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पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत इस्लाम का दूसरा खुलासा है। क़ुरआन की तरह ही इसमें वो वैज्ञानिक जानकारियां है जो 1400 साल पहले उपलब्ध नहीं थी। इन चमत्कारों में से "सात" जमीन भी एक है जिसका उल्लेख पैगंबर मुहम्मद ने कई बार अपनी बातो मे किया था। उनमें से दो ये हैं:





हदीस 1





ये अबू सलामा के अधिकार पर बताया गया था, उनके और कुछ अन्य लोगों के बीच जमीन के एक टुकड़े को लेकर विवाद हुआ। जब उन्होंने इसके बारे में आयशा (पैगंबर की बीवी) को बताया, तो उन्होंने कहा, "ऐ सलामा! जमीन को बेईमानी से लेने से बचें, क्योंकि पैगंबर ने कहा:





"यदि कोई किसी की जमीन का एक टुकड़ा भी हड़पेगा तो उतने टुकड़े को सातो जमीन के साथ उसके गले से लटका दिया जायेगा।" (सहीह अल-बुखारी, 'अन्याय की किताब')





हदीस 2





सलीम ने अपने पिता के अधिकार पर बताया कि पैगंबर ने कहा है:





"जो कोई दूसरों की जमीन का एक टुकड़ा बेईमानी से लेगा तो उसे क़यामत के दिन सातों जमीन के नीचे डूबा जायेगा।" (सहीह अल-बुखारी, 'अन्याय की किताब')





ऊपर दी गई हदीस सामान्य रूप से बेईमानी करने से रोकती है, विशेष रूप से दूसरों की जमीन के टुकड़े को बेईमानी से लेने से। यहां सात जमीन किसे कहा गया है?





भूविज्ञान के अध्ययन ने सिद्ध किया है कि पृथ्वी सात क्षेत्रों से बनी है, जिनकी आंतरिक से बाहरी परतों की पहचान इस प्रकार है:





(1)  पृथ्वी का ठोस आंतरिक कोर (मूल): पृथ्वी के द्रव्यमान का 1.7%; 5,150 - 6,370 किलोमीटर (3,219 - 3,981 मील) गहरा।





आंतरिक कोर (मूल) ठोस है और मेंटल (आवरण) से अलग है, पिघले हुए बाहरी कोर (मूल) लटका है। ऐसा माना जाता है कि यह दबाव की वजह से जम गया है जैसा तापमान में कमी या दबाव बढ़ने पर अधिकांश तरल पदार्थों के साथ होता है।





(2)  तरल बाहरी कोर (मूल): पृथ्वी के द्रव्यमान का 30.8%; 2,890 - 5,150 किलोमीटर (1,806 - 3,219 मील) गहरा।





बाहरी कोर (मूल) एक गर्म, विद्युत प्रवाहकीय तरल है जिसके भीतर संवहनी गति होती है। यह प्रवाहकीय परत जमीन के घूमने के साथ मिलकर एक डायनेमो प्रभाव पैदा करती है जो विद्युत धाराओं के एक सिस्टम को बनाए रखता है जिसे जमीन के चुंबकीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। इसकी वजह से ही पृथ्वी के घूमने के हल्के झटके लगते हैं। यह परत शुद्ध पिघले हुए लोहे की तरह घनी नहीं है, जो हल्के तत्वों की उपस्थिति का संकेत देती है। वैज्ञानिकों को लगता है कि लगभग 10% परत सल्फर और/या ऑक्सीजन से बनी है क्योंकि ये तत्व ब्रह्मांड में अधिक मात्रा में हैं और पिघले हुए लोहे में आसानी से घुल जाते हैं।





(3)  "डी" परत: पृथ्वी के द्रव्यमान का 3%; 2,700 - 2,890 किलोमीटर (1,688 - 1,806 मील) गहरा।





यह परत 200 से 300 किलोमीटर (125 से 188 मील) मोटी है और मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान का लगभग 4% है। इसे अक्सर निचले मेंटल (आवरण) के हिस्से के रूप में जाना जाता है, लेकिन भूकंपीय असंतुलन बताता है कि "डी" परत इसके ऊपर स्थित निचले मेंटल से रासायनिक रूप से अलग हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका पदार्थ या तो कोर (मूल) में घुल जाता है, या मेंटल के माध्यम से डूब जाता है लेकिन अपने घनत्व के कारण कोर (मूल) में नही डूबता।





(4)  निचला मेंटल: पृथ्वी के द्रव्यमान का 49.2%; 650 - 2,890 किलोमीटर (406 -1,806 मील) गहरा।





निचले मेंटल (आवरण) में 72.9% मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान होता है और शायद मुख्य रूप से सिलिकॉन, मैग्नीशियम और ऑक्सीजन से बना होता है। इसमें शायद कुछ आयरन, कैल्शियम और एल्यूमीनियम भी होता है। वैज्ञानिक अनुमान लगा के ये निष्कर्ष निकालते हैं कि पृथ्वी में सूर्य और आदिम उल्कापिंडों की तरह ही ब्रह्मांडीय तत्वों की मात्रा और अनुपात एक समान है।





(5)  मध्य मेंटल (बदलाव का क्षेत्र): पृथ्वी के द्रव्यमान का 7.5%; 400 - 650 किलोमीटर (250-406 मील) गहरा।





