोद में पड़ा हुआ एक शिशु है? वह (शिशु) बोल पड़ाः मैं ईश्वर का भक्त हूँ। उसने मुझे पुस्तक (इन्जील) प्रदान की है तथा मुझे पैगंबर बनाया है। [4]  तथा मुझे शुभ बनाया है, जहां रहूं और मुझे आदेश दिया है प्रार्थना तथा दान का, जब तक जीवित रहूं। तथा आपनी माँ का सेवक (बनाया है) और उसने मुझे क्रूर तथा अभागा नहीं बनाया है। तथा शान्ति है मुझपर, जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मरूंगा और जिस दिन पुनः जीवित किया जाऊंगा।” (क़ुरआन 19:22-33)





“वस्तुतः ईश्वर के पास ईसा की मिसाल ऐसी ही है, जैसे आदम की। उसे (अर्थात, आदम को) मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर उससे कहाः "हो जा" तो वह हो गया।[5] (क़ुरआन 3:59)





"और हमने बना दिया मरयम के पुत्र तथा उसकी माँ को एक निशानी तथा दोनों को शरण दी एक उच्च बसने योग्य तथा प्रवाहित स्रोत के स्थान की ओर।"[6] (क़ुरआन 23:50)





मरियम की उत्कृष्टता


"तथा उदाहरण दिया है ईश्वर ने उनके लिए, जो विश्वासी थे, फ़िरऔन की पत्नी का। जब उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! बना दे मेरे लिए अपने पास एक घर स्वर्ग में तथा मुझे मुक्त कर दे फ़िरऔन तथा उसके कर्म से और मुझे मुक्त कर दे अत्याचारी जाति से। तथा मरयम, इमरान की पुत्री का, जिसने रक्षा की अपने सतीत्व की, तो फूँक दी हमने उसमें अपनी ओर से रूह़ (आत्मा) तथा उस (मरयम) ने सच माना अपने पालनहार की बातों और उसकी पुस्तकों को और वह भक्तो में से थी।” (क़ुरआन 66:11-12)





पैगंबर यीशु


"(हे मुसलमानो!) तुम सब कहो कि हमने ईश्वर पर विश्वास किया तथा उसपर जो (क़ुरआन) हमारी ओर उतारा गया और उसपर जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान की ओर उतारा गया और जो मूसा तथा ईसा को दिया गया तथा जो दूसरे पैगंबरो को, उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम इनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।" (क़ुरआन 2:136)





"(हे नबी!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के पैगंबरो के पास भेजी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उसकी संतान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी।" (क़ुरआन 4:163)





"मरयम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा कुछ नहीं कि वह एक दूत है, उससे पहले भी बहुत-से दूत हो चुके हैं, उसकी माँ सच्ची थी [1] दोनों भोजन करते थे।[2] आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ (एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके जा रहे हैं?" (क़ुरआन 5:75)





"यीशु सिर्फ एक भक्त (दास) हैं जिसपर हमने उपकार किया तथा उसे इस्राईल की संतान के लिए एक आदर्श बनाया।" (क़ुरआन 43:59)





यीशु का संदेश


"फिर हमने उन पैगंबरो के पश्चात् मरयम के पुत्र यीशु को भेजा, उसे सच बताने वाला, जो उसके सामने तौरात थी तथा उसे इंजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, उसे सच बताने वाली, जो उसके आगे तौरात थी तथा ईश्वर से डरने वालों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।” (क़ुरआन 5:46)





"हे अहले किताब (ईसाईयो!) अपने धर्म में अधिकता न करो और ईश्वर पर केवल सत्य ही बोलो। मसीह़ मरयम का पुत्र केवल ईश्वर का दूत और उसका शब्द है, जिसे (ईश्वर ने) मरयम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा है।[3] अतः, ईश्वर और उसके दूतों पर विश्वास करो और ये न कहो कि ईश्वर तीन हैं, इससे रुक जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है, इसके सिवा कुछ नहीं कि ईश्वर ही अकेला पूज्य है, वह इससे पवित्र है कि उसका कोई पुत्र हो, आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, उसी का है और ईश्वर काम बनाने के लिए बहुत है। मसीह़ कदापि ईश्वर का दास होने को अपमान नहीं समझता और न (ईश्वर के) समीपवर्ती स्वर्गदूत।[4]  जो व्यक्ति उसकी वंदना को अपमान समझेगा तथा अभिमान करेगा, तो उन सभी को वह अपने पास एकत्र करेगा।” (क़ुरआन 4:171-172)





