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मैं ईश्वर की मौजूदगी के बारे में हमेशा से अवगत थी। मुझे हमेशा लगता था की वह यहाँ है। कई बार यह एहसास दूरस्थ होता था, और कई बार मैं इसे नज़र-अंदाज कर देती थी। पर मैंने इसे कभी नकारा नही था। इसी के कारण, मैं अपने पुरे जीवन में ईश्वर की योजना को खोज रही थी। 





मैं कई चर्च गई। मैंने सुना, मैंने प्राथना की, मैंने उन सभी लोगों से मुलाकात की जो अलग अलग आस्था रखते थे। पर ऐसा लगता था जैसे कि हमेशा से कोई चीज है जिसके बारे में मुझे सही मालूम नहीं था; मुझे यह बहुत अस्पष्ट लगा, जैसे की कुछ छूट रहा है। मैंने अपने अतीत में कई लोगों से सुन रखा था कि, ''वैसे, मैं ईश्वर में विश्वास रखता हूँ, लेकिन मैं किसी धर्म को नहीं मानता। यह सब मुझे गलत लगता था। ''मैं यह महसूस करती थी कि, मैं ऐसे नही रह सकती और ना ही इसे ऐसे स्वीकार करना है। मुझे यह पता था कि अगर वह ईश्वर मौजूद है तो वह हमें बिना मार्गदर्शन के ऐसे ही नहीं छोड़ देगा, या फिर हमें सच से दूर नहीं रखेगा। कोई धर्म तो होगा जो "सच्चा धर्म" होगा। मुझे बस उसकी खोज करनी थी। 





जहां पर मैंने अपनी खोज को केंद्रित किया वहाँ पर ज्यादा चर्च थे, क्योंकि मैं इसी तरह बड़ी हुई थी, और ऐसा लगता था की उनकी शिक्षा में थोड़ी सच्चाई भी थी। हालाँकि, बहुत सारे अलग-अलग विचार थे, बुनियादी बातों पर बहुत सारी परस्पर विरोधी शिक्षाएँ जैसे प्रार्थना कैसे करें, किससे प्रार्थना करें या किसके माध्यम से, कौन बचने वाला है और कौन नहीं, और बचने के लिए एक व्यक्ति को क्या करना चाहिए। यह सब बहुत उलझा हुआ लग रहा था। मुझे लगा की मैं हौंसला नहीं छोड़ूँगी। मैं अभी एक और चर्च से आई थी और मैं पूरी तरह से निराश हो गई थी क्योंकि ईश्वर और हमारे अस्तित्व के उद्देश्य के बारे में उसके जो विचार थे गलत थे, और मुझे पता था कि वे जो सिखा रहे थे वह सच नहीं था। 





एक दिन, मैं एक किताबों की दुकान में घूम रही थी और मैं उसके धार्मिक भाग की तरफ चली गई। जब मैं वहाँ खड़ी थी, तो अधिकांश ईसाई पुस्तकों की विशाल श्रृंखला को देख रही थी, मेरे मन में यह देखने का विचार आया कि क्या उनमें इस्लाम के बारे में कुछ है। मैं इस्लाम के बारे में लगभग कुछ भी नहीं जानती थी, और मैंने जिज्ञासा से पहली किताब उठाई। लेकिन मैंने जो पढ़ा मैं उससे उत्साहित हो गई। पहली बात जिसने मुझे प्रभावित किया, वह यह थी कि 'ईश्वर के सिवा कोई पूजा के लायक नहीं है,' उसका कोई सहयोगी नहीं है, और सभी प्रार्थनाएं और पूजा केवल उसी के लिए निर्देशित हैं। यह इतना सरल, इतना शक्तिशाली, इतना प्रत्यक्ष और इतना अर्थपूर्ण लग रहा था। इसलिए वहां से मैंने इस्लाम के बारे में सब कुछ पढ़ना शुरू कर दिया।  





मैंने जो भी पढ़ा वह मेरे लिए बहुत मायने रखती थी। एकदम ऐसा लगने लगा जैसे की इस पहेली के सारे जवाब मिल गए हो, और एक साफ तस्वीर दिखने लगी हो। मैं बहुत उत्साहित थी मेरी धड़कन तभी बढ़ने लग जाती जब मैं इस्लाम के बारे में कुछ पढ़ती थी। फिर, जब मैंने क़ुरआन पढ़ी, मुझे ऐसा लगा की मैं इसको पढ़ने के काबिल हूँ। मुझे पता था की यह ईश्वर के तरफ से सीधे उसके पैगंबर(ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) द्वारा आई थी। यही सच था। मुझे ऐसे लग रहा था जैसे की मैं मुस्लिम बन चुकी हूँ पर अभी तक मुझे यह नहीं मालूम था। अब जब मैं एक मुसलमान के रूप में अपना जीवन शुरू कर रही हूं, मुझे यह जानकर शांति और सुरक्षा की भावना है कि मैं जो सीख रही हूं वह शुद्ध सत्य है और मुझे ईश्वर के करीब ले जाएगा। ईश्वर मेरा मार्गदर्शन करते रहें। आमीन। 



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