बदलाव का क्षेत्र या मध्यमण्डल (मध्य मेंटल के लिए) को कभी-कभी उपजाऊ परत भी कहा जाता है, इसमें 11.1% मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान होता है और यह बेसाल्टिक मैग्मास (चट्टान के आंशिक पिघलने से बनता है) का स्रोत होता है। इसमें कैल्शियम, एल्यूमीनियम और गार्नेट भी होता हैं, जो एक जटिल एल्यूमीनियम-असर वाला सिलिकेट खनिज है। गारनेट के कारण ठंडी होने पर यह परत घनी हो जाती है। गर्म होने पर यह तरणशील होती है और आसानी से पिघल के बेसाल्ट बन जाती हैं जो बाद में ऊपरी परतों से होकर मैग्मास (गर्म द्रव या अर्ध-तरल पदार्थ) बन कर ऊपर उठती हैं।





(6)  ऊपरी मेंटल: पृथ्वी के द्रव्यमान का 10.3%; 10 - 400 किलोमीटर (6 - 250 मील) गहरा।





ऊपरी मेंटल (आवरण) में मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान 15.3% होता है। हमने अवलोकन के लिए खंडित पर्वत बेल्टों और ज्वालामुखी विस्फोटों के टुकड़ों की खुदाई की है। ओलीवाइन (Mg,Fe)2SiO4 और पाइरॉक्सीन (Mg,Fe)SiO3 इसमें पाए जाने वाले मुख्य खनिज हैं। ये और अन्य खनिज उच्च तापमान पर रिफ्रैक्टरी और क्रिस्टलीय होते हैं; इसलिए इनमे से अधिकांश बढ़ते हुए मैग्मा से बाहर निकल के या तो नया पदार्थ बना लेते हैं या मेंटल को कभी नहीं छोड़ते। मेंटल के ऊपरी भाग को एस्थेनोस्फीयर कहा जाता है और वह आंशिक रूप से पिघला हुआ हो सकता है।





(7)  स्थलमंडल





महासागरीय भूपर्पटी: पृथ्वी के द्रव्यमान का 0.099%; 0-10 किलोमीटर (0 - 6 मील) गहरा।





पृथ्वी की बाहरी कठोर परत में भूपर्पटी और ऊपरी मेंटल (आवरण) शामिल हैं, जिसे स्थलमंडल कहा जाता है। महासागरीय भूपर्पटी में मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान का 0.147% होता है। पृथ्वी की भूपर्पटी का अधिकांश भाग ज्वालामुखीय गतिविधि से बना है। महासागरीय रिज (टीला) प्रणाली जो की ज्वालामुखियों का 40,000 किलोमीटर (25,000 मील) का नेटवर्क है 17 km3 प्रति वर्ष की दर से नया समुद्री भूपर्पटी बनाता है, जो समुद्र तल को बेसाल्ट से ढकता है। हवाई और आइसलैंड बेसाल्ट के ढेर के ऐसे दो उदाहरण हैं।









इस छवि में जमीन की पपड़ी और ऊपरी मेंटल से बना एक क्रॉस सेक्शन है जिसमे क्रस्ट लेयर और मेंटल के ऊपरी भाग से बने लिथोस्फीयर प्लेट्स को एस्थेनोस्फीयर (ऊपरी मेंटल) के ऊपर से गुजरते हुए दिखाया गया है। वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालय निगम (यू सी ए आर) में विंडोज टू द यूनिवर्स (http://www.windows.ucar.edu) पर। ©1995-1999, 2000 मिशिगन विश्वविद्यालय के रीजेंट्स; ©2000-05 वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालय निगम। महाद्वीपीय क्रस्ट: पृथ्वी के द्रव्यमान का 0.374%; 0-50 किलोमीटर (0 - 31 मील) गहरा





महाद्वीपीय क्रस्ट में 0.554% मेंटल-क्रस्ट द्रव्यमान होता है। यह पृथ्वी का बाहरी भाग है जो क्रिस्टलीय चट्टानों से बना है। ये कम घनत्व वाले उत्प्लावक खनिज हैं जो ज्यादातर क्वार्ट्ज (SiO2) और फेल्सपार (धातु-रहित सिलिकेट्स) के होते हैं। क्रस्ट (समुद्री और महाद्वीपीय) पृथ्वी की सतह है; इसलिए यह हमारे ग्रह का सबसे ठंडा भाग है। क्योंकि ठंडी चट्टानें धीरे-धीरे विकृत होती हैं, इसलिए हम इस कठोर बाहरी आवरण को स्थलमंडल (चट्टानी या मजबूत परत) कहते हैं।









यह छवि पृथ्वी के आंतरिक भाग के 7 परतों को दिखती है। (बीट्टी, 1990 से लिया गया)।





निष्कर्ष





पृथ्वी की परतें ऊपर दी गई पैगंबर मुहम्मद की हदीस से मेल खाती हैं। ये चमत्कार दो मामलों में है:





(1)  हदीस के मुताबिक, "वह क़यामत के दिन सात जमीनों के नीचे डुबा दिया जायेगा," ये एक केंद्र के आसपास जमीन की परतों की और इशारह करता है।





(2)  यह इस्लाम के पैगंबर द्वारा बताई गई जमीन की सात आंतरिक परतों की सटीकता बताता है।





एक रेगिस्तानी निवासी के लिए 1400 साल पहले इन तथ्यों को जानना तभी मुमकिन है जब ईश्वर ने उसे यह बताया हो।









रेफरेन्स





बीट्टी, जे. के. और ए. चेयकिन, दी न्यू सोलर सिस्टम। मैसाचुसेट्स: स्काई पब्लिशिंग, तीसरा संस्करण, 1990





प्रेस, फ्रैंक और रेमंड सीवर। पृथ्वी। न्यूयॉर्क: डब्ल्यू. एच. फ्रीमैन एंड कंपनी, 1986





सीड्स, माइकल ए। होराइजन्स। बेलमोंट, कैलिफोर्निया: वड्सवर्थ, 1995





अल-नज्जर, ज़गलौल। ट्रेज़र्स इन सुन्नाह: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण: 



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