“ये मरयम का पुत्र यीशु है, यही सत्य बात है, जिसके विषय में लोग संदेह कर रहे हैं। ईश्वर का ये काम नहीं कि अपने लिए कोई संतान बनाये, वह पवित्र है! जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है, तो उसके सिवा कुछ नहीं होता कि उसे आदेश दे किः “हो जा” और वह हो जाता है।[5] और (ईसा ने कहाः) वास्तव में, ईश्वर मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, अतः, उसी की वंदना करो, यही सुपथ (सीधी राह) है। फिर सम्प्रदायों ने आपस में विभेद किया, तो विनाश है उनके लिए, जो अविश्वासी है, एक बड़े दिन के आ जाने के कारण। (क़ुरआन 19:34-37)





"और जब आ गया यीशु खुली निशानियां लेकर, तो कहाः मैं लाया हूं तुम्हारे पास ज्ञान और ताकि उजागर कर दूं तुम्हारे लिए वह कुछ बातें, जिनमें तुम विभेद कर रहे हो। अतः, ईश्वर से डरो और मेरा ही कहा मानो। वास्तव में, ईश्वर ही मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है। अतः, उसी की वंदना करो, यही सीधी राह है। फिर विभेद कर लिया गिरोहों ने आपस में। तो विनाश है उनके लिए जिन्होंने अत्याचार किया, दुःखदायी दिन की यातना से। (क़ुरआन 43:63-65)





"तथा याद करो जब कहा मरयम के पुत्र यीशु नेः हे इस्राईल की संतान! मैं तुम्हारी ओर दूत हूं और पुष्टि करने वाला हूं उस तौरात की जो मुझसे पूर्व आयी है तथा शुभ सूचना देने वाला हूं एक दूत की, जो आयेगा मेरे पश्चात्, जिसका नाम अह़्मद है।[6] फिर जब वह आ गये उनके पास खुले प्रमाणों को लेकर, तो उन्होंने कह दिया कि ये तो खुला जादू है।"[7] (क़ुरआन 61:6)





यीशु के चमत्कार


"मरयम ने उस (शिशु) की ओर संकेत किया। लोगों ने कहाः हम कैसे उससे बात करें, जो गोद में पड़ा हुआ एक शिशु है? वह (शिशु) बोल पड़ाः मैं ईश्वर का भक्त हूं। उसने मुझे पुस्तक (इन्जील) प्रदान की है तथा मुझे पैगंबर बनाया है। [8] तथा मुझे शुभ बनाया है, जहां रहूं और मुझे आदेश दिया है प्रार्थना तथा दान का, जब तक जीवित रहूं। तथा आपनी माँ का सेवक बनाया है और उसने मुझे क्रूर तथा अभागा नहीं बनाया है। तथा शान्ति है मुझपर, जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मरूंगा और जिस दिन पुनः जीवित किया जाऊंगा।” (क़ुरआन 19:29-33)





('नवजात शिशु की खुशखबरी' के तहत और भी चमत्कारों का जिक्र किया गया है)





ईश्वर की अनुमति से स्वर्ग से भोजन मंगाना


"जब शिष्यों ने कहाः हे मरयम के पुत्र यीशु! क्या तेरा पालनहार ये कर सकता है कि हमपर आकाश से थाल उतार दे? यीशु ने कहाः तुम ईश्वर से डरो, यदि तुम वास्तव में विश्वास करने वाले हो। उन्होंने कहाः हम चाहते हैं कि उसमें से खायें और हमारे दिलों को संतोष हो जाये तथा हमें विश्वास हो जाये कि तूने हमें जो कुछ बताया है, सच है और हम उसके साक्षियों में से हो जायें। मरयम के पुत्र यीशु ने प्रार्थना कीः हे ईश्वर, हमारे पालनहार! हमपर आकाश से एक थाल उतार दे, जो हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाये तथा तेरी ओर से एक चिन्ह निशानी। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू उत्तम जीविका प्रदाता है। ईश्वर ने कहाः मैं तुमपर उसे उतारने वाला हूं, फिर उसके पश्चात् भी जो अविश्वास करेगा, तो मैं निश्चय उसे दण्ड दूंगा, ऐसा दण्ड कि संसार वासियों में से किसी को, वैसी दण्ड नहीं दूंगा।" (क़ुरआन 5:112-115)





