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सांस लेना, खाना, चलना आदि बहुत ही स्वाभाविक मानवीय कार्य हैं। लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं सोचते कि ये बुनियादी क्रियाएं कैसे होती हैं। उदाहरण के लिए, जब आप कोई फल खाते हैं तो आप यह नहीं सोचते कि यह आपके शरीर के लिए किस तरह उपयोगी होगा। आपके दिमाग में केवल एक ही चीज होती है कि भरपेट भोजन करें; उसी समय इस भोजन को स्वास्थ्यप्रद वस्तु बनाने के लिए आपका शरीर अत्यंत विस्तृत प्रक्रियायें करता है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।





वह पाचन तंत्र है जहां ये विस्तृत प्रक्रियाएं होती हैं, और जैसे ही भोजन का एक टुकड़ा मुंह में जाता है, यह कार्य करना शुरू कर देता है। इस प्रणाली में सबसे पहले लार भोजन को गीला करती है और इसे दांतों से पीसने और नीचे अन्नप्रणाली में भेजने में मदद करती है।





अन्नप्रणाली भोजन को पेट तक पहुंचाता है जहां यह संतुलित होता है। यहां पेट में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक एसिड भोजन को पचाता है। यह एसिड इतना खतरनाक होता है कि इसमें न केवल भोजन बल्कि पेट की दीवारों को भी घोलने की क्षमता होती है। बेशक इस आदर्श प्रणाली में इस तरह के दोष नहीं होने चाहिये। आंव नामक एक स्राव जो पाचन के दौरान निकलता है, पेट की सभी दीवारों को ढकता है और हाइड्रोक्लोरिक एसिड के विनाशकारी प्रभाव से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है। इस प्रकार पेट स्वयं को नष्ट करने से रोकता है।





यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि विकासवाद किसी भी तरह से ऊपर संक्षेप में वर्णित प्रणाली को नहीं समझा सकता। विकासवाद मानता है कि आज के जटिल जीव छोटे संरचनात्मक परिवर्तनों के क्रमिक संचय द्वारा आदिम कोशिकीय रूपों से विकसित हुए हैं। हालांकि, जैसा कि स्पष्ट रूप से कहा गया है, ऐसा नहीं हो सकता की पेट की प्रणाली धीरे-धीरे बनी हो। एक भी कारक की कमी, जीव की मृत्यु का कारण बनेगी।





जब भोजन पेट में जाता है तो रासायनिक परिवर्तनों की एक श्रृंखला की वजह से पेट का रस भोजन को तोड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है। अब तथाकथित विकासवादी प्रक्रिया में एक जीवित प्राणी की कल्पना करें जिसके शरीर में ऐसा नियोजित रासायनिक परिवर्तन पूरा नहीं हुआ है। यह जीवित प्राणी जो इस क्षमता को खुद से विकसित नहीं कर सकता, खाए गए भोजन को पचा नहीं पाएगा और अपने पेट में बिना पचे हुए भोजन के इकठ्ठा होने की वजह से मर जाएगा।





इसके अलावा, इस घुलने वाले एसिड के निकलने के साथ-साथ पेट की दीवारों को आंव भी निकालना पड़ता है। नहीं तो पेट का एसिड पेट को नष्ट कर देगा। इसलिए जीवित रहने के लिए पेट को एक ही समय में दोनों तरल पदार्थ (एसिड और आंव) को निकालना पड़ता है। इससे यह साबित होता है कि यह एक धीरे-धीरे होने वाला विकास नहीं था, बल्कि इसकी रचना सभी प्रणालियों के साथ एक बार में ही हो गई थी।





यह सब दिखाता है कि मानव शरीर कई छोटी मशीनों से बने एक विशाल कारखाने जैसा है, जो एक साथ पूर्ण सामंजस्य से काम करता है। जिस तरह सभी कारखानों में एक डिजाइनर, एक इंजीनियर और एक योजनाकार होता है, उसी तरह मानव शरीर का "उत्कृष्ट निर्माता" है।



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