यीशु और उसके शिष्य


"हे विश्वास करने वालो! तुम बन जाओ ईश्वर के धर्म के सहायक, जैसे मरयम के पुत्र यीशु ने शिष्यों से कहा था कि कौन मेरा सहायक है ईश्वर के धर्म के प्रचार में? तो शिष्यों ने कहाः हम हैं ईश्वर के धर्म के सहायक। तो विश्वास किया इस्राईलियों के एक समूह ने और अविश्वास किया दूसरे समूह ने। तो हमने समर्थन दिया उनको, जिन्होंने विश्वास किया उनके शत्रु के विरुध्द, तो वही विजयी रहे।[9] (क़ुरआन 61:14)





" तथा जब मैंने तेरे शिष्यों के दिलों में ये बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे दूत (यीशु) पर विश्वास करो, तो सबने कहा कि हमने विश्वास किया और तू साक्षी रह कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।" (क़ुरआन 5:111)





"फिर हमने, निरन्तर उनके पश्चात् अपने दूत भेजे और उनके पश्चात् भेजा मरयम के पुत्र यीशु को तथा प्रदान की उसे इन्जील और कर दिया उसका अनुसरण करने वालों के दिलों में करुणा तथा दया और संसार त्याग को उन्होंने स्वयं बना लिया, हमने नहीं अनिवार्य किया उसे उनके ऊपर। परन्तु ईश्वर की प्रसन्नता के लिए (उन्होंने ऐसा किया), तो उन्होंने नहीं किया उसका पूर्ण पालन। फिर भी हमने प्रदान किया उन्हें जिन्होंने विश्वास किया उनमें से उनका बदला और उनमें से अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं। हे लोगो जो विश्वास करते हो! ईश्वर से डरो और ईमान लाओ उसके दूत पर, वह तुम्हें प्रदान करेगा दुगुना प्रतिफल अपनी दया से तथा प्रदान करेगा तुम्हें ऐसा प्रकाश, जिसके साथ तुम चलोगे तथा क्षमा कर देगा तुम्हें और ईश्वरअति क्षमी, दयावान् है। ताकि ज्ञान हो जाये इन बातों से ईसाइयों को कि वह कुछ शक्ति नहीं रखते ईश्वर के अनुग्रह पर और ये कि अनुग्रह ईश्वर ही के हाथ में है। वह प्रदान करता है, जिसे चाहे और ईश्वर बड़े अनुग्रह वाला है।”[10] (क़ुरआन 57:27-29)





यीशु का जुनून


"तथा जब यीशु ने उनसे अविश्वास का संवेदन किया, तो कहाः ईश्वर के धर्म की सहायता में कौन मेरा साथ देगा? तो शिष्यों ने कहाः हम ईश्वर के सहायक हैं। हमने ईश्वर पर विश्वास किया, तुम इसके साक्षी रहो कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।[1]  हे हमारे पालनहार! जो कुछ तूने उतारा है, हम उसपर विश्वास करते हैं तथा तेरे दूत का अनुसरण करते हैं, अतः हमें भी साक्षियों में अंकित कर ले। तथा उन्होंने षड्यंत्र रचा और हमने भी योजना रची तथा ईश्वर योजना रचने वालों में सबसे अच्छा है। जब ईश्वर ने कहाः हे यीशु! मैं तुझे पूर्णतः लेने वाला [2] तथा अपनी ओर उठाने वाला हूं तथा तुझे अविश्वासियों से पवित्र (मुक्त) करने वाला हूं तथा तेरे अनुयायियों को प्रलय के दिन तक काफ़िरों के ऊपर करने वाला हूं। फिर तुम्हारा लौटना मेरी ही ओर है। तो मैं तुम्हारे बीच उस विषय में निर्णय कर दूंगा, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।" (क़ुरआन 3:52-55)





"तथा उनके कहने के कारण कि हमने ईश्वर के दूत, मरयम के पुत्र, ईसा मसीह़ को वध कर दिया, जबकि (वास्तव में) उसे वध नहीं किया और न सलीब (फाँसी) दी, परन्तु उनके लिए (इसे) संदिग्ध कर दिया गया। [3] निःसंदेह, जिन लोगों ने इसमें विभेद किया, वे भी शंका में पड़े हुए हैं और उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं, केवल अनुमान के पीछे पड़े हुए हैं और निश्चय उसे उन्होंने वध नहीं किया है। बल्कि ईश्वर ने उसे अपनी ओर आकाश में उठा लिया [4] है तथा ईश्वर प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।” (क़ुरआन 4:157-158)





यीशु के अनुयायी


"फिर आपके पास ज्ञान आ जाने के पश्चात् कोई आपसे यीशु के विषय में विवाद करे, तो कहो कि आओ, हम अपने पुत्रों तथा तुम्हारे पुत्रों और अपनी स्त्रियों तथा तुम्हारी स्त्रियों को बुलाते हैं और स्वयं को भी, फिर ईश्वर से सविनय प्रार्थना करें कि ईश्वर की धिक्कार मिथ्यावादियों पर हो। वास्तव में, यही सत्य वर्णन है तथा ईश्वर के सिवा कोई पूज्य नहीं। निश्चय ईश्वर ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है। फिर भी यदि वे मुँह फेरें, तो निःसंदेह ईश्वर उपद्रवियों को भली-भाँति जानता है। (हे पैगंबर!) कहो कि हे ईसाइयों! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ [5] जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि ईश्वर के सिवा किसी की वंदना न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को ईश्वर के सिवा पालनहार न बनाये [6]।' फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (ईश्वर के) आज्ञाकारी हैं" (क़ुरआन 3:61-64)





"निश्चय वे अविश्वासी हो गये, जिन्होंने कहा कि मरयम का पुत्र मसीह़ ही ईश्वर है। (हे पैगंबर!) उनसे कह दो कि यदि ईश्वर मरयम के पुत्र और उसकी माता तथा जो भी धरती में है, सबका विनाश कर देना चाहे, तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? तथा आकाश और धरती और जो भी इनके बीच है, सब ईश्वर ही का राज्य है, वह जो चाहे, उतपन्न करता है तथा वह जो चाहे, कर सकता है। तथा यहूदी और ईसाईयों ने कहा कि हम ईश्वर के पुत्र तथा प्रियवर हैं। आप पूछें कि फिर वह तुम्हें तुम्हारे पापों का दण्ड क्यों देता है? बल्कि तुमभी वैसे ही मानव पूरुष हो, जैसे दूसरे हैं, जिनकी उत्पत्ति उसने की है। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा आकाश और धरती तथा जो उन दोनों के बीच है, ईश्वर ही का राज्य है और उसी की ओर सबको जाना है। (क़ुरआन 5:17-18)





"निश्चय वे अविश्वासी हो गये, जिन्होंने कहा कि ईश्वर मरयम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः हे बनी इस्राईल! उस ईश्वर की वंदना करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने ईश्वर का साझी बना लिया, उसपर ईश्वर ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नर्क है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा। निश्चय वे अविश्वासी हो गये, जिन्होंने कहा कि ईश्वर तीन का तीसरा है!'[7] जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें से अविश्वासियों को दुखदायी यातना होगी। वे ईश्वर से माफ़ी तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि ईश्वर अति क्षमाशील दयावान् है।” (क़ुरआन 5:72-74)





"तथा यहूदी कहते हैं कि उज़ैर ईश्वर का पुत्र है,’[8] और (ईसाईयों) ने कहा कि मसीह़ ईश्वर का पुत्र है। ये उनके अपने मुँह की बातें हैं। वे उनके जैसी बातें कर रहे हैं, जो इनसे पहले अविश्वासी थे। उनपर ईश्वर की मार! वे कहाँ बहके जा रहे हैं? उन्होंने अपने विद्वानों और धर्माचारियों (संतों) को ईश्वर के सिवा पूज्य बना लिया तथा मरयम के पुत्र मसीह़ को, जबकि उन्हें जो आदेश दिया गया था, वो इसके सिवा कुछ न था कि एक ईश्वर की वंदना करें। कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही। वह उससे पवित्र है, जिसे उसका साझी बना रहे हैं।”[9] (क़ुरआन 9:30-31)





"ऐ विश्वास करने वालो! बहुत-से विद्वान तथा धर्माचारी (संत) लोगों का धन अवैध खाते हैं और (उन्हें) ईश्वर की राह से रोकते हैं तथा जो सोना-चाँदी एकत्र करके रखते हैं और उसे ईश्वर की राह में दान नहीं करते, उन्हें दुःखदायी यातना की शुभ सूचना सुना दें।” (क़ुरआन 9:34)





दूसरी बार आना


"और सभी ईसाई उस (ईसा) के मरने से पहले उसपर अवश्य विश्वास करेंगे।[10] और प्रलय के दिन वह उनके विरुध्द साक्षी होगा।”[11] (क़ुरआन 4:159)





"तथा वास्तव में, वह (ईसा) एक बड़ा लक्षण हैं प्रलय का। अतः, कदापि संदेह न करो [12] प्रलय के विषय में और मेरी ही बात मानो। यही सीधी राह है। (क़ुरआन 43:61)





जिन्दा उठने के दिन यीशु


"जब ईश्वर ने कहाः हे मरयम के पुत्र यीशु! अपने ऊपर तथा अपनी माता के ऊपर मेरा पुरस्कार याद कर, जब मैंने पवित्रात्मा (जिब्रील) द्वारा तुझे समर्थन दिया, तू गोद में तथा बड़ी आयु में लोगों से बातें कर रहा था तथा तुझे पुस्तक, प्रबोध, तौरात और इंजील की शिक्षा दी, जब तू मेरी अनुमति से मिट्टी से पक्षी का रूप बनाता और उसमें फूँकता, तो वह मेरी अनुमति से वास्तव में पक्षी बन जाता था और तू जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को मेरी अनुमति से स्वस्थ कर देता था और जब तू मुर्दों को मेरी अनुमति से जीवित कर देता था और मैंने बनी इस्राईल से तुझे बचाया था, जब तू उनके पास खुली निशानियाँ लाया, तो उनमें से अविश्वासियों ने कहा कि ये तो खुले जादू के सिवा कुछ नहीं है।।" (क़ुरआन 5:110)





"तथा जब ईश्वर (प्रलय के दिन) कहेगाः हे मरयम के पुत्र यीशु! क्या तुमने लोगों से कहा था कि ईश्वर को छोड़कर मुझे तथा मेरी माता की पूजा करो?'[13]’ वह कहेगाः तू पवित्र है, मुझसे ये कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने कहा होगा, तो तुझे अवश्य उसका ज्ञान हुआ होगा। तू मेरे मन की बात जानता है और मैं तेरे मन की बात नहीं जानता। वास्तव में, तू ही परोक्ष (ग़ैब) का अति ज्ञानी है।'[14] मैंने केवल उनसे वही कहा था, जिसका तूने आदेश दिया था कि ईश्वर की इबादत करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम सभी का पालनहार है। मैं उनकी दशा जानता था, जब तक उनमें था और जब तूने मेरा समय पूरा कर दिया, तो तू ही उन्हें जानता था और तू प्रत्येक वस्तु से सूचित है। यदि तू उन्हें दण्ड दे, तो वे तेरे दास (बन्दे) हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो वास्तव में तू ही प्रभावशाली गुणी है।”[15] ईश्वर कहेगाः ये वो दिन है, जिसमें सचों को उनका सच ही लाभ देगा। उन्हीं के लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वे उनमें नित्य सदावासी होंगे, ईश्वर उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे ईश्वर से प्रसन्न हो गये और यही सबसे बड़ी सफलता है। आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य ईश्वर ही का है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।" (क़ुरआन 5:116-120